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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. गर्मी का समय था, भोपाल में महावीर जयंती मनाने के उपरांत संघ का विहार नेमावर की ओर हो गया। शाम को 5 बजे के उपरांत विहार होता क्योंकि लू चलती थी, जमीन भी गरम रहती थी। दूसरे दिन सुबह एक स्थान पर रुकना हुआ। प्रात: 9:45 पर आहार चर्या के पूर्व आचार्य महाराज शुद्धि ले रहे थे। उसी समय जो महाराज पीछे रह गये थे, वे भी आ गये थे। आचार्यश्री जी को नमोऽस्तु किया और कहा हम लोग पीछे रह गये थे, कल लू लग गयी थी। आचार्य महाराज हँसकर बोले कि जिन्हें लू लग जाती है, वे ऐसे नहीं हँसते, हँसकर बात नहीं कर पाते। शिष्य ने कहा - आचार्य श्री जी, आपकी छवि को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है तो लोग समझते हैं यह निरोगी हैं। यह सुनकर सरलता के साथ आचार्य महाराज बोले - तो ठीक है हम हँस देते हैं, ताकि आपका रोग दूर हो जावे। सभी लोग हँसने लगे। कभी-कभी गुरुदेव बिल्कुल सरल शिशु के समान हो जाया करते हैं। एवं हर क्षणों में हम सबके सम्बल बन संभालते रहते हैं। यह उनकी महानता का द्योतक है। सच है आचार्य महाराज शिशु जैसे सरल हैं, पुष्प जैसे प्रसन्न, सागर जैसे गम्भीर और हिमालय जैसे उच्च हैं। उनकी एक दृष्टि मात्र से, उनके शब्दों की ध्वनि श्रवण से, उनकी कृपा दृष्टि से, उनके आशीष में उठे हस्त स्पर्श से श्रद्धालुओं के जीवन में दिव्य भाव का अवतरण हो जाता है। मन्द मन्द मुस्कान ले, मानस हंसा होय । अंश अंश प्रति अंश में, मुनिवर हंसा मोय ॥
  2. सागर नगर में श्री धवला जी ग्रंथ की वाचना के समय अनेक विद्वानों की उपस्थिति में, सोलहकारण भावना के अंतर्गत प्रवचन भक्ति भावना के प्रसंग को लेकर आचार्य श्री ने कहा कि - आज शास्त्रों की उचित विनय नहीं की जा रही है और प्रवचन के नाम पर परवचन चल रहा है। तब पास में ही बैठे पंडित कैलाश चन्द जी ने कहा कि - परवचन नहीं आज तो परवञ्चन चल रहा है। परवञ्चन का अर्थ है-दूसरों को ठगना। यह सुनकर सभी लोग हँस पड़े। लेकिन ध्यान रहे ठगे जाना उतना नुकसान दायक नहीं है कि जितना नुकसान दायक है दूसरों को ठगना। क्योंकि मायाचारी करने से तिर्यंचायु का आश्रव होता है। चेतन में ना भार है, चेतन की ना छाँव। चेतन की फिर हार क्यों ? भाव हुआ दुर्भाव॥
  3. गर्मी बहुत थी उस दिन तापमान लगभग 48 - 49 C पर पहुँच गया था, विहार चल रहा था आचार्य श्री से शिष्य ने कहा कि- गर्मी में बहुत परेशानी होती है और सल्लेखना के समय और भी होती होगी। आचार्य श्री जी ने कहा - आप लोगों को यह दाल-रोटी की गर्मी है सल्लेखना के समय तो मठा इत्यादि लेते है इसलिए इतनी गर्मी नहीं बढ़ती। आज के ये अनुभव, संस्कार सल्लेखना के समय काम आयेंगे। ज्यादा उपवास करने की आवश्यकता नहीं है, बस संस्कार डालते चलो काम होता जायेगा। पुनः शिष्य ने कहा कि - एक कथानक आता है कि सल्लेखना के समय किसी साधक को तरबूज खाने की इच्छा हुई थी (मांगने लगे थे) ? आचार्य श्री जी ने कहा - तरबूज