सुवास के बिना सुमन को
चाह भी ले कदाचित् दुनिया,
पर सद्गुण के बिना मनुज को
कहाँ चाहती है दुनिया?
सगुण के भंडार
विद्यासागरजी अनगार
जहाँ जाना चाहते
पूर्व ही उनकी कीर्ति पहुँचती...
जहाँ एक से एक प्राचीन मंदिर हैं।
स्थापत्य कला का प्रतीक 'खजुराहो' में
हुआ आगमन ‘पंच कल्याणक' में।
चारों ओर मूसलाधार वर्षा
तेज आँधी, तेज तूफाँ
कई घरों के उड़ गये छप्पर
ओलों से फूट गये खप्पर,
भक्तगण हुए भयभीत
गुरूदेव रहे ध्यान-लीन
संत की संयमित साधना के प्रभाव से
पंच कल्याणक स्थल पर आँच नहीं आयी।
काली घटाएँ दूर से ही पलायन कर गयीं...
श्रद्धालुओं ने संत-चरण में टेका सिर
भाव-विभोर हो बोले फिर
यह सब आप ही का प्रभाव है।
जो आगत संकट का हुआ अभाव है।
आध्यात्मिक रस भरे नयनों को विस्फारित कर
बोले आचार्य श्री
मेरे ही आत्मप्रदेश तक है।
मेरे प्रभाव की सीमा,
यह प्रभाव है सभी भक्तों का
देव, गुरू, धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा का...
देखो! अंजनचोर श्रद्धा के बल पर
हो गया निरंजन,
जिनदत्त को बुद्धि के तर्क में हो गई उलझन,
श्रद्धा के बिना कुछ होता नहीं
और श्रद्धालु के लिए कुछ असंभव नहीं!
पर पर अपना प्रभाव मानना ही
वास्तव में पर भाव है।
स्व चतुष्टय में रमना ही
प्रकृष्ट भाव है निश्चय में प्रभाव है।
प्रत्येक जीव के अपने-अपने
भाव का प्रभाव है।
ससंघ विहार करते-करते
मुलायम के बाद आई सड़क पथरीली
चलते-चलते
एक शिष्य के मुँह से आह! आवाज़ आई
सुनकर बोले आचार्य श्री
मिठाई के बाद नमकीन का स्वाद लिया करो।
मलाई रोड़ के बाद...
नुकीले पत्थरों पर भीअच्छे से चला करो।
चलते-चलते भी कर्म निर्जरा किया करो।