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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते है की अपना हित करना चाहिए, यदि शक्ति हो तो पर का हित भी करना चाहिए, किन्तु आत्महित और पर हित में से आत्महित अच्छे प्रकार से करना चाहिए ! प्राणी संयम को पालने के लिए और जिनदेव का प्रतिरूप रखने के लिए पिच्छि (मोर पंख की बनी) रखते हैं ! शरीर का संस्कार नहीं करते, धैर्य बल से हीन नहीं होते ! रोग से या चोट आदि से उत्पन्न हुई वेदना का प्रतिकार नहीं करते, मौन के नियम का पालन करते हैं, यह होती है मुनि की साधना ! आचार्य श्री ने कहा हमारी आई साईट ठीक है ! जैसे डाक्टर लोग इलाज करते समय बोलते नहीं है कार्य में लगे रहते हैं ! जैसे पेपर में इधर – उधर नहीं देखते हैं बच्चे परीक्षा के समय ऐसा ही मुनि चर्या में होता है ! यहाँ मिलिट्री जैसा शासन चलता है !
    आज दीक्षा दिवस में मुनियों द्वारा दिए गए प्रवचन इस प्रकार हैं –
    मुनि भावसागर जी – मुनि भावसागर जी ने कहा की आचार्य श्री विद्यासागर जी सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं वह छत्तीसगढ़ की भूमि पर दूसरी बार प्रवास कर रहे हैं ! मुनि श्री समयसागर जी स्वाध्याय, साधना में लीन रहते हैं ! मुनि श्री योगसागर जी एक उपवास एक आहार करते हैं एवं सभी साधुओं को वात्सल्य देते हैं ! मुनि श्री अनंत सागर जी को भी याद किया ! मै करूँगा, करूँगा, करूँगा यह चिंतन करता रहता है लेकिन यह भूल जाता है की मैं मरूँगा, मरूँगा, मरूँगा, यह मुनि मार्ग मोक्ष प्राप्त करने का साधन है ! जन्म, जरा और मृत्यु से छुटकारा पाने का साधन है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे चतुर्थकाल में अतुलनीय साधक हैं ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की चर्या स्वयं में चमत्कार और अतिशय से कम नहीं है ! दीक्षा, आचार्य श्री, जिनशासन की अनेक बातें बताई ! इस अवसर पर हम मुनि श्री विराट्सागर जी, विशद सागर जी, अतुल्सागर जी, को भी याद करते है !
    मुनि श्री शैल सागर जी – मुनि श्री शैल सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने मंगलाचरण में कहा की काया में कितना रहना इसी प्रसंग को लेकर हम प्रारंभ करते हैं ! एक माटी का टीला है और एक पूजक का दृष्टान्त दिया ! आचार्य महाराज बहुत सरल हैं ! आचार्य श्री को संघ का अनुशासन बनाने के लिए कठिन होना पड़ता है ! जब भी मरण हो, अंतिम समय आचार्य श्री जी के चरणों में निकले !
    मुनि श्री विनम्र सागर जी – मुनि श्री विनम्र सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने कहा की कई लोग आचार्य श्री से तुलना करते हैं लेकिन आचार्य श्री तुला हैं, उनसे किसी की तुलना नहीं हो सकती ! आचार्य श्री कहते हैं की काल थोडा है जल्दी कल्याण करो ! एक दृष्टान्त देते हुए कहा की जन्म और मृत्यु को जितने वाली विद्या सीखना है ! आचार्य महाराज हमारे एक – एक श्वास के आराध्य हैं हमें उनकी तुला में तुलने का मौका मिला, उनके दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ है ! आचार्य श्री ने कहा था एक विद्वान् से की यह हमारी नाव में बैठे हैं निश्चिन्त पार होंगे !
    मुनि श्री धीर सागर जी – मुनि श्री धीर सागर जी ने माँ जिनवाणी को नमन करते हुए कहा की शारदे मुझे सार दे ! आचार्य श्री जी की हर चर्या निराली है हम भावना करें की वह आगामी तीर्थंकर बने ! उनका गुणगान हरपल दिल की धडकनों में हुआ करता है ! वाणी वीणा का कार्य करे वाण का नहीं ! भक्ति में हो शक्ति इतनी की कर्म पिघल जाएँ ! आचार्य श्री कोहिनूर से भी कीमती रत्नों का दान करते हैं !
    मुनि श्री वीर सागर जी – मुनि श्री वीर सागर जी ने कहा की मुनि भावसागर जी, मुनि श्री विनम्र सागर जी ने गुरु जी के बारे में बहुत सी बातें बताई है ! गुरु जी में बहुत सी विशेषताएं हैं प्रत्येक जीव उनके आगे – पीछे रहना चाहते है ! उनके बहुत अच्छे चारित्र , आचरण है ! गुरु का ऐसा आकर्षण होता है, जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं ! सुबह आचार्य श्री ने सूत्र दिए थे , उन्होंने कहा था की समीचीन दृष्ठि बनाना ! व्यक्ति भौतिक सुख को सभी कुछ मानता है ! मनुष्य एक दीपक की तरह है जिसमे दीपक भी है और ज्योति भी है !
