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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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डायमंड की भांति है धर्म !

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की वचनों की प्रमाणिकता वक्ता की प्रमाणता से आती है ! आचार्य श्री जी ने अनेक दृष्ठांत देते हुए समझाया की जब तैरना सीखते हैं तो लकड़ी का सहारा लेते हैं ! इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में कई चीजों का सहारा लेना पड़ता है ! अपने किये हुए अनर्थों पर रोने से अन्दर ही अन्दर जलने से, पश्चाताप करने से पाप कम होते हैं ! यह धर्म हीरे ( डायमंड )  की भांति है उसे अच्छे ढंग से पालन करो ! आत्मा की अनुभूति श्रधान के माध्यम से होती है ! जितना आप क

ड्रेस और एड्रेस अलग – अलग होते हैं !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गुरुओं के सन्मुख आलोचना करके अपने व्रतों की अच्छी तरह विशुधि  करते हैं ! संयम के लिए पिच्छी ग्रहण करते हैं ! शरीर से ममत्व छोड़कर चार प्रकार के उपसर्ग को सहते हैं ! दृढ धैर्यशाली तथा निरंतर ध्यान में चित्त लगते हैं ! जैसे कक्षा में छात्र पास होते जाते हैं तो निकलते जाते हैं और छात्रों का प्रवेश होता रहता है, ऐसा ही संघ में होता है ! उच्च साधना के लिए अलग व्यवस्था होती है, जैसी व्यवस्था अस्पताल में होती है वैस

एक दिन में इंजिनियर नहीं बनते !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री  विद्यासागर महाराज जी  ने कहा की किसने कहा हम गृहस्थों को दीक्षा नहीं देते, देखकर दे सकते हैं ! ३० वर्ष दीक्षा का समय लिखा है क्योंति ३० वर्ष तक ऊंचाई शरीर में वृद्धि होती है ! एक दिन में ही इंजिनियर बनता है क्या कोई ? कई – कई एक्साम देने के बाद बनते हैं ! आज कालेजों की भरमार हो गयी है ! उन मुनिराजों को विक्रिया – चारण और क्षीरा – स्रवित्व आदि रिधियाँ उत्पन्न होती है किन्तु राग का अभाव होने से उनका प्रयोग नहीं करते ! थोड़ी सी

मिलट्री जैसी होती है मुनि चर्या !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते है की अपना हित करना चाहिए, यदि शक्ति हो तो पर का हित भी करना चाहिए, किन्तु आत्महित और पर हित में से आत्महित अच्छे प्रकार से करना चाहिए ! प्राणी संयम को पालने के लिए और जिनदेव का प्रतिरूप रखने के लिए पिच्छि (मोर पंख की बनी) रखते हैं ! शरीर का संस्कार नहीं करते, धैर्य बल से हीन नहीं होते ! रोग से या चोट आदि से उत्पन्न हुई वेदना का प्रतिकार नहीं करते, मौन के नियम का पालन करते हैं, यह होती है मुनि की साधना ! आचार्य श्री

बहुत रोचक वर्णन है भगवान् का ! 

प्रभु का जन्मोत्सव लोक रूपी घर में छिपे हुए अन्धकार के फैलाव को दूर करने में तत्पर होता है ! अमृतपान की तरह समस्त प्राणियों को आरोग्य देने वाला है ! प्रिय वचन की तरह प्रसन्न करता है ! पुण्य कर्म की तरह अगणित पुण्य को देने वाला है ! प्रभु का जन्म होता है तो तहलका मच जाता है तीनो लोको में ! निरंतर बजने वाली मंगल भेरी और वाद्यों की ध्वनि से समस्त भुवन भर जाता है ! भगवान् के जन्म के समय इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हो जाता है ! भेरी के शब्द को सुनकर इन्द्रादि प्रमुख सब देवगण एकत्र हो जाते हैं ! जन्मा

दिल्ली नहीं दिल जीतो ! 

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भिक्षा के लिए जाते समय सावधानी रखना चाहिए! त्रस और स्थावर जीवों को पीड़ा न पहुचे इसलिए अन्धकार में प्रवेश नहीं करते हैं ! आत्मा की विराधना नहीं होनी चाहिए, इधर – उधर अवलोकन करके घर में प्रवेश करना चाहिए संयम की विराधना न हो यह ध्यान रखना चाहिए ! वंदना करने वालों को आशीर्वाद देते हुए निकलते हैं साधू ! आहार के समय कोई नियम (विधि लिकर) जिनमन्दिर आदि से आहार के लिए निकलते हैं !   इतिहास उपहास का प

धन के नष्ट होने से दुःख होता है ! 

