धन के नष्ट होने से दुःख होता है !
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते हैं की भगवान् के वैराग्य रूपी हवा के झकोरों से इन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है ! तब इन्द्र अवधि ज्ञान रूपी दृष्ठि का उपयोग करके भगवान् के द्वारा प्रारंभ किये जाने वाले कार्य को जानता है ! सौधर्म इन्द्र के पास ही मोबाइल नंबर रहता है उसी के पास यह रेंजे है जिसका सम्बन्ध हो जाता है ! इसी प्रकार अवधि ज्ञान का होता है ! सौधर्म इन्द्र सिंहासन से उठ , जिस दिशा में भगवान् है , उस दिशा की ओर सात पद चलकर नमस्कार करता है ! समीचीन धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तन के लिए उद्यत , शरणागत भव्य जनों की रक्षा करने वाले और अलौकिक नेत्रों से विशिष्ट जिनदेव को नमस्कार हो ! जैसे राष्ट्रपति को राजनंदगांव आना है तो सुरक्षा हेतु यहाँ के कलेक्टर से अनुमति लेना पड़ता है ! ऐसे ही तीर्थंकर भगवान् की रक्षा के लिए देव होते हैं ! इन्द्रिय सुख – सेवन के बाद खेद ही होता है ! वैराग्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की न किसी का कोई मित्र है और न धन और शरीर ही स्थाई हैं ! बंधू और बांधव और परिवार यात्रा में मिलने वाले पुरुषों के समान हैं ! धन के कमाने में और कमायें हुए धन के नष्ट हो जाने पर बहुत दुःख होता है ! धन के कारण अन्य जनों से विरोध होता है !
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