    मुनि श्री योगसागर जी – मुनि श्री योगसागर जी ने कहा की आचार्य श्री ने पांच मुनिराजों को बोलने (प्रवचन) के लिए कहा था, अब समय हो गया है ! मैं समय का और आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहता हूँ और जिनवानी की स्तुति की 
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    प्रभु का जन्मोत्सव लोक रूपी घर में छिपे हुए अन्धकार के फैलाव को दूर करने में तत्पर होता है ! अमृतपान की तरह समस्त प्राणियों को आरोग्य देने वाला है ! प्रिय वचन की तरह प्रसन्न करता है ! पुण्य कर्म की तरह अगणित पुण्य को देने वाला है ! प्रभु का जन्म होता है तो तहलका मच जाता है तीनो लोको में ! निरंतर बजने वाली मंगल भेरी और वाद्यों की ध्वनि से समस्त भुवन भर जाता है ! भगवान् के जन्म के समय इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हो जाता है ! भेरी के शब्द को सुनकर इन्द्रादि प्रमुख सब देवगण एकत्र हो जाते हैं ! जन्माभिषेक के समय जिन बालक को लाने के लिए आई हुई इन्द्राणी के नूपुरों के शब्द से चकित हुई हंसी के विलास से राजमंदिर का आँगन शोभित होता है ! ऐरावत हांथी से उतरकर इन्द्र अपनी वज्रमयी भुजाएं फैला देता है ! गमन करते समय बजाये जाने वाले अनेक नगारों का गंभीर शब्द होता है ! इन्द्रों का समूह अपूर्ण चन्द्रमा की किरणों के समान शुभ चमरों को दक्षतापूर्वक ढोरता है ! इन्द्रानियाँ जिन बालक का मुख देखने के लिए उत्कंठित होती है ! श्वेत छत्र रूपी मेघों की घटाओं से आकाश ढक जाता है ! पताकाएं बिजली की तरह प्रतीत होती है ! इन्द्रनील्मय सीढियों की तरह देव सेना गमन करती है ! 
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भिक्षा के लिए जाते समय सावधानी रखना चाहिए! त्रस और स्थावर जीवों को पीड़ा न पहुचे इसलिए अन्धकार में प्रवेश नहीं करते हैं ! आत्मा की विराधना नहीं होनी चाहिए, इधर – उधर अवलोकन करके घर में प्रवेश करना चाहिए संयम की विराधना न हो यह ध्यान रखना चाहिए ! वंदना करने वालों को आशीर्वाद देते हुए निकलते हैं साधू ! आहार के समय कोई नियम (विधि लिकर) जिनमन्दिर आदि से आहार के लिए निकलते हैं !
     
    इतिहास उपहास का पात्र होता है या तो हँसते हैं या रोते हैं ! आचार्य श्री ने प्रधुमन की कथा सुनाई और कहा की तीन दिन के बालक का अपहरण हो जाता है ! कोई चमत्कार नहीं करता अपने कर्म ही चमत्कार करते हैं ! सब भावों का खेल है ! आस्था जब तक दृढ नहीं होती तब तक पैर डगमगाते हैं ! आस्था दृढ  होती है तो वह अडिग होकर चलता है ! आदर्श को देखते हैं तो मेरा – तेरा नहीं होता वीतरागता में भेद नहीं होता ! यह मंदिर मेरा, मेरे पूर्वजों ने बनवाया था , यह प्रतिमा मैंने विराजमान करवाई ऐसा भाव नहीं आना चाहिए ! उसकी पूजा आदि व्यवस्था तो करना चाहिए |
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते हैं की भगवान् के वैराग्य रूपी हवा के झकोरों से इन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है ! तब इन्द्र अवधि ज्ञान रूपी दृष्ठि का उपयोग करके भगवान् के द्वारा प्रारंभ किये जाने वाले कार्य को जानता है ! सौधर्म इन्द्र के पास ही मोबाइल नंबर रहता है उसी के पास यह रेंजे है जिसका सम्बन्ध हो जाता है ! इसी प्रकार अवधि ज्ञान का होता है ! सौधर्म इन्द्र सिंहासन से उठ , जिस दिशा में भगवान् है , उस दिशा की ओर सात पद चलकर नमस्कार करता है ! समीचीन धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तन के लिए उद्यत , शरणागत भव्य जनों की रक्षा करने वाले और अलौकिक नेत्रों से विशिष्ट जिनदेव को नमस्कार हो ! जैसे राष्ट्रपति को राजनंदगांव आना है तो सुरक्षा हेतु यहाँ के कलेक्टर से अनुमति लेना पड़ता है ! ऐसे ही तीर्थंकर भगवान् की रक्षा के लिए देव होते हैं ! इन्द्रिय सुख – सेवन के बाद खेद ही होता है ! वैराग्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की न किसी का कोई मित्र है और न धन और शरीर ही स्थाई हैं ! बंधू और बांधव और परिवार यात्रा में मिलने वाले पुरुषों के समान हैं ! धन के कमाने में और कमायें हुए धन के नष्ट हो जाने पर बहुत दुःख होता है ! धन के कारण अन्य जनों से विरोध होता है !