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते हैं की भगवान् के वैराग्य रूपी हवा के झकोरों से इन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है ! तब इन्द्र अवधि ज्ञान रूपी दृष्ठि का उपयोग करके भगवान् के द्वारा प्रारंभ किये जाने वाले कार्य को जानता है ! सौधर्म इन्द्र के पास ही मोबाइल नंबर रहता है उसी के पास यह रेंजे है जिसका सम्बन्ध हो जाता है ! इसी प्रकार अवधि ज्ञान का होता है ! सौधर्म इन्द्र सिंहासन से उठ , जिस दिशा में भगवान् है , उस दिशा की ओर सात पद चलकर नमस्कार करता है ! सम

भाग्यसंपदा में भी सार नहीं है ! 

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर  जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की सभी जिन्देवों का अभिषेक कल्याणक बड़ी विभूति के साथ मनाया जाता है ! इन्द्र की आज्ञा से कुबेर उनके लिए अंगराग, वस्त्र, भोजन, वाहन, अलंकार आदि सम्पति प्रस्तुत करता है ! मन के अनुकूल क्रीडा करने में चतुर देव कुमारों का परिवार रहता है ! वह चक्र के माध्यम से देव, विद्याधर और राजाओं के समूह को अपने अधीन कर लेते हैं ! काल, महाकाल आदि नौ निधियां उनके राजकोष में उत्पन्न होती हैं ! चक्ररत्न आदि 14 रत्न होते ह

वैज्ञानिक भी मानते हैं उपवास को श्रेष्ठ !

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जैसा साधक मिलना कठिन है इस काल में! वे गर्मी में बहुत दिनों तक कमरे में स्वाध्याय करते थे जहाँ का तापमान 46 डिग्री के आस-पास था और अभी रात में दहलान में खुले में शयन करते हैं कई बार बारिश के कारण ठंडा भी हो जाता है मौसम फिर भी वह खुले में ही रहते हैं वह शाम से सुबह तक एक ही पाटे पर रहते हैं चलते – फिरते नहीं हैं अँधेरे में ! उनके संघ के सभी साधू मौन साधना में रत हैं 02 जुलाई से 02 सितम्बर 2012 तक की मौन साधना गुरु के उपदेश से सभी साधू पालन कर रहे हैं ! मुनि श्री

गुरु की सेवा महान कार्य है ! 

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की गुरु के पीछे इस प्रकार बैठे की अपने हाँथ पैर आदि से गुरु को किसी प्रकार की बाधा न पहुचे ! आगे बैठना हो तो सामने से थोडा हटकर गुरु के वाम भाग में उधतता त्याग कर और अपने मस्तक को थोडा नवाकर बैठे आसन पर गुरु के बैठने पर स्वयं भूमि में  बैठे ! गुरु के नीचे आसन पर सोना जो ऊँचा नहीं हो ऐसे स्थान में सोना , गुरु के नाभि प्रमाण पात्र भूभाग में अपना सिर रहे इस प्रकार सोना ! अपने हाँथ पैर वगरह से गुरु आदि का

अनुराग को भक्ति कहते हैं !

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जो तप में अधिक है उनमे और तप में भक्ति और जो अपने से तप में हीन है उनका अपरिभव यह श्रुत के अनुसार आचरण करने वाले साधू की तप विनय है ! मुख की प्रसन्नता से प्रकट होने वाले आंतरिक अनुराग को भक्ति कहते हैं ! जो तप में न्यून है उनका तिरस्कार नहीं करना ! देखने से भगवान् नहीं दीखते आँखे बंद करलो तो दिख जायेंगे रूचि होना चाहिए तभी  दीखते हैं  भगवान्  ! गुरु आदि के प्रवेश करने पर या बाहर जाने पर खड़े होना, व

