डायमंड की भांति है धर्म !
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की वचनों की प्रमाणिकता वक्ता की प्रमाणता से आती है ! आचार्य श्री जी ने अनेक दृष्ठांत देते हुए समझाया की जब तैरना सीखते हैं तो लकड़ी का सहारा लेते हैं ! इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में कई चीजों का सहारा लेना पड़ता है ! अपने किये हुए अनर्थों पर रोने से अन्दर ही अन्दर जलने से, पश्चाताप करने से पाप कम होते हैं ! यह धर्म हीरे ( डायमंड ) की भांति है उसे अच्छे ढंग से पालन करो ! आत्मा की अनुभूति श्रधान के माध्यम से होती है ! जितना आप कल के विषय में सोचते हैं उतना आप आज के विषय में नहीं सोचते हैं ! इस अज्ञान से छुटकारा मिल जाए तो सारे संघर्ष छूट जाते हैं ! मुक्ति आती नहीं है हमें जाना है मुक्ति के पास !
हमारे पास पूरा मसाला है बस पुरुषार्थ करना बाकी है ! प्रभु के गुणानुवाद से हमारी सारी वक्ता बढ जाती है ! अज्ञानी कभी रोता नहीं, रोता है तो स्वार्थ के लिए ! सम्यग्ज्ञानी इसलिए रोता है कि मेरा इतना काल अज्ञान में निकल गया ! बुरे को बुरा समझाना ही सम्यग्ज्ञान है ! आत्म तत्त्व का उपभोग कीजिये ! यदि उपभोग नहीं हो रहा हो तो विश्वास कीजिये ! इतनी बारिश में भी आप आयें हैं आपके विश्वास की सराहना करते हैं हम, इसी प्रकार धर्म लाभ लेते रहें !
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