गर्मी बहुत थी उस दिन तापमान लगभग 48 - 49 C पर पहुँच गया था, विहार चल रहा था आचार्य श्री से शिष्य ने कहा कि- गर्मी में बहुत परेशानी होती है और सल्लेखना के समय और भी होती होगी।
आचार्य श्री जी ने कहा - आप लोगों को यह दाल-रोटी की गर्मी है सल्लेखना के समय तो मठा इत्यादि लेते है इसलिए इतनी गर्मी नहीं बढ़ती। आज के ये अनुभव, संस्कार सल्लेखना के समय काम आयेंगे। ज्यादा उपवास करने की आवश्यकता नहीं है, बस संस्कार डालते चलो काम होता जायेगा।
पुनः शिष्य ने कहा कि - एक कथानक आता है कि सल्लेखना के समय किसी साधक को तरबूज खाने की इच्छा हुई थी (मांगने लगे थे) ? आचार्य श्री जी ने कहा - तरबूज मांगना क्या है, गृहण के तो अनादि कालीन संस्कार हैं मांगना बड़ी बात नहीं है उसका त्याग करना महत्त्वपूर्ण बात है। ये त्याग के संस्कार अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं।
महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि- हम दूसरों के दुःखों को दूर करने की सोचें। दया के संस्कार महत्वपूर्ण हैं। मात्र अपने बारे में सोचना तो स्वार्थ है, अपने स्वार्थ की सोचना तो मात्र-मुक्ति के बारे में सोचना। शिष्य ने कहा -यह बड़ा स्वार्थ है। आचार्य श्री जी ने कहा हाँ ! बाकी सब छोटे-छोटे हैं फिर भी अच्छे संस्कारों को अपने डिब्बे में डालते रहना चाहिए, वे सब वक्त पर काम आयेगे।
शिष्य ने विषय को आगे बढ़ाते हुये कहा- आचार्य श्री जी हमारी समाधि तो आपके चरणों में हो .........। आचार्य श्री जी ने कहा-हाँ! आजकल तो जो भी दीक्षार्थी आते हैं वे सभी यही कहते हैं कि हमारी समाधि आपके चरणों में हो। शिष्य ने कहा- कि हम लोग भी यही चाहते हैं। आचार्य श्री जी ने कहा- कि भैय्या, हमारी उम्र बढ़वा दो तो हम सभी की सल्लेखना करा देंगे। तो किसी ने कहा कि-10 वर्ष हमारी उम्र ले लो, किसी ने कहा-कि 20 वर्ष हमारी उम्र ले लो। यह सुनकर आचार्य श्री जीरी हँसने लगे और बोले - आप लोग अपनी समाधि के बारे में सोचते हो, हमारी कोई नहीं सोचता। शिष्य बड़े उत्साह के साथ कह उठे आपकी समाधि में किसी को संदेह नहीं है वह तो ठीक से हो ही जावेगी। आचार्य महाराज ने चुपचाप सुन लिया, कुछ कहा नहीं। क्योंकि जब भी उनकी प्रशंसा का प्रसंग आता है वे टाल देते हैं, उस ओर ध्यान नहीं देते। शिष्य ने कहा - कि हम लोगों की समाधि भी यदि आपके श्री चरणों में हो गयी तो कोई संदेह नहीं, हम लोगों की भी समाधि ठीक हो जावेगी। इसलिए हम सभी आपके श्री चरणों में समाधि की प्रार्थना करते हैं। यह सुनकर आचार्य श्री कुछ नहीं बोले, मौन हो गये और धीरे से मुस्कुरा दिया।
पाप त्याग के बाद भी, स्वल्प रहें संस्कार।
झालर बजना बंद हो, किन्तु रहे इंकार॥