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर  जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की सभी जिन्देवों का अभिषेक कल्याणक बड़ी विभूति के साथ मनाया जाता है ! इन्द्र की आज्ञा से कुबेर उनके लिए अंगराग, वस्त्र, भोजन, वाहन, अलंकार आदि सम्पति प्रस्तुत करता है ! मन के अनुकूल क्रीडा करने में चतुर देव कुमारों का परिवार रहता है ! वह चक्र के माध्यम से देव, विद्याधर और राजाओं के समूह को अपने अधीन कर लेते हैं ! काल, महाकाल आदि नौ निधियां उनके राजकोष में उत्पन्न होती हैं ! चक्ररत्न आदि 14 रत्न होते हैं ! प्रत्येक रत्न की एक हज़ार देव रक्षा करते हैं ! 32000 राजाओं के द्वारा उनके पाद पीठ पूजे जाते हैं ! देव कुमार भेटें ले लेकर उनकी सेवा में सदा उपस्थित होते हैं ! वह विचार करते हैं की यह मोह की कैसी महत्ता है की तुरंत संसार समुद्र के दुःख रूपी भवरों  को प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले हम  जैसों को भी आरम्भ और परिग्रह में फसाता है  ! इस भोग सम्पदा में भी सार नहीं है !
    पूज्य पुरुषो की पूजा न करना भी स्वार्थ का घोतक  है ! चक्र का मैनेजमेंट यह है की देव भी  सुरक्षा करते हैं ! तीर्थंकर सभी वैभव होने के बाद भी उनमे रचते नहीं है ! हमे बार – बार बोलना पड़ता है निचे चावल नहीं चढ़ाएं क्योंकि चीटियाँ होती है ! लोग पास आने का साधन ढूंढते हैं, पासपोर्ट लेकर आते हैं पास आने को! चौके  में भी आज तक फर्स्ट क्लास फर्स्ट नहीं आये !  एक बार भगवान् के तप कल्याणक की जय तो बोलों ऐसा कहा आचार्य श्री ने !
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जैसा साधक मिलना कठिन है इस काल में! वे गर्मी में बहुत दिनों तक कमरे में स्वाध्याय करते थे जहाँ का तापमान 46 डिग्री के आस-पास था और अभी रात में दहलान में खुले में शयन करते हैं कई बार बारिश के कारण ठंडा भी हो जाता है मौसम फिर भी वह खुले में ही रहते हैं वह शाम से सुबह तक एक ही पाटे पर रहते हैं चलते – फिरते नहीं हैं अँधेरे में ! उनके संघ के सभी साधू मौन साधना में रत हैं 02 जुलाई से 02 सितम्बर 2012 तक की मौन साधना गुरु के उपदेश से सभी साधू पालन कर रहे हैं ! मुनि श्री योगसागर जी महाराज चातुर्मास में एक आहार एक उपवास की साधना करते हैं अन्य साधू भी सप्ताह में 1 – 2 उपवास करते हैं ! इस वर्षाकाल में जठ रागनी गंध पड़ जाती है शरीर में बीमारियाँ होती है इसलिए प्रकृति एवं धर्म ग्रंथों के अनुसार उपवास, एकासन करने से शरीर की विकृति समाप्त हो जाती है ! दिगम्बर जैन धर्म के अनुसार साधुओं को उपवास पहले और बाद में 48 घंटे बाद भोजन लेना होता है बीच में कुछ भी खाया पीया नहीं जाता कई लोग जल उपवास भी करते हैं लेकिन एक बार ही जल लेते हैं बार – बार नहीं वैसे भी वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी इन तिथियों में समुद्र में 5 बार भाठा आते हैं क्योंकि जल की मात्रा बढ जाती है इसी प्रकार हमारे शरीर में भी वर्षाकाल में जल की मात्रा बढ जाती है जिससे बीमारियाँ होती है जो उपवास, एकासन करने से ठीक हो जाती है ! वैज्ञानिकों, डाक्टर ने यह भी सिद्ध किया है उपवास के दिन विशेष रसायन का स्राव होता है मुख में जिससे विशेष एनर्जी मिलती है !
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की गुरु के पीछे इस प्रकार बैठे की अपने हाँथ पैर आदि से गुरु को किसी प्रकार की बाधा न पहुचे ! आगे बैठना हो तो सामने से थोडा हटकर गुरु के वाम भाग में उधतता त्याग कर और अपने मस्तक को थोडा नवाकर बैठे आसन पर गुरु के बैठने पर स्वयं भूमि में  बैठे ! गुरु के नीचे आसन पर सोना जो ऊँचा नहीं हो ऐसे स्थान में सोना , गुरु के नाभि प्रमाण पात्र भूभाग में अपना सिर रहे इस प्रकार सोना ! अपने हाँथ पैर वगरह से गुरु आदि का संघठन न हो इस प्रकार शयन करे, गुरु को बैठना हो तो आसन दान करें पहले जीव को देख ले ! उसे मार्जन (साफ़) करें या गुरु को उपकरण भी दे सकते हैं ! गुरु को पुस्तक आदि भी दे सकते हैं ! गुरु को यदि शीत, ग्रीष्म, आदि की बाधा है तो उन्हें आवास दान की व्यवस्था करें ! गुरु से थोडा हटकर बैठे ! गुरु को शीतलता प्रदान करें सेवा के माध्यम से एवं ठण्ड के समय में हवा से बचाव का प्रबंध करें !
