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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. वैज्ञानिक-सी खोजी बुद्धि होने से पूछा करते माँ से अनेकों प्रश्न आज के इस जटिल प्रश्न ने माँ को हैरत में डाल दिया माँ का मन दोलायित कर दिया, कहने लगे- माँ! एक में से एक गया तो? बोली माँ- शून्य दस में से दस गये तो? बोली माँ - शून्य सौ में से सौ गये तो? बोली-बेटा! शून्य हज़ार में से हज़ार गये तो? कहा ना- शून्य लाख में से लाख गये तो? बेटा! शून्य ही! प्रश्नायित आँखों से बोले माँ! मुझे कुछ समझ नहीं आता ज्यों-ज्यों राशि बढ़ती जाती। त्यों-त्यों शून्य भी बढ़ा होता जाता है क्या? फिर शून्य बड़ा हो या छोटा शून्य तो शून्य ही होता है ना, माँ! तो बड़ी संख्या क्यों देते हैं घटाने के लिए सुनते ही श्रीमंत मौन हो गई, अपने जीवन के उलझे सवाल को सुलझाने में लग गई। चाहे अमीर हो या गरीब छोटा हो बड़ा जन्म लेता है और मर जाता है, फिर एक अच्छा, एक बुरा एक अपना, एक पराया यह भेद क्यों? जब अंत सबका एक-सा है शून्य ही शून्य बचना है। देह की राख होना ही होना है तो इस सत्य से अनजान क्यों? स्वयं से बेभान क्यों? बेटे के सवाल से समाधान खोजती-खोजती खो गई... रात यों ही बीत गई, हो गया नया सुप्रभात फिर नयी उमंगें, नया उपहार ले आज का दिन न जाने क्या देने वाला है? नूतन सौगात… दिन है पन्द्रह अगस्त का देश की आज़ादी का... तैयार होकर सवेरे से जिन दर्शन करके वे एक नये उत्साह के साथ जाने लगे विद्यालय की ओर... जाते-जाते दूध से भरा गिलास थमा दिया हाथ में पीठ पर हाथ फेरती रही मन ही मन कहती रही ऐसे ही क्षीर से धवल परिणाम रहें सदा उज्ज्वल भविष्य हो तुम्हारा! कुछ ही मिनटों में विद्यालय के प्रांगण में पहुँचते ही देखा कि ध्वज फहरने ही वाला है, किंतु यह क्या? अनेक प्रयास करने पर भी गाँठ खुल ना पायी इसीलिए पुष्पवृष्टि हो न पायी, सब लोग चिंतित थे इधर गिनी अपने अपूर्व चिंतन में खोये थे… जब तक खुलेगी नहीं असंयम की गाँठ फहरायेगी नहीं संयम की ध्वजा ना ही हो पायेगी आनंद की वर्षा, मुझे फहराना है निश्चित एक दिन धर्मध्वजा जो लहराकर देगा परमात्मा को मेरा संदेश, विद्याधर तो हूँ ही एक दिन पहुँच जाऊँगा एक ही समय में सिद्धों के देश, सीढ़ी पर बैठे कल्पना-लोक में कर रहे थे विचरण कि बीच में ही मित्र ‘मारूति' ने जो खास थे तभी तो परम सखा थे कहा कंधे पर रख हाथ क्या सोच रहे हो? “सफल होने तक साधना गुप्त रखना चाहिए गंतव्य पाने तक नित्य सजग रहना चाहिए” यह सोचकर सिर हिला दिया, बोले कुछ नहीं। अनागत को आवृत रखना मन की बात मन तक रखना उद्देश्य पूर्ण होने तक चित्त में सहेज कर रखना, कूट-कूट कर भरा है धैर्य इनमें समय पर समुचित बल का प्रयोग करना अदभुत है शौर्य इनमें।
  2. भोली-भाली आँखों में समा गई मुनिश्री की वीतराग छवि, खरीदी जब कुछ खाने-खेलने की वस्तुएँ घर के सभी भाई-बहनों ने, लेकिन गिनी ने पाई अदभुत निधि रूप आत्म-कल्याण की समुचित सौगातें घर में भी कभी किसी चीज का आग्रह नहीं करना जो दिया सो ले लेना जिद करना या मचलना स्वभाव में नहीं था विद्या का... छोड़ घर का हर कार्य देव-शास्त्र-गुरु को महत्त्व देना यही माना था आद्य कर्तव्य। सबसे अच्छा लगने वाला खेल गिल्ली डंडा खेलते-खेलते गिल्ली चली गई गुफा में उठाने गये तो देखा मुनि महाबल जी है विराजमान... भूलकर गिल्ली झट किया नमन श्रद्धा-भक्ति से हाथ जोड़कर अभिवादन, मनमोहक आकर्षक सुंदर-सा देख आनन पूछ लिया संत भगवंत ने धर्म के विषय में याद है कुछ? प्रसन्न हो सुना दिया कुछ ‘भक्तामर' व तीर्थंकर के नाम... अब याद कर लेना। 'मोक्षशास्त्र', 'सहस्रनाम कहकर रखा शीश पर हाथ, अपूर्व-सा हुआ संवेदन झट रखा संत चरण में माथ। पा मुनिश्री का यूँ आशीष हर्ष विभोर हो उछलते- दौड़ते माँ के पास आ हाँफते-हाँफते अधखुले होठों से बताने लगे... देख बालक का संत के प्रति सम्मान भाव और धर्म के प्रति लगाव... सोच में डूब गई पीलु के चेहरे की चमक देखती ही रह गई।
