Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    894

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Everything posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. जिन दर्शन या धर्म प्रभावना निज दर्शन औ आत्म भावना लेकर यह उद्देश्य, आगे बढ़ते जा रहे शिवपथ पथिक दूर रहा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समीप। जब आता है बसंत । तो मुस्काती है प्रकृति जब आते हैं संत तो मुस्काती है संस्कृति यही स्थिति है यहाँ की… राजिम में स्वागतार्थ जनता हुई सम्मिलित । गूंज उठी अविराम जयघोष की ध्वनि ‘जय हो, जय हो विद्यासागरजी मुनि अमिट धर्म-प्रभावना कर रायपुर से दुर्ग होकर रूके कदम राजनांदगाँव, सेवार्थ रुके थे जो श्री मल्लिसागरजी के सरलमना पूज्य श्री योगसागरजी मुनि आ गये वे यहीं, पा गये पुनः गुरू पद-छाँव ‘युज' धातु से बनता है योग स्वभाव है उनका
  2. इधर विद्याधर के पिता श्री मल्लप्पाजी इन दिनों कहलाते ‘मुनि मल्लिसागरजी जो कभी खिलाते थे गोदी में विद्या को हो गये आज जगत्पूज्य श्री विद्यासागरजी वो, तरस गईं अँखियाँ उन्हीं के दर्शन हो । दर्शन के लोभ का कर नहीं पाये संवरण चरण वंदना को हुए तत्पर... ज्यों ही आचार्य श्री का किया दर्शन हृदय में हुई आत्मीय पुलकन सारी प्रकृति मुस्कायी अद्भुत था वह क्षण! दोनों शिवपथगामी देख एक दूजे को डूब गये आनंद-सर में... पुत्र हैं श्रमणाचार्य पिता हैं निग्रंथ मुनिराज, दुर्लभतम इन पलों में मौन साधे गहन साधक दो... अनकहे ही बहुत कुछ कह गये एक दूजे को मुनि श्री ने आचार्य श्री के चरण छुए! हृदय से अति आनंदित हुए। चरण-रज श्रद्धा से शीश लगाए आचार्य श्री आशीष का हाथ उठाए अहा! अद्भुत मिलन का दृश्य प्रकृति ने समय की तूलि से लिख दिया काव्य धरा-पृष्ठ पर लिखा लेख हुआ अमर धरा मुस्कायी, आह्लादित हुआ अंबर! विद्वान् होकर भी अति विनम्र उत्तम अध्यात्म साधना, देह कृश यशकीर्ति के बने शिलालेख जैनेन्द्र सिद्धांत कोष' है उन्हीं की देन ऐसे सुप्रसिद्ध 'जिनेन्द्रवर्णी जी' ग्रीष्म काल में आये ‘ईसरी' क्षुल्लक दीक्षा की रखी भावना आचार्य श्री ने विधिपूर्वक संस्कार देकर दीक्षा दे नाम रखा ‘सिद्धांतसागर। तभी गुरु-चरण में ले सल्लेखना करने लगे उत्तमार्थ अंतर्साधना गंतव्य है जिनका निर्वाण जहाँ न जन्म, न मरण का नाम, केन्द्रित हुई निजात्मा में चेतना सार्थक हुई समाधि साधना गुरु-मुख से सुनते-सुनते अंतिम संदेश निकल गये प्राण, देह रही शेष… आचार्य श्री कभी कोटि सूर्य की भाँति दैदीप्यमान लगते तो कभी कोटि चन्द्रमा की भाँति धवल व शीतल लगते अनुकूल हो या प्रतिकूल प्रत्येक परिस्थिति में मनः स्थिति सहज रखते। चातुर्मास स्थापना का पुण्यावसर प्राप्त हुआ ईसरी को लगे शिविर, हुआ सामूहिक स्वाध्याय नये-नये जुड़े अध्याय... सराक जाति उद्धार हेतु योजनाएँ। एक