आगे के पर्वतों और क्षेत्रों का विस्तार बतलाते हैं-
उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥२६॥
अर्थ - उत्तर के ऐरावत से लेकर नील तक जितने क्षेत्र और पर्वत हैं, उनका विस्तार वगैरह दक्षिण के भरत आदि क्षेत्रों के समान ही जानना चाहिए। यह नियम दक्षिण भाग का जितना भी वर्णन किया है, उस सबके सम्बन्ध में लगा लेना चाहिए।
English - The mountains and the regions in the north are equal to those in the south (in the reverse order).
अतः उत्तर के हृद और कमल आदि का विस्तार वगैरह तथा नदियों का परिवार वगैरह दक्षिण के समान ही जानना चाहिए। सारांश यह है कि भरत और ऐरावत, हिमवन् और शिखरी, हैमवत और हैरण्यवत, महाहिमवन् और रूक्मि, हरिवर्ष और रम्यक तथा निषध और नील का विस्तार, इनके हृदों और कमलों की लम्बाई-चौड़ाई वगैरह तथा नदियों के परिवार की संख्या परस्पर में समान हैं।