  3. पुण्य पुरूषों को प्रकृति स्वयं ही संयोग जुटाती है होनहार पवित्रात्मा को महात्माओं से स्वयं ही मिलाप कराती है। नौ वर्ष की उम्र में शेडवाल में पधारे थे ‘‘चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागरजी” पास ही बहती थी कल-कल करती कृष्णा नदी उसी के पार्श्व में मुत्तिन केरे इक तालाब इससे दस मील दूर पर ग्राम था दानवाड जहाँ गले मिलती थीं दोनों नदियाँ वेदगंगा और लोकगंगा एक ओर प्रकृति अपनी छटा बिखेरे थी, तो दूसरी ओर प्रकृति पुरूष महासंत आत्म-साधना से साधित अपनी दिव्य छवि से अभूतपूर्व धर्म प्रभावना कर रहे थे। उन्हीं के दर्शनार्थ सपरिवार मल्लप्पा जी जा रहे थे... पहुँचते ही गाँव में ज्ञात हुआ कि आज है आचार्य श्री का केशकुंचन उमड़ पड़ी थी भारी भीड़ करने को दर्शन, फिर भी सबसे अग्रिम पंक्ति में जा किया वंदन... प्रवचन में वैराग्य प्रद कहानी सुन बदल गई जीवन की धुन… श्यामल घूँघराले केशों को उखाड़ने का करने लगे प्रयास अनुभूत हुआ बड़ा कष्ट साध्य है यह कार्य, किंतु होने पर भेद-ज्ञान कर लेता है सहज वह आर्य पावन बाल-मानस में दृश्य यह हो गया कीलित-सा। पल्लवित करने विद्या-तरु सघन हो चुका है यहाँ धर्म-बीज का वपन, देख यह मंजर प्रसन्नता से भरकर उल्लसित हो कुछ बूंदों को बिखराती बीज पर बही जा रही... बही जा रही... लक्ष्य को पाने का प्रथम पड़ाव है यह बहते-बहते, यह कहती जा रही ज्ञा ऽ ऽ ऽ न धा ऽ ऽ ऽ रा ऽ ऽ ऽ
  4. यों ही समय का रेला आगे बढ़ता जा रहा था कि एक दिन पकड़ हाथ पूछ लिया माँ ने... ‘‘दो माह शेष हैं वार्षिक परीक्षा में याद है सब कुछ?” पूछते ही यंत्रवत् सारे विषय सुना दिये सुनते-सुनते थक गई उठकर जाते-जाते कह गई… “सफलता के प्रति प्रेम ने तुम्हें परिश्रम के दुख सहने की शक्ति दी है, उसी प्रकार परमात्मा के प्रति प्रेम तुम्हें पवित्र भावों का सत्कार करने की शक्ति दे, निजात्मा के प्रति प्रेम तुम्हें पुण्य के प्रलोभनों से प्रतिकार करने की शक्ति दे।'' श्रीमति की अंतर्पकार बेटे के मन को छू गयी कर लिया संकल्प ‘भक्तामर' पढ़ने का कुछ श्लोक करते ही कंठस्थ एक दिन माँ के गले में हाथ डाले सीधे जा बैठे गोद में वह कुछ कहे उसके पूर्व ही तोते-सी मीठी आवाज़ में लयबद्ध सुनाने लगे 'भक्तामर' माँ हो गई चकित! पूर्व जन्मकृत् पुण्य से ही बाहर और भीतर का लौकिक और धर्म का संतुलन बनाकर जो चल रहा है स्वयं अपने लक्ष्य को जो चुन रहा है, मैं क्या समझाऊँ इसे जो स्वयं समझदार है, मैं क्या सिखाऊँ इसे जो स्वयं विद्या का भंडार है... बोली प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए धर्म की पढ़ाई के साथ विद्यालय की पढ़ाई भी करते रहना। और जब हुए घोषित परिणाम कक्षा में प्रथम रहा विद्याधर का नाम, खुशी से चूम लिया सिर माता-पिता ने विद्या का... और यह कहते हुए विद्या ने छू लिये चरण माता-पिता के कि यह सब आप ही के आशीर्वाद का फल है वरना मुझमें क्या बल है।
  5. कई दिनों से देखते उगते सूरज को धीरे-धीरे धरा पर उतरते प्रकाश को आज न जाने क्या सूझा अदभुत खेल खेलने को, बड़े सवेरे जा पहुँचे मित्रों के संग जहाँ था उन्नत गिरि श्रृंग उदित होते ही दिनकर के बोले उसकी रश्मियों से... पहले तुम पहुँचती हो वसुधा पर या पहुँचेगा विद्याधर? किरणावलि अपनी गति से पर्वत से नीचे पहुँच रही थी, उधर विद्याधर के कदमों की गति रवि रश्मि से भी अधिक थी, ये पर्वत की तलहटी तक आने ही वाले थे। विजय पाने ही वाले थे कि किरणें हारने के पहले ही हार मान गईं, बादलों की ओट में दिनकर को ले छिप गईं। बोल पड़ा दिनकर- लो! मैं हार गया मेरा प्रकाश भी हार गया, जीत गये तुम! और तुम्हारा ज्ञान प्रकाश! ग्रामवासी मल्लप्पाजी को दे बधाईयाँ कहने लगे “सबको मिले ‘पीलू' सा तनुज सबके काम में सहयोग करना दयालु स्वभाव है उसका थकी-थकी माँ के काम में झट से हाथ बटाना स्नेह भाव है उसका पिता का कार्य दौड़-दौड़ कर करना आदर भाव है उसका।" सूक्ष्मता से हर कार्य का निरीक्षण करना और अरूक अथक उल्लास, उमंग बनाये रखना मन