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  1. आगे शेष क्षेत्रों की दशा बतलाते हैं ताभ्यामपरा भूमयोऽवस्थिताः ॥२८॥ अर्थ - भरत और ऐरावत के सिवा अन्य क्षेत्र अवस्थित हैं। उनमें सदा एक-सी ही दशा रहती है; हानि-वृद्धि नहीं होती। English - The regions other than Bharata and Airavata are stable and do not experience the change of periods.
  2. आगे भरत आदि क्षेत्रों में रहने वाले मनुष्यों की स्थिति वगैरह का वर्णन करते हैं- भरतैरावतयोवृद्धिह्यसौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम् ॥२७॥ अर्थ - भरत और ऐरावत क्षेत्र में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के छह समयों के द्वारा मनुष्यों की आयु, शरीर की ऊँचाई, भोगोपभोग सम्पदा वगैरह घटती और बढ़ती रहती हैं। उत्सर्पिणी में दिनों-दिन बढ़ती हैं। और अवसर्पिणी में दिनों-दिन घटती हैं। English - Regeneration (Utsarpini) and degeneration (Avsarpini) aeon each has six distinct periods during which the humans in Bharata and Airavata regions experience the improvement and decline respectively in their age, body and the materials for their use. विशेषार्थ - सुषमा-सुषमा, सुषमा, सुषमा-दुषमा, दुषमा-सुषमा, दुषमा और दुषमा-दुषमा ये छह भेद अवसर्पिणी काल के हैं और दुषमादुषमा, दुषमा, दुषमा-सुषमा, सुषमा-दुषमा, सुषमा और सुषमा-सुषमा ये छह भेद उत्सर्पिणी काल के हैं। अवसर्पिणी का प्रमाण दस कोटा-कोटी सागर है। इतना ही प्रमाण उत्सर्पिणी काल का है। इन दोनों कालों का एक कल्पकाल होता है। सुषमा-सुषमा का प्रमाण चार कोड़ा-कोड़ी सागर है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों की दशा उत्तरकुरु भोगभूमि के मनुष्यों के समान रहती है। फिर क्रम से हानि होते होते दूसरा सुषमा काल आता है। वह तीन कोड़ा-कोड़ी सागर तक रहता है। उसके प्रारम्भ में मनुष्यों की दशा हरिवर्ष भोगभूमि के समान रहती है। फिर क्रम से हानि होते होते तीसरा सुषमा-दुषमा काल आता है। ये काल दो कोड़ा-कोड़ी सागर तक रहता है। इसके प्रारम्भ में मनुष्यों की दशा हैमवतक्षेत्र भोगभूमि के समान रहती है। फिर क्रम से हानि होते-होते चौथा दुषमा-सुषमा काल आता है। यह काल बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर तक रहता है। उसके प्रारम्भ में मनुष्यों की दशा विदेह क्षेत्र के मनुष्यों के समान रहती है। फिर क्रम से हानि होते-होते पाँचवाँ दुषमा काल आता है, जो इक्कीस हजार वर्ष तक रहता है, यह इस समय चल रहा है। इसके बाद छठा दुषमा-दुषमा काल आता है। यह भी इक्कीस हजार वर्ष रहता है। इस छठे काल के अन्त में भरत और ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्ड में प्रलय काल आता है। इसमें वायु और वर्षा के वेग से पहाड़ तक चूरचूर हो जाते हैं। मनुष्य मर जाते हैं। बहुत से मनुष्य-युगल पर्वतों की कन्दराओं में छिपकर अपनी रक्षा कर लेते हैं। विष और आग की वर्षा से एक योजन नीचे तक भूमि चूर्ण हो जाती है। उसके बाद उत्सर्पिणी काल आता है। उसके आरम्भ में सात सप्ताह तक सुवृष्टि होती है। उससे पृथ्वी की गर्मी शान्त हो जाती है और लता वृक्ष वगैरह उगने लगते हैं। तब इधर-उधर छिपे हुए मनुष्य युगल अपने-अपने स्थानों से निकल कर पृथ्वी पर बसने लगते हैं। इस तरह उत्सर्पिणी का प्रथम अति दुषमा काल बीत जाने पर दूसरा दुषमा काल आ जाता है। इस काल के बीस हजार वर्ष बीतने पर जब एक हजार वर्ष शेष रहते हैं तो कुलकर पैदा होते हैं जो मनुष्यों