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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 40

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    Vidyasagar.Guru

    इस आशंका को दूर करने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं-

     

    अप्रतिघाते ॥४०॥

     

     

    अर्थ - तैजस और कार्मण शरीर अप्रतिघाती हैं। अर्थात् जैसे अग्नि लोहे के पिण्ड में घुस जाती है, वैसे ही ये दोनों शरीर भी वज्रमय पटल से भी नहीं रुकते हैं।

     

    English - The last two are without impediment.

     

    शंका - वैक्रियिक और आहारक शरीर भी सूक्ष्म होने के कारण किसी से रुकते नहीं हैं, फिर इनको अप्रतिघाती क्यों नहीं कहा ?

    समाधान - यहाँ उन्हीं को अप्रतिघाती कहा है, जो समस्त लोक में कहीं भी नहीं रुकते। वैक्रियिक और आहारक समस्त लोक में अप्रतिघाती नहीं है। क्योंकि आहारक शरीर तो अढाई द्वीप तक ही जा सकता है, और मनुष्यों को ऋद्धि द्वारा प्राप्त हुआ वैक्रियिक भी मनुष्यलोक तक ही जा सकता है। तथा देवों का वैक्रियिक शरीर त्रस नाली के भीतर ही ऊपर सोलहवें स्वर्ग तक और नीचे तीसरे नरक तक जा सकता है। अतः समस्त लोक में अप्रतिघाती तो तैजस और कार्मण ही हैं।


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