लगाकर पढ़ना तो कभी खेल में सबसे बाजी जीतकर आना प्रत्येक परिस्थिति में अपनी मनःस्थिति का संतुलन बनाये रखना, सीख लिया था उन्होंने क्योंकि वे जानने लगे कि बिना कंटकों का गुलाब नहीं होता बिना कंकरों का मार्ग नहीं होता पंक के बिना नदी नहीं होती और पीड़ा के बिना जिंदगी नहीं होती। एक दिन चरखा चलाना सीख लिया भारतीय संस्कृति से अति लगाव होने के कारण, लेकिन चलते-चलते चरखा हुआ बंद चरखा-पोनी सब थी ठीक फिर भी आखिर क्यों हुआ बंद? पैनी दृष्टि से देखा तकली थी ज़रा-सी टेढ़ी पत्थर की चोट से ज्यों ही की सीधी चरखा दौड़ने लगा, टेढ़े को सीधा करना इन्हें बचपन से ही आता था गंतव्य तक द्रुत गति से दौड़ना इनके मन को भाता था।
  6. प्रसंग उन दिनों का है जब चौथी कक्षा में अध्यापक ने हल करने दिया गणित का सवाल, तभी तीक्ष्ण बुद्धि से झट हल कर पहुँचे गुरू के पास सारे विद्यार्थियों के समक्ष कह दिया गुरू ने गलत है तुम्हारा हल, लेकिन था पूर्ण विश्वास ऐसा हो नहीं सकता सो समय के हाथों छोड़ सब कुछ बैठे शांति से चुप्पी साधे… इतने में ही अध्यापक दूसरे विद्यार्थियों का देख गलत हल सोचने लगे... पूरी कक्षा में सही है मात्र विद्याधर का ही हल पुनः जाँचकर गिनी से बोले शाबाश! बनाये रखना ऐसा ही दृढ़ विश्वास।
  7. हरियाली से भर देना मरुस्थल को नहीं है यह चमत्कार शुद्ध करके हृदय को तरुवर-सा बना देना हरा-भरा यह है चमत्कार... गगन पर कर लेना निवास नहीं है यह चुनौती जन-जन के दिल में कर लेना वास यह है चुनौती... शिक्षित करना बंदर को नहीं है यह शूरता वरन् शिक्षित करना चंचल मन को यही है सही शूरता... ‘गिनी' ने अब सही चमत्कार, चुनौती और शूरता का पथ समझ लिया था मन ही मन, इसीलिए दिनों-दिन उसका आत्मविश्वास दृढ़ से दृढ़तर होता जा रहा था।
  8. आज तो कक्षा में हर विद्यार्थी की शामत ही आ गई सबकी डंडे से पिटाई हो गई गुरु ‘मल्लिनाथ’ जी की आँखें क्रोध से हो गईं लाल, किंतु यह क्या ज्यों ही आये विद्याधर के निकट हो गया कमाल। देख उसकी निडरता शांत हो कहने लगे पूरी कक्षा में एक तुम्हीं अनुशासित हो लगन के साथ पढ़ने में दत्तचित्त हो, भले हाइट सबसे कम है पर लाइट सबसे अधिक है तुम में; नहीं करते हो धमाल नहीं हो उदंड तो क्यों दें तुम्हें दंड? आज से तुम्हीं कक्षा में श्रेष्ठ हो सबमें वरिष्ठ हो। पढ़ाई प्रारंभ करने के पूर्व नित्य की भाँति विनम्र हो छू लिए गुरु-चरण यह कहते हुए कि इसमें मेरा क्या है? आप ही के द्वारा दिये संस्कार हैं कारण माँ ने भेजा है घर से कहकर कि जैसा कहें गुरूजी, वैसा ही करना है बस, मुझे तो माँ को प्रसन्न रखना है। उसी शाम को दिया पिताश्री ने अपनी संतान को धार्मिक संस्कार दोनों हाथों को मिलाकर दिखा रहे थे सिद्धशिला का आकार आह्लादित हो मन ही मन कर लिया संकल्प उठते ही माता-पिता के चरण-स्पर्श कर सिद्धशिला का करूंगा नित्य स्मरण। भावी अंतर्यात्रा का पथ प्रशस्त कर रहे हैं... अपने जीवन का स्वयं अपने हाथों से नूतन इतिहास गढ़ रहे हैं! लघु वय में ही बड़े होने की साध दिखाते थे कुछ ऐसी ही अजीब-सी करामात, दंग रह जाते घर के लोग अरे! यह क्या कर आये? सारा हाथ स्याही से भर लाये मासूम अधरों से बोले मंद स्वरों में जिसके हाथों में लगी रहती अधिक स्याही रखी रहती है पास में दवात बड़ी-सी वह अधिक पढ़ने वाला कहलाता है ना, माँ! मैं भी अब बहुत पढ़ने लगा हूँ। सुन गिनी के मुँह से निश्छल-सी बातें माता-पिता की हँसी रूक न पायी। वह अरूक हँसी घर कर गई उसके मन में, बंद कर दिया हाथ रँगना व्यर्थ का खर्च करना, समझ गये कि दिखावट में बनावट है बनावट में सजावट है और सजावट में गिरावट है।