मांगना क्या है, गृहण के तो अनादि कालीन संस्कार हैं मांगना बड़ी बात नहीं है उसका त्याग करना महत्त्वपूर्ण बात है। ये त्याग के संस्कार अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि- हम दूसरों के दुःखों को दूर करने की सोचें। दया के संस्कार महत्वपूर्ण हैं। मात्र अपने बारे में सोचना तो स्वार्थ है, अपने स्वार्थ की सोचना तो मात्र-मुक्ति के बारे में सोचना। शिष्य ने कहा -यह बड़ा स्वार्थ है। आचार्य श्री जी ने कहा हाँ ! बाकी सब छोटे-छोटे हैं फिर भी अच्छे संस्कारों को अपने डिब्बे में डालते रहना चाहिए, वे सब वक्त पर काम आयेगे। शिष्य ने विषय को आगे बढ़ाते हुये कहा- आचार्य श्री जी हमारी समाधि तो आपके चरणों में हो .........। आचार्य श्री जी ने कहा-हाँ! आजकल तो जो भी दीक्षार्थी आते हैं वे सभी यही कहते हैं कि हमारी समाधि आपके चरणों में हो। शिष्य ने कहा- कि हम लोग भी यही चाहते हैं। आचार्य श्री जी ने कहा- कि भैय्या, हमारी उम्र बढ़वा दो तो हम सभी की सल्लेखना करा देंगे। तो किसी ने कहा कि-10 वर्ष हमारी उम्र ले लो, किसी ने कहा-कि 20 वर्ष हमारी उम्र ले लो। यह सुनकर आचार्य श्री जीरी हँसने लगे और बोले - आप लोग अपनी समाधि के बारे में सोचते हो, हमारी कोई नहीं सोचता। शिष्य बड़े उत्साह के साथ कह उठे आपकी समाधि में किसी को संदेह नहीं है वह तो ठीक से हो ही जावेगी। आचार्य महाराज ने चुपचाप सुन लिया, कुछ कहा नहीं। क्योंकि जब भी उनकी प्रशंसा का प्रसंग आता है वे टाल देते हैं, उस ओर ध्यान नहीं देते। शिष्य ने कहा - कि हम लोगों की समाधि भी यदि आपके श्री चरणों में हो गयी तो कोई संदेह नहीं, हम लोगों की भी समाधि ठीक हो जावेगी। इसलिए हम सभी आपके श्री चरणों में समाधि की प्रार्थना करते हैं। यह सुनकर आचार्य श्री कुछ नहीं बोले, मौन हो गये और धीरे से मुस्कुरा दिया। पाप त्याग के बाद भी, स्वल्प रहें संस्कार। झालर बजना बंद हो, किन्तु रहे इंकार॥
  4. सामायिक के बारे में चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने बताया कि- सामायिक करने से व्रतों में निर्दोषता आती है। आज लोग स्वाध्याय तो दिन में तीन बार करेंगे, लेकिन सामायिक एक भी बार नहीं करना चाहते। कई लोग आकर कहते हैं - महाराज मुझे अमुख बीमारी है, पैर में दर्द है, मेरा घुटना नहीं मुड़ता, ज्यादा देर तक बैठ नहीं पाता आदि-आदि। अपनी-अपनी समस्याएँ बतलाते हैं लेकिन, मैं बताना चाहता हूँ कि- आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को साइटिका थी फिर भी उनकी तीनों सामायिक पद्मासन मे ही होती थी और महाराज श्री शरीर से दुबले-पतले भी थे। यह है आवश्यकों के प्रति बहुमान। अध्यात्मनिष्ठ साधक का परिचय उनकी चर्या से अपने आप मिल जाता है। सामायिक परीक्षा के समान है, परीक्षा में गड़बड़ी होने से साल भर का अध्ययन कोई मायना नहीं रखता है वैसे ही सामायिक ठीक से नहीं की तो व्रत लेने के उपरान्त भी आत्म तत्त्व तक पहुँचने का अवसर प्राप्त नहीं हो पावेगा। और आत्म तत्त्व के साक्षात्कार बिना व्रतों