गंतव्य तक अविराम चलते रहना
लक्ष्य है यतीश्वर का
ज्ञानधारा में अविरल बहते रहना उ
द्देश्य है सूरीश्वर का,
कर्तव्यशील कदमों से पथ लाँघते
नैनागिर से कटनी
होते हुए जा रहे
तीर्थराज सम्मेदशिखर...
संग कई भक्तगण
कर रहे पद विहार...
यात्रा में जगह-जगह हुए मंगल प्रवचन
सुन गुरू के अमृत-वचन
अनेकों भव्यात्माओं ने
छोड़ दिए सप्त व्यसन...
जीवंत तीर्थ का शाश्वत तीर्थ से मिलन
भावतीर्थ का द्रव्यतीर्थ से मिलन।
लो! चलते-चलते आ गये सुखद क्षण...।
आचार्य संघ का हो गया
मंगल पदार्पण!
बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि
पावन है यहाँ का कण-कण
निजानुभूति गहराने
निकट भविष्य में मुक्ति पाने
आये गुरु मुक्तात्माओं से मिलने…
हर दिन पर्वत की वंदना करते
स्व सिद्धत्व को श्रद्धा से अनुभवते,
अपने असंख्यप्रदेश पात्र में ब
रसती पवित्र ऊर्जा को
नितांत एकाकी हो अहोभाव से स्पर्शते,
गुरूवर की पुलकित मति
तीर्थ वंदना की अलौकिक स्मृति
भीड़ अधिक होने से शिखरजी से
ईसरी लौट आये आचार्यश्री।
गुरु के संयम-प्रभाव से
चलायमान महासमंदर में
अनेकों सरिताएँ समाहित होने लगीं,
कोई ऐलक कोई मुनिदीक्षा ले ।
भव्यात्माएँ ज्ञानार्णव में अवगाहित होने लगीं।