जिन दर्शन या धर्म प्रभावना
निज दर्शन औ आत्म भावना
लेकर यह उद्देश्य,
आगे बढ़ते जा रहे शिवपथ पथिक
दूर रहा उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समीप।
जब आता है बसंत ।
तो मुस्काती है प्रकृति
जब आते हैं संत
तो मुस्काती है संस्कृति
यही स्थिति है यहाँ की…
राजिम में स्वागतार्थ जनता हुई सम्मिलित ।
गूंज उठी अविराम जयघोष की ध्वनि
‘जय हो, जय हो विद्यासागरजी मुनि
अमिट धर्म-प्रभावना कर
रायपुर से दुर्ग होकर
रूके कदम राजनांदगाँव,
सेवार्थ रुके थे जो
श्री मल्लिसागरजी के
सरलमना पूज्य श्री योगसागरजी मुनि
आ गये वे यहीं,
पा गये पुनः गुरू पद-छाँव
‘युज' धातु से बनता है योग
स्वभाव है उनका