सागर नगर में श्री धवला जी ग्रंथ की वाचना के समय अनेक विद्वानों की उपस्थिति में, सोलहकारण भावना के अंतर्गत प्रवचन भक्ति भावना के प्रसंग को लेकर आचार्य श्री ने कहा कि - आज शास्त्रों की उचित विनय नहीं की जा रही है और प्रवचन के नाम पर परवचन चल रहा है। तब पास में ही बैठे पंडित कैलाश चन्द जी ने कहा कि - परवचन नहीं आज तो परवञ्चन चल रहा है। परवञ्चन का अर्थ है-दूसरों को ठगना। यह सुनकर सभी लोग हँस पड़े। लेकिन ध्यान रहे ठगे जाना उतना नुकसान दायक नहीं है कि जितना नुकसान दायक है दूसरों को ठगना। क्योंकि मायाचारी करने से तिर्यंचायु का आश्रव होता है।
चेतन में ना भार है, चेतन की ना छाँव।
चेतन की फिर हार क्यों ? भाव हुआ दुर्भाव॥