समय अपने पंखों को तेजी से पसार रहा था
अज्ञ नहीं विज्ञ का आतम इसे निहार रहा था…
नैनागिर की नयनाभिराम छटा
वीतरागी संत को भा गई,
इक्यासी के बाद दूसरे चातुर्मास की
स्थापना भी वहीं हो गई।
जिनके अनुभव-मिश्रित प्रवचन सुनने
दीवार में बने छिद्रों से
तिर्यंच भी बाहर निकल आते
शांत भाव से प्रवचन सुन
बिल में वापस समा जाते,
ऐसे नाग-नागिन को देखने
उमड़ पड़ती भीड़
निश्चित ही संस्कारित थे वे जीव।