सोचना भी भटकन है !
चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित प्रवचन सभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जब उपसर्ग आता है तो साधू जब ताल नहीं पाते तब संलेखना ले लेते हैं ! भयंकर दुर्भिक्ष हो, भयंकर जंगल में भटक गया हो तो भी संलेखना लेते हैं ! चाहे विज्ञान हो चाहे वीतराग विज्ञान हो दोनों ही बताते हैं की गलत आहार भी प्राणों को संकट पैदा करता है ! दुर्भिक्ष पड़ने पर साधू आहार का त्याग कर देते हैं ! जो ज्यादा सोचता है वह जंगल में भटक जाता है, आज विज्ञान भी भटक रहा है ! वर्मुला ट्रगल में भटक जाते हैं ! बहुत सारे वज्ञानिक फस गए और बाहर नहीं निकले !
हम तो प्रत्येक व्यक्ति को स्वर्गवासी कहते हैं क्योंकि हमारी भावना नरक भेजने की नहीं है ! कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहाँ विश्वास काम नहीं करता हो “अनुभव करो विश्वास करो ” किसी ने विष को चखा नहीं है फिर भी विश्वास है की इससे मरण हो जाता है ! विश्वसनीय के ऊपर ही विश्वास किया जाता है ! जब कोई संकट आता है तो साधू उस समय आहार का त्याग कर देते हैं की जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता है तब तक आहार का त्याग है ! बहुत सारा धन और समय का अपव्यय हो रहा है आज ! मोबाइल पर भी व्यक्ति झूट बोलता है, बोलता देहरी से है और कहता है देहली से बोल रहा हूँ !
आज प्रतिभा, समय, धन व्यर्थ में जा रहा है, उपयोग नहीं हो रहा है ! एक छात्र वैज्ञानिक के भाषा में बात करने लगा था ! यह कुछ वर्ष पूर्व हमने पढ़ा था यह लेख और यह विस्मय जैसा लगा ! जैन दर्शन में दूरस्रावी आदि पहले से लेख है !
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