इन दो शरीरों के विषय में और भी विशेष कहते हैं-
अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥
अर्थ - यहाँ ‘च' शब्द विकल्पार्थक है। अतः आत्मा से तैजस और कार्मण का सम्बन्ध अनादि भी है और सादि भी है। कार्य-कारण रूप बन्ध की परम्परा की अपेक्षा तो अनादि सम्बन्ध है।
English - The last two are of beginning-less association with the soul.
अर्थात् जैसे औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर का सम्बन्ध अनित्य है, कभी कोई शरीर होता है और कभी नहीं होता। ऐसी बात तैजस और कार्मण में नहीं है। ये दोनों शरीर तो सब अवस्थाओं में संसारी जीव के साथ सदा ही रहते हैं। अतः अनादि हैं। तथा पहले के बंधे तैजस और कार्मण की प्रति समय निर्जरा होती रहती है और नवीन का बन्ध होता रहता है। इस अपेक्षा से सादि हैं।
विशेषार्थ - जो लोग शरीर का आत्मा के साथ सम्बन्ध सर्वथा सादि या सर्वथा अनादि ही मानते हैं, उनके मत में अनेक दोष आते हैं। यदि आत्मा से शरीर का सम्बन्ध सादि ही माना जाये तो शरीर का सम्बन्ध होने से पहले आत्मा अत्यन्त शुद्ध ठहरी। ऐसी अवस्था में सर्वथा शुद्ध आत्मा के साथ शरीर का सम्बन्ध बिना निमित्त के कैसे हो सकता है ? यदि शुद्ध आत्मा के भी बिना निमित्त के शरीर का सम्बन्ध हो सकता है तो मुक्त जीवों के भी फिर से शरीर का सम्बन्ध होने का प्रसंग आ जायेगा। तब तो मुक्तात्मा का ही अभाव हो जायेगा। यदि आत्मा और शरीर का सम्बन्ध एकान्त से अनादि ही माना जायेगा तो जो सर्वथा अनादि होता है, उसका अन्त नहीं होता। अतः जीव की कभी मुक्ति नहीं होगी। इसलिए शरीर का सम्बन्ध कदाचित् सादि और कदाचित् अनादि ही मानना उचित है।