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  1. यदि वैक्रियिक शरीर उपपाद जन्म से उत्पन्न होता है, तो क्या बिना उपपाद जन्म के वैक्रियिक शरीर नहीं होता ? इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं- लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ अर्थ - लब्धि से भी वैक्रियिक शरीर होता है। विशेष तपस्या करने से जो ऋद्धि की प्राप्ति होती है, उसे लब्धि कहते हैं। अतः मनुष्यों के तप के प्रभाव से भी वैक्रियिक शरीर हो जाता है। English - Attainment through special penance is also the cause of the origin of a transformable body.
  2. औपपादिकं वैक्रियिकम् ॥४६॥ अर्थ - उपपाद जन्म से जो शरीर उत्पन्न होता है, वह वैक्रियिक शरीर है। English - The transformable body originates by birth in special beds.
  3. अब यह बतलाते हैं कि किस जन्म से कौन-सा शरीर होता है। गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम् ॥४५॥ अर्थ - गर्भ जन्म तथा सम्मूर्छन जन्म से जो शरीर उत्पन्न होता है, वह औदारिक शरीर है। English - The first (physical body) is of uterine birth or spontaneous generation.
  4. आगे शरीरों के विषय में विशेष कथन करते हैं- निरुपभोगमन्त्यम् ॥४४॥ अर्थ - अन्त का कार्मण शरीर उपभोग रहित है। English - The last (the karmic) is not the means of enjoyment. इन्द्रियों के द्वारा शब्द वगैरह के ग्रहण करने को उपभोग कहते हैं। इस प्रकार का उपभोग कार्मण शरीर में नहीं होता, इसलिए वह निरुपभोग है। आशय यह है कि विग्रहगति में कार्मण शरीर के द्वारा ही योग होता है, किन्तु उस समय लब्धि रूप भावेन्द्रिय ही होती है, द्रव्येन्द्रिय नहीं होती। इसलिए शब्द आदि विषयों का अनुभव विग्रहगति में न होने से कार्मण शरीर को निरुपभोग कहा है। शंका - तैजस शरीर भी तो निरुपभोग है, फिर उसे क्यों नहीं कहा ? समाधान - तैजस शरीर तो योग में भी निमित्त नहीं है। अर्थात जैसे अन्य शरीरों के निमित्त से आत्मा के प्रदेशों में कम्पन होता है, तैजस के निमित्त से तो वह भी नहीं होता। अतः वह तो निरुपभोग ही है, इसी से यहाँ उसका कथन नहीं किया; क्योंकि निरुपभोग और सोपभोग का विचार करते समय उन्हीं शरीरों का अधिकार है, जो योग में निमित्त होते हैं। ऐसे शरीर तैजस के सिवा चार ही हैं। उनमें भी केवल कार्मण शरीर निरुपभोग है, बाकी के तीन शरीर सोपभोग हैं क्योंकि उनमें इन्द्रियाँ होती हैं और उनके द्वारा जीव विषयों को भोगता है।
  5. आगे बतलाते हैं कि इन पाँच शरीरों में से एक जीव के एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं- तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य: ॥४३॥ अर्थ - तैजस और कार्मण शरीर को लेकर एक जीव के एक समय में चार शरीर तक विभाग कर लेना चाहिए। English - Commencing with these (luminous and karmic), up to four bodies can be had simultaneously by a single soul since a soul can have at a time either physical or transformable body. अर्थात् विग्रहगति में तो जीव के तैजस और कार्मण ये दो शरीर ही होते हैं। विग्रहगति के सिवा अन्य अवसरों पर मनुष्य और तिर्यञ्चों के औदारिक, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। तथा छट्टे गुणस्थानवर्ती किसी किसी मुनि के औदारिक, आहारक, तैजस, कार्मण या औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, कार्मण ये चार शरीर होते हैं। वैक्रियिक और आहारक शरीर एक साथ न होने से एक साथ पाँच शरीर नहीं होते।
  6. ये दोनों शरीर किसी किसी जीव के होते हैं अथवा सब जीवों के होते हैं ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं- सर्वस्य ॥४२॥ अर्थ - ये दोनों शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं। English - The last two are associated with all transmigratory souls.
