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संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    छोटी दुनिया,
    काया में सुख दुःख,
    मोक्ष नरक |
     
    भावार्थ - जिसकी दृष्टि में दुनिया बहुत छोटी है और जो दुनिया में रहकर भी बहुत छोटा है अर्थात् अपनी आत्मा में स्थित होकर उसने अपनी दुनिया को समेट लिया है तो उसे शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त हो जायेगा । आत्मा से बढ़कर कुछ नहीं है । शेष सब पदार्थ मूल्यहीन हैं, ऐसा मानकर जो जीर्ण- शीर्ण तिनके के समान पर पदार्थों का त्याग कर देता है, वह मोक्ष का पात्र होता है किन्तु जो दुनिया को अपने पैरों की धूल समझकर अपने को ही सब कुछ मानता है तो वह नरक जाता है । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञान प्राण है,
    संयत हो त्राण है,
    अन्यथा श्वान|
     
    भावार्थ - ज्ञान जीव का त्रैकालिक लक्षण है। कर्म योग से सांसारिक दशा में वह ज्ञान सम्यक् और मिथ्या, दोनों प्रकार का हो सकता है सम्यग्ज्ञान भी व्रती और अव्रती के भेद से दो प्रकार का होता है। आचार्य भगवन् ने यहाँ संयमी जीव के ज्ञान के विषय में कहा है कि संयमी का सम्यग्ज्ञान संसार-सागर से पार लगा देता है लेकिन मिथ्यादृष्टि का ज्ञान श्वान अर्थात् कुत्ते के समान पर पदार्थों का रसास्वाद लेते हुए व्यर्थ हो जाता है और जीव को चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संदेह होगा,
    देह है तो, देहाती !
    विदेह हो जा |
     
    भावार्थ - देह का अर्थ शरीर है और केवली भगवान् ने औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण; ये पाँच प्रकार के शरीर बताये हैं जो संसार भ्रमण के मुख्य कारण हैं । पौद्गलिक और पर-रूप शरीर में अपनत्व मानकर जीव स्वयं के वास्तविक स्वभाव को भूल जाता है । उसे अपने सत्यार्थ स्वरूप पर भी संदेह होने लगता है । अतः वह शरीरगत अनेक प्रपंचों में फँसकर गहनतम दुःखों से जूझता है । ऐसी देह में निवास करने वाले देहवान आत्मा को आचार्य देहाती का सम्बोधन करते हुए समझा रहे हैं कि हे देहाती ! देह का छोड़ने के उपायभूत रत्नत्रय की आराधना कर ताकि पर पदार्थों से अत्यन्त भिन्न निर्मल आत्मस्वरूप को प्राप्त कर चिरकाल तक स्वाश्रित सुख में निमग्न हो सके । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?  
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    जुड़ो ना जोड़ो,
    जोड़ा छोड़ो जोड़ो तो,
    बेजोड़ जोड़ो।
    भावार्थ आचार्य भगवन् का यह सूत्र पूर्णतः आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है । यहाँ जुड़ो और जोड़ो से तात्पर्य अपनी आत्मा के अतिरिक्त सम्पूर्ण जड़-चेतन पदार्थों से मन-वचन-काय पूर्वक पूर्ण या आंशिक सम्बन्ध स्थापित करना है । अतः संसारी प्राणी सुख चाहता है तो उसे मन- वचन-काय से चेतन परिग्रह एवं जड़-पदार्थ, धन-सम्पदा आदि से अपनत्व भाव नहीं रखना चाहिए। अज्ञान दशा में जिन जड़-चेतन पदार्थों से ममत्व भाव रखकर सम्बन्ध स्थापित किया था, उसे पूर्णतः समाप्त कर जोड़ रहित अर्थात् समस्त परिग्रह से रहित निस्संग आत्म तत्त्व में लीन हो जाना चाहिए, जो कि अभिन्न रत्नत्रय रूप आत्मा का स्वभाव है । 
    गृहस्थों को भी एकत्रित किए गये धनादि का दान कर उससे ममत्व छोड़ना चाहिए। तभी ऐसा बेजोड़ यानि परिग्रह रहित एकत्व आत्म तत्त्व से सम्बन्ध जुड़ पाएगा । 
    - आर्यिका अकंपमति जी 
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    खजुराहो १७ जुलाई २०१८.
    आज मंगलवार प्रात: संयम स्वर्ण महोत्सव समापन समारोह में धर्मनायक, संघनायक, लोकनायक और संस्कृति नायक जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में  कहा कि गुरु जी ने मुझे धर्म मार्ग पर प्रवृत्त कर दिया। भाग्यशाली हूँ कि मुझ अपढ़, अनगढ़, जिसे कुछ नहीं आता था उसे स्वीकार कर लिया। मैं तो ठेठ बाँस था, गुरु कृपा से  बाँसुरी बन गया। गुरू ने दीया दे दिया मुझे ।
    मुझे न भाषा का और न भाव का ज्ञान था, किंतु गुरु ने सब कुछ समझा और स्नेह दिया। अाज के जीवन में प्रचार-प्रसार, विज्ञापन का बोलबाला है। बहुत कुछ ग़लत दिशा में है, जिससे भारतीयता पर आधारित शिक्षा-प्रणाली से बचा जा सकता है। गुरु जी के द्वारा अंकुरित बीज से समाधान संभव है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को उनके गुरु आचार्यश्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज ने आषाढ़ शुक्ल पंचमी तदनुसार ३० जून १९६८ को मुनि दीक्षा प्रदान की थी।
     