  9. आगे की सुचना देखने के लिए यहाँ पर क्लिक करें पूज्य आचार्य भगवन ससंघ का हुआ मंगल विहार। आज 28 जून अभी 3 बजे परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मंगल विहार, टीकमगढ़ से अतिशय क्षेत्र श्री बंधा जी की ओर हुआ। ◆ आज रात्रि विश्राम: रमपुरा (11 किमी) ◆ कल की आहार चर्या: दिगौड़ा सम्भावित (रमपुरा से 13 किमी) ■ आचार्यसंघ की अगवानी करेंगे मुनि संघ। पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी महाराज ससंघ का बरुआ सागर से हुआ मंगल विहार। परसों 30 जून को प्रातःकाल पूज्य आचार्यसंघ की भव्य अगवानी करेंगे, पूज्य मुनिश्री अभय सागर जी ससंघ। वर्षो के अंतराल के उपरांत करेंगे गुरु दर्शन, मिलेंगे गुरुचरण। भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर कालोनी टीकमगढ़ ??? श्रीमद आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी महाराज का बालयति संघ सहित भव्य मंगल प्रवेश नन्दीश्वर जिनालय टीकमगढ़ में आज 28 जून गुरुवार को प्रातः वेला में हुआ । गत वर्ष नन्दीश्वर कालोनी में आर्यिका माँ विज्ञानमती माता जी ससंघ वर्षायोग सम्पन्न हुआ था। आर्यिका संघ के सानिध्य में त्रिकाल चौवीसी जिनालय का भूमिपूजन किया गया था। ???????? ?विद्या गुरु का मंगल विहार? संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का अभी अभी ६.४० मिनट पर अतिशय क्षेत्र पपौरा जी से टीकमगढ़ के लिए हुए मंगल विहार आहरचार्य ??टीकमगढ़ संभावित
  10. दिनाँक आज 27 जून 2018 को अतिशय क्षेत्र पपौरा जी में स्थित दयोदय गौशाला मे हथकरघा भवन का शिलान्यास आचार्य श्री के मंगल सानिध्य में हुआ "मेरी आस्था का नाम" भाग्योदय,प्रतिभास्थली, मातृभाषा के उन्नायक,गोधन पालक, हथकरघा को जीवंत करने वाले तपस्वी श्रेष्ठ चर्या के धारी आचार्य "श्री १०८ विद्यासागर सागर जी महाराज जी" महा मुनिराज जैसे साक्षात तीर्थंकर जैन धर्म में है गुरुदेव नमन रजत जैन भिलाई हथकरघा का शुभारंभ अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे, परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में, आज प्रातः गौशाला परिसर में हथकरघा केंद्र का शुभारंभ हुआ। यहाँ पर 162 X 45 फ़ीट का विशाल भवन बनकर तैयार हो रहा है। इसमे 108 हथकरघा स्थापित किये जायेंगे।
  11. आप सभी अपना अनुमान नीचे लिखें और हा यह भी लिखे की १७ जुलाई का कार्यक्रम कहा पर हो सकता हैं हमे हैं इंतज़ार आपकी विशेष टिपण्णी का
  12. कल प्रातःकाल की बेला में पूज्य आचार्य श्री जी ससंघ का पपौरा जी से होगा मंगल विहार। विहार दिशा को लेकर सब ओर उम्मीदें जागी। हथकरघा का शुभारंभ अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी मे, परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ सानिध्य में, आज प्रातः गौशाला परिसर में हथकरघा केंद्र का शुभारंभ हुआ। यहाँ पर 162 X 45 फ़ीट का विशाल भवन बनकर तैयार हो रहा है। इसमे 108 हथकरघा स्थापित किये जायेंगे। होगा नवीन जिनालय का शिलान्यास कल 28 जून को प्रातः 6 से 7 बजे तक पपौरा जी मे नवीन मन्दिर जी का शिलान्यास का कार्यक्रम ब्र सुनील भैया जी के निर्देशन में सम्पन्न होगा । कल प्रातःकाल मे ही होगा विहार पूज्य आचार्यसंघ का मंगल विहार कल प्रातः 7 बजे, पपौरा जी से टीकमगढ़ नगर की ओर होगा। पूज्य आचार्यसंघ की अगवानी टीकमगढ़ में 8 बजे होंगी। नन्दीश्वर कॉलोनी जिनालय टीकमगढ़ में श्री आदिनाथ भगवान की 13 फ़ीट की प्रतिमा आचार्य संघ के सानिध्य एवम प्रतिष्ठाचार्य श्री ब्र सुनील भैया के निर्देसन में वेदी पर प्रतिष्ठा की जाएगी। दोपहर में टीकमगढ़ से भी हो सकता हैं मंगल विहार
  13. इस शांत वातावरण में लिख गई लेखनी कि जो पंचेन्द्रिय विषयों को ज़हर जान निजानंद अमृत का करके पान त्यागी बनने वाला हो वैरागी होने वाला हो उसे भला बिच्छू का ज़हर कब तक पीड़ित कर सकता है। आत्मिक सौख्य लहर से कब तक वंचित रख सकता है!! सो वेदना विस्मृत कर वह खेलकूद में लग गया, आखिर एक दिन उसने अपने दयालु होने का प्रत्यक्ष परिचय दे ही दिया। अचानक घर के कोने के बिल में फँसा चूहा पीड़ा से कराहता देख उसे उठा लिया हाथ में तन में लगे जीवों को धीरे से दूर किया पल में स्वस्थ हुआ मूषक। एक दिन बिल्ली कबूतर पर झपटी ज्यों ही देखा विद्याधर ने हृदय से करुणा उमड़ी, दौड़ पड़े उस तरफ जोर-जोर से चिल्लाने लगे निडर होकर भगाने लगे, बिल्ली