की पूर्णता नहीं मानी जाती। सभी व्रत सामायिक में लीन होने से ही पूर्ण होते है आचार्य महाराज भी तो हमेशा पद्मासन या खडगासन में ढाई-ढाई घण्टा तक सामायिक करते हैं। उपवास के दिन तो पूरे समय ध्यान में ही लीन रहते हैं, हमें भी ऐसे गुरुओं की साधना देखकर प्रेरणा लेनी चाहिए और तीनों संध्याओं में सामायिक करना चाहिए। ज्ञान के साथ-2 ध्यान की ओर भी बढ़ना चाहिए। शरीर हमेशा साथ नहीं देता उसकी ओर देखते रहेंगे तो हम कभी भी साधना के क्षेत्र में विकास नहीं कर सकते। इसलिए आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को याद करते हुए पद्मासन लगाकर सामायिक में बैठ जाना चाहिए।
  5. राजधानी भोपाल में आचार्य श्री के सान्निध्य में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। गजरथ फेरी के दिन प्रतिष्ठाचार्य महोदय ने आचार्य महाराज से कहा कि- हाथी को पहले से ज्यादा खिलाया-पिलाया नहीं जाता। वरना वह रथ फेरी के समय गड़बड़ कर देगा फिर उसे कोई सम्हाल नहीं पावेगा। उसमें स्फूर्ति आ जाती है फिर वह महावत से भी नहीं डरता उसे कंट्रोल में रखना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है। यह सब आचार्य भगवन् चुपचाप सुनते रहे और यह बात अपने शिष्यों पर लागू करते हुए हँसकर बोले- आज एक बात मालूम चली कि शिष्यों को ज्यादा लाड़-प्यार नहीं करना चाहिए वरना वे गड़बड़ करने लगते हैं। यही बात माता-पिता को भी सोच लेना चाहिए कि वे अपने बच्चों को ज्यादा लाड़-प्यार न करें वरना बच्चे गड़बड़ करने लगते हैं। आचार्य महाराज प्रत्येक वस्तु में, वाक्य में, अपना सार तत्त्व खोज लेते हैं अपना लक्ष्य देख लेते हैं। उनकी दृष्टि इस दृश्यमान सृष्टि को देखते हुए भी अपने में रहती है। इससे शिष्यों एवं पुत्रों को यह शिक्षा मिलती है कि- वे गुरु एवं माता-पिता की सरलता का नाजायज फायदा न उठावें एवं सन्मार्ग पर लगे रहें। गुरु की, माता-पिता की आज्ञा का पालन करें तभी उनका जीवन सफल होगा। क्योंकि माता-पिता और गुरु कभी पुत्र और शिष्य का अहित नहीं चाहते बल्कि उनका अनुशासन का हथौड़ा हम सभी की कमजोरियों को निष्कासित करने में परम सहायक होता है।
  6. विगत कई वर्षों से मध्य प्रदेश सरकार को हम आपके द्वारा मध्यप्रदेश के चिकित्सालयों में लगने वाले कॉटन बैंडेज, गाज पीस, बेडशीट,ओ. टी. ड्रेस इन सब का ठेका सरकार द्वारा लघु उद्योग निगम को दिया जा रहा था और लघु उद्योग निगम द्वारा अव्यवस्थाओं के चलते बड़े-बड़े उद्योगपतियों को हाथकरघा का कार्य देती थीl जब इंदौर हथकरघा के लिए प्राथमिक भूमिका में वंदनीय आर्यिका आदर्श मति माताजी के सानिध्य में 4500 हजार मोटर साइकिल वाहनों की रैली तिलक नगर जैन मंदिर से प्रारंभ की गई थी और गोमटगिरी तक वाहन रैली हुई उसके बाद समापन कार्यक्रम में हाथकरघा के मुद्दे को विषय बनाकर आह्वाहन किया गया सरकार यदि 89 करोड़ का कॉटन बैंडेज बुनकरों को देने लगे तो हाथकरघा का विकास हो सकता है उसके बाद भोपाल में मिम्स हॉस्पिटल के सचिव डॉ राजेश जैन के अथक प्रयासों