     
    संयम वर्ष से राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति ने सर्वोदय सम्मान नामक एक पुरस्कार आरंभ किया है जिसमें समाज के उन नायकों का सम्मान किया जाता है जो विज्ञापन की चकाचौंध से दूर रहकर भारतीय संस्कृति, सभ्यता और जीवन पद्धति के संरक्षण में लगे हुए हैं। आज के इस पावन दिवस पर ऐसे ही ९ व्यक्तित्वों को सम्मानित किया गया जिनमें सर्वश्री 1.आदिलाबाद आंध्र प्रदेश में स्थित कला के स्वर्गीय रविंद्र शर्मा गुरुजी - कला ,कारीगरी एवं सामाजिक व्यवस्था के जानकार; 2.श्री एच वाला सुब्रमण्यम संगम एवं तमिल साहित्य के गैर हिंदी भाषी सुप्रसिद्ध अनुवादक. आपने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार एवं प्रसार में निर्णायक भूमिका निभाई है; 3. टिहरी उत्तराखंड प्रदेश से आए हुए श्रीमान विजय जड़धारी जी. विजय जी चिपको आंदोलन की उपज है, और वर्तमान में बीज बचाओ आंदोलन से जुड़े हुए है; 4. श्रीराम शर्मा जी मध्य प्रदेश से संबंध रखते हैं, आपके पास भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के तमाम महत्वपूर्ण दस्तावेज यथा पत्र पत्रिकाएं ,अखबार एवं ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं का अद्भुत संग्रह है; 5. बाबा आया सिंह रियारकी महाविद्यालय जिला गुरदासपुर पंजाब के संचालक गण. महिला शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ एक स्वदेशी प्रयोग, एक ऐसा अकादमिक संस्थान जो बालिकाओं के लिए बालिकाओं के द्वारा बालिकाओं का महाविद्यालय है; 6. महाराष्ट्र राज्य के गढ़चिरौली जिले के मेडा लेखा गांव के भूतपूर्व सरपंच श्री देवाजी तोफा भाई. आपने गांधीवादी संघर्ष कर प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम वासियों के अधिकारों को सुनिश्चित किया. आप का नारा है हमारे गांव में, हम ही सरकार; 7. राजस्थान उदयपुर के भाई रोहित जो विगत कई वर्षों से जैविक कृषि में संलग्न है और अपने प्रयोगों के माध्यम से इसे युवा पीढ़ी में लोकप्रिय भी कर रहे हैं; 8. छत्तीसगढ़ के शफीक खान जो जीवदया, शाकाहार, नशामुक्ति और गौरक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं; 9.गुजरात से अभिनव शिल्पी श्री विष्णु कांतिलाल त्रिवेदी। जिन्होंने ने अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण किया है।
     
     
     

    पुरस्कार में श्रीफल, दुशाला, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रमदान निर्मित खादी के वस्त्र और ५१ हजार रुपये की राशि प्रदान की गई। 
    कार्यक्रम में प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ जबलपुर, डोंगरगढ़, रामटेक, पपौरा जी और इंदौर की ३०० से अधिक छात्राओं ने अपने मनभावन प्रस्तुतियों से उपस्थित विशाल संख्या में उपस्थित गुरू भक्तों का मन मोह लिया।   दोपहर के प्रवचनों में गुरुदेव ने महाराजा छत्रसाल द्वारा कुंडलपुर के बड़े बाबा की प्राचीन प्रतिमा के संरक्षण में उनके योगदान का उल्लेख किया, संयम के महत्व पर प्रकाश डाला और  आचार्यश्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति अपनी विनयांजलि प्रकट की।   समारोह में राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति के पदाधिकारियों में सर्वश्री अशोक पाटनी (आरके मार्बल्स), प्रभात जी मुंबई, राजा भाई सूरत, विनोद जी जैन कोयला, पंकज जैन, पारस चैनल की उल्लेखनीय उपस्थिति रही| राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य सुनील सिंघी, श्रीमती ललिता यादव, मध्यप्रदेश शासन राज्य मंत्री,  पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण और अहमदाबाद शहर के महापौर श्री गौतम भाई शाह ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया.   संयम स्वर्ण महोत्सव के पावन दिवस पर केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती ने आचार्य श्री  आशीर्वाद प्राप्त किया और उनसे अनुरोध किया कि आचार्य श्री आप इस वर्ष अपना चातुर्मास खजुराहो में ही करें साथ ही उन्होंने आचार्य श्री से हथकरघा, भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में विचार विमर्श किया.    


  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संघर्ष में भी,
    चंदन सम सदा,
    सुगन्धि बाटूँ।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    स्थान समय,
    दिशा आसन इन्हें,
    भूलते ध्यानी।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दीप अनेक,
    प्रकाश में प्रकाश,
    एक मेक सा।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ☀☀ संस्मरण क्रमांक 44☀☀
               ? शिथिलाचार विनाशक ? 
    मुनिराज छहकाय के जीवों की हिंसा से विरक्त होते हैं,आधुनिक युग में विद्युत प्रयोग से उत्पन्न  अनेक साधन उपलब्ध होते हैं। आचार्य भगवन रात्रि में पठन, लेखन  आदि क्रिया ना स्वयं करते ना संघस्थो को करने के लिए अनुमोदित करते हैं।
    नैनागिरी शीतकाल में एक बार संघस्थ नव दीक्षित शिष्य ने आचार्य भगवंत से निवेदन करते हैं कि- रात्रि प्रतिक्रमण हम लोग रात में पढ़ नहीं सकते हैं इसलिए आपकी आज्ञा चाहते हैं कि बाहर प्रकाश उत्पन्न करने वाली लालटेन हैं,क्या उसके प्रकाश में बैठकर प्रतिक्रमण कर सकते हैं।
    आचार्य भगवंत ने कहा- प्रातः कालीन लेना चाहिए।शिष्यों ने कहा प्रातः आप अन्य विषयों को कक्षा में पढ़ाते हैं,बाद में चर्या का समय हो जाता है इसलिए समय नहीं मिलता।
     आचार्य भगवान ने कहा- प्रतिक्रमण आधा आहार से पहले कर लिया करो आधा आहार के बाद कर लेना।
    शिष्यों ने मन में जान लिया कि दीपक के प्रकाश में पढ़ने की आज्ञा नहीं है।सब अपने स्थान पर चले गए।दो माह बाद वे सभी आकर कहते हैं कि अब हमें प्रतिक्रमण याद हो गया। 2 माह संबंधी दोषों के प्रायश्चित चाहते हैं....
    आचार्य भगवन ने कहा- अभी तो आप 2 महीने की दोषों के ही भागी बने हैं।यदि रात में पढ़ने की आज्ञा देते,तो जीवन पर्यंत दोष लगता रहता।
    ? अनासक्त महायोगी पुस्तक से साभार ?
    ✍ मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महामुनिराज
    धन्य हैं ऐसे आचार्य भगवंत जो अपने संघ में बिल्कुल भी शिथिलाचार का पोषण नहीं करते, अपने गुरु (ज्ञान सागर) जी को जो वचन दिया था कि-आपका संघ निरंतर मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ता जाएगा, राग द्वेष मोह आदि विकारी भाव संघ में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।संघ किसी प्रकार से भी शिथिलाचार का पोषण नहीं करेगा। आचार्य भगवन अपने गुरु को दिए हुए उसी वचन का पालन करते हुए स्वयं किसी प्रकार के शिथिलाचार को नहीं अपनाया, न ही संघ में शिथिलाचार पनपने दिया और निर्दोष चर्या के द्वारा निरंतर मोक्षमार्ग में आगे बढ़ते जा रहे हैं और निश्चित ही आगामी कुछ ही भवों में मोक्ष रूपी महल को प्राप्त कर लेंगे  ऐसे आचार्य भगवान के चरणों में उन्ही के जैसा बनने के लिए, मुक्ति पर्यंत, अनंतानंत नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु............
     
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गोबर डालो,
    मिट्टी में सोना पालो,
    यूरिया राख।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कोई भी अपने विचारों से ही भला या बुरा बनता है।
     
    "परिणाममेव कारणमाहुः खलु पुण्य पापयो: प्रज्ञाः" ऐसा श्री पुरुषार्थसिद्धयुपाय में कहा गया है। अर्थात मनुष्य जैसे अच्छे या बुरे विचार करता है वैसा स्वयं बना रहता है वह नि:संदेह बात है। विचार मनुष्य का सूक्ष्म जीवन है तो कार्यकरण उसका स्थूल रूप। मनुष्य का मन एक समुद्र सरीखा है, जिसमें कि विचार की तरंगे निरंतर चलती रहती हैं। पूर्व क्षण में कोई एक विचारों वाला होता है तो उत्तर क्षण में कोई और दूसरा। जैसे किसी को देखते ही विचारता है कि मैं इसे मार डालू परन्तु उत्तरण क्षण में विचार सकता है कि अरे मैं इसे क्यों मारूं- इसने मेरा क्या बिगाड़ किया है? यह अपने रास्ते है तो  कर्तव्य पथ प्रदर्शन मैं अपने रास्ते इत्यादि हां, जबकि यह बुरा है, काला है, देखने में भद्दा है, मेरे सामने क्यों आया? यह मारा जाना चाहिये, ऐसी अनेक क्षणस्थायी एकसी विचारधारा बनी रहती है, तब उसी के अनुसार बाह्य चेष्टा भी होने लगती है। आंखे लाल हो जाती हैं, शरीर कांपने लगता है। वचन से कहता है इसे मारो, पकड़ो, भागने न पावे एवं स्वयं उसे मारने में प्रवृत्त होता है तो आम लोगों कहने लगते हैं कि यह हिंसक है, हत्यारा है, इस बेचारे रास्ते चलते को मारने लग रहा है।
     
    हां, यदि कहीं वही चित्त कोमलता के सम्मुख हुआ तो उपर्युक्त विचारों के बदले वहां इस प्रकार के विचार हो सकते हैं कि अहो ! देखो यह कैसा गरीब है, जिसके कि पास खाने को अन्न ओर पहनने को कपड़ा भी नहीं है। जिससे कि इसकी यह दयनीय दशा हो रही है। मैंने तो अभी खाया है, ये रोटियां बची हुई है इसे दे देता हूं ताकि यह खाकर पानी पी ले। तथा मेरे पास अनेक धोती और कुरते हैं उनमें से एक-एक इसे दे दें, सो पहन ले तो अच्छा ही है एवं मैंने तो नया खांचा बना ही लिया है, वह पुराना खांचा जो पड़ा है इसे दे दें।
     
    पानी की बाढ़ आ जाने से सड़क पर गड्ढे पड़ गये हैं, जिससे आने जाने वालों को कष्ट होता देखकर सरकार की तरफ से उसकी मरम्मत का काम चालू है जहां कि काम करने को मैं जाया करता हूं वहीं इसे भी ले चलू, ताकि यह भी धन्धे पर लग जावे तो ठीक ही है। यद्यपि इन विचारों को कार्यान्वित करने में प्रासंगिक प्राणी वध होना संभव ही नहीं बल्कि अवश्यम्भावी है फिर भी ऐसा करने वाला हिंसक नहीं किन्तु दयालु है। क्योंकि वह अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है अपने से होने योग्य एक गरीब भाई की मदद कर रहा है। उसके कष्ट को दूर करने में समुचित सहयोग दे रहा है। प्राणि वध तो उसके ऐसा करम में होता है सो होता है वह क्या करें? वह उसका उत्तरदायी नहीं है। मनुष्य अपने करने योग्य कार्य करे। उसमें भी जो जीव वध हो उसके द्वारा भी यदि हिंसक माना जावे तब तो फिर कोई भी अहिंसक हो ही नहीं सकता। क्योंकि आहार निहार और विहार जैसा क्रिया तो जब तक छद्मस्थ अवस्था रहती है तब तक साधु महात्मा लोगों को भी करनी ही पड़ती है। जिसमें जीव वध हुए बिना नहीं रहता अत: यही मानना पड़ता है कि जहां जिसके विचार जीव मारने के हैं, वहीं वह हिंसक, हत्यारा या पापी है, किन्तु जिसके विचार किसी को मारने के नहीं है और उसके समुचित आवश्यक कार्य करने में कोई जीव यदि मर भी जाता है तो वह हिंसक नहीं है।
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अहिंसा की आवश्यकता
     
    जैसे पापों में सबसे मुख्य हिंसा है वैसे ही धर्माचरणों में सबसे पहला नम्बर अहिंसा का है। जिस किसी के दिल में हिंसा से परहेज या अहिंसा भाव नहीं है तो समझ लेना चाहिये कि वहां सदाचार का नामोनिशान भी नहीं है। अहिंसा का सीधा सा अर्थ है, किसी भी प्राणी का वध नहीं करना। जीना सबको प्रिय है, मरना कोई नहीं चाहता। अतः अहिंसा कम से कम अपने आपके लिये सबको अभीष्ट है। जो खुद अहिंसा को पसन्द करे परन्तु औरों के लिये हिंसामय प्रयोग करे उसे प्रकृति मंजूर नहीं करती, रूष्ट ही रहती है। जिससे कि विप्लव मचाता है जैसा कि प्रायः आजकल देखने में आ रहा है।
     
    आज का अधिकांश मानव स्वार्थ के वश होकर दूसरों को बरबाद करने की ही सोचता रहता है। किसी ने तो टेलीफोन का उद्घाटन करके हलकारे की रोजी पर कुठाराघात किया है तो कोई खरादि के पुतलों द्वारा लिखा पढ़ी का काम लेना बताकर क्लर्क लोगों की आजीविका का मूलोच्छेद करने जा रहा है। किसी ने कूकर चूल्हा खड़ा करके अपने आप खाना बनाना बताकर पूंजीवादियों की पीठ ठोकते हुये बिचारे खाना बनाने वाले रसोईदारों का बेकार बनाने पर कमर कसली है। इसी प्रकार रोज एक से एक नई तजबीज खड़ी की जा रही है। जिनसे गरीबों के धन्धे छिनते जा रहे है और धनवान लोग फैशनबाज आराम-तलब एवं लापरवाह होते जा रहे हैं।
     
    बन्धुओं ! जरा आप ही सोचकर कहिये कि उपर्युक्त बातों का और फिर हाल ही क्या होता है? किस लिए ऐसा किया जाता है या होता है? क्या काम करने वाले लोगों की कमी है? किन्तु नहीं। क्योंकि किसी प्रकार के काम करने वाले की बाबत आप आवश्यकता निकाल कर देखिये कि आपके पास एक नहीं बल्कि पचासों प्रार्थना-पत्र आ पहुंचेंगे कि आपके यहां अमुक कार्य करने मैं आ रहा हूं, सिर्फ आपकी आज्ञा आ जानी चाहिये इत्यादि। हां, यह जरूर कहा जा, सकता है कि नये-नये आविष्कारों को जन्म दिये बिना विज्ञान की तरक्की नहीं हो सकती, परन्तु वह विज्ञान भी किस काम का जो समाज को भूखों मारने का कारण बन कर घातक सिद्ध हो रहा हो। वह जंगली जीवन भी अच्छा जहां कि कम से कम और कुछ भी नहीं तो फल फूल तो खाने को मिल जावें तथा वृक्षों के पत्ते तन ढांकने को मिल जावें।
     
    वह महलों का निवास किस काम का जहां पर चकाचौंध में डालने वाले अनेक प्रकार के दृश्य होकर भी भूखे के लिये पानी नदारत हो, बल्कि जहां अपना खाना ले जाकर भी खाया जाता हो तो महल मैला हो