को कुलाचार की तथा खाना पकाने वगैरह की शिक्षा देते हैं। इसके बाद तीसरा दुषमा-सुषमा काल आता है। इसमें तीर्थंकर वगैरह उत्पन्न होते हैं। इसके बाद उत्सर्पिणी के चौथे काल में जघन्य भोगभूमि, पाँचवें में मध्यम भोगभूमि और छठे में उत्कृष्ट भोगभूमि रहती है। उत्सर्पिणी काल समाप्त होने पर पुनः अवसर्पिणी काल प्रारम्भ हो जाता है। उसके प्रथम काल में उत्कृष्ट भोगभूमि, दूसरे में मध्यम भोगभूमि तथा तीसरे में जघन्य भोगभूमि रहती है। और चौथे से कर्मभूमि प्रारम्भ हो जाती है।
  3. आगे के पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार बतलाते हैं- उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥२६॥ अर्थ - उत्तर के ऐरावत से लेकर नील तक जितने क्षेत्र और पर्वत हैं, उनका विस्तार वगैरह दक्षिण के भरत आदि क्षेत्रों के समान ही जानना चाहिए। यह नियम दक्षिण भाग का जितना भी वर्णन किया है, उस सबके सम्बन्ध में लगा लेना चाहिए। English - The mountains and the regions in the north are equal to those in the south (in the reverse order). अतः उत्तर के हृद और कमल आदि का विस्तार वगैरह तथा नदियों का परिवार वगैरह दक्षिण के समान ही जानना चाहिए। सारांश यह है कि भरत और ऐरावत, हिमवन् और शिखरी, हैमवत और हैरण्यवत, महाहिमवन् और रूक्मि, हरिवर्ष और रम्यक तथा निषध और नील का विस्तार, इनके हृदों और कमलों की लम्बाई-चौड़ाई वगैरह तथा नदियों के परिवार की संख्या परस्पर में समान हैं।
  4. अन्य क्षेत्रों का विस्तार बतलाते हैं- तद्-द्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहान्ताः ॥२५॥ अर्थ - आगे के पर्वत और क्षेत्र विदेह क्षेत्र तक भरत क्षेत्र से दूने दूने विस्तार वाले हैं। English - Width of the mountains and regions is double that of the previous one up to the Videha. अर्थात् हिमवन् पर्वत का विस्तार भरत क्षेत्र से दूना है। हिमवन् पर्वत के विस्तार से हैमवत क्षेत्र का विस्तार दूना है। हैमवत क्षेत्र के विस्तार से महाहिमवन् पर्वत का विस्तार दूना है। महाहिमवान् पर्वत से हरिक्षेत्र का विस्तार दूना है। हरिक्षेत्र के विस्तार से निषध पर्वत का विस्तार दूना है और निषध पर्वत से विदेह क्षेत्र का विस्तार दूना है।
  5. भरतः षड्विंशतिपञ्चयोजनशतविस्तारः षट्चैकोनविंशतिभागा योजनस्य ॥२४॥ अर्थ - भरतक्षेत्र का विस्तार पाँच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण है। यह विस्तार दक्षिण से उत्तर तक है। English - Bharata is 526 6/19 yojans in width.
  6. इन नदियों का परिवार बतलाते हैं- चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृता गंगासिन्ध्वादयो नद्यः ॥२३॥ अर्थ - गंगा और सिन्धु नदी चौदह-चौदह हजार परिवार नदियों से घिरी हुई हैं। इस सूत्र में जो ‘नदी' शब्द दिया है, वह यह बतलाने के लिए दिया है कि इन नदियों का परिवार आगे-आगे दूना दूना होता गया है। अतः रोहित् और रोहितास्या की परिवार नदी अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार हैं। हरित् और हरिकान्ता की परिवार नदी छप्पनछप्पन हजार हैं। सीता और सीतोदा की परिवार नदी एक लाख बारह हजार-एक लाख बारह हजार हैं। अब भरत क्षेत्र का विस्तार बतलाते हैं English - Each of Ganga and Sindhu, the first pair of rivers, has 14,000 tributaries. The number of tributaries doubles for each pair of subsequent rivers up to Sita-Sitoda, and thereafter it reduces to half for each pair of subsequent rivers.
