जो संसार से डरते हैं वे आर्य हैं। जो आरंभ परिग्रह के कार्यों से बचते हैं वे आर्य हैं। गुण और गुणवानों से जो सेवित हैं वे आर्य कहलाते हैं। यहाँ गुण का अर्थ सम्यग्दर्शनादि गुणों से है। जो धर्म क्रियाओं से रहित हैं वे म्लेच्छ हैं। पाप क्षेत्र में जन्म लेने वाले म्लेच्छ कहलाते हैं। हम सभी का सौभाग्य है कि हम लोग आर्य खण्ड में उत्पन्न हुए वरना धर्म कर्म से शून्य बने रहते। इसलिए कहा भी है - उत्तम देश सुसंगति दुर्लभ, श्रावक कुल पाना संसार में उत्तम देश में उत्पन्न होना और सुसंगति मिलना बहुत ही दुर्लभ है।
एक दिन आचार्य महाराज के पास आसाम से एक सज्जन आये। और, बोले कि - महाराज ! हम आसाम में रहते हैं, वहाँ तो म्लेच्छ खण्ड जैसा है। क्या करें ? पिताजी लोग वहाँ जाकर बस गये। वहाँ बाजार से निकलते है तो मांसाहार की ही दुकानें लगी रहती हैं। वहाँ हम लोग मंदिर बनाये हैं, रात्रि भोजन त्याग है, लेकिन, शांति नहीं मिलती। वहाँ लूटमार ही लूटमार चलती रहती है।
आचार्य भगवन् ने कहा - उत्तम देश, क्षेत्र का मिलना दुर्लभ है, साधुओं का समागम दुर्लभ है। वहाँ पैसा अधिक कमा सकते हो लेकिन धर्म संस्कार के बारे में शून्यता है, ऐसे स्थानों पर नहीं रहना चाहिए। आज अपनी संतान को अर्थ शास्त्र पढ़ाते हुए दानादि धर्म के संस्कार भी अवश्य दें। 24 घण्टे में 8 घण्टे श्रम, 8 घण्टे विश्राम और 8 घण्टे धर्म साधन करो तभी जीवन सफल होगा।
हम सभी का सौभाग्य है कि-ऐसे क्षेत्र में जन्म लिया जहाँ दया धर्म के संस्कार जन्म से ही दिये जाते हैं। उससे भी परम सौभाग्य यह है कि- ऐसे वीतरागी संत बुन्देलखण्ड में विहार करते हैं, उनका हमें भरपूर समागम प्राप्त होता है। उत्तम कुल, देश प्राप्त हो गया एवं साधु संगति भी प्राप्त हो गयी इसके बाद भी जो व्यक्ति संस्कारहीन हैं, व्यसनों में लिप्त हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि वे आर्य खण्ड में उत्पन्न होकर भी म्लेच्छ ही हैं, क्योंकि व्यक्ति जन्म से नहीं कार्य से महान बनता है। आचार्य भगवन् कहते हैं कि-जो आचार-विचार से, धर्म से रहित हो, वह म्लेच्छ कहलाते हैं। हम व्यसनों का, पापों का त्याग कर सच्चे धर्म पर, गुरुओं पर विश्वास रखें और आर्य खण्ड में रहकर गुणों को प्राप्त करें, गुणवानों का समागम करें तभी हम आर्य कहला सकेंगे। व्यक्ति अपनी क्रियाओं से स्वयंजान सकता है कि हम आर्य हैं या म्लेच्छ।
(अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी 03.08.2005)