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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

सर्वांगीण विकास में बुद्धि


संयम स्वर्ण महोत्सव

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पुज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि सर्वांगीण विकास में बुद्धि और शरीर दोनों का विकास समाहित होता है। किसी भी अच्छे कार्य की यदि नींव रखी जाती है तो नीचे से लेकर ऊपर तक एक ही दीवार बनायीं जाती है उस पर छत डाली जाती है। बाँध पर भी पानी रोका जाता था उसके लिए पूर्ण प्रबंध किया जाता है उसे निकलने की व्यवस्था की जाती है और नहर के माध्यम से अनेक राज्यों में जाता है। भाखड़ा नंगल बांध में ऐंसी व्यवस्था है उसका उद्देश्य परिग्रह नहीं होता बल्कि कृषि का विकास हो इसके लिये होता है। आप भी यदि संग्रह करते हैं बुद्धि का एवं धन का, और वो समय पर जरूरत मंदों  को बांटते रहेंगे तो वो पुण्य का कारण बन जाता है और पुण्य सद्कार्यों से ही प्रबल होता है।

 

उन्होंने कहा कि पहले योग से नियोग कीजिये फिर सबका सहयोग लेकर आप आगे बढ़ सकते हैं। धर्म कभी प्रतिशत में नहीं चलता ये तो गुणित में चलता जाता है और पुण्य को प्रबल करता जाता है। किसी भी काम के सम्बर्धन के लिए संरक्षण जरूरी होता है। आप अच्छे कार्यों का संरक्षण करते जाइए वो कार्य गुणित पद्धति से बढ़ता जाएगा। संग्रह को सदुपयोग में लगाएंगे तो आपके कार्यों को सदियों तक याद रखा जाएगा।

 

गुरुवर ने महापौर से कहा की आपने जो संस्कार जैन पाठशाला में लिए हैं उन संस्कारों पर चलते जाइये आगे बढ़ते जाएंगे। उन्होंने कहा की महापुरुषों को महान इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सद्कार्य किये है जनकल्याण की भावना के साथ। हथकरघा को संरक्षण और सम्बर्धन देंगे तो भावी पीढ़ी के लिए लाभदायक होगा।

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