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जो तप में अधिक है उनमे और तप में भक्ति और जो अपने से तप में हीन है उनका अपरिभव यह श्रुत के अनुसार आचरण करने वाले साधू की तप विनय है ! मुख की प्रसन्नता से प्रकट होने वाले आंतरिक अनुराग को भक्ति कहते हैं ! जो तप में न्यून है उनका तिरस्कार नहीं करना ! देखने से भगवान् नहीं दीखते आँखे बंद करलो तो दिख जायेंगे रूचि होना चाहिए तभी  दीखते हैं  भगवान्  ! गुरु आदि के प्रवेश करने पर या बाहर जाने पर खड़े होना, वंदना करना, शरीर को नम्र करना, दोनों हांथो को जोड़ना, सिर का नवाना, गुरु के बैठने अथवा  खड़े  होने पर उनके सामने जाना और जब गुरु जाएँ तो उनसे दूर रहते हुए अपने हाँथ पैर को शांत और शरीर को नम्र करके गमन करना और गुरु के साथ जाने पर उनके पीछे अपने शरीर प्रमाण भूमि भाग का अन्तराल देकर गमन करें !
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की आत्मा और शरीर के प्रदेश परस्पर मिलने से आयु कर्म के कारण यद्यपि शरीर ठहरा रहता है तथापि शरीर सात धातु रूप होने से अपवित्र है, अनित्य है, नष्ट होने वाला है, दुःख से धारण करने योग्य है, असार है, दुःख का कारण है, इत्यादि दोषों को जानकार “न यह मेरा है न मैं इसका हूँ” ऐसा संकल्प करने वाले के शरीर में आदर का अभाव होने से काय का त्याग घटित होता ही है ! शरीर के विनाश के कारण उपस्थित होने पर भी कायोत्सर्ग करने वाले के विनाश के कारण को दूर करने की इच्छा नहीं होती !
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्मसभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की दादी माँ ने कहानी कही छोटी – छोटी पर कहानी कहीं लिखी नहीं है ! कुछ युवा बालक उसे समझने का प्रयास करें ऐसी ही जिनवाणी की कहानी है ! उसे समझने का प्रयास करें ! “मन के जीते जीत है और मन के हारे हार है ” याने मन के अन्दर पावर है ! हमारी उर्जा बाहर लग रही है उसे भीतर लगाये ! आज मंत्र का नहीं यन्त्र का उपयोग हो रहा है ! भोतिक विज्ञान से ज्यादा आत्मिक विज्ञान जरुरी है ! शोध करने वाला सहपाठी का इन्तेजार नहीं करता ! पहले विद्याओं के माध्यम से बड़े – बड़े कार्य होते थे !
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की दंड के माध्यम से उदंडता ठीक हो जाती है ! शुद्धी के प्रावधान हैं प्रतिक्रमण आलोचना ! जो क्षेत्र संयम को हानि पहुचाते हैं अथवा संक्लेश उत्पन्न करते हैं उसका त्याग क्षेत्र प्रत्याख्यान कहलाता है ! घर में महिलाओं के लिए निर्वाह करना पड़ता है कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं !
    अपने द्वारा पहले किये गए हिंसा आदि को “हां मैने बुरा किया, हां मैने बुरा संकल्प किया, हिंसा आदि में प्रवर्तन वाला वचन बोला” इस प्रकार स्व और पर विषयक निन्दा के द्वारा दोषयुक्त बतलाते हुए तथा वर्तमान में मै जो  असंयम करता हूँ और पूर्व में जैसा असंयम किया है वैसा मै भविष्य में नहीं करूँगा ऐसा मन में संकल्प करके त्याग करता है ! हिंसा का त्याग कृत, कारित, अनुमोदना से करना चाहिए !
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की इस चातुर्मास की स्थापना का समर्थन इन्द्र भी कर रहे हैं जब वर्षा के साथ यदि धर्म वर्षा भी हो जाए तो ये अच्छा रहेगा ! मुनिराज अहिंसा धर्म के पालन एवं जीव रक्षा के लिए करते हैं चातुर्मास ! आज हम वनों में नहीं रह पाते हैं तो यहाँ स्थापना करना पड़ रहा है ! हमारी स्थापना तो 2 जुलाई 2012 को हो गयी थी श्रावको ने आज कलश स्थापना की है ! आज हमें जल छानने के संस्कार देने चाहिए ! रस्सी , कलशा, छन्ना हमेशा बाहर जाते समय साथ में रखना चाहिए ! आज मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, आदि बड़े – बड़े शहरों में लोग कूये के पानी के द्वारा प्रतिमाओं का पालन कर रहे हैं ! हम विज्ञापन के चक्कर में नहीं पड़ते हमारी तो पत्रिका (प्रवचन) प्रत्येक रविवार को प्रसारित होते हैं ! राजस्थान वाले कहते हैं की आप राजस्थान नहीं आते हो आप अपने बच्चों का दान करें जिन्हें हम मुनि, आर्यिका आदि बना सके ! 
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    वीर शासन जयंती एवं प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए !
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए शीत, हवा, पौधे, आदि के रूप में मुखोटा लगाकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया !
    “मै राष्ट्रीय पशु न सही लेकिन राष्ट्रीय संत की गाये हूँ”
    “बच्चों ने कहा की आचार्य श्री कहते हैं की मंदिर में लगने वाले पत्थर की चीप बनो चिप नहीं चीफ (मुख्य) है ! प्रतिभा स्थली में लगभग 500 छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रही है ! बच्चों ने अडवांस में राखी भेंट की आचार्य श्री को आज हम महावीर को नहीं देख पा रहे हैं पर हम गुरु के माध्यम से उन्हें जान रहे हैं ! हम इस परंपरा में आये इसलिए वीर प्रभु हमसे दूर नहीं और हम उनसे दूर नहीं! एक – एक क्षण को उपयोग करो और कराओ ! आप लोग नदी बने तालाब नहीं, पानी पर टला लगा दिया जाए उसका नाम तालाब होता है ! हम बहुत सारे तीर्थों से जुड़े हैं चतुर्थ काल से पंचम काल और आगे जब तक तीर्थ नहीं आता है अभी महावीर का शासन काल चल रहा है ! हर व्यक्ति अपने आप को उन्नत बनाना चाहता है ! शारीर के दास नहीं बनो गुणों के साथ शारीर का सम्बन्ध होना चाहिए ! हम वासना के दास नहीं बने ! उत्साह जरुरी है पुरस्कार भी जरुरी है ! उत्साह अलग है प्रेरणा अलग है ! आत्मा की खुराक तो ज्ञानामृत है ! इमली को मुख से निकालो तभी लड्डू का स्वाद आएगा ! इस शरीर को पेट्रोल (भोजन) नाप तौल कर ही दो ! जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करना है ! अच्छे कुम्भकार की तलाश करो ! आप लोगों के लिए बोध बहुत हो गया अब शोध की आवश्यकता है ! 
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की प्रतिभा स्थली में शिक्षिकाओं को संख्या ज्यादा और छात्राओं की संख्या कम है आप लोग संख्या बढाएं खर्चा ज्यादा हो और काम कम यह ठीक नहीं है ! किसका मन प्रतिभा स्थली में नहीं लग रहा है हाँथ उठायें ! जिनका मन नहीं लग रहा उनका सहयोग करें जिनका मन लग रहा है ! आचार्य श्री ने बच्चों से चर्चा भी की ! जिस प्रकार सब विषयों में नंबर मिलते हैं वैसे ही खेल कूद में भी नंबर आना चाहिए ! सब लोगों की पढाई ठीक चल रही है ? सब पढ़ाते ठीक हैं ? मोक्ष मार्ग में चलते समय गाडी चलती रहती है लेकिन सोना नहीं है ! भगवान् ने गाडी दी है तो हम गंतव्य तक पहुचेंगे ! टेंशन किसको बढती है नंबर कम आने से क्यों बढती है टेंशन ! टेंशन को हिंदी में तनाव कहते हैं ! तन जाते हैं तो तनाव आता है तनाव की परिभाषा, तनाव के कारण क्या है ? यह बीमारी बहुत खतरनाक है ! तनाव में आजायेंगे तो पढाई नहीं होगी ! किसी भी अस्पताल में तनाव का इलाज नहीं है ! डॉक्टर भी तनाव में रह सकते हैं ! किस रास्ते से तनाव आता है उस रास्ते को बंद कर दो !
    प्रतिभा स्थली जबलपुर में है इसमें कक्षा १२वी तक की शिक्षा सी.बी.एस.ई. के माध्यम से दी जाती है ! सिर्फ छात्राओं को ही दी जाती है ! लगभग १०० ब्रह्मचारिणी बहने शिक्षिकाएं हैं जो जैन धर्म के संस्कार भी देती हैं और वहां मंदिर के प्रतिदिन दर्शन, रत्रिभोजन त्याग, पाठशाला एवं अन्य संस्कार भी दिए जाते हैं ! संस्कृति, कला, डांस, अन्य चीजे भी सिखाई जाती है जो अन्य स्कूलों में सिखाई जाती हैं ! यह देश का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है जहाँ संस्कार शाला है !
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की यह गुरु पूर्णिमा पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है ! आज के गुरु बनाते है लोग और दर्शन करने आते हैं ! पूर्ण चन्द्रमा का दर्शन पूर्णिमा के दिन होता है ! चन्द्रमा पूर्ण कलाएं बिखेरता है ! इस तिथि का विशेष महत्व है ! इस दिन गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु मिले थे ! वीर भगवान् की दिव्य ध्वनि 66 दिन तक नहीं खीरी थी फिर वीर शासन जयंती के दिन खीरी थी, उसी दिन से वीर शासन प्रारंभ हुआ, वीर भगवान् का शासन प्रारंभ हुआ ! कुछ सेल्समेन होते हैं जिनको कमिसन मिलता है ! वह मुनि मेकर होते हैं ! गुरु प्रभु की पहचान बताते हैं पता देते हैं जो राम आतमराम की पहचान बताते हैं ! जो भगवान् का स्वरुप बताते हैं ! जो आत्मा का पता दे वह गुरु होता है ! गुरु का एड्रेस नहीं होता है, विश्वास को साथ लेकर चलो ! अनेक दृष्टान्त भी बताएं !
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की उपवास करते समय मन आकुल – व्याकुल नहीं होना तप है ! भूख  – प्यास की वेदना से आकुल – व्याकुल नहीं होना चाहिए ! रस को त्यागने से शरीर में उत्पन्न हुए संताप को सहना तप है ! मनुष्यों से शून्य स्थान (जंगल आदि) में निवास करते हुए पिशाच, सर्प , मृग, सिह, आदि को देखने से उत्पन्न हुए भय को रोकना तथा परिषय को जीतना चाहिए !