शरीर दुःख का कारण है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की आत्मा और शरीर के प्रदेश परस्पर मिलने से आयु कर्म के कारण यद्यपि शरीर ठहरा रहता है तथापि शरीर सात धातु रूप होने से अपवित्र है, अनित्य है, नष्ट होने वाला है, दुःख से धारण करने योग्य है, असार है, दुःख का कारण है, इत्यादि दोषों को जानकार “न यह मेरा है न मैं इसका हूँ” ऐसा संकल्प करने वाले के शरीर में आदर का अभाव होने से काय का त्याग घटित होता ही है ! शरीर के विनाश के कारण उपस्थित होने पर भी कायोत्सर्ग करन

भारत में संस्कृति का पतन हो रहा है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्मसभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की दादी माँ ने कहानी कही छोटी – छोटी पर कहानी कहीं लिखी नहीं है ! कुछ युवा बालक उसे समझने का प्रयास करें ऐसी ही जिनवाणी की कहानी है ! उसे समझने का प्रयास करें ! “मन के जीते जीत है और मन के हारे हार है ” याने मन के अन्दर पावर है ! हमारी उर्जा बाहर लग रही है उसे भीतर लगाये ! आज मंत्र का नहीं यन्त्र का उपयोग हो रहा है ! भोतिक विज्ञान से ज्यादा आत्मिक विज्ञान जरुरी है ! शोध करने व

दंड से उदंडता ठीक होती है ! 

चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की दंड के माध्यम से उदंडता ठीक हो जाती है ! शुद्धी के प्रावधान हैं प्रतिक्रमण आलोचना ! जो क्षेत्र संयम को हानि पहुचाते हैं अथवा संक्लेश उत्पन्न करते हैं उसका त्याग क्षेत्र प्रत्याख्यान कहलाता है ! घर में महिलाओं के लिए निर्वाह करना पड़ता है कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं ! अपने द्वारा पहले किये गए हिंसा आदि को “हां मैने बुरा किया, हां मैने बुरा संकल्प किया, हिंसा आदि में प्रवर्तन वाला वचन बोला” इस प्र

आप क्वांटिटी नहीं क्वालिटी देखें !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की इस चातुर्मास की स्थापना का समर्थन इन्द्र भी कर रहे हैं जब वर्षा के साथ यदि धर्म वर्षा भी हो जाए तो ये अच्छा रहेगा ! मुनिराज अहिंसा धर्म के पालन एवं जीव रक्षा के लिए करते हैं चातुर्मास ! आज हम वनों में नहीं रह पाते हैं तो यहाँ स्थापना करना पड़ रहा है ! हमारी स्थापना तो 2 जुलाई 2012 को हो गयी थी श्रावको ने आज कलश स्थापना की है ! आज हमें जल छानने के संस्कार देने चाहिए ! रस्सी , कलशा, छन्ना हमेशा बाहर जाते समय साथ म

जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करना है !

वीर शासन जयंती एवं प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए ! चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए शीत, हवा, पौधे, आदि के रूप में मुखोटा लगाकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया ! “मै राष्ट्रीय पशु न सही लेकिन राष्ट्रीय संत की गाये हूँ” “बच्चों ने कहा की आचार्य श्री कहते हैं की मंदिर में लगने वाले पत्थर की चीप बनो चिप नहीं चीफ (मुख्य) है ! प्रतिभा स्थली में

छात्र – छात्राओं को विशेष प्रवचन संसार में सबसे बड़ी बीमारी तनाव है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की प्रतिभा स्थली में शिक्षिकाओं को संख्या ज्यादा और छात्राओं की संख्या कम है आप लोग संख्या बढाएं खर्चा ज्यादा हो और काम कम यह ठीक नहीं है ! किसका मन प्रतिभा स्थली में नहीं लग रहा है हाँथ उठायें ! जिनका मन नहीं लग रहा उनका सहयोग करें जिनका मन लग रहा है ! आचार्य श्री ने बच्चों से चर्चा भी की ! जिस प्रकार सब विषयों में नंबर मिलते हैं वैसे ही खेल कूद में भी नंबर आना चाहिए ! सब लोगों की पढाई ठीक चल रही है ? सब पढ़ाते ठी

गुरु पूर्णिमा पर विशेष प्रवचन भगवान् का पता देते हैं गुरु !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की यह गुरु पूर्णिमा पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है ! आज के गुरु बनाते है लोग और दर्शन करने आते हैं ! पूर्ण चन्द्रमा का दर्शन पूर्णिमा के दिन होता है ! चन्द्रमा पूर्ण कलाएं बिखेरता है ! इस तिथि का विशेष महत्व है ! इस दिन गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु मिले थे ! वीर भगवान् की दिव्य ध्वनि 66 दिन तक नहीं खीरी थी फिर वीर शासन जयंती के दिन खीरी थी, उसी दिन से वीर शासन प्रारंभ हुआ, वीर भगवान् का शासन प्रारंभ हुआ ! कुछ स

भगवान की मुद्रा प्रसन्न है  ! 