से मध्य प्रदेश शासन के वित्त मंत्री श्री जयंत मलैया जी की असीम सहयोग से मंत्री विश्वास सारंग जी, श्री संजय पाठक मंत्री, श्रीमती अर्चना चिटनीस मंत्री इन सब से समय-समय पर मुलाकात करके ज्ञापन देकर बाद में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मुनि श्री 108 गुप्ती सागर जी महाराज के सानिध्य में संयम स्वर्ण महोत्सव के उपलक्ष में सरकार द्वारा कॉटन बैंडेज का कार्य सीधे तौर पर बुनकरों को मिलना चाहिए इस बात को बहुत जबरदस्त तरीके से मंच पर रखा था इसको केंद्रीय गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने सुना था वह उस दिन स्वास्थ्य खराब होने से अपने बंगले पर बैठकर लाइव प्रोग्राम देख रहे हैं उसका परिणाम यह रहा मध्य प्रदेश सरकार मैं अब चिकित्सालय में उपयोग होने वाले कॉटन बैंडेज, गॉज पीस और चादरों का कार्य सीधा बुनकरों को देने का की घोषणा कर दी है अब कोई भी बुनकर सीधा काम प्राप्त कर सकता है सरकार उसे धागा देगी वह निर्धारित वस्त्र बनाकर सरकार को वापस करेगा बदले में मजदूरी मिलेगी हम आप सबके सामूहिक प्रयासों से और आचार्य भगवन की करुणा भावना से यह कार्य पूर्ण हुआ हमारे हथकरघा परिवार की भैया और बहनों ने समय-समय पर जब भी नेता नगरी आचार्य श्री के दर्शन को आई सभी ने आवेदन, निवेदन, ज्ञापन देकर अपनी बात रखी इसी का नतीजा है मध्य प्रदेश सरकार ने इतना महत्वपूर्ण निर्णय किया जिन जिन भाई बहनों को अपने बुनकरों को कॉटन बैंडेज, गाज पीस बनाने का कार्य दिलाना हो वह भोपाल हस्तशिल्प विकास निगम में जानकारी ले सकते हैं गुरुवर का मिशन बहुत जल्दी पूर्ण होगा जब भारत में हथकरघा निर्मित कपड़ा ही आम जनता पहनेगीं। बोलो आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की जय l मेरा भारत महान हैंडलूम एक्ट 1985 मैं यह प्रावधान हुआ राज्य सरकार सरकारी विभागों में लगने वाले वस्त्रों को हथकरघा निर्मित वस्त्र ही खरीदेगी सूचना - डॉ रेखा जैन DSP पूर्व
  7. ??? *बटियागढ़ में आचार्य श्री के पास लगा जेल विभाग पुलिस अधिकारियों का समागम हथकरघा कार्य के लिए कल दिनांक 14 अप्रैल को बटियागढ़ में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पास मध्य प्रदेश जेल विभाग के डीआईजी श्री गोपाल ताम्रकार, जेल अधीक्षक सागर श्री राकेश भांगरे, जेल अधीक्षक उज्जैन श्रीमती अलका सोनकर, जिला जेल अधीक्षक इंदौर सुश्री अदिति तिवारी, जेल अधीक्षक नरसिंहपुर श्रीमती शेफाली तिवारी, जिला जेल अधीक्षक दमोह श्री राणा की टीम ब्रह्मचारिणी रेखा दीदी DSP पूर्व एवं डॉ नीलम दीदी शिशु रोग विशेषज्ञ एवं डॉ अमित जैन राजा भैया, श्री मनोज सिलवानी गुड़ वाले, एडीजे श्री अरविंद जैन, पूर्व डीएसपी श्री विनोद श्रीवास्तव, श्री श्रेयांश सेठ पूर्व DSP एवं कारपेट एक्सपोर्ट व्यापारी श्री ऋषभ jain मिर्जापुर के साथ बटियागढ़ आचार्य श्री जी के दर्शन करने पहुंचे जेल विभाग की टीम ने सर्वप्रथम सागर जेल में बंदियों द्वारा बनाया गया सिंहासन आचार्य श्री जी को भेंट किया बाद डीआईजी