ज्यों ही डर के मारे भागी तब करूणा से आप्लावित दोनों नन्हें हाथों से सावधानी से पकड़कर कबूतर को ले आये घर में… सुनाने लगे मंत्र णमोकार धीरे-धीरे फेरते हुए हाथ करुणा से उसे निहारकर ज्वार के कुछ दाने डालकर कहने लगे कबूतर से- “डरो मत, मैं हूँ ना” खा लो इसे... इतने में ही पड़ौसन हीरा देख विद्या की करूणा बोल पड़ी “अरी! श्रीमंति तेरा बेटा बनकर आया है मसीहा यह कोई सामान्य नहीं आत्मा दूसरा रूप है महावीर का।'' सुन विद्या की प्रशंसा हर्षित हो आया हृदय उसका... देखती रही टुकुर-टुकुर रहा न गया उससे उठाकर बाँहों में देकर सौ-सौ आशीष बोली भाव विभोर हो “आज की भाँति सदा जीवों की रक्षा करते रहना, जिनशासन के मूलभूत सिद्धांत स्वरूप अहिंसा धर्म की पताका यूँ ही फहराते रहना...." अपनी प्रशंसा सुन माँ से बिना कुछ कहे सहज भाव से बाँह छुड़ाकर भागा घर से बाहर मित्रों की टोली में जा खेलने लगा। इस तरह रोज-रोज कुछ घटता, मल्लप्पाजी का माथ गर्व से ऊँचा उठ जाता, नित नये कार्य करना... चिंतन की गहनता से आयु की सीमा से परे पुरानी लीक से हटकर नूतन पथ चुनना स्वभाव-सा है उसका। ईंट का जवाब पत्थर से तीर का सामना तलवार से मान का बदला अभिमान से क्रोध का उत्तर भयंकर क्रोध से छल का बदला छल से ये सब पुराने मार्ग हैं, चल चुके इस पथ पर अनेकों अब तक लगता है इसलिए सुगम-सा... चहल-पहल अत्यधिक दिखने से सुरक्षित-सा लगता है, किंतु पीलू ने चुना है दुर्गम पथ पावन पथ… तभी तो मान के सामने विनम्रता माया के सामने सरलता लोभ का शुचिता से कठोरता का कोमलता से कृपणता का उदारता से और क्रोध का बोध भाव से सामना करना ठान लिया है, छोटी वय में चोटी की बात करके माता-पिता को एहसास करा दिया है कि अब ‘विद्या’ विद्यालय जाने योग्य हो गया है। अंगुली पकड़ पीलू की पिताश्री दिखाने ले गये विद्यालय देखा हर कक्ष को प्रधानाध्यापक और अनेक विद्यार्थियों को, अच्छी लगी ग्राम्य अंचल की वह प्राथमिक शाला। पूछने पर उसका नाम ओजस्वी अंदाज़ में मधुर स्वर में शिक्षक का अभिवादन कर दे दिया अपना परिचय ‘रि नन्न हेस विद्याधर हिदे।' समय चुपचाप अपने कदम आगे बढ़ा रहा था... और विद्याधर विद्यामंदिर में प्रवेश कर चुका था… प्रथम कक्षा में प्रवेश पाते ही बड़े-बड़े छात्रों का प्रिय बन गया था, कमरे की दीवारों से उसकी खनकती आवाज़ छनकर कोई भी छात्र सुनता तो मंत्र मुग्ध हो जाता, बोल पड़ता अनायास ही अरे! यह तो 'गिनी' है 'गिनी' तोते-सी मधुर सुरीली आवाज़ के कारण अब वह 'पीलू' से हो गया ‘गिनी।’ शाला से आते ही गृहकार्य में दत्त-चित्त माँ का पकड़कर पल्लू दे दिया हाथ में बस्ता जिसमें थी मात्र स्लेट पेन्सिल, बोली-पीलू! आज क्या सीखकर आये हो? स्लेट पर बंकिम दृष्टि डालकर बोले अ से आ बनाना सीखा सुन न पायी वह पुनः पूछने पर बोले छोटे से बड़ा बनाना सीखा झट समझ गई वह शब्दों में छिपे उसके भावी महान व्यक्तित्व को और मुख पर स्मित हास्य लिए गाल चूमते हुए बोली “लगने लगा है तेरी रहस्य भरी इन बातों से एक दिन अवश्य तू! छोटे से बहुत बड़ा बन जायेगा, अपनी गोद में भी बिठा नहीं पाऊँगी तुझे अपने आँचल में भी छिपा नहीं पाऊँगी तुझे, हो जायेगा ऐसा गगन-सा विराट... अपने ही मन का सम्राट।'' तभी ममता भरी दृष्टि से देखा बाल लाल के गाल लाल-लाल दिखे... लिटाकर थपथपाने लगी बहुत थक गये हो कर लो कुछ विश्राम, माँ का लाड़-प्यार पा बोले बचकाने अंदाज में... बहुत थक गया हूँ माँ! थोड़े पैर दबाओ ना अरूणाई छिड़काती नयनों से डाँटते हुए बोली दिनभर दौड़ते क्यों हो इतना क्या शांत रहकर काम नहीं चल सकता? जीवन लयबद्ध जीना सीखो शक्ति का अपव्यय नहीं संचय करना सीखो। देखो, बेटा! नदी में लय है। पवन में लय है। निर्झर में लय है। प्रकृति के कण-कण में लय है। शब्दों में लय हो तभी गीत बनता है। व्यवहार में लय हो तभी मीत बनता है। आचरण में लय हो तभी जीत पाता है। करतल में लय हो तो मधुर संगीत झंकृत हो उठता है। पैरों में लय हो तो चाहे कितनी ही दूर हो मंज़िल वह गंतव्य तक पहुँच