आगम वाणी पूर्वाचार्यों से धर्मोपदेश के रूप में चली आ रही है, यह जिनवाणी कहलाती है, पहले मुनिधर्म का उपदेश प्रदान करें, फिर सामर्थ्य न हो तो उसे श्रावक धर्म का उपदेश दें। मुनि ही मोक्ष की इच्छा रखने वाला पापों से मौन रहने वाला, स्व स्वभाव में रहने वाला, निज तत्त्व को जानने वाला स्वकल्याण में तत्पर रहने वाला, इसे ही ऋषि कहते हैं, जो कर्मों के ऋणों से मुक्त होता है, वहीं वास्तव में ऋषि है। इसे यती भी कहते हैं। यत्नाचारपूर्वक, सावधानी पूर्वक, २८ मूलगुणों का निर्दोष रीति से पालन करना, २२ परीषहों को समता के साथ सहन करना, इसलिए यतिराज कहा जाता है। ऋषिराज कहा जाता है। मुनिराज कहा जाता है। आचार्य उमास्वामी महाराज तत्त्वार्थसूत्र में मंगलाचरण करते हुए कहते हैं
मोक्षमार्गस्य नेत्तारं भेत्तारं कर्मभू भृताम्।
ज्ञातारं विश्व तत्त्वानां वंदे तद्-गुण लब्ध्ये॥
मोक्षमार्ग का नेता वही होता है, जो कर्म के खण्डन के लिए लगा हो और गुणों की प्राप्ति के लिए लगा हो, वही मोक्षमार्ग का नेता होता है। श्रावक अपनी योग्यता से श्रावक धर्म का पालन करके भी मुनिधर्म को प्राप्त कर मोक्षमार्ग प्रशस्त कर सकता है। बिना मुनि बने मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्ष सम्भव नहीं है। वास्तव में मार्ग तो यही है। मोक्षमार्ग का उपदेश देने वाले वक्ता गली-कूचे में मिल जायेंगे। मोक्षमार्ग पर चलने वाले श्रमण दुर्लभ हैं। इस दुर्लभ मोक्षमार्ग का उपदेश अपनी चर्या से लगातार साधनारत रहकर बिना बोले सब कुछ कहने वाले और सब कुछ सहने वाले शीत-उष्ण, वर्षा ऋतु में साम्यभाव बनाये रखने वाले मोक्षमार्ग का ५० वर्षों से सम्यक् उपदेश देने वाले समीचीन चर्या करने वाले गुरुदेव जयवन्त हों।