साथ पाँच दिगम्बर दीक्षाएँ मुनि मल्लिसागरजी'' का चातुर्मास य हीं हुआ संपन्न। तीर्थधरा का करके अंतिम दर्शन विहार कर चल दिये ‘कलकत्ता' की ओर… चलते-दिखते बाहर में पर अंतर में स्थिर रहते, बोलते-दिखते बाहर में। पर भीतर में मौन रहते। नगर प्रवेश के समय ईर्यापथ समिति से चलते-चलते कई मील चार हाथ जमीं देखकर जिनमंदिर यतिवर जा रहे थे... पथ में गवाक्ष और छतों से लोग झाँक रहे थे, किंतु संत निज में मग्न थे लक्ष्य की लगन ले बोले सिर्फ एक ही बार कहाँ है जिनमंदिर का द्वार? साथ-साथ चल रहे अनेकों भक्त देख उन्हें अचरज हुआ उस वक्त! प्रातः अखबार में छपा मुख्य पृष्ठ पर कलकत्ता में सबने देखा संत को, पर संत ने नहीं देखा किसी को दृश्य देखते हुए दीखते, किंतु देखते कभी नहीं चलते जाते हुए दीखते फिर भी चलते कभी नहीं' संत-लिखित पंक्ति की। हो आई मानस में स्मृति… निज दृष्टा से बढ़कर अन्य दृश्य नहीं निज ज्ञाता से बढ़कर अन्य ज्ञेय नहीं कलकत्ता को देखना क्या? कलधरों की कल-कल है यहाँ।'' कल अर्थात् शरीर का कत्ता अर्थात् कर्ता अचेतन शरीर का कर्ता, निश्चय से हो नहीं सकता मैं स्व भाव का ही कर्ता हूँ मैं धन्य है इनकी दृष्टि धन्य है इनकी प्रवृत्ति। स्वयं राज्यपाल ने किया स्वागत, किंतु मान-सम्मान से परे संत रहे सहज अनेकों जैन-अजैन, महात्मा के कर रहे दर्शन और महात्मा रहे स्वयं के दर्शक कलकत्ता की कल-कल शांत है यहाँ नाम है इसका बेलगछिया शांति व सुंदरता का संगम देख अनोखा डूब गये स्वयं में... अनंत की असीम गहराई में समकित मुक्ता को निहारने लगे निज दृष्टि से, सद्ज्ञान ज्योति को और उजालने लगे निज ज्ञप्ति से, सच्चरित्र को अनुभवने लगे निज वृत्ति से। पल-पल बीतते प्रतिदिन गुजर गये लो दस दिन... कलकत्ता की धरा अधिक रोक न पायी निर्बन्ध संत को, सो कटक से उदयगिरि, खंडगिरि आ पधारे दर्शन को।
  3. गंतव्य तक अविराम चलते रहना लक्ष्य है यतीश्वर का ज्ञानधारा में अविरल बहते रहना उ द्देश्य है सूरीश्वर का, कर्तव्यशील कदमों से पथ लाँघते नैनागिर से कटनी होते हुए जा रहे तीर्थराज सम्मेदशिखर... संग कई भक्तगण कर रहे पद विहार... यात्रा में जगह-जगह हुए मंगल प्रवचन सुन गुरू के अमृत-वचन अनेकों भव्यात्माओं ने छोड़ दिए सप्त व्यसन... जीवंत तीर्थ का शाश्वत तीर्थ से मिलन भावतीर्थ का द्रव्यतीर्थ से मिलन। लो! चलते-चलते आ गये सुखद क्षण...। आचार्य संघ का हो गया मंगल पदार्पण! बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि पावन है यहाँ का कण-कण निजानुभूति गहराने निकट भविष्य में मुक्ति पाने आये गुरु मुक्तात्माओं से मिलने… हर दिन पर्वत की वंदना करते स्व सिद्धत्व को श्रद्धा से अनुभवते, अपने असंख्यप्रदेश पात्र में ब रसती पवित्र ऊर्जा को नितांत एकाकी हो अहोभाव से स्पर्शते, गुरूवर की पुलकित मति तीर्थ वंदना की अलौकिक स्मृति भीड़ अधिक होने से शिखरजी से ईसरी लौट आये आचार्यश्री। गुरु के संयम-प्रभाव से चलायमान महासमंदर में अनेकों सरिताएँ समाहित होने लगीं, कोई ऐलक कोई मुनिदीक्षा ले । भव्यात्माएँ ज्ञानार्णव में अवगाहित होने लगीं।