    प्रायश्चित करने से उत्पन्न हुए श्रम से मन में संक्लेश न करना “यह जगत जीवों से भरा है  बचाना शक्य नहीं है फिर भी जानबूझकर हिंसा से बचना ही धर्म है ! प्रसन्न मुद्रा भगवान् की मुद्रा मानी जाती है ! मन तो भोजन की ओर जाता है लेकिन संकल्प है की लेना नहीं है, यह महत्वपूर्ण है ! “समयसार” का उपयोग तो करो कब करोगे ! केवल पेट्रोल डालना है भाडा देना है शरीर को और चलाना है, उसके दास नहीं बनना है ! भगवान के पुण्य से जन्म के समय सभी वस्तुएं दिव्य आती हैं भोजन, वस्त्र आदि ! अपनी शक्ति का सदुपयोग करो यह हमें अच्छा लगता है
    “सब जग देखो छान, छान नहीं पाये तो पहचान नहीं पायें” ! आत्मा को श्रद्धा की आँखों से देखा जाता है ! आज के वैज्ञानिक और डाक्टर भूत-प्रेत आदि नहीं मानते हैं क्योंकि वह M.R.I., C.T. स्केन, एक्सरे आदि मशीन  में नहीं आता है ! आज भले डाक्टर M.B.B.S., M.D.   हो जाएँ फिर भी नहीं जान पाते हैं भूतों को !
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने दीक्षा दिवस के अवसर पर धर्म सभा को सम्भोधित करते हुए कहा की आज रविवार है और भी कुछ है (दीक्षा दिवस ) लेकिन अतीत की स्मृति के लिए आचार्य कुंद – कुंद कहते हैं की याद रखना है तोह दीक्षा तिथि को याद रखो जिस समय दीक्षा ली थी उस समय क्या भाव थे उन्ही को याद करो ! काल निकल जाता है पर स्मृति के द्वारा ताज़ा बनाया जा सकता है ! उस समय की अनुभूति और अभी की अनुभूति में अंतर दीखता है ! हमारे भाव कितने वजनदार हैं देखना है ! भावों की उन्नति होना चाहिए ! जो गिरता है वो जल्दी उठता भी है और संभालता भी है ! आप दान, परोपकार आदि के भावों को याद रखो ! आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी को याद भी किया और कहा की वह महान थे ! आत्मा की कोई उम्र नहीं होती भावों की उम्र होती है, अनुभूति भावों की होती है ! गुरुदेव का उत्तर हमारे लिए अनुत्तर बन बन गया था ! भावो को नापो ज़िन्दगी क्या है ! द्रव्य की जगह भाव को याद करने की हमें वह योग्य बनाया गुरुदेव ने, हम गुरुदेव को प्रणाम करते हैं ! आचार्य श्री विद्यासागर जी रविवार होने के कारण दीक्षा दिवस पर, मंच पर आये ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ है ! 
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज धर्म सभा को सम्भोधित करते  हुए कहा की  आज रविवार है, रवि तो प्रतिदिन आता है और जाता है ! आचार्य श्री ने गजकुमार का दृष्ठांत देते हुए वैराग्य मय दास्ता सुनाई भगवान् नेमिनाथ के प्रसंग  भी   सुनाये  और  कहा  मधुर  वचन  होते  हैं प्रभु के ! कीचड़ में पैर रखकर पानी से धोने की अपेक्षा कीचड़ से बचकर पैर रखना ठीक है ! अज्ञानी हो तो ठीक है पर ज्ञानी होने पर भी यदि पैर रखे तो ठीक नहीं ! कषायों का कीचड़ उछलता है उसे धोने की आवशयकता है ! सूत्र अनेक अर्थ को पेट में रखे रहते हैं ! अखबार में खबर आती है नोट के बारे में लेकिन नोटों का भोजन नहीं किया जा सकता है !
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित प्रवचन सभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जब उपसर्ग आता है तो साधू जब ताल नहीं पाते तब संलेखना ले लेते हैं ! भयंकर दुर्भिक्ष हो, भयंकर जंगल में भटक गया हो तो भी संलेखना लेते हैं ! चाहे विज्ञान हो चाहे वीतराग विज्ञान हो दोनों ही बताते हैं की गलत आहार भी प्राणों को संकट पैदा करता है ! दुर्भिक्ष पड़ने पर साधू आहार का त्याग कर देते हैं ! जो ज्यादा सोचता  है वह जंगल में भटक जाता है, आज विज्ञान भी भटक रहा है ! वर्मुला ट्रगल में भटक जाते हैं ! बहुत सारे वज्ञानिक फस गए और बाहर नहीं निकले !
    हम तो प्रत्येक व्यक्ति को स्वर्गवासी कहते हैं क्योंकि हमारी भावना नरक भेजने की नहीं है ! कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहाँ विश्वास काम नहीं करता हो “अनुभव करो विश्वास करो ” किसी ने विष को चखा नहीं है फिर भी विश्वास है की इससे मरण हो जाता है ! विश्वसनीय के ऊपर ही विश्वास किया जाता है ! जब कोई संकट आता है तो साधू उस समय आहार का त्याग कर देते हैं की जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता है तब तक आहार का त्याग है ! बहुत सारा धन और समय का अपव्यय हो रहा है आज ! मोबाइल पर भी व्यक्ति झूट बोलता है, बोलता देहरी से है और कहता है देहली से बोल रहा हूँ !
    आज प्रतिभा, समय, धन व्यर्थ में जा रहा है, उपयोग नहीं हो रहा है ! एक छात्र वैज्ञानिक के भाषा में बात करने लगा था ! यह कुछ वर्ष पूर्व हमने पढ़ा था यह लेख और यह विस्मय जैसा  लगा ! जैन दर्शन में दूरस्रावी आदि पहले से लेख है !
