गर्मी का समय था, भोपाल में महावीर जयंती मनाने के उपरांत संघ का विहार नेमावर की ओर हो गया। शाम को 5 बजे के उपरांत विहार होता क्योंकि लू चलती थी, जमीन भी गरम रहती थी। दूसरे दिन सुबह एक स्थान पर रुकना हुआ। प्रात: 9:45 पर आहार चर्या के पूर्व आचार्य महाराज शुद्धि ले रहे थे। उसी समय जो महाराज पीछे रह गये थे, वे भी आ गये थे। आचार्यश्री जी को नमोऽस्तु किया और कहा हम लोग पीछे रह गये थे, कल लू लग गयी थी। आचार्य महाराज हँसकर बोले कि जिन्हें लू लग जाती है, वे ऐसे नहीं हँसते, हँसकर बात नहीं कर पाते। शिष्य ने कहा - आचार्य श्री जी, आपकी छवि को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ ही जाती है तो लोग समझते हैं यह निरोगी हैं। यह सुनकर सरलता के साथ आचार्य महाराज बोले - तो ठीक है हम हँस देते हैं, ताकि आपका रोग दूर हो जावे। सभी लोग हँसने लगे। कभी-कभी गुरुदेव बिल्कुल सरल शिशु के समान हो जाया करते हैं। एवं हर क्षणों में हम सबके सम्बल बन संभालते रहते हैं। यह उनकी महानता का द्योतक है।
सच है आचार्य महाराज शिशु जैसे सरल हैं, पुष्प जैसे प्रसन्न, सागर जैसे गम्भीर और हिमालय जैसे उच्च हैं। उनकी एक दृष्टि मात्र से, उनके शब्दों की ध्वनि श्रवण से, उनकी कृपा दृष्टि से, उनके आशीष में उठे हस्त स्पर्श से श्रद्धालुओं के जीवन में दिव्य भाव का अवतरण हो जाता है।
मन्द मन्द मुस्कान ले, मानस हंसा होय ।
अंश अंश प्रति अंश में, मुनिवर हंसा मोय ॥