  4. समय अपने पंखों को तेजी से पसार रहा था अज्ञ नहीं विज्ञ का आतम इसे निहार रहा था… नैनागिर की नयनाभिराम छटा वीतरागी संत को भा गई, इक्यासी के बाद दूसरे चातुर्मास की स्थापना भी वहीं हो गई। जिनके अनुभव-मिश्रित प्रवचन सुनने दीवार में बने छिद्रों से तिर्यंच भी बाहर निकल आते शांत भाव से प्रवचन सुन बिल में वापस समा जाते, ऐसे नाग-नागिन को देखने उमड़ पड़ती भीड़ निश्चित ही संस्कारित थे वे जीव।
  5. सुवास के बिना सुमन को चाह भी ले कदाचित् दुनिया, पर सद्गुण के बिना मनुज को कहाँ चाहती है दुनिया? सगुण के भंडार विद्यासागरजी अनगार जहाँ जाना चाहते पूर्व ही उनकी कीर्ति पहुँचती... जहाँ एक से एक प्राचीन मंदिर हैं। स्थापत्य कला का प्रतीक 'खजुराहो' में हुआ आगमन ‘पंच कल्याणक' में। चारों ओर मूसलाधार वर्षा तेज आँधी, तेज तूफाँ कई घरों के उड़ गये छप्पर ओलों से फूट गये खप्पर, भक्तगण हुए भयभीत गुरूदेव रहे ध्यान-लीन संत की संयमित साधना के प्रभाव से पंच कल्याणक स्थल पर आँच नहीं आयी। काली घटाएँ दूर से ही पलायन कर गयीं... श्रद्धालुओं ने संत-चरण में टेका सिर भाव-विभोर हो बोले फिर यह सब आप ही का प्रभाव है। जो आगत संकट का हुआ अभाव है। आध्यात्मिक रस भरे नयनों को विस्फारित कर बोले आचार्य श्री मेरे ही आत्मप्रदेश तक है। मेरे प्रभाव की सीमा, यह प्रभाव है सभी भक्तों का देव, गुरू, धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा का... देखो! अंजनचोर श्रद्धा के बल पर हो गया निरंजन, जिनदत्त को बुद्धि के तर्क में हो गई उलझन, श्रद्धा के बिना कुछ होता नहीं और श्रद्धालु के लिए कुछ असंभव नहीं! पर पर अपना प्रभाव मानना ही वास्तव में पर भाव है। स्व चतुष्टय में रमना ही प्रकृष्ट भाव है निश्चय में प्रभाव है। प्रत्येक जीव के अपने-अपने भाव का प्रभाव है। ससंघ विहार करते-करते मुलायम के बाद आई सड़क पथरीली चलते-चलते एक शिष्य के मुँह से आह! आवाज़ आई सुनकर बोले आचार्य श्री मिठाई के बाद नमकीन का स्वाद लिया करो। मलाई रोड़ के बाद... नुकीले पत्थरों पर भीअच्छे से चला करो। चलते-चलते भी कर्म निर्जरा किया करो।
  6. नैनागिर में चल रहा चौमासा अचानक तलहटी पर छा गया गहन सन्नाटा... आचार्य श्री हो गये अस्वस्थ जन-समूह पर्वत की ओर भागता दिखा ऊपर कोलाहल व्याप्त था। श्वास लेने में कष्ट हो रहा था... हृदय की धड़कनें हो रहीं अनियंत्रित बोले आचार्यवर्य मुझे लेकर समाधि, होना है समाधिस्थ। तभी गुरूभक्त कवि मिश्रीलाल जी ने कहा आप हैं श्रमण संस्कृति के सिरमौर मैं अल्पज्ञ हूँ क्षमा कीजिए मुझे समाधि का कारण एक