गोपाल ताम्रकार जी ने सागर जेल के बंदियों द्वारा लगातार हाथकरघा से बनाई साड़ियों को दिखाया और 1 मई से सागर जेल में ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल, इंदौर जेल से भेजे जा रहे पांच पांच कैदियों को जो कि सागर जेल में रेखा दीदी DSP द्वारा हथकरघा में प्रशिक्षित किए जाएंगे यह प्रशिक्षण 3 माह के लिए रहेगा जानकारी दी मिर्जापुर से आए हुए कारपेट एक्सपोर्ट व्यापारी श्री ऋषभ जैन जी ने आचार्य श्री जी को शुद्ध अहिंसक कारपेट्‍स, कालीन, दरी दिखलाएं और उन्होंने मध्य प्रदेश जेल की 13 सेंट्रल जेलों में बंदियों को सिखाने के लिए रॉ मटेरियल और उपकरण दान में देने की बात कही जेल विभाग के अधिकारियों और रेखा दीदी द्वारा आश्वासन दिया कि 6 माह के अंदर बंदियों को दरी, कालीन शटल लूम और जाकार्ड लूम के द्वारा बनाना सिखाया जाएगा और एक्सपोर्ट क्वालिटी का बनाना जब बंदी सीख जाएंगे तो सारा माल ऋषभ जैन जी के द्वारा विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाएगा इस प्रकार का अनुबंध आचार्य जी के सामने हुआ जेल विभाग द्वारा किया गया l आगामी समय में सागर जेल एवं अन्य केंद्रीय जेलो में 108 हाथकरघा लगने और इन हथकरघा के लिए टीन शेड लगाने का प्रावधान किया गया है बंदियों के लिए गर्मी के दिनों में ठंडे पानी हेतु वाटर कूलर का निवेदन किया जो तत्काल 15 दान दाता द्वारा वाटर कूलर देने की घो
  8. परम पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री नियम सागर जी महाराज जी के दीक्षा दिवस के अवसर पर मुनिश्री के चरणों में शत् शत् नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु?????????? एवं आप सभी को इस पावन दिन कि बधाईयाँ और शुभकामनाएं ?????
  9. परम पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री योग सागर जी के दीक्षा दिवस के अवसर पर मुनिश्री के चरणों में शत् शत् नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु?????????? एवं आप सभी को इस पावन दिन कि बधाईयाँ और शुभकामनाएं ?????
  10. ??दीक्षा-दिवस?? आगम की पर्याय,जीवंत मूलाचार व समयसार,अद्वितीय संत शिरोमणि आचार्य भगवंत श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के परम प्रभावक,श्रेष्ठ चर्याधारी,अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आज्ञानुवर्ती मुनि श्री योगसागर जी महाराज का 39 वां दीक्षा दिवस नोहटा(दमोह) में मनाया जाएगा। पूज्य आचार्य भगवन ने पूज्य योगसागर जी महाराज को 15 अप्रैल 1980, (मोराजी सागर) में मुनि दीक्षा प्रदान की थी।यह वर्ष उनके अविरल साधनामय जीवन का 39 वां दीक्षा वर्ष है। अभी मुनि श्री योगसागर जी महाराज ससंघ का विहार पपौरा जी के लिये चल रहा है। कल आहारचर्या नोहटा ग्राम में संपन्न होगी। मुनि श्री के दीक्षा दिवस पर विशेष कार्यक्रम दोपहर 2:30 से आयोजित होगा।और संघस्थ मुनिराजों के प्रवचन होंगे। दिन- 15 अप्रैल 2018(रविवार) कार्यक्रम स्थल- नोहटा (दमोह) समय- 2:30 बजे आप सभी अधिक से अधिक जनसँख्या में पधार कर इस जिनशासन की अभूतपूर्व प्रभावना में सहयोगी बन अपना जीवन धन्य करें। ?☀?☀?☀?☀?☀