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्म सभा जो श्रुत पंचमी पर आयोजित थी इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा शरीर का नहीं आत्मा का विकास होना चाहिए ! यहाँ कुछ लोग राजस्थान से आयें है लेकिन प्रायः बुंदेलखंड के हैं ! प्रायः पैसा बढता है तो गर्मी चढ़ जाती है ! हर व्यक्ति की गति प्रगति इस बुद्धि को लेकर नहीं होती ! कुछ लोग चोटी के विद्वान् होते हैं जैसे ललितपुर में एक व्यक्ति चोटी रखता है ! ज्ञान के विकास का नाम ही मुक्ति है ! ज्ञान का विकास जन्म से नहीं मृत्यु से होता है ! अभी आप मरना नहीं सीखे हैं ! मरना सिख लिया तोह जीना सिख लेंगे ! बुद्धि के विकास के लिए मरण अनिवार्य है ! मन का मरण जरुरी है ! उस मन को कैसे मारा जाये ! श्रुत और पंचमी आज का यह दिवस है ! आज का दिन पढ़े लिखे लोंगो का नहीं किन्तु जो मन से सुनता है उसका नहीं दो कानो का है ! मैं मन की बात नहीं किन्तु श्रुत पंचमी की बात कर रहा हूँ ! हमारी सोच श्रुत का निर्माण नहीं करता !
    सुनने वाला श्रुत पंचमी का रहस्य समझता है ! जो मन के अन्दर में रहता है उसका भरोसा नहीं रहता है ! किसी के अन्दर में नहीं रहना चाहिए ! आँखे तभी गहराइयों तक नहीं पहुचती ! जो सुनता है उसको मोक्षमार्ग और मुक्ति उपलब्ध होता है ! शार्ट कट भी चकर दार हो सकता है !
    केवल माँ की भाषा को ही मात्री भाषा कहा है ! भगवन की भाषा होती है लेकिन पकड़ में नहीं आती है ! भाषा के चक्कर से केवली भगवन भी बचे हैं ! आज के दिन हजारों वर्ष पूर्व ग्रन्थ का निर्माण हुआ था ! श्रुत देवता के माध्यम से ही गुण रहस्य मालूम होता है ! आप लोग दूर – दूर से आयें हैं लेकिन पास से कौन आया है ! गुरु कभी परीक्षा नहीं करते लेकिन आत्म संतुस्ठी के लिए कुछ आवश्यक होता है ! मात्री भाषा भाव भाविनी है वह भाव तक ले जाने में सहायक है ! भाव भाषा को समझना आवश्यक है ! विकास इसलिए नहीं होता है क्योंकि मन भटकता है ! हमारी शिकायत आप करते हो की हमें दर्शन नहीं होते हैं !
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरि, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में आयोजित आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस !
    ग्रीष्मकालीन ज्यों ही आता है गुरूजी की पुण्य तिथि आ जाती है पिछली बार भी यह अवसर चंद्रगिरि को मिला था इस बार भी मिला है ! तीर्थंकरों के कल्याणक तोह हम मनाते ही है लेकिन पुण्य तिथि मनाने का अलग ही महत्व है ! गुरु उन्नत होते भी उन्नत बनाने में लगाए रखते है! सिद्धि में गुरुओं की बात कई विशेषणों में कई है ! परहित संपादन विशेषण बहुत महत्वपूर्ण दिया है ! प्रायः व्यवस्ताओं के सही नहीं होने के कारण गाड़ियाँ रुक जाती है !.गुरुदेव ने कुछ ऐसी ही बातें हमारे कानो में फुकी थी ! मोक्ष मार्ग में पढ़ा – लिखा ही आगे बढ़ता है यह भूल है ! व्यवस्थित हो तो आगे बढ़ता है ! गुरूजी ने कहा था अच्छे से विज्ञापन करना तो हम वैसे ही विज्ञापन कर रहे है ! महंगाई का जमाना है बाज़ार में मंदी आ गयी है ! व्यवस्था एक ऐसी चीज़ है जिसमें खर्चा होता है ! मैनेजमेंट ठीक हो तो सब ठीक होता है ! अपव्यय (फ़िज़ूल खर्च ) हो तो मैनेजमेंट ठीक नहीं माना जाता है ! प्रत्येक कार्य के लिए लोन लिया जा रहा है ! अलोना (बिना नमक का) भोजन लेना यह ही सलोना है !
    भारतीय संस्कृति मितव्ययी होना सिखाती है ! ज्यादा खर्च हो रहा है इसलिए कर्ज हो रहा है ! पुलिस हिलती – डुलती नहीं संकेत में कार्य करती है ! (विशेष कार्यों में ) गुरूजी एक शब्द बोलते थे और कितना असर हुआ यह देखते थे ! एक बार आर्डर दिया जाता है ! मिलट्री में संकेत से ही काम होता है ! संयमी की पुण्य तिथि पर संयम से कार्य करना चाहिए ! संयमी की पुण्य तिथि को समझने के लिए संयम संयम की आवश्यकता होती है! वह ज्ञान वृद्ध, तपो वृद्ध थे ! नहीं हमारी उम्र है न ही तप हैं न ही काया है ! हमारे पास टूटे – फूटे दो ही शब्द है ! गुरूजी को मुलायम शब्द अच्छे नहीं लगते थे ! कमर को ठीक चाहते हो तो दिवार का सहारा ना लो ! कठोर शब्द नहीं किन्तु मित प्रिय शब्द का प्रयोग करो !