भी नहीं दिख रहा बलजोर। कुछ तीव्र स्वर में बोले आचार्य श्री तुम मोही हो रागी । मैं जान रहा रोग को भलीभाँति अंत समय तक स्वात्म तत्त्व में लीन रह सकूँ इसीलिए चेतना पूर्वक लेना चाहता हूँ समाधि...।" सुन शब्दावली काँप उठी चेतना, किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई कवि की आत्मा कहीं मुख से कह न दें कि । लेता हूँ समाधि इसके पूर्व ही बटोरकर साहस सहसा बोले विनम्र हो “गुरुवर! आचार्यपद भी है परिग्रह इसे त्याग कर किसे देंगे आप? कौन है वह योग्य शिष्य आपका?'' सुनते ही यह चिंतन की बदल गई दिशा... तत्क्षण कंपित कंठ से किया अनुनय कवि ने पण्डित जगन्मोहनलालजी को बुलवाकर समीप में क्षुल्लक सन्मतिसागरजी से वार्ता कर पश्चात् करिये सल्लेखना स्वीकार… तीन-चार दिन में दोनों आये नैनागिरि सौभाग्य से तब तक स्वस्थ हुए आचार्य श्री भक्तों ने चैन की साँस ली बदलियाँ मँडरायी पर बरसी नहीं दीये की लौ कॅपी पर बुझी नहीं।
  7. सागर में ही 'षट्खंडागम' ग्रंथ की प्रथम हुई वाचना जिस ग्रंथ को लिखा पुष्पदंत-भूतबलि मुनिनाथ ने ताड़ पत्र पर काँटों की तूलि से... पश्चात् सागर, जबलपुर खुरई, पपौरा, ललितपुर, जबलपुर में पुनः हुई वाचना सिद्धांत ग्रंथ से धर्म प्रभावना मू र्धन्य विद्वानों की उल्लसित हुई भावना। डूबकर हृदय की गहराई में करते गए मौलिक रचनाएँ, एकमात्र लक्ष्य जिनका । बाह्य जगत से बचना है। क्योंकि जानते थे संत कि स्वार्थ के प्रभाव में परमार्थ गौण हो जाता है। पैसे के प्रभाव में परमातम गौण हो जाता है। मान के प्रभाव में औरों की वेदना गौण क्रूरता के प्रभाव में संवेदना गौण, और पर आकर्षण में निजात्मा गौण हो जाता है। इसीलिए लेखनी को बना मीत लिखते रहते संत अंतस् के गीत, विस्मृत श्रुत परम्परा को पुनर्जीवित कर दिया... अनेकों प्राणियों के अज्ञान को कीलित कर दिया। भक्त श्रोताओं ने भव्य वाचना के समापन समारोह पर ज्ञान-वैराग्य के अनूठे संगम आचार्यश्री को ‘चारित्र चक्रवर्ती उपाधि से विभूषित करना चाहा... उल्लास उमंग का वातावरण था... चारित्रचक्रवर्ती का लगाया जा रहा नारा तभी ध्वनि विस्तारक यंत्र अपने समीप बुलवाया पल भर में स्तब्धता छा गई जनता मूक-सी हो गई… गंभीर स्वर में मुखरित हुए आचार्यश्री विज्ञ समझ रहा था मैं तुम्हें, किंतु अविवेक का परिचय दिया तुमने बिना मेरी अनुमति लिए । पद की घोषणा कैसे की तुमने? परिग्रह है ये उपाधि मोक्षमार्ग में बाधक है पदानुभूति परानुभूति है। इससे होती नहीं सम्यक् समाधि! जन-समूह से क्षमायाचना कर कहा अंत में “पद से परतंत्र बनना नहीं मुझे पर-कर्ता बनकर किसी का किंकर बनना नहीं मुझे, पर-दृष्टि रखकर दीन-हीन बनना नहीं मुझे पर-कृपा का कर्ता होकर कृपण” बनना नहीं मुझे, पद तो चाहिए मुझे भी। लेकिन शाश्वत सिद्धपद का हूँ मैं प्रत्याशी निराकार निज पद का हूँ अभिलाषी...
