भोली-भाली आँखों में समा गई
मुनिश्री की वीतराग छवि,
खरीदी जब कुछ खाने-खेलने की वस्तुएँ
घर के सभी भाई-बहनों ने,
लेकिन गिनी ने पाई अदभुत निधि रूप
आत्म-कल्याण की समुचित सौगातें
घर में भी कभी
किसी चीज का आग्रह नहीं करना
जो दिया सो ले लेना
जिद करना या मचलना
स्वभाव में नहीं था विद्या का...
छोड़ घर का हर कार्य
देव-शास्त्र-गुरु को महत्त्व देना
यही माना था आद्य कर्तव्य।
सबसे अच्छा लगने वाला खेल
गिल्ली डंडा खेलते-खेलते
गिल्ली चली गई गुफा में
उठाने गये तो देखा
मुनि महाबल जी है विराजमान...
भूलकर गिल्ली
झट किया नमन
श्रद्धा-भक्ति से हाथ जोड़कर अभिवादन,
मनमोहक आकर्षक सुंदर-सा देख आनन
पूछ लिया संत भगवंत ने
धर्म के विषय में याद है कुछ?
प्रसन्न हो सुना दिया कुछ
‘भक्तामर' व तीर्थंकर के नाम...
अब याद कर लेना।
'मोक्षशास्त्र', 'सहस्रनाम
कहकर रखा शीश पर हाथ,
अपूर्व-सा हुआ संवेदन
झट रखा संत चरण में माथ।
पा मुनिश्री का यूँ आशीष
हर्ष विभोर हो उछलते- दौड़ते
माँ के पास आ हाँफते-हाँफते
अधखुले होठों से बताने लगे...
देख बालक का
संत के प्रति सम्मान भाव
और
धर्म के प्रति लगाव...
सोच में डूब गई
पीलु के चेहरे की चमक
देखती ही रह गई।