विद्याधर की धर्मक्रिया की समज - 92 वां स्वर्णिम संस्मरण
"माँ श्रीमन्ती ने हम दोनों पुत्रियों को ऐसी समज दी थी कि अभी तुम छोटी हो तुम्हसे उपवास नही हो सकता है। इसलिए एकासन किया करो। एकासन का मतलब एक बार सुबह भोजन करना और शाम को तला हुआ पदार्थ जैसे पूड़ी, बूंदी, लाडू, जलेबी आदि। छोटे बच्चों को सब को सब छूट होता है। माँ की ममता की झूठ समज को सच समझकर हम बच्चें वैसे ही एकासन करने लगे। हम लोगो की उम्र उस समय ९ और १२ वर्ष की थी। एक दिन भैया विद्याधर ने ऐसा करते हुए देख लिया तब कहा 'ऐसे भी कोई एकासन होता है क्या ? ऐसा तो मैं हमेशा कर सकता हूँ। एक बार भोजन करना और शाम को मुँह में कुछ भी नही डालना वही एकासन कहलाता है।' विद्याधर की इस समजाइस से हम दोनों बहनों ने अपनी क्रिया सुधारकर सही एकासन व्रत करना शुरू किया था।" इस तरह विद्याधर बचपन से ही कोई भी क्रिया हो उसे आगम के आलोक में सम्यक्-रीति से करते थे। हे गुरुवर!ऐसी समज मुझे भी प्राप्त हो इस भावना के साथ नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु
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