  8. बिना प्रदर्शन त्याग हो विशेष विशुद्धि रूप गुणस्थान हो यही भावना ले सहजता से पूजन करते आवक से द्रव्य ले... बिना किसी आडम्बर च तुर्थकाल-सी भावभीनी प्रथम मुनि दीक्षा दी... सात मार्च उन्नीस सौ अस्सी को मंदिर में ही ऐलक से हो गये मुनि ‘समयसागरजी एक से दो मुनि देख लोग हुए चकित मन से मुदित, हृदय से हुए आनंदित… कुछ दिनों के उपरांत ही पन्द्रह अप्रैल के शुभ योग में मुनि हुए ‘योगसागरजी'।
  9. गुरुशिष्य महामिलन बंधा जी क्षेत्र में हुआ पूज्य आचार्य भगवान श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ से पूज्यवर मुनिश्री १०८ अभय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल मिलन गुरुदेव नमोस्तु
  10. गुरुशिष्य महामिलन बंधा जी क्षेत्र में हुआ पूज्य आचार्य भगवान श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज ससंघ से पूज्यवर मुनिश्री १०८ अभय सागर जी महाराज ससंघ का मंगल मिलन गुरुदेव नमोस्तु
  11. आज आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज का अंग्रेजी तिथि के हिसाब से दीक्षा दिवश है 17 जुलाई २०१८ को हिंदी तिथि के हिसाब से आचार्य विद्यासागर जी महाराज का ५१ दीक्षा दिवस हैं | और इसी दिन आचार्य श्री की दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण होंगे आज ही गुरुणां गुरु श्री ज्ञानसागर जी का हिंदी तिथि के अनुसार दीक्षादिवश है| आइये सभी मिलकर आचार्य श्री को नमोस्तु लिखें |
  12. चलो ? चलो चेतन्य चमत्कारी बाबा के दरबार बंधा जी भव्य आगवानी,महामत्काभिषेक ? ?? ? दिनाँक 30 जून शनिवार ? ?? ? बुन्देलखण्ड के मध्य स्थित अनेकोनेक आतिशयों से युक्त ,चैतन्य चमत्कारी भगवान अजित नाथ जी भोंयेरे बाले बाबा के दरबार मे 30 जून शनिवार की प्रातः बेला में शताब्दी संत श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज बालयति संघ के साथ पधार रहे हैं। आचार्य भगवंत की आगवानी मुनि श्री अभय सागर जी महाराज ससंघ एवं बंधा जी क्षेत्र के हजारों जैन जैनेतर भव्यता के साथ करेंगे। बंधा जी क्षेत्र कमेटी अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जी द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार हजारों की संख्या में अजेन आचार्य भगवंत की आगवानी को आतुर है। आस पास की विभिन्न भजन मंडली,अखाड़े, और हजारों कलशों के साथ आचार्य भगवंत की आगवानी की जावेगी। सम्पूर्ण मार्ग में बन्धनबार आगवानी के लिए सजाये गए है। प्रातः काल आगवानी के साथ ही ब्र. सुनील भैया जी के निर्देशन में विभिन्न्न कार्यक्रम सम्पादित किये जावेगें। ? 