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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

भाग्यसंपदा में भी सार नहीं है ! 


संयम स्वर्ण महोत्सव

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चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर  जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की सभी जिन्देवों का अभिषेक कल्याणक बड़ी विभूति के साथ मनाया जाता है ! इन्द्र की आज्ञा से कुबेर उनके लिए अंगराग, वस्त्र, भोजन, वाहन, अलंकार आदि सम्पति प्रस्तुत करता है ! मन के अनुकूल क्रीडा करने में चतुर देव कुमारों का परिवार रहता है ! वह चक्र के माध्यम से देव, विद्याधर और राजाओं के समूह को अपने अधीन कर लेते हैं ! काल, महाकाल आदि नौ निधियां उनके राजकोष में उत्पन्न होती हैं ! चक्ररत्न आदि 14 रत्न होते हैं ! प्रत्येक रत्न की एक हज़ार देव रक्षा करते हैं ! 32000 राजाओं के द्वारा उनके पाद पीठ पूजे जाते हैं ! देव कुमार भेटें ले लेकर उनकी सेवा में सदा उपस्थित होते हैं ! वह विचार करते हैं की यह मोह की कैसी महत्ता है की तुरंत संसार समुद्र के दुःख रूपी भवरों  को प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले हम  जैसों को भी आरम्भ और परिग्रह में फसाता है  ! इस भोग सम्पदा में भी सार नहीं है !

पूज्य पुरुषो की पूजा न करना भी स्वार्थ का घोतक  है ! चक्र का मैनेजमेंट यह है की देव भी  सुरक्षा करते हैं ! तीर्थंकर सभी वैभव होने के बाद भी उनमे रचते नहीं है ! हमे बार – बार बोलना पड़ता है निचे चावल नहीं चढ़ाएं क्योंकि चीटियाँ होती है ! लोग पास आने का साधन ढूंढते हैं, पासपोर्ट लेकर आते हैं पास आने को! चौके  में भी आज तक फर्स्ट क्लास फर्स्ट नहीं आये !  एक बार भगवान् के तप कल्याणक की जय तो बोलों ऐसा कहा आचार्य श्री ने !

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