ज्ञान में विशिष्टता का गुण, गुणज्ञ संज्ञा को प्रदान करता है। कर्म के क्षय से क्षयोपशम मॅजता चला जाता है। विशुद्ध भावों से जिनवाणी की आराधना, प्रभु-गुरु की वाणी की अनुपालना से ज्ञान में सिद्धता प्राप्त होती चली जाती है। सूत्र की गहराई में घुसकर अर्थ को खोज निकालना, यह पूर्व का ज्ञान वर्तमान के क्षयोपशम को संयम एवं उनके लब्धिस्थानों को प्राप्त होने से बढ़ाता चला जाता है। ज्ञान के रहस्य का उद्घाटन करने वाले गुरु ज्ञानसागर महाराज को इसका श्रेय जाता है। जो मुनि विद्यासागर ने अपने श्रम एवं लगन से प्राप्त कर श्रुत को एक नया आयाम प्रदान किया। चेतन चन्द्रोदय आपके ज्ञान की विशिष्टता है, जो मिथ्या मान्यता को सम्यक्त्व मान्यता में बदलती है। आगम की टाँग खींचने वालों को चलने की सामर्थ्यता प्रदान करती है। आपकी एक और रचना षट्शती के नाम से जानी जाती है जिसमें छह शतक संस्कृत भाषा से सुशोभित होकर श्रुत के मर्म को प्रदर्शित कर रहे हैं। इसी प्रकार हिन्दी साहित्य में मूकमाटी महाकाव्य जो नये-नये, सरल-सरल अर्थों के माध्यम से जैनदर्शन को प्रदर्शित करते हैं। दोहा शतकों के माध्यम से भी नीतियों को कुरीतियों को दिखाने का बताने का प्रयास जारी रखा। ज्ञान की विशिष्टता, क्षयोपशम ज्ञान की बढ़ोत्तरी और आगे होती चली गई तो वह काव्य का रूप धारण करती गई और संक्षेप से हाइकू के माध्यम से दर्शन को बताने वाली समझने वाली, क्षयोपशम ज्ञान से युक्त वास्तव में ज्ञान के सागर विद्या के सागर, ज्ञान के अंगों को परिपुष्ट करने की क्षमता के नायक तात्कालिक प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने वाले, मौखिक श्रुत को धारण करने वाले, उसी श्रुत का चिन्तन करने वाले, उसी का लेखन करने वाले, व्याख्यान करने वाले, व्याख्यानाचार्य जान पड़ते हैं। श्रुत को सूत्र में शिष्यों के लिये प्रदान कर दिशाबोध के ज्ञातव्य महापुरुष, इन ५० वर्षों में आपने ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणियों, आर्यिकायों, मुनियों को श्रुत के अर्थ को एक नये अर्थ में अपनी प्रज्ञा रूप छैनी से प्रदान कर एक नवीन जिनवाणी का निर्माण कर श्रुत को आगे बढ़ाया।