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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

गुरु की सेवा महान कार्य है ! 


संयम स्वर्ण महोत्सव

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चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की गुरु के पीछे इस प्रकार बैठे की अपने हाँथ पैर आदि से गुरु को किसी प्रकार की बाधा न पहुचे ! आगे बैठना हो तो सामने से थोडा हटकर गुरु के वाम भाग में उधतता त्याग कर और अपने मस्तक को थोडा नवाकर बैठे आसन पर गुरु के बैठने पर स्वयं भूमि में  बैठे ! गुरु के नीचे आसन पर सोना जो ऊँचा नहीं हो ऐसे स्थान में सोना , गुरु के नाभि प्रमाण पात्र भूभाग में अपना सिर रहे इस प्रकार सोना ! अपने हाँथ पैर वगरह से गुरु आदि का संघठन न हो इस प्रकार शयन करे, गुरु को बैठना हो तो आसन दान करें पहले जीव को देख ले ! उसे मार्जन (साफ़) करें या गुरु को उपकरण भी दे सकते हैं ! गुरु को पुस्तक आदि भी दे सकते हैं ! गुरु को यदि शीत, ग्रीष्म, आदि की बाधा है तो उन्हें आवास दान की व्यवस्था करें ! गुरु से थोडा हटकर बैठे ! गुरु को शीतलता प्रदान करें सेवा के माध्यम से एवं ठण्ड के समय में हवा से बचाव का प्रबंध करें !

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