सामायिक के बारे में चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने बताया कि- सामायिक करने से व्रतों में निर्दोषता आती है। आज लोग स्वाध्याय तो दिन में तीन बार करेंगे, लेकिन सामायिक एक भी बार नहीं करना चाहते। कई लोग आकर कहते हैं - महाराज मुझे अमुख बीमारी है, पैर में दर्द है, मेरा घुटना नहीं मुड़ता, ज्यादा देर तक बैठ नहीं पाता आदि-आदि। अपनी-अपनी समस्याएँ बतलाते हैं लेकिन, मैं बताना चाहता हूँ कि- आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को साइटिका थी फिर भी उनकी तीनों सामायिक पद्मासन मे ही होती थी और महाराज श्री शरीर से दुबले-पतले भी थे। यह है आवश्यकों के प्रति बहुमान। अध्यात्मनिष्ठ साधक का परिचय उनकी चर्या से अपने आप मिल जाता है।
सामायिक परीक्षा के समान है, परीक्षा में गड़बड़ी होने से साल भर का अध्ययन कोई मायना नहीं रखता है वैसे ही सामायिक ठीक से नहीं की तो व्रत लेने के उपरान्त भी आत्म तत्त्व तक पहुँचने का अवसर प्राप्त नहीं हो पावेगा। और आत्म तत्त्व के साक्षात्कार बिना व्रतों की पूर्णता नहीं मानी जाती। सभी व्रत सामायिक में लीन होने से ही पूर्ण होते है
आचार्य महाराज भी तो हमेशा पद्मासन या खडगासन में ढाई-ढाई घण्टा तक सामायिक करते हैं। उपवास के दिन तो पूरे समय ध्यान में ही लीन रहते हैं, हमें भी ऐसे गुरुओं की साधना देखकर प्रेरणा लेनी चाहिए और तीनों संध्याओं में सामायिक करना चाहिए। ज्ञान के साथ-2 ध्यान की ओर भी बढ़ना चाहिए। शरीर हमेशा साथ नहीं देता उसकी ओर देखते रहेंगे तो हम कभी भी साधना के क्षेत्र में विकास नहीं कर सकते। इसलिए आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को याद करते हुए पद्मासन लगाकर सामायिक में बैठ जाना चाहिए।