  11. गुरुदेव का उपदेश चल रहा था, हम सभी साधक उस उपदेशामृत का पान कर रहे थे। आचार्य श्री जी ने बताया कि-समयानुसार हमें कभी कठोर तो, कभी मृदु चर्या के माध्यम से साधना विकासोन्मुखी बनाना चाहिए। लेकिन, तेज सर्दी और तेज गर्मी में साधना करना बड़ा मुश्किल है आज खुले में साधना करने वालों के दर्शन दुर्लभ हैं। तब मैंने कहा- आचार्य श्री जी! मैंने सुना है पहले आप जब राजस्थान में थे तब खुले में, पहाड़, श्मशान आदि पर जाकर साधना करते थे। यह सुनकर आचार्य श्री कुछ क्षण मौन रहे, फिर बोले - केकड़ी (राजस्थान) के पास बघेरा गाँव है जहाँ शांतिनाथ भगवान का मंदिर है। वहाँ से 1 कि.मी. दूरी पर पहाड़ है। गाँव में आहारचर्या करके सीधे ही पहाड़ पर चले जाते थे, वहाँ पर उस समय गर्मी का समय था सो गरम-गरम हवा चलती थी, बड़े-बड़े पत्थर थे, उन पत्थरों की ओट में जाकर बैठ जाते थे। उस समय साथ में क्षुल्लक मणीभद्र जी भी थे उनकी आँखों में गरम हवा की वजह से जलन होती थी तो उन्हें बताया कि आप अपने दुपट्टे को कमण्डलु के पानी से गीला करके आँखों पर रख लिया करो। रात्रि विश्राम भी वहीं एक गुफा में करते थे। हँसकर बोले - एक बार पहाड़ पर ज्यादा ऊपर चढ़ गये फिर रास्ता भटक गये, नीचे उतरते वक्त हाथ पकड़कर, कमण्डलु पत्थरों से टिकाते-टिकाते नीचे उतर आये। कभी-कभी श्मशान में चले जाते थे वहाँ एक छतरी जैसी बनी थी वहीं रात्रि व्यतीत करते थे, कभी-कभी नदी की रेत में रात्रि विश्राम हो जाता था। शिष्य ने पूँछा- आचार्य श्री जी ! रेत तो गरम रहती होगी ? आचार्य श्री जी ने कहा-हाँ, देर रात होने पर थोड़ी ठण्डी हो जाती थी। शिष्य ने पूँछा - आचार्य श्री जी! आप वहाँ दिन रात क्या करते थे ? तब आचार्य श्री जी बोले - सामायिक, स्वाध्याय (समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार आदि) करते थे। शिष्य ने पुनः शंका व्यक्त करते हुए कहा - क्या आप ये ग्रंथ साथ में ले जाते थे ? आचार्य श्री जी ने कहा - नहीं, मौखिक (याद) था सब कुछ, पुस्तक की क्या आवश्यकता। यह है गुरुदेव की अदभुत चर्या का जीवंत उदाहरण। ग्रीष्म काल में आग बरसती, गिरि शिखरों पर रहते हैं वर्षा ऋतु में कठिन परीषह, तरुतल रहकर सहते हैं। तथा शिशिर हेमंत काल में , बाहर भू-पर सोते हैं, वंद्य साधु ये वंदन करता, दुर्लभ दर्शन होते हैं। ये पंक्तियाँ आचार्य श्री जी ने 'योगी भक्ति' का हिन्दी अनुवाद करते हुए लिखी हैं। सच है वे जो लिखते हैं, पहले अपने जीवन में लख लेते हैं। वे मात्र उपदेश ही नहीं देते बल्कि उस उपदेश को अक्षरश: अपने जीवन में उतार लेते हैं। यह है उनकी साधना के कुछ क्षण। हे गुरुदेव ! ये क्षण हम सभी को भी प्राप्त हों ताकि हम लोग भी ऐसी साधना को उपलब्ध कर सकें। मैंने गुरु के चित्र को अपने चित्त में ऐसा बसाया है कि उनके चरित्र का चित्र भी मेरे चित्त में थोड़ा सा उभर आया है....
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