  7. इन दो शरीरों के विषय में और भी विशेष कहते हैं- अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥ अर्थ - यहाँ ‘च' शब्द विकल्पार्थक है। अतः आत्मा से तैजस और कार्मण का सम्बन्ध अनादि भी है और सादि भी है। कार्य-कारण रूप बन्ध की परम्परा की अपेक्षा तो अनादि सम्बन्ध है। English - The last two are of beginning-less association with the soul. अर्थात् जैसे औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर का सम्बन्ध अनित्य है, कभी कोई शरीर होता है और कभी नहीं होता। ऐसी बात तैजस और कार्मण में नहीं है। ये दोनों शरीर तो सब अवस्थाओं में संसारी जीव के साथ सदा ही रहते हैं। अतः अनादि हैं। तथा पहले के बंधे तैजस और कार्मण की प्रति समय निर्जरा होती रहती है और नवीन का बन्ध होता रहता है। इस अपेक्षा से सादि हैं। विशेषार्थ - जो लोग शरीर का आत्मा के साथ सम्बन्ध सर्वथा सादि या सर्वथा अनादि ही मानते हैं, उनके मत में अनेक दोष आते हैं। यदि आत्मा से शरीर का सम्बन्ध सादि ही माना जाये तो शरीर का सम्बन्ध होने से पहले आत्मा अत्यन्त शुद्ध ठहरी। ऐसी अवस्था में सर्वथा शुद्ध आत्मा के साथ शरीर का सम्बन्ध बिना निमित्त के कैसे हो सकता है ? यदि शुद्ध आत्मा के भी बिना निमित्त के शरीर का सम्बन्ध हो सकता है तो मुक्त जीवों के भी फिर से शरीर का सम्बन्ध होने का प्रसंग आ जायेगा। तब तो मुक्तात्मा का ही अभाव हो जायेगा। यदि आत्मा और शरीर का सम्बन्ध एकान्त से अनादि ही माना जायेगा तो जो सर्वथा अनादि होता है, उसका अन्त नहीं होता। अतः जीव की कभी मुक्ति नहीं होगी। इसलिए शरीर का सम्बन्ध कदाचित् सादि और कदाचित् अनादि ही मानना उचित है।
  8. इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं- अप्रतिघाते ॥४०॥ अर्थ - तैजस और कार्मण शरीर अप्रतिघाती हैं। अर्थात् जैसे अग्नि लोहे के पिण्ड में घुस जाती है, वैसे ही ये दोनों शरीर भी वज्रमय पटल से भी नहीं रुकते हैं। English - The last two are without impediment. शंका - वैक्रियिक और आहारक शरीर भी सूक्ष्म होने के कारण किसी से रुकते नहीं हैं, फिर इनको अप्रतिघाती क्यों नहीं कहा ? समाधान - यहाँ उन्हीं को अप्रतिघाती कहा है, जो समस्त लोक में कहीं भी नहीं रुकते। वैक्रियिक और आहारक समस्त लोक में अप्रतिघाती नहीं है। क्योंकि आहारक शरीर तो अढाई द्वीप तक ही जा सकता है, और मनुष्यों को ऋद्धि द्वारा प्राप्त हुआ वैक्रियिक भी मनुष्यलोक तक ही जा सकता है। तथा देवों का वैक्रियिक शरीर त्रस नाली के भीतर ही ऊपर सोलहवें स्वर्ग तक और नीचे तीसरे नरक तक जा सकता है। अतः समस्त लोक में अप्रतिघाती तो तैजस और कार्मण ही हैं।
  9. अब तैजस और कार्मण शरीर के प्रदेश बतलाते हैं- अनन्तगुणे परे ॥३९॥ अर्थ - आहारक शरीर से तैजस में अनन्त गुने परमाणु होते हैं और तैजस से कार्मण में अनन्त गुने परमाणु होते हैं। English - The last two have infinite times the space points of the previous one. शंका - यदि तैजस और कार्मण शरीर में इतने परमाणु होते हैं तो इन दोनों शरीरों के साथ होने से संसारी जीव अपने इच्छित प्रदेश को गमन नहीं कर सकेगा ?