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की उपवास करते समय मन आकुल – व्याकुल नहीं होना तप है ! भूख  – प्यास की वेदना से आकुल – व्याकुल नहीं होना चाहिए ! रस को त्यागने से शरीर में उत्पन्न हुए संताप को सहना तप है ! मनुष्यों से शून्य स्थान (जंगल आदि) में निवास करते हुए पिशाच, सर्प , मृग, सिह, आदि को देखने से उत्पन्न हुए भय को रोकना तथा परिषय को जीतना चाहिए ! प्रायश्चित करने से उत्पन्न हुए श्रम से मन में संक्लेश न करना “यह जगत जीवों से भरा है

भाव को नहीं छोड़े !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने दीक्षा दिवस के अवसर पर धर्म सभा को सम्भोधित करते हुए कहा की आज रविवार है और भी कुछ है (दीक्षा दिवस ) लेकिन अतीत की स्मृति के लिए आचार्य कुंद – कुंद कहते हैं की याद रखना है तोह दीक्षा तिथि को याद रखो जिस समय दीक्षा ली थी उस समय क्या भाव थे उन्ही को याद करो ! काल निकल जाता है पर स्मृति के द्वारा ताज़ा बनाया जा सकता है ! उस समय की अनुभूति और अभी की अनुभूति में अंतर दीखता है ! हमारे भाव कितने वजनदार हैं देखना ह

मधुर वचन होते हैं प्रभु के !

चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज धर्म सभा को सम्भोधित करते  हुए कहा की  आज रविवार है, रवि तो प्रतिदिन आता है और जाता है ! आचार्य श्री ने गजकुमार का दृष्ठांत देते हुए वैराग्य मय दास्ता सुनाई भगवान् नेमिनाथ के प्रसंग  भी   सुनाये  और  कहा  मधुर  वचन  होते  हैं प्रभु के ! कीचड़ में पैर रखकर पानी से धोने की अपेक्षा कीचड़ से बचकर पैर रखना ठीक है ! अज्ञानी हो तो ठीक है पर ज्ञानी होने पर भी यदि पैर रखे तो ठीक नहीं ! कषायों का कीचड़ उछलता है

सोचना भी भटकन है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित प्रवचन सभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जब उपसर्ग आता है तो साधू जब ताल नहीं पाते तब संलेखना ले लेते हैं ! भयंकर दुर्भिक्ष हो, भयंकर जंगल में भटक गया हो तो भी संलेखना लेते हैं ! चाहे विज्ञान हो चाहे वीतराग विज्ञान हो दोनों ही बताते हैं की गलत आहार भी प्राणों को संकट पैदा करता है ! दुर्भिक्ष पड़ने पर साधू आहार का त्याग कर देते हैं ! जो ज्यादा सोचता  है वह जंगल में भटक जाता है, आज विज्ञान भी भटक रहा है ! वर्मुला ट्रग

मातृभाषा भाव तक पहुचने में सहायक है !

चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्म सभा जो श्रुत पंचमी पर आयोजित थी इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा शरीर का नहीं आत्मा का विकास होना चाहिए ! यहाँ कुछ लोग राजस्थान से आयें है लेकिन प्रायः बुंदेलखंड के हैं ! प्रायः पैसा बढता है तो गर्मी चढ़ जाती है ! हर व्यक्ति की गति प्रगति इस बुद्धि को लेकर नहीं होती ! कुछ लोग चोटी के विद्वान् होते हैं जैसे ललितपुर में एक व्यक्ति चोटी रखता है ! ज्ञान के विकास का नाम ही मुक्ति है ! ज्ञान का विकास जन्म से नहीं मृत्यु से होता है ! अभी आप मरना नह
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