  7. शेषास्त्वपरगाः ॥२२॥ अर्थ - दो-दो नदियों में से पीछे वाली नदी पश्चिम समुद्र को जाती है। अर्थात् सिन्धु, रोहितास्या, हरिकान्ता, सीतोदा, नरकान्ता, रूप्यकूला और रक्तोदा ये सात नदियाँ पश्चिम समुद्र में जाकर मिलती हैं। English - The rest of the rivers are the western rivers and fall into the western ocean. विशेषार्थ - छह हृदों से चौदह नदियाँ निकली हैं। उनमें से पहले पद्म हृद और छठे पुण्डरीक हृद से तीन-तीन नदियाँ निकली हैं और शेष चार से दो-दो नदियाँ निकली हैं। सो पद्महृद के पूर्व द्वार से गंगा नदी, पश्चिम द्वार से सिन्धु नदी और उत्तर द्वार से रोहितास्या नदी निकली है। दूसरे महापद्म हृद के दक्षिण द्वार से रोहित और उत्तर द्वार से हरिकान्ता नदी निकली है। तीसरे तिगिञ्छ हृद के दक्षिण द्वार से हरित् और उत्तरद्वार से सीतोदा नदी निकली है। चौथे केसरी हृद के दक्षिण द्वार से सीता और उत्तर द्वार से नरकान्ता नदी निकली है। पाँचवें महापुण्डरीक हृद के दक्षिण द्वार से नारी और उत्तर द्वार से रूप्यकुला नदी निकली है। छठवें पुण्डरीक हृद के दक्षिण द्वार से सुवर्णकूला, पूर्व द्वार से रक्ता और पश्चिम द्वार से रक्तोदा निकली है।
  8. द्वयोर्द्वयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥२१॥ अर्थ - क्रम से एक एक क्षेत्र में दो-दो नदियाँ बहती हैं और उन दो-दो नदियों में से पहली नदी पूर्व समुद्र को जाती है अर्थात् गंगा, रोहित्, हरित्, सीता, नारी, सुवर्णकूला और रक्ता ये सात नदियाँ पूर्व के समुद्र में जाकर मिलती हैं। English - The first of each pair of these rivers flows eastwards and fall into the eastern ocean.
  9. अब उक्त क्षेत्र में बहने वाली नदियों का वर्णन करते हैं- गंगासिन्धुरोहिद्रोहितास्याहरिव्द्धरिकान्तासीतासीतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकुलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥२०॥ अर्थ - उन सात, क्षेत्रों के बीच से बहने वाली गंगा-सिन्धु, रोहितरोहितास्या, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकान्ता, सुवर्णकूलारूप्यकूला, रक्तारक्तोदा ये चौदह नदियाँ हैं। English - The Ganga-the Sindhu, the Rohit-the Rohitasya, the Harit- the Harikanta, the Sita-the Sitoda, the Nari-the Narakanta, the Suvarnakula-the Rupyakula and the Rakta-the Raktoda are the seven pairs of two rivers each flowing across these seven regions.
  10. इन कमलों पर निवास करने वाली देवियों का वर्णन करते हैं- तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीहीधृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिकपरिषत्काः ॥१९॥ अर्थ - उन कमलों की कर्णिका पर बने हुए महलों में निवास करने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी ये छह देवियाँ हैं। उनकी एक पल्य की आयु है और वे सामानिक एवं पारिषद् जाति के देवों के साथ रहती हैं। अर्थात् बड़े कमल के आस-पास जो और कमलाकार टापू हैं, उन पर बने हुए मकानों में सामानिक और पारिषद् जाति के देव बसते हैं। English - Devis called Sri, Hri, Dhriti, Kirti, Buddhi and Laksmi respectively live with devas of the Samanikas and Parisatkas varieties in these lotuses. The lifetime of these devis is one palya.
  11. आगे के हृदों और कमलों का विस्तार बतलाते हैं- तद्-द्विगुणद्विगुणा ह्रदाः पुष्कराणि च ॥१८॥ अर्थ - आगे के हृद और कमल प्रथम हृद और कमल से दूने-दूने परिमाण वाले हैं। अर्थात् पद्म हृद से दूना महापद्म हद है। महापद्म से दूना तिगिञ्छ हृद है। इन हृदों में जो कमल हैं, वे भी दूने-दूने परिमाण वाले हैं। English - Size of Mahapadma lake and the lotus in it are double that of Padma lake. Similarly, the size of Tiginchha lake and the lotus is double that of Mahapadma lake. Kesri, Mahapundrika, and Pundrika are similar to Tiginchha, Mahapadma, and the Padma respectively.