1008 कलशों से श्री अजितनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक ? आचार्य श्री का संयम स्वर्ण महोत्सव , आचार्य भगवंत की दिव्य देशना। ? विद्योदय फ़िल्म का प्रदर्शन आदि विविध कार्यक्रम क्षेत्र कमेटी द्वारा आयोजित है। ???????? श्री बंधा जी क्षेत्र के अतिशय कारी चेतन्य चमत्कारी बाबा अजितनाथ जी के दरवार में एक बार जो आ जाता है उसे बार बार आने का मन करता है। यह इस क्षेत्र का प्रथम अतिशय है। वर्ष 2017 और 2018 के जनवरी माह में आर्यिका श्रेष्ठ विज्ञानमती माता जी के सानिध्य में इस क्षेत्र पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुये देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में आये श्रद्धालुओं ने कार्यक्रम में शिरकत की और बंधा जी क्षेत्र के भोंयेरे बाले बाबा के चमत्कार को साक्षात निहारा। ⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳⛳ क्षेत्र कमेटी द्वारा आगन्तुको के आवास एवं भोजन की व्यवस्था रखी गयी है। पधारकर सातिशय पुण्य लाभ अर्जित करें। ???????? मुरली मनोहर जैन(अध्यक्ष बंधा जी क्षेत्र कमेटी) 8964977550 समस्त प्रबंध कार्यकारणी। क्षेत्रिय समाज 〰〰〰〰〰〰〰〰
  13. आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के संयम स्वर्ण जयंती के अवसर पर उनके जीवन चरित्र पर बनी फ़िल्म विद्योदय पूरे भारत वर्ष में 50 स्थानों पर एक साथ दिनांक 30-06-2018 वार शनिवार को रिलीज होगी । अलवर में भी इस फिल्म का प्रीमियर शो दिनांक 30-06-2018 को रात्रि 08-00 बजे श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ चौबीसी मंदिर, जैन भवन स्कीम न.10 अलवर में होगा । आप सभी से निवेदन हे कि 01 घंटे 40 मिनट की इस फिल्म को देखने के लियें आप अपना स्थान आज ही बुक करें । निवेदक:- अशोक कुमार जैन अध्यक्ष, श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर , अलवर
  14. ‼ ?‍? *"संयम स्वर्ण महोत्सव"* ?‍? ‼ *के उपलक्ष्य में* होने जा रहा है , ??????????? *"भव्य भक्तमर महापाठ का"* *??!! महा आयोजन !!??* *?एवं?* ???????? *?"संगीतमय महाआरती"?* ??????????? ??????????? ?‍??‍??‍??‍??‍??‍? ?‍? *?501?* ?‍? ?‍??‍??‍??‍??‍??‍? *जी हाँ !* *?501 दीपकों के माध्यम से होगी भव्य मंगल महाआरती !!* *?होगा , मानतुंगाचार्य कृत संकटहरण भक्तामर स्तोत्र का महापाठ !!* *?बीजाक्षरों के उच्चारण से होगा सद्भावनाओं का विकास !!* *?विशिष्ट ऋद्धिमंत्रों द्वारा किया जाएगा दीप प्रज्ज्वलन !!* ??????????? *!! आने वाले प्रत्येक सौभाग्यशाली?को* *मिलेगा दीप प्रज्ज्वलन?का महासौभाग्य !!* ??????????? इसमें होंगे बहुत ही खास संयोग :- ?? *30 जून को आचार्य भगवंत का दीक्षा दिवस !* ?? *आचार्य भगवंत की दीक्षा को पूर्ण होंगे 50 वर्ष !* ?? *अजमेर में होगा भव्य कीर्ति स्तम्भ का उद्घाटन !* ?? *और होगा अतिशयकारी पार्श्वनाथ भगवान के सादर चरणों मे भक्तमर महापाठ !* *?स्थान :- श्री पार्श्वनाथ दिग. जैन मंदिर , जवरी बाग़ नसिया जी , इंदौर (म.प्र.)* ?‍? *?दिनाँक :- 30 जून 2018 शनिबार * ?‍? *⏰समय :- शाम 8 बजे से* ?‍? ??????????? *!! आईए , आपको सौभाग्य बुला रहा है !!* ???????????