    याद करने के लिए दिमाग की स्पीड बढाओ, सर्वप्रथम लेखनी अनुचर होती है फिर सहचर हो जाती है ! यह मूक माटी में लिखा है ! मोक्ष मार्ग में लिखना तो होता ही नहीं है ! व्यवस्ताओं में करोडो का व्यय हो रहा है ! गुरूजी कहते हैं हम भक्ति में प्रतिशत लगाते हैं यह गलत है ! दान के लिए दाता से महत्वपूर्ण पात्र होता है ! कार्य करने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में है, जिन्होंने पूर्व में कार्य किये है वह याद करे एक छोटी सी बात है लेकिन चोटि की बात है ! गुरुदेव ने एक छोटा सा मंत्र दिया था – विद्या का अध्यन महत्वपूर्ण है ! आज कल के बच्चों को विषय चुनने का अवसर दिया जाता है ! इंजीनियरिंग, ऍम बी ए, के क्रिय लोगों को काम में लगा दिया जाता है !
    गुरूजी कहते थे थोडा पढो लेकिन काम का पढो ! योग्यता का जहाँ मूल्यांकन नहीं होता है वहां कुछ नहीं होता है ! गुरु जी बहुत गुरु थे व्यवहार ज्ञान उनका बहुत उन्नत था, अध्यात्म का ज्ञान उनकों बहुत अच्छा था ! हमारे गुरु वही के वही रहने वाले नहीं थे ! हमारे गुरु बहुत अच्छे थे जैसे माँ की ऊँगली बच्चे नहीं छोड़ते हैं ऐसे ही हमने नहीं छोड़ी, नहीं तो बाज़ार में घूम जाते ! गुरु मंजिल तक नहीं छोड़ते हैं (भावना से ) संकल्प लिया हुआ बहुत दिन तक टिकता है !
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में रविवारीय प्रवचन में आचर्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की भावों के ऊपर धर्म है भावों के उपन अधर्म है भाव से ही सब कुछ होता है ! आचर्य श्री विद्यासागर जी ने राघव मच्छ के कान में तदुले मच्छ रहता है उसका द्रिस्तान्थ दिया और कहा की आचार्य ज्ञानसागर जी ने बनारस में गम्हा बेचकर बड़े – बड़े शास्त्रों की रचना की हैं ! जीवन को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा की आवशयकता है ! आज लड़कियां सेरविसे करने जाती है और घर पर दिन में ताला लगा रहता है और रात्रि में अन्दर से ताला लगे रहता है ! ताला लगा रहना अच्छा नहीं है ! अहिंसा धर्म का पालन एवं पूजा हमें प्रत्येक समय करते रहना चाहिए ! आज के लोगों का खान – पान भी बिगड़ रहा है होटल से तिफ्फिन आता है घर पर खाना नहीं बनता है इसलिए संस्कार बिगड़ते जा रहे हैं !
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ तीर्थ पर विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की रामचंद्र जी को भी कर्म का उदय आता है जब लक्ष्मण जी को जब मूर्च्छा आई थी यह दृष्ठांत आचार्य श्री ने बताया ! आचार्य श्री ने कहा की लोग हमसे शिकायत करते हैं की हमारे यहाँ नहीं आतें हैं (ललितपुर वालों की ओर इशारा करते हुए) आचार्य श्री ने कहा की हमने वाचना की है ग्रीष्मकालीन, शीतकालीन, महावीर जयंती, अक्षय तृतीया आदि पर्व मनाएं हैं फिर भी लोग कह रहें है की आते नहीं हैं ! पुण्य को गाढ़ा करें अभी पतला है ऐसी रसायन की प्रक्रिया हो जाए तो आपका कार्य हो जायें ! आज ललितपुर से प्रभारी पंचायत कमीटी ने चातुर्मास हेतु श्रीफल भेट किया और आचार्य श्री ने आशीर्वाद दिया ! आचार्य श्री ने कहा की शिकायत भी जरुरी है यह शिकायत करते रहे ! यह जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है !
  24. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ तीर्थ चेत्र पर विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की कोई भी कार्य हाँथ में लो उसे पूर्ण करो ! उस दाता की जब तक प्रसंशा नहीं करो जब तक वह भोजन पच नहीं जाए ! नारी की जब तक प्रशंसा नहीं करो जब तक वह बूढी नहीं हो जाए ! राजा की जब तक प्रसंशा नहीं करो जब तक वह यशस्वी नहीं हो जाए ! साधू की जब तक प्रशंसा नहीं करो जब तक वह पार नहीं हो जाए अर्थात संलेखना नहीं हो जायें! जहाज में रत्ना भरकर लायें और किनारे पर डूब जायें ऐसे ही व्यक्ति के साथ होता है !
    एक बार एक व्यक्ति आहार देता और फिर शुद्धी बोलता प्रत्येक ग्रास दे बाद शुद्धी बोल रहा था ! प्रशंसा की नहीं की गाफिल हो जाता है ! जैसे छात्र विषय को दोहराता रहता है विषय को इसी प्रकार आप भी करें ! जो जितेन्द्रिय नहीं होगा वह संलेखना में फ़ैल होगा ! शत्रु और मित्र में समता रखना यह श्रावन्य कहलाता है ! आचाय कुन्दकुन्द की प्रवचन सार की गाथा को गुरु जी हमें सुनाते थे !भाव के द्वारा निवेश होता है !
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