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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

दिल्ली नहीं दिल जीतो ! 


संयम स्वर्ण महोत्सव

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चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भिक्षा के लिए जाते समय सावधानी रखना चाहिए! त्रस और स्थावर जीवों को पीड़ा न पहुचे इसलिए अन्धकार में प्रवेश नहीं करते हैं ! आत्मा की विराधना नहीं होनी चाहिए, इधर – उधर अवलोकन करके घर में प्रवेश करना चाहिए संयम की विराधना न हो यह ध्यान रखना चाहिए ! वंदना करने वालों को आशीर्वाद देते हुए निकलते हैं साधू ! आहार के समय कोई नियम (विधि लिकर) जिनमन्दिर आदि से आहार के लिए निकलते हैं !

 

इतिहास उपहास का पात्र होता है या तो हँसते हैं या रोते हैं ! आचार्य श्री ने प्रधुमन की कथा सुनाई और कहा की तीन दिन के बालक का अपहरण हो जाता है ! कोई चमत्कार नहीं करता अपने कर्म ही चमत्कार करते हैं ! सब भावों का खेल है ! आस्था जब तक दृढ नहीं होती तब तक पैर डगमगाते हैं ! आस्था दृढ  होती है तो वह अडिग होकर चलता है ! आदर्श को देखते हैं तो मेरा – तेरा नहीं होता वीतरागता में भेद नहीं होता ! यह मंदिर मेरा, मेरे पूर्वजों ने बनवाया था , यह प्रतिमा मैंने विराजमान करवाई ऐसा भाव नहीं आना चाहिए ! उसकी पूजा आदि व्यवस्था तो करना चाहिए |

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