ही जाता है। आँखें न बूंदो मेरे लाल सुनो! लय में लालित्य है लय में साहित्य है, लयबद्ध जीवन में यदि शक्ति पूर्वक हो भक्ति तो दिलाती है अवश्य मुक्ति। इसीलिए बेटा! लय का विलय न हो। सुन रहे हो ना मेरी बात? आँखें खोलकर स्वीकृति के रूप में सिर हिलाते हुए स्वयं माँ के पैर दबाने लगे... भूल हो गई माँ! क्षमा करना प्यारी माँ! और भूल की क्षमा के रूप में दो बूंद... अश्रु बरस पड़े। तब से स्वयं का दुख सहना कर लिया तय किसी से कुछ नहीं कहना हो गया निश्चय आज घर में चौका लगा है छोटे बच्चों को अंदर आना मना है। कुत्ता, बिल्ली आदि को भगाने का काम सौंपा है, ज्यों ही शुरू हुआ आहार खिड़की से छिपकर देख रहे विद्याधर अहा! कितने हैं यह शांत तभी तो कहलाते हैं यह संत! मुझे जो- जितना दिया है माँ ने काम निरंतराय हो गया है आहार दान इतने में ही संतोष है मुझे। श्रावकाचार ग्रंथ में लिखा है दाता के सात गुण में संतोष भी एक गुण है, छोटे से गिनी में अभी से आ गया यह गुण है।
  14. ? चलो चलो "विद्योदय" देखने चले ? ना कोई कारण ना कोई बहाना विद्योदय देखने जरूर जरूर आना आध्यत्म सरोवर के राजहंस , बुंदेलखंड़ के छोटे बाबा , संत शिरोमणि आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के संयम स्वर्ण महोत्सव के अवसर पर, उनकी "संयम यात्रा" पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म "विद्योदय" बनाई गयी है जिसमे बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता एवं संगीतकारों ने काम किया है फ़िल्म अभी सेंसर बोर्ड के पास रिव्यु के लिए पेंडिंग है 30 जून 2018 को आचार्य श्री की दीक्षा के 50 साल (दीक्षा दिवस : 30 जून 1968) पूरे होने के उपलक्ष्य में सम्पूर्ण भारत में 50 से अधिक स्थानो पर यह फिल्म offline एक साथ रिलीज की जा रही हैं ?????? गंज बासौदा नगर को भी यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। आप सभी इस फ़िल्म को जरूर देखें और इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाये। हम आचार्य श्री के प्रति अपनी भक्ति प्रकट कर सकते है। सही समय पर आकर अपना स्थान सुनिश्चित करें समय-सांयकाल 7:30 से प्रारंभ स्थान: भगवान महावीर विहार, महावीर मार्ग,मील रोड गंज बासौदा निवेदक:- सकल जैन समाज गंज बासौदा संपर्क- अमन 7000963297 आयुष 9424456868
  15. आपको पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जा रही हैं - हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की हाफ शर्ट
  16. आपको पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जा रही हैं - हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की हाफ शर्ट
  17. यह कृति आचार्य ज्ञानसागरजी ने उस समय सन् १९५६ में लिखी जब वे क्षुल्लक अवस्था में थे। यह कृति महत्त्वपूर्ण इसलिए नहीं कि इसके लेखक, वर्तमान के आचार्य विद्यासागरजी महाराज के गुरु हैं बल्कि यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमान में भारत जहाँ जा रहा है, यदि इस पुस्तक के अनुसार चला होता तो स्वतंत्रता के बाद यह देश अपने इतिहास की स्वर्णिम अवस्था को पुनः प्राप्त कर चुका होता। अब भी अवसर है यदि देशवासी इन नीतियों का अनुकरण करें, तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश सोने की चिड़िया की ख्याति को पुनः प्राप्त कर पायेगा। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि यह कृति इसी वर्ष पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज व संघ के देखने, पढ़ने में आयी जबकि इसमें उल्लेखित विषयों को, आचार्य श्री विगत २५ वर्षों से प्रमुखता से प्रवचन में दे रहे हैं। भूमिका पूज्य क्षुल्लक श्री १०५ ज्ञानभूषणजी महाराज ने ‘पवित्र मानव जीवन’ काव्य लिखकर समाज का भारी कल्याण किया है। हम सुखी किस प्रकार हों, सामाजिक नाते से हमारा व्यवहार एक दूसरे से कैसे हो, हमारा आहार व्यवहार क्या हो ? हम किस प्रकार स्वस्थ रहें ? सामाजिक आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जा