  15. जुलाई १३, २०१८ रात्रि विश्राम हवाई अड्डे के कम्युनिटी सेन्टर में होगा। कल प्रातः 6.30 या 7.00 बजे खजुराहो में प्रवेश होगा। 11 जुलाई 2018, 5:15 PM परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार छतरपुर से खजुराहो मार्ग पर, आज दोपहर में हुआ। आज रात्रि विश्राम- ब्रजपुरा स्कूल भवन (छतरपुर से 11 किमी) कल की आहार चर्या- बसारी ग्राम (ब्रजपुरा से 8 किमी) 8 जुलाई, रविवार। आज रात्रि विश्राम- खमा गाँव (4 किमी पूर्व नोगाव से) कल प्रातः 7 बजे- नोगाँव में भव्य मंगल प्रवेश। विशेष: छतरपुर में 11 जुलाई को सुवह मंगल प्रवेश संभावित। 6 जुलाई २०१८ मंगल विहार जतारा से हुआ......... आचार्य भगवन संत शिरोमणि 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का मंगल विहार हो गया है। संभावित रात्रि विश्राम सिमरा में होने की संभावना है कल की आहार चर्या पलेरा में होने की संभावना है। 5 जुलाई, 4:00PM लिथोरा ग्राम से हुआ विहार, गूंज उठी तब जय जयकार । 12 किमी है सीतापुर ग्राम, यहाँ संघ करेगा रात्रि विश्राम ।। कल प्रातः होगा मंगल विहार, जब सूरज का होगा उजियारा। नगर नागरिक झूम उठेंगे, कल मंगल प्रवेश होगा "जतारा" ।। 4 जुलाई 2018 आज बॅंधा जी से आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार हुआ । बम्होरी रात्रि विश्राम आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का विहार आज श्याम ४:२० बजे अतिशय क्षेत्र बंधा जी से बम्होरी (खजुराहो) की ओर हुआ आज आचार्यश्री ससंघ का रात्रि विश्राम बम्होरी में होने की संभावना है संभावित दिशा- बम्होरी, जतारा, छतरपुर आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ। आज रात्रि विश्राम: रामपुरा (11 किमी) कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी) आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ। पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण। भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़ श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ। गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था। विद्या गुरु का मंगल विहार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार आहरचार्य टीकमगढ़ संभावित
  16. मुक्तागिरि होते हुए नैनागिर में आ विराजे गुरूदेव, तभी चरण वंदना कर बोला एक युवक “भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी हूँ मैं' प्रसन्न मुद्रा में जवाब दिया आचार्यश्री जी ने और मैं वीतराग विज्ञान का..." जब गुरु ने कुछ भी नहीं दी प्रतिज्ञा युवक था हैरान साधु जबर्दस्ती देते नियम निरस्त हुई यह धारणा। आस्था में डूबकर बोला वह जो चाहे आप दीजिए नियम मुझे, जब कुछ न बोले गुरूदेव तब ज्ञात से अज्ञात की ओर... शब्द से नि:शब्द की ओर राग से विराग की ओर मोह से मोक्ष की ओर चलने का कर लिया संकल्प, समर्पित हो गुरूदेव के पकड़ लिए चरण गुरु ने दे दी चरणों में शरण। हर्षातिरेक से अहोभाग्य मान सदा के लिए रख दिया गुरु-चरण में माथ ‘ओम्' कहते हुए सिर पर पिच्छी