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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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प्रत्युत्पन्नमति मुनि श्री विद्यासागर जी - 104 वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, के ज्ञाता गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के रत्नत्रयी गुणों के सागर में अवगाहन कर वंदन करता हूँ....  हे गुरुवर! आपने मुनि विद्यासागर जी की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें हिन्दी, संस्कृत भाषा में तो निपुण बनाया ही साथ ब्रम्हचारी अवस्था में विद्याधर जी को अंग्रेजी भाषा की रुचि होने के कारण आपने उन्हें अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कराने के लिए भी विद्वान लगवाए थे। एक वर्ष की अवधि में ही विद्याधर जी अंग्रेजी में पारंगत हो गए थे। इस विषय में दीपचंद जी छाबड़ा नांदसी वालो ने एक संस्मरण लिख कर दिया। वह आपको बता रहा हूँ-

 

प्रत्युत्पन्नमति मुनि श्री विद्यासागर जी

अजमेर १९६८ में प्रथम चातुर्मास सोनीजी की नसियाँ में चल रहा था। एक दिन प्रोफेसर निहालचंद जी बड़जात्या ने मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज से किसी गलती पर क्षमायाचना करते हुए कहा- 'I am sorry तब मुनि विद्यासागर जी महाराज ने मनोरंजनात्मक शब्दों में हँसते हुए कहा- I am not a lorry to carry your sorry' इतना सुनते ही वहाँ पर उपस्थित सभी लोग ठहाका मारते हुए हँस पड़े, तब अंग्रेजी के विद्वान प्रोफेसर निहालचंद जी बोले - महाराज श्री इतने कम समय में अंग्रेजी सीखना एवं हाजिर जवाबी होना बड़ा ही महत्व रखता है। मैं आपका कायल हो गया हूँ। इस तरह मुनि श्री विद्यासागर जी ने अपनी दिव्य ज्ञान ज्योति से अपनी सुप्त पड़ी प्रतिभा को खूब चमकाया, उस प्रतिभा से जो भी परिचय होता, वह उनका कायल बन जाता था। ऐसे प्रतिभावान गुरु के चरणों में नमस्कार करता हूँ.....

 

अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार

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