सके? श्रमजीवी तथा पूँजीवादी व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव होता है और समाज का किस प्रकार शोषण किया जाता है, इस ग्रन्थ में विस्तार पूर्वक किया गया है। गृहस्थधर्म के बारे में विवेचन करते हुए श्री क्षुल्लकजी लिखते हैं - ‘‘प्रशस्यता सम्पादक नर हो, मुदिर और नारी शम्पा। जहाँ विश्व के लिये स्फुरित होती हो दिल में अनुकम्पा॥” जो व्यक्ति आज भी महिलाओं को समान अधिकार देने के विरुद्ध हैं, उनकी ओर संकेत करते हुए लिखते हैं- महिलाओं को आज भले ही व्यर्थ बताकर हम कोशे। नहीं किसी भी बात में रही वे हैं पीछे मरदों से॥ जहाँ कुमारिल बातचीत में हार गया था शंकर से। तो उसकी औरत ने आकर पुनः निरुत्तर किया उसे॥ इसके अतिरिक्त माता-पिता का बच्चों के प्रति कर्तव्य, पुरातनकालीन तथा वर्तमान शिक्षाप्रणाली का तुलनात्मक विवेचन तथा गृहस्थाश्रम की मर्यादाओं पर बड़े सुन्दर और अनोखे ढंग से प्रकाश डाला गया है। यदि हम यों कहें कि भारतीय संस्कृति तथा आम्नाय के महान् ग्रन्थों के सार को सरल और सुबोध काव्य में रचकर समाज का मार्गदर्शन किया है तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। हम आशा करते हैं कि इस ग्रन्थ का अध्ययन करके पाठक जहाँ अपना जीवन सफल करेंगे, वहाँ समाज को सुखी बनाने के लिये इसका अधिक से अधिक प्रचार करेंगे। देवकुमार जैन सम्पादक - ‘मातृभूमि’ हिसार प्रथम संस्करण से साभार सन् १९५६ (वि. सं. २०१३)
  18. अब मप्र विधानसभा में विद्योदय दिखाई जाएगी परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के जीवन दर्शन पर आधारित फिल्म विद्योदय का प्रदर्शन अब भोपाल में 30 जून और 1 जुलाई को दो दिन होगा। 30 जून 2018, शनिवार स्थान : अल्पना सिनेप्लेक्स हमीदिया रोड़ भोपाल समय : पहला शो सुबह 7.30 बजे.... दूसरा शो सुबह 9.30 बजे से 1 जुलाई 2018, रविवार स्थान : मप्र विधानसभा परिसर अरेरा हिल्स भोपाल समय : शाम 7.30 बजे - टाॅकिज के लिए टिकट पहले से प्राप्त कर लें। - विधानसभा के प्रवेश पत्र जैन मंदिर प्रोफेसर कालोनी भोपाल से सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक प्राप्त कर सकते हैं। - हमारा उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को फिल्म दिखाना है। सादर मनोहर लाल टोंग्या 9425011360 नरेन्द्र वंदना 9893108515 रवीन्द्र जैन पत्रकार 9425401800 मनोज जैन एमके 9425018270 पदमकुमार सेठी 9425023971
  19. भारत का प्रत्येक तीर्थ हो हरा-भरा परमपूज्य आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज की मुनि दीक्षा के स्वर्ण जयंती वर्ष में आयोजित संयम स्वर्ण महोत्सव के अंतर्गत “विद्या तरु/विद्या-वाटिका” वृक्षारोपण अभियान अपील ‘राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति भारत के समस्त तीर्थ क्षेत्रों, मंदिरों, धर्मशालाओं और संस्थानों के न्यासियों एवं पदाधिकारियों से अनुरोध करती है कि जुलाई 2018 के इस महीने में अपने आसपास के तीर्थ क्षेत्रों, मंदिरों, धर्मशालाओं और जैन संस्थानों के परिसरों में वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित करें ताकि हम परमपूज्य आचार्यश्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज की मुनि दीक्षा के स्वर्ण जयंती वर्ष को एक स्थायी स्मृति प्रदान कर सकें और भारत भर के तीर्थ स्थलों को हरियाली से आच्छादित करने में सहयोग प्रदान करें. इन तीर्थों पर पूज्य साधु-संतों का निरंतर आगमन होता रहता है इसलिए यहां पर प्राकृतिक वातावरण और सुरम्य वन आदि का होना अत्यंत आवश्यक है ताकि हमारे गुरु भगवंतों की साधना निरंतर चलती रहे, हम सभी श्रावकों का परम कर्तव्य है कि अपने गुरुओं की वैय्यावृत्ति के इस परोक्ष कार्य में अपनी क्षमता के अनुरूप तन-मन-धन से सहयोग प्रदान करें। यदि हम देश के 500 तीर्थ क्षेत्रों, मंदिरों आदि में भी इस महत्वपूर्ण कार्य को कर सके तो आने वाले 5 वर्षों में ये स्थान तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र बन जाएँगे. देशभर में वर्षा आरंभ हो चुकी है और यही वृक्षारोपण का सही समय है। अतः आप से विनम्र प्रार्थना है कि स्थानीय वन विभाग से सहयोग लेकर वृक्षारोपण का कार्यक्रम आयोजित करें और तीर्थ स्थलों पर पधारने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए वृक्षारोपण ध्रौव्य फंड स्थापित करें ताकि लगाये गए पौधों का वर्षभर संरक्षण और देखभाल हो सके. आपके नगर जिले शहर अथवा गांव के सरपंच जिला अध्यक्ष कलेक्टर विधायक पार्षद अथवा सांसद को इस कार्यक्रम में अवश्य आमंत्रित करें और पर्यावरण के प्रति अपनी जागरुकता का परिचय दें। जहाँ –जहाँ के संपर्क हमारे पास हैं, हमारी टीम के सदस्य तीर्थ क्षेत्रों, मंदिरों, धर्मशालाओं और संस्थानों के न्यासियों एवं पदाधिकारियों से व्यक्तिगत अनुरोध कर रहे हैं, आप इस अपील को व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक आदि पर साझा करें और इस अभियान की सफलता हेतु सहयोग दें. अशोक पाटनी गौरव अध्यक्ष *राष्ट्रीय स्वयं स्वर्ण महोत्सव समिति* अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट देखें www.vidyasagar.guru पहले चरण में प्रमुख तीर्थ क्षेत्र एवं गोशालाएँ जहां वृक्षारोपण होना चाहिए: 1. सम्मेद शिखर जी 2. तिजारा जी 3. कुंडलपुर 4. बीना बारह 5. नेमावर 6. विदिशा 7. विद्यासागर तपोवन गुजरात 8. महावीर जी 9. थूबोनजी 10. बनेडिया जी 11. रामटेक 12. चंद्रगिरि, 13. तिलवारा, 14. आहार जी, 15. पपोरा जी, 16. नैनागिरि, 17. देवगढ़ (ललितपुर), 18. नारेली, 19. रतौना सागर, 20. बंडा, 21. बहोरीबंद, 22. कटनी गोशाला, 23. टीकमगढ़ गोशाला, 24. खनियाधाना, 25. गोम्मटगिरि (इंदौर)। 26. बावनगजा 27. दक्षिण के तीर्थ समय रहते सभी जैन तीर्थ क्षेत्रों को हरियाली की चादर से ढँकने की महती आवश्यकता है, वहाँ अध्यात्म के साथ साथ सुरम्य वातावरण निर्मित हो, ग्रीष्मकाल में तापमान कम रहे और शीतलता बनी रहे। सामान्य अनुदेश: १. पहले दो वर्षों में हर वृक्ष के लिए नियमित पानी देने का प्रबंध करें। २. हर वृक्ष अथवा पूरी क्यारी के लिए बाड़/फेंसिंग/जाली अवश्य लगवाएं। उस पर " संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष २०१७-१८ के अंतर्गत “विद्या तरु/विद्या-वाटिका” वृक्षारोपण अभियान, पुण्यार्जक के नाम का नामपट्ट लगवा दें. बैनर-शिलापट का प्ररूप संलग्न है। ३. कंटीले वृक्ष /फल तोड़ने पर दूध निकले ऐसे वृक्ष/वास्तु दोष वाले वृक्ष न लगाएँ. ४. प्रत्येक पेड़ की ऊँचाई कम से कम 3 फुट या उससे अधिक होनी चाहिए। ५. तीर्थ क्षेत्र/पर्वत के सभी यात्रा मार्गों/सीढ़ियों के दोनों ओर एवं तीर्थ क्षेत्र पहुँचने के पक्के मुख्य मार्ग पर दोनों ओर कम-से-कम १ से ५ किलोमीटर में पेड़ लगवाएँ। ६. वृक्षारोपण कार्यक्रम के चित्र/वीडियो/समाचार व्हाट्स एप नंबर ७९०९९-९२०१३ पर भेजें अथवा www.vidyasagar.guru के हरित जैन तीर्थ अभियान पृष्ठ पर अपलोड करें अथवा ईमेल पते info@vidyasagar.guru पर भेजें। संपर्क सूत्र: 1. श्री विनोद जी कोयला, चलभाष: 99933-76111 2. प्रवीण जैन (सीएस), मुंबई, चलभाष: 75067-35396 ईमेल:cs.praveenjain@gmail.com 3. सौरभ जैन, जयपुर ईमेल: jain.saurabh@yahoo.com
  20. क्या होगा फिल्म में ? क्या कहता हैं आपका पूर्वावलोकन?
  21. खुश खबरी... खुश खबरी... खुश खबरी आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के जीवन दर्शन पर आधारित फिल्म विद्योदय का प्रदर्शन भोपाल में मप्र विधानसभा परिसर में होगा। मप्र विधानसभा इस आयोजन हेतु मिल गयी है। - रवीन्द्र जैन पत्रकार भोपाल
  22. 30 जून को विद्योदय फिल्म दिल्ली में दिखाई जाएगी | संपर्क सूत्र : एन. सी. जैन आप स्थान का पता , फ्लेक्स, बैनर सुचना नीचे लिखें कार्यक्रम होने के बाद, संक्षेप में विवरण दे 4 से 5 अच्छी तसवीरें यहाँ अपलोड करे | दर्शको की संख्या का विवरण भी दे | सभी को समीक्षा यहाँ लिखने के लिए प्रेरित करें |
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