रख रख लिया अपने साथ। दस जनवरी का दिवाकर हुआ उदित कुछ विशेष रोशनी ले मुकुलित कमल हो गये पूर्ण विकसित अलिगण करने लगे गुंजन... लो छह साधक को क्षुल्लक दीक्षा दे महान उपकार कर दिया भारत की वसुंधरा को अद्भुत उपहार दे दिया!! पंछियों की भाँति स्वतंत्र जल की भाँति निर्मल सरिता की भाँति गतिमान चट्टान की भाँति अविचल गुरूकुल पद्धति के समर्थक आत्म विद्या पारंगत श्रुत के समाराधक ऐसे महान साधक के गाँव-गाँव नगर-नगर प्रत्येक श्रावक के घर-घर गूंज उठते नारे... ‘ज्ञान के सागर विद्यासागर ‘धर्मदिवाकर विद्यासागर धर्मध्वज फहराते यूँ आचार्य श्री द्रोणगिरि पधारे।
  17. यों क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर नैनागिर से चातुर्मास संपन्न कर पहुँचना था मदनगंज किशनगढ़ दे दिया था वचन तिथि हुई निश्चित, लेकिन बीच में ही देह में बढा ताप असाता के राक्षस ने डेढ़ माह दिया संताप संत भयंकर देह दाह में भी थे निश्चित जो मिटाने चले हैं भव आताप। ज्वर मंद होते ही किया विहार पर मन ही मन यह कर लिया विचार अब आगे से किसी को वचन नहीं देना इससे हो जाता है विकल्प; क्योंकि परिस्थितिवश चाहते हुए भी पूरा न कर पाते संकल्प। संकल्प-विकल्प से परे हो जीवन जीना है मुझे कल-कल का कारण कल से परे हो निष्कल होना है मुझे। श्रावक भले ही करे आग्रह वे गृहवासी हैं गृह परिग्रह से परे श्रमण रत्नत्रयधारी हैं। आग्रह, आवेश, आक्रोश ये तीन आकार का बना शिकार भटक रहा अनंत संसार अब मुझे होना है निराकार, तो गुरू-आज्ञा करके स्वीकार ध्येय बनाये रखना है चिन्मय चिदाकार। अब वचन देना नहीं किसी श्रावक को वचन दे दिया है मन ही मन अपने गुरूवर को अनुभव से सीख ली स्वयं ने पहुँच गये किशनगढ़ में, समाज थी सारी प्रसन्न पंच कल्याणक हुए सानंद संपन्न तन कमजोर होने पर भी चेतन था बलजोर… सिरदर्द और देह में शुष्कता बढ़ती जा रही थी। मौसम में उष्णता दिन पर दिन तेज हो रही थी... तभी घी लेना स्वीकार कर सर्व फलों का कर दिया त्याग... असंयमी कहता है यह भव मीठा, परभव किसने दीठा' संयमी संत कहते हैं इस भव में त्याग तो परभव में कैसा संताप? यूँ परम त्यागी यतिवर ‘दक्षिण के संत उत्तर के बसंत' मुनि ने विचरण कर थूबौन में उन्यासी का किया चातुर्मास। शिष्य की गुरु से क्या है अनजानी? गुरु ने शिष्य के मन की पहचानी एक दिवस क्षुल्लक समयसागरजी । पहुँचे गुरुवर के समीप... प्रत्येक अष्टमी-चतुर्दशी करते नियमित उपवास आज भी रख दी उपवास की भावना शीश धर चरण में की वंदना। गुरू ने किया आदेशित उपवास नहीं, करना है ऊनोदर तभी नियमसागरजी ने सोचा अपने मन के अंदर... मैं भी गुरु से माँग लँ ऊनोदर किया निवेदन गुरु से हाथ जोड़कर आचार्यश्री! मैं करना चाहता हूँ ऊनीदर' कुछ पल सोचकर कहा गुरू ने यदि कर सकते हो उपवास तो कर लो आज सौभाग्य मान किया उपवास। गुरू होते जननी-सम ज्यों जननी एक बेटे को पानी डाल पिलाती दूध दूजे को मलाई डाल पिलाती दूध शिष्य को कब क्या करना है कहाँ कितने समय रहना है गुरु ही यह जानते हैं ऐसे गुरु को शिष्य भगवान मानते हैं।
×
×
  • Create New...