ड्रेस और एड्रेस अलग – अलग होते हैं !
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गुरुओं के सन्मुख आलोचना करके अपने व्रतों की अच्छी तरह विशुधि करते हैं ! संयम के लिए पिच्छी ग्रहण करते हैं ! शरीर से ममत्व छोड़कर चार प्रकार के उपसर्ग को सहते हैं ! दृढ धैर्यशाली तथा निरंतर ध्यान में चित्त लगते हैं ! जैसे कक्षा में छात्र पास होते जाते हैं तो निकलते जाते हैं और छात्रों का प्रवेश होता रहता है, ऐसा ही संघ में होता है ! उच्च साधना के लिए अलग व्यवस्था होती है, जैसी व्यवस्था अस्पताल में होती है वैसी यहाँ होती है ! यहाँ गंभीरता आनी चाहिए समझना चाहिए प्रत्येक बात को !
ड्रेस और एड्रेस अलग होते हैं! कोर्स में कमी रखोगे तो हम कुछ नहीं सिखा सकेंगे ! जैसे मिलिटरी आदि में थोडा भोजन दिया जाता है, ऐसे ही साधू भी कभी – कभी थोडा भोजन लेते हैं ! णमोकार मंत्र भी अंतिम समय याद रह गया तो समझो सौभाग्य है ! जो परीक्षा देने वाला होता है वह इधर – उधर की बातें नहीं करता अतिपरिचय करने से अवज्ञा होती है !
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