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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 43

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    Vidyasagar.Guru

    आगे बतलाते हैं कि इन पाँच शरीरों में से एक जीव के एक साथ कितने शरीर हो सकते हैं-

     

    तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्य: ॥४३॥

     

     

    अर्थ - तैजस और कार्मण शरीर को लेकर एक जीव के एक समय में चार शरीर तक विभाग कर लेना चाहिए।

     

    English - Commencing with these (luminous and karmic), up to four bodies can be had simultaneously by a single soul since a soul can have at a time either physical or transformable body.

     

    अर्थात् विग्रहगति में तो जीव के तैजस और कार्मण ये दो शरीर ही होते हैं। विग्रहगति के सिवा अन्य अवसरों पर मनुष्य और तिर्यञ्चों के औदारिक, तैजस और कार्मण ये तीन शरीर होते हैं। तथा छट्टे गुणस्थानवर्ती किसी किसी मुनि के औदारिक, आहारक, तैजस, कार्मण या औदारिक, वैक्रियिक, तैजस, कार्मण ये चार शरीर होते हैं। वैक्रियिक और आहारक शरीर एक साथ न होने से एक साथ पाँच शरीर नहीं होते।


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