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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानधारा क्रमांक - 100

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    मुक्तागिरि होते हुए नैनागिर में

    आ विराजे गुरूदेव,

    तभी चरण वंदना कर बोला एक युवक

    “भौतिक विज्ञान का विद्यार्थी हूँ मैं'

    प्रसन्न मुद्रा में जवाब दिया आचार्यश्री जी ने

    और मैं वीतराग विज्ञान का..."

     

    जब गुरु ने कुछ भी नहीं दी प्रतिज्ञा

    युवक था हैरान

    साधु जबर्दस्ती देते नियम

    निरस्त हुई यह धारणा।

     

    आस्था में डूबकर बोला वह

    जो चाहे आप दीजिए नियम मुझे,

    जब कुछ न बोले गुरूदेव

    तब ज्ञात से अज्ञात की ओर...

    शब्द से नि:शब्द की ओर

    राग से विराग की ओर

    मोह से मोक्ष की ओर

    चलने का कर लिया संकल्प,

     

    समर्पित हो गुरूदेव के पकड़ लिए चरण

    गुरु ने दे दी चरणों में शरण।

    हर्षातिरेक से अहोभाग्य मान

    सदा के लिए रख दिया गुरु-चरण में माथ

    ‘ओम्' कहते हुए सिर पर पिच्छी रख

    रख लिया अपने साथ।

     

    दस जनवरी का दिवाकर हुआ उदित

    कुछ विशेष रोशनी ले

    मुकुलित कमल हो गये पूर्ण विकसित

     

    अलिगण करने लगे गुंजन...

    लो छह साधक को क्षुल्लक दीक्षा दे

    महान उपकार कर दिया

    भारत की वसुंधरा को अद्भुत

    उपहार दे दिया!!

     

    पंछियों की भाँति स्वतंत्र

    जल की भाँति निर्मल

    सरिता की भाँति गतिमान

    चट्टान की भाँति अविचल

    गुरूकुल पद्धति के समर्थक

    आत्म विद्या पारंगत श्रुत के समाराधक

    ऐसे महान साधक के

    गाँव-गाँव नगर-नगर

    प्रत्येक श्रावक के घर-घर

    गूंज उठते नारे...

     

    ‘ज्ञान के सागर विद्यासागर

    ‘धर्मदिवाकर विद्यासागर

    धर्मध्वज फहराते यूँ

    आचार्य श्री द्रोणगिरि पधारे।


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