  10. यदि आगे आगे के शरीर सूक्ष्म हैं, तो उनके बनने में पुद्गल के परमाणु भी कम कम लगते होंगे ? इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं- प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ॥३८॥ अर्थ - यहाँ प्रदेश शब्द का अर्थ परमाणु है। परमाणुओं की अपेक्षा से, तैजस से पहले के शरीर असंख्यात गुने, असंख्यात गुने हैं। English - Prior to the luminous body, each has innumerable times the number of space-points of the previous one. अर्थात् औदारिक शरीर में जितने परमाणु हैं, उनसे असंख्यात गुने परमाणु वैक्रियिक शरीर में हैं। और वैक्रियिक शरीर से असंख्यात गुने परमाणु आहारक शरीर में होते हैं। शंका - यदि आगे आगे के शरीर में असंख्यात गुने, असंख्यात गुने, परमाणु होते हैं तो आगे आगे के शरीर तो औदारिक से भी स्थूल होने चाहिए। फिर आगे आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं, ऐसा क्यों कहा ? समाधान - असंख्यात गुने, असंख्यात गुने, परमाणुओं से बने होने पर भी आगे के शरीर स्थूल नहीं हैं। बल्कि बन्धन के ठोस होने से उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। जैसे - रुई का ढेर और लोहे का पिण्ड।
  11. जैसे औदारिक शरीर दिखायी देता है, वैसे वैक्रियिक आदि शरीर क्यों नहीं दिखायी देते ? इसका उत्तर देते हैं- परं परं सूक्ष्मम् ॥३७॥ अर्थ - औदारिक से आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं। अर्थात् औदारिक से वैक्रियिक सूक्ष्म है, वैक्रियिक से आहारक सूक्ष्म है, आहारक से तैजस सूक्ष्म है और तैजस से कार्मण सूक्ष्म है। English - The bodies are more and more subtle successively.
  12. अब शरीरों का वर्णन करते हैं- औदारिक-वैक्रियिकाहारक-तैजस-कार्मणानि शरीराणि ॥३६॥ अर्थ - औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण ये पाँच शरीर हैं। English - The ornamental or physical, the transformable, the projectable, the luminous (electric) and the karmic are the five types of bodies. स्थूल शरीर को औदारिक कहते हैं। जो एक, अनेक, सूक्ष्म, स्थूल, हल्का, भारी आदि किया जा सके, उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं। छठे गुणस्थानवर्ती मुनि के द्वारा सूक्ष्म पदार्थ को जानने के लिए, अथवा संयम की रक्षा के लिए, अन्य क्षेत्र में वर्तमान केवली या श्रुत-केवली के पास भेजने को अथवा अन्य क्षेत्र के जिनालयों की वन्दना करने के उद्देश्य से जो शरीर रचा जाता है, उसे आहारक शरीर कहते हैं। औदारिक आदि शरीरों को कांति देनेवाला शरीर तैजस कहलाता है। और ज्ञानावरण आदि आठों कर्मों के समूह को कार्मण शरीर कहते हैं।
  13. आगे शेष जीवों के कौन सा जन्म होता है, यह बतलाते हैं- शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ॥३५॥ अर्थ - गर्भ जन्म वाले मनुष्य, तिर्यञ्चों और उपपाद जन्म वाले देव, नारकियों के सिवा बाकी के एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों और किन्हीं पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के सम्मूर्छन जन्म ही होता है। English - The birth of the rest of the beings is by spontaneous generation.
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