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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ४१. मनमोहक (मनोज्ञ)

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    परम शब्द उनके नाम के आगे लगता है जिनके अन्दर गुणों की बहुलता, तन की सुन्दरता के रूप में प्रकट हुई जान पड़ती है। वे परमपूज्य मन को मोहित करने वाले, मोहिनी विद्या से युक्त जैन हो, अजैन हो सभी उनके सम्मोहन के घेरे में आते चलते हैं। जब वे मुस्कराते हैं, मानों लोगों के मन का हरण कर लिया हो, जब वचन बोलते हैं तब भी यही स्थिति बनती है। उठने का नहीं वचन सुनते रहने का मन बना रहता है। इसलिए गुरु जी प्रवचन दे देते हैं जिससे लोगों का धर्म मन में लगा रहे अन्यत्र न जा पाये। जब वे विहार करते हैं ऐसा लगता है धरती पर महावीर भगवान् आ गये हों। जब वो चर्या पर निकलते हैं तीर्थंकरों का जीता हुआ तीर्थ साक्षात् दृश्यमान होने लगता है जब उनसे कोई श्रावक चर्चा करता है तो ऐसा लगता है चर्चा करने का समय कम हो गया और समय मिलता तो अच्छा होता। यही चुम्बकीय आकर्षण लोगों के लिए मनमोहक बन गया। वास्तव में वे मनमोहक तो हैं ही लेकिन मनोज्ञ भी हैं। क्योंकि मोक्ष की इच्छा करने वाले, मोक्ष की ओर गमन करने की साधना के साधन का प्रयोग करने वाले धर्मी साधक हैं। जो विधर्मी का मनमोह लेते हैं। धर्मियों के मन में समा, मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। इनके रूप को लख इनका कौन नहीं बनना चाहता। जो इनके होते हुए भी इनका नहीं बन पा रहा है, यह उसका दुर्भाग्य जानो और जो इनके हो गये हैं उनके पुण्य का भाव जानो। इनका होने के बाद इन्हें छोड़ने का भाव नहीं आता। यही इनके मन, वचन, काय की प्रवृत्ति से निवृत्ति की स्वभाव की ओर जाने से मनमोहकता बढ़ती चली जा रही है।५० वर्षों में गुरुदेव निज स्वरूप की ओर ही मोहक बने रहे। इसलिए बाहर में मनमोहक, मनोज्ञ पुरुष का रूप धारण कर लोगों के वैचारिक जीर्णोद्धार भाव, परिवर्तन के सिद्ध पुरुष साबित हुए।


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