  12. आगे इसका विशेष चित्रण करते हैं तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥१७॥ अर्थ - उस पद्म हृद में एक योजन लम्बा चौड़ा कमल है। English - In the middle of this first lake, there is a lotus of the size of one yojana. विशेषार्थ - यह कमल वनस्पति काय नहीं है, किन्तु कमल के आकार की पृथ्वी है। उस कमलाकार पृथ्वी के बीच में दो कोस की कर्णिका है और उस कर्णिका के चारों ओर एक एक कोस की पंखुरियाँ इससे उसकी लम्बाई चौड़ाई एक योजन है।
  13. अब उसकी गहराई बतलाते हैं- दशयोजनावगाहः ॥१६॥ अर्थ - पद्म हृद की गहराई दश योजन है। English - Depth of the first lake is ten yojanas.
  14. आगे इन तालाबों का विस्तार बतलाते हैं- प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो ह्रदः ॥१५॥ अर्थ - पहला पद्म नाम का हृद पूर्व पश्चिम एक हजार योजन लम्बा है और उत्तर दक्षिण पाँच सौ योजन चौड़ा है। English - Padma, the first lake is 1,000 yojanas in length and 500 yojanas in breadth.
  15. आगे इन पर्वतों पर स्थित तालाबों का वर्णन करते हैं- पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेशरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ॥१४॥ अर्थ - उन पर्वतों के ऊपर पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक नाम के हृद (तालाब) हैं। अर्थात् हिमवन् पर पद्म, महाहिमवन् पर महापद्म, निषध पर तिगिज्छ, नील पर केसरी, रुक्मि पर महापुण्डरीक और शिखरी पर पुण्डरीक हृद है। English - Padma, Mahapadma, Tiginchha, Kesari, Mahapundarika and Pundarika respectively are the lakes on the top of these mountains.
  16. आगे इन पर्वतों का और भी विशेष वर्णन करते हैं- मणिविचित्रपार्श्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥१३॥ अर्थ- इन पर्वतों के पार्श्वभाग (पखवाड़े), अनेक प्रकार की मणियों से खचित हैं और मूल, मध्य तथा ऊपर इनका विस्तार समान है। अर्थात् मूल से लेकर ऊपर तक एक-सा विस्तार है। English - Those mountains are of equal width at the foot, in the middle and at the top, and their sides are studded with various jewels.
  17. आगे इन पर्वतों का रंग बतलाते हैं हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥१२॥ अर्थ - हिमवन् पर्वत चीन देश की सिल्क की तरह पीतवर्ण है। महाहिमवन् चाँदी की तरह सफेद है। निषध पर्वत तरुण सूर्य की तरह तपाये हुए सोने के समान रंग वाला है। नील पर्वत मोर के कण्ठ की तरह नीला है। रुक्मि पर्वत चाँदी की तरह सफेद है और शिखरी पर्वत चीन देश की सिल्क की तरह पीतवर्ण है। English - The color of these six mountains are golden like gold, white like silver, red like hot gold, blue like vaidurmani, white like silver and golden like gold respectively.
  18. आगे इन सात क्षेत्रों का विभाग करने वाले छह पर्वतों का कथन करते हैं- तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥११॥ अर्थ - उन क्षेत्रों का विभाग करने वाले छह पर्वत हैं, जो पूर्व से पश्चिम तक लम्बे हैं। हिमवन्, महाहिमवन्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी उनके नाम हैं। वर्ष अर्थात् क्षेत्रों के विभाग को बनाये रखने के कारण उन्हें ‘वर्षधर' कहते हैं। English - The mountain chains Himavan, Mahahimavan, Nishadha, Nila, Rukmi, and Shikhari, running east to west, divide these seven regions. विशेषार्थ - भरत और हैमवत क्षेत्र के बीच में हिमवन् पर्वत है, जो सौ योजन ऊँचा है। हैमवत और हरिवर्ष के बीच में महाहिमवन् है, जो दो सौ योजन ऊँचा है। हरिवर्ष और विदेह के बीच में निषध पर्वत है, जो चार सौ योजन ऊँचा है। विदेह और रम्यक क्षेत्र के बीच में नील पर्वत है, जो चार सौ योजन ऊँचा है। रम्यक और हैरण्यवत के बीच में रुक्मि है, जो दो सौ योजन ऊँचा है और हैरण्यवत तथा ऐरावत के बीच में शिखरी पर्वत है, जो सौ योजन ऊँचा है। ये सभी पर्वत पूर्व समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र तक लम्बे हैं।
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