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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. इन निकायों में अवान्तर भेद बतलाते हैं- दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ॥३॥ अर्थ - भवनवासी देवों के दस भेद हैं, व्यन्तरों के आठ भेद हैं, ज्योतिषी देवों के पाँच भेद हैं और वैमानिक देवों में से जो कल्पोपन्न अर्थात् सोलह स्वर्गों के वासी देव हैं, उनके बारह भेद हैं। English - The Residential, the Peripatetic, the Stellar and the Heavenly beings are of ten, eight, five and twelve classes respectively.
  2. देवों की लेश्या बतलाते हैं- आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः ॥२॥ अर्थ - भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क इन तीन निकायों में कृष्ण, नील, कापोत और पीत-ये चार लेश्याएँ होती हैं। English - The coloration of thought of the first three classes of celestial beings is black, blue, grey and yellow.
  3. अब देवों का वर्णन करते हैं- देवाश्चतुर्णिकायाः ॥१॥ अर्थ - निकाय समूह को कहते हैं। देवों के चार निकाय यानि समूह हैं भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। English - The celestial beings are of four orders (classes) namely the Residential (Bhavanavasi), the Peripatetic (Vyantara), the Stellar (Jyotishika) and the Heavenly (Vaimanika).
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