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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

बहुत रोचक वर्णन है भगवान् का ! 


संयम स्वर्ण महोत्सव

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प्रभु का जन्मोत्सव लोक रूपी घर में छिपे हुए अन्धकार के फैलाव को दूर करने में तत्पर होता है ! अमृतपान की तरह समस्त प्राणियों को आरोग्य देने वाला है ! प्रिय वचन की तरह प्रसन्न करता है ! पुण्य कर्म की तरह अगणित पुण्य को देने वाला है ! प्रभु का जन्म होता है तो तहलका मच जाता है तीनो लोको में ! निरंतर बजने वाली मंगल भेरी और वाद्यों की ध्वनि से समस्त भुवन भर जाता है ! भगवान् के जन्म के समय इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हो जाता है ! भेरी के शब्द को सुनकर इन्द्रादि प्रमुख सब देवगण एकत्र हो जाते हैं ! जन्माभिषेक के समय जिन बालक को लाने के लिए आई हुई इन्द्राणी के नूपुरों के शब्द से चकित हुई हंसी के विलास से राजमंदिर का आँगन शोभित होता है ! ऐरावत हांथी से उतरकर इन्द्र अपनी वज्रमयी भुजाएं फैला देता है ! गमन करते समय बजाये जाने वाले अनेक नगारों का गंभीर शब्द होता है ! इन्द्रों का समूह अपूर्ण चन्द्रमा की किरणों के समान शुभ चमरों को दक्षतापूर्वक ढोरता है ! इन्द्रानियाँ जिन बालक का मुख देखने के लिए उत्कंठित होती है ! श्वेत छत्र रूपी मेघों की घटाओं से आकाश ढक जाता है ! पताकाएं बिजली की तरह प्रतीत होती है ! इन्द्रनील्मय सीढियों की तरह देव सेना गमन करती है ! 

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