आचार्यों का जीवन गुणों के स्वरूपमय हुआ करता है। तप का खजाना, स्व-पर मत के विचारों में कुशल, श्रुत के जहाज में बैठकर श्रुत के समुद्र को पार करने की योग्य क्षमता के धारक स्वयं पार होते हैं और शिष्यों को भी पार लगाते हैं इसलिए आप पारगामी हैं। छत्तीस गुणों से पूर्ण हैं, पंचाचार से संबंधित क्रियाओं का अनुभव करने वाले एवं कराने वाले पाँच प्रकार के आचारों का स्वयं पालन करने वाले तथा शिष्यों को वैसा ही आचरण पालन कराने वाले, शिष्यों पर अनुग्रह करने वाले धर्माचार्य, उठते-बैठते समय भी श्रुत की धारणा के साथ कार्य को गति प्रदान करने वाले, जिनके रग-रग में श्रुत का आठों याम आयाम चलता रहता है। जो प्रतिदिन व्रतरूपी मंत्रों से कर्मों का होम करने में लगे रहते हैं। इस संसार में शिष्यजनों को संसार से पार लगाने के लिये अष्टकर्मों के क्षय का, जन्म-मरण के दुखों से बचने का श्रुत के माध्यम से ज्ञान का, चर्या का, क्रिया का प्रतिपादन करने वाले, षट्आवश्यकों में लगे-लगाये रखने वाले, तप रूपी धन के धनिक, पुण्य कर्मों में सदा लगे रहने वाले, १८ हजार शीलरूपी वस्त्रों को ओढ़ने वाले, ३६ मूलगुण एवं ८४ लाख उत्तरगुणों का पालन करने वाले, मोक्ष के दरवाजे खोलने वाले योद्धा, ज्ञान और दर्शन के नायक, चारित्र रूपी सागर के समान गम्भीर ऐसे श्रुतरूपी पोत में बैठकर संसार में समतारूपी रस का सेवन कर कर्म की परिस्थितियों से समझौता कर श्रुतदेवता की आराधना में मन-वचन-काय की परिणति को समाहित करना। विकथाओं से दूर रहकर शिष्यों को विकथाओं से बचाकर सम्यक् श्रुत में निमग्न कराने वाले पंचमकाल में पंचाचार के द्वारा आत्मा की आत्मपरिणति को यथाविधि, यथायोग्य बनाये रखकर श्रुत की धारा जो गुरुदेव ने ५० वर्षों से अविरल बनाये रखी है, इसलिए आप श्रुतजलधि संज्ञा के धारक, धीर-गंभीर विचारों से युक्त आपका जीवन निष्ठावान बना रहा।