बिना प्रदर्शन त्याग हो
विशेष विशुद्धि रूप गुणस्थान हो
यही भावना ले सहजता से
पूजन करते आवक से द्रव्य ले...
बिना किसी आडम्बर च
तुर्थकाल-सी भावभीनी
प्रथम मुनि दीक्षा दी...
सात मार्च उन्नीस सौ अस्सी को मंदिर में ही
ऐलक से हो गये मुनि ‘समयसागरजी
एक से दो मुनि देख लोग हुए चकित
मन से मुदित, हृदय से हुए आनंदित…
कुछ दिनों के उपरांत ही
पन्द्रह अप्रैल के शुभ योग में
मुनि हुए ‘योगसागरजी'।