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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. उक्त कथन में थोड़ा अपवाद है, जो बतलाते हैं- त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या व्यन्तरज्योतिष्काः ॥५॥ अर्थ - व्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते। शेष आठ भेद ही होते हैं। English - The Peripatetic and the Stellar devas are without the ministers and the police.
  2. देवों के विषय में और भी कहते हैं- इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः ॥४॥ अर्थ - देवों के प्रत्येक निकाय में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद्, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक के दस दस भेद होते हैं। English - There are ten grades in each of these classes of celestial beings namely the Lord (Indra), his equal (except for the authority and the prosperity), the Minister, the councilor, the bodyguards, the police, the army, the citizens, the servants, and the menials. विशेषार्थ - अन्य देवों में न पायी जाने वाली अणिमा आदि ऋद्धियों के द्वारा जो परम ऐश्वर्य को भोगता है, देवों के उस स्वामी को इन्द्र कहते हैं। जिनकी आयु, शक्ति, परिवार तथा भोगोपभोग वगैरह इन्द्र के समान ही होते हैं, किन्तु जो आज्ञा और ऐश्वर्य से हीन होते हैं, उन्हें सामानिक कहते हैं। ये पिता, गुरु या उपाध्याय के समान माने जाते हैं। मन्त्री और पुरोहित के समान जो देव होते हैं, उन्हें त्रायस्त्रिंश कहते हैं। इनकी संख्या तैंतीस होती है, इसी से इन्हें ‘त्रायस्त्रिंश' कहा जाता है। इन्द्र की सभा के सदस्य देवों को पारिषद् कहते हैं। इन्द्र की सभा में जो देव शस्त्र लिये इन्द्र के पीछे खड़े होते हैं, उन्हें आत्मरक्ष कहते हैं। यद्यपि इन्द्र को किसी शत्रु का भय नहीं है, फिर भी ये ऐश्वर्य का द्योतक है। कोतवाल के तुल्य देवों को लोकपाल कहते हैं। पैदल, अश्व, वृषभ, रथ, हाथी, गन्धर्व और नर्तकी इस सात प्रकार की सेना के देव अनीक कहे जाते हैं। पुरवासी या देशवासी जनता के समान देवों को प्रकीर्णक (प्रजाजन) कहते हैं। हाथी, घोड़ा, सवारी वगैरह बनकर जो देव दास के समान सेवा करते हैं, उन्हें आभियोग्य कहते हैं। चाण्डाल की तरह दूर ही रहने वाले पापी देवों को किल्विषिक कहते हैं। ये दस भेद प्रत्येक निकाय में होते हैं।
  3. इन निकायों में अवान्तर भेद बतलाते हैं- दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ॥३॥ अर्थ - भवनवासी देवों के दस भेद हैं, व्यन्तरों के आठ भेद हैं, ज्योतिषी देवों के पाँच भेद हैं और वैमानिक देवों में से जो कल्पोपन्न अर्थात् सोलह स्वर्गों के वासी देव हैं, उनके बारह भेद हैं। English - The Residential, the Peripatetic, the Stellar and the Heavenly beings are of ten, eight, five and twelve classes respectively.
  4. देवों की लेश्या बतलाते हैं- आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः ॥२॥ अर्थ - भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क इन तीन निकायों में कृष्ण, नील, कापोत और पीत-ये चार लेश्याएँ होती हैं। English - The coloration of thought of the first three classes of celestial beings is black, blue, grey and yellow.
  5. अब देवों का वर्णन करते हैं- देवाश्चतुर्णिकायाः ॥१॥ अर्थ - निकाय समूह को कहते हैं। देवों के चार निकाय यानि समूह हैं भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। English - The celestial beings are of four orders (classes) namely the Residential (Bhavanavasi), the Peripatetic (Vyantara), the Stellar (Jyotishika) and the Heavenly (Vaimanika).
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