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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

मिलट्री जैसी होती है मुनि चर्या !


संयम स्वर्ण महोत्सव

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चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते है की अपना हित करना चाहिए, यदि शक्ति हो तो पर का हित भी करना चाहिए, किन्तु आत्महित और पर हित में से आत्महित अच्छे प्रकार से करना चाहिए ! प्राणी संयम को पालने के लिए और जिनदेव का प्रतिरूप रखने के लिए पिच्छि (मोर पंख की बनी) रखते हैं ! शरीर का संस्कार नहीं करते, धैर्य बल से हीन नहीं होते ! रोग से या चोट आदि से उत्पन्न हुई वेदना का प्रतिकार नहीं करते, मौन के नियम का पालन करते हैं, यह होती है मुनि की साधना ! आचार्य श्री ने कहा हमारी आई साईट ठीक है ! जैसे डाक्टर लोग इलाज करते समय बोलते नहीं है कार्य में लगे रहते हैं ! जैसे पेपर में इधर – उधर नहीं देखते हैं बच्चे परीक्षा के समय ऐसा ही मुनि चर्या में होता है ! यहाँ मिलिट्री जैसा शासन चलता है !

आज दीक्षा दिवस में मुनियों द्वारा दिए गए प्रवचन इस प्रकार हैं –

मुनि भावसागर जी – मुनि भावसागर जी ने कहा की आचार्य श्री विद्यासागर जी सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं वह छत्तीसगढ़ की भूमि पर दूसरी बार प्रवास कर रहे हैं ! मुनि श्री समयसागर जी स्वाध्याय, साधना में लीन रहते हैं ! मुनि श्री योगसागर जी एक उपवास एक आहार करते हैं एवं सभी साधुओं को वात्सल्य देते हैं ! मुनि श्री अनंत सागर जी को भी याद किया ! मै करूँगा, करूँगा, करूँगा यह चिंतन करता रहता है लेकिन यह भूल जाता है की मैं मरूँगा, मरूँगा, मरूँगा, यह मुनि मार्ग मोक्ष प्राप्त करने का साधन है ! जन्म, जरा और मृत्यु से छुटकारा पाने का साधन है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे चतुर्थकाल में अतुलनीय साधक हैं ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की चर्या स्वयं में चमत्कार और अतिशय से कम नहीं है ! दीक्षा, आचार्य श्री, जिनशासन की अनेक बातें बताई ! इस अवसर पर हम मुनि श्री विराट्सागर जी, विशद सागर जी, अतुल्सागर जी, को भी याद करते है !

मुनि श्री शैल सागर जी – मुनि श्री शैल सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने मंगलाचरण में कहा की काया में कितना रहना इसी प्रसंग को लेकर हम प्रारंभ करते हैं ! एक माटी का टीला है और एक पूजक का दृष्टान्त दिया ! आचार्य महाराज बहुत सरल हैं ! आचार्य श्री को संघ का अनुशासन बनाने के लिए कठिन होना पड़ता है ! जब भी मरण हो, अंतिम समय आचार्य श्री जी के चरणों में निकले !

मुनि श्री विनम्र सागर जी – मुनि श्री विनम्र सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने कहा की कई लोग आचार्य श्री से तुलना करते हैं लेकिन आचार्य श्री तुला हैं, उनसे किसी की तुलना नहीं हो सकती ! आचार्य श्री कहते हैं की काल थोडा है जल्दी कल्याण करो ! एक दृष्टान्त देते हुए कहा की जन्म और मृत्यु को जितने वाली विद्या सीखना है ! आचार्य महाराज हमारे एक – एक श्वास के आराध्य हैं हमें उनकी तुला में तुलने का मौका मिला, उनके दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ है ! आचार्य श्री ने कहा था एक विद्वान् से की यह हमारी नाव में बैठे हैं निश्चिन्त पार होंगे !

मुनि श्री धीर सागर जी – मुनि श्री धीर सागर जी ने माँ जिनवाणी को नमन करते हुए कहा की शारदे मुझे सार दे ! आचार्य श्री जी की हर चर्या निराली है हम भावना करें की वह आगामी तीर्थंकर बने ! उनका गुणगान हरपल दिल की धडकनों में हुआ करता है ! वाणी वीणा का कार्य करे वाण का नहीं ! भक्ति में हो शक्ति इतनी की कर्म पिघल जाएँ ! आचार्य श्री कोहिनूर से भी कीमती रत्नों का दान करते हैं !

मुनि श्री वीर सागर जी – मुनि श्री वीर सागर जी ने कहा की मुनि भावसागर जी, मुनि श्री विनम्र सागर जी ने गुरु जी के बारे में बहुत सी बातें बताई है ! गुरु जी में बहुत सी विशेषताएं हैं प्रत्येक जीव उनके आगे – पीछे रहना चाहते है ! उनके बहुत अच्छे चारित्र , आचरण है ! गुरु का ऐसा आकर्षण होता है, जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं ! सुबह आचार्य श्री ने सूत्र दिए थे , उन्होंने कहा था की समीचीन दृष्ठि बनाना ! व्यक्ति भौतिक सुख को सभी कुछ मानता है ! मनुष्य एक दीपक की तरह है जिसमे दीपक भी है और ज्योति भी है !

मुनि श्री योगसागर जी – मुनि श्री योगसागर जी ने कहा की आचार्य श्री ने पांच मुनिराजों को बोलने (प्रवचन) के लिए कहा था, अब समय हो गया है ! मैं समय का और आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहता हूँ और जिनवानी की स्तुति की 

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