आज तो कक्षा में
हर विद्यार्थी की
शामत ही आ गई
सबकी डंडे से पिटाई हो गई
गुरु ‘मल्लिनाथ’ जी की आँखें
क्रोध से हो गईं लाल,
किंतु यह क्या
ज्यों ही आये विद्याधर के निकट
हो गया कमाल।
देख उसकी निडरता
शांत हो कहने लगे
पूरी कक्षा में
एक तुम्हीं अनुशासित हो
लगन के साथ पढ़ने में दत्तचित्त हो,
भले हाइट सबसे कम है
पर लाइट सबसे अधिक है तुम में;
नहीं करते हो धमाल
नहीं हो उदंड
तो क्यों दें तुम्हें दंड?
आज से तुम्हीं कक्षा में श्रेष्ठ हो
सबमें वरिष्ठ हो।
पढ़ाई प्रारंभ करने के पूर्व नित्य की भाँति
विनम्र हो छू लिए गुरु-चरण
यह कहते हुए कि इसमें मेरा क्या है?
आप ही के द्वारा दिये संस्कार हैं कारण
माँ ने भेजा है घर से कहकर कि
जैसा कहें गुरूजी, वैसा ही करना है
बस, मुझे तो माँ को प्रसन्न रखना है।
उसी शाम को दिया पिताश्री ने
अपनी संतान को
धार्मिक संस्कार
दोनों हाथों को मिलाकर
दिखा रहे थे
सिद्धशिला का आकार
आह्लादित हो मन ही मन
कर लिया संकल्प
उठते ही माता-पिता के
चरण-स्पर्श कर
सिद्धशिला का करूंगा नित्य स्मरण।
भावी अंतर्यात्रा का पथ
प्रशस्त कर रहे हैं...
अपने जीवन का स्वयं अपने हाथों से
नूतन इतिहास गढ़ रहे हैं!
लघु वय में ही
बड़े होने की साध
दिखाते थे कुछ ऐसी ही
अजीब-सी करामात,
दंग रह जाते घर के लोग
अरे! यह क्या कर आये?
सारा हाथ स्याही से भर लाये
मासूम अधरों से बोले
मंद स्वरों में
जिसके हाथों में लगी रहती अधिक स्याही
रखी रहती है पास में दवात बड़ी-सी
वह अधिक पढ़ने वाला
कहलाता है ना, माँ!
मैं भी
अब बहुत पढ़ने लगा हूँ।
सुन गिनी के मुँह से
निश्छल-सी बातें
माता-पिता की हँसी रूक न पायी।
वह अरूक हँसी घर कर गई
उसके मन में,
बंद कर दिया हाथ रँगना
व्यर्थ का खर्च करना,
समझ गये कि
दिखावट में बनावट है
बनावट में सजावट है
और
सजावट में गिरावट है।