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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

शिक्षा और भारत


संयम स्वर्ण महोत्सव

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इस अवसर पर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि बूँद बूँद के मिलन से जल में घट आ जाय बूँद मिले सागर से सागर बूँद समाय।

 

एक बूँद दूसरी बूँद से मिल जाती है तो प्यास बुझाती है। सागर का अस्तित्व क्या है,उत्पत्ति कैंसे है ये जानना जरूरी है। लोग कहते है सरकार सुनती नहीं है, आपकी आवाज में दम होगी तो बेहरी सरकार भी सुन लेती है। स्वर के मिलते ही व्यंजन में गति आ जाती है, आप स्वर बन जाएँ तो सरकार व्यंजन बन जायेगी। कर्ता यदि सरकार है तो कार्य की अनुमोदना आपको करना है। 70 बर्षों में सरकार ने यदि शिक्षा की दिशा में नहीं सोचा तो आप ही सरकार को बनाने बाले हैं। विद्यालय का अर्थ नहीं जान पाये तो ये चल क्या रहा है क्यों स्कूल चलाए जा रहे हैं। आज बाबू बनने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका अभिप्राय मानसिक रूप से गुलामी करना है, सुभास चंद्र बोस ने अपनी माँ को पत्र लिख कर कहा था कि बाबू बनने से अच्छा है मैं राष्ट्र सेवा करूँ। आज नोकरी में पैकेज दहेज़ की तरह बन गया है जिसे पाने के लिए युवा लालायित हो रहे हैं। जिस वाक्य में कर्ता स्वतंत्र न हो उस वाक्य का कोई अर्थ नहीं है। बुद्धि यदि खराव हो जाय तो फिर ठीक नहीं हो सकती। ज्ञान को सही बिषय मिल जाय तो ज्ञान को सही दिशा मिल जाती है नहीं तो विकृति आने से ऊपर बाला भी नहीं रोक सकता है। हमारे यहां अंक से नहीं चलता अनुभव से चलता है इसलिए अनुभव जरूरी है। सरकार सिंधु है जनता बिंदु है। बैठने का नाम सरकार नहीं होता है उसे तो जनता के हित में चलते रहना चाहिए। अपने अतीत को पुनः जाग्रत करने की जरूरत है। केवल बाणी का मंथन करने से नवनीत नहीं मिल सकता। विदेशी शिक्षा नीति ने भारत के इतिहास को पीछे धकेल दिया है 70 बर्षों में भी मंथन से यदि कुछ नहीं निकला तो चिंता का बिषय है। कर्ता का काम करने का है जो अनुभवी लोग हैं उन्हें आगे आकर इस कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। अनुभवी शिक्षाविद् इस दिशा में कार्य करें परंतु इतिहास को सामने रखकर करें ,अपने इतिहास की अच्छाईओ को उजागर करें तो स्वतंत्रता के साथ न्याय हो सकेगा। संस्कृति को संरक्षित करने पर ही सुख शान्ति का अनुभब कर सकते हैं। आज श्रमिक बनकर ही हम राष्ट्र कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। भारत की युवा शक्ति विराट है उसे केंद्रित करने की जरूरत है, उसे मूल तत्व से जोड़ने की जरूरत है। हम समय को भी बाँध सकते हैं यदि प्रतिभा का सही उपयोग करें।

 

शिक्षा परिषद् के अतुल कोठारी ने कहा कि भारत में ही शिक्षा निहित है। शिक्षा के बिभिन्न आयामों को सीखने दुनिया भर के लोग यहां आते थे आज विदेशों में जाते हैं। जब हम भीतर की और झाँकने का प्रयास करते हैं तो सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है,एक दुसरे पर दोषारोपण करते हैं जबकि सभी की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है शिक्षा की इस दशा के लिए। जातिवाद,भाषाबाद की गांठों को खोलने की जरूरत है। सबका कल्याण हो ऐंसी शिक्षा नीति बननी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, ऐंसी शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा की नींव को मजबूत बनाने की जरूरत है।शिक्षा को बदलना है तो पहले मातृभाषा को मजबूत बनाना होगा, विदेशी भाषा को थोपना देश के नागरिकों के अधिकारों पर कुठाराघात है। जिस देश को अपनी मात्रभूमि, मातृभाषा, पर अभिमान नहीं होगा बो देश कभी विकास नहीं कर सकता है । जैन धर्म के इतिहास को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। इस मंथन से हम अच्छा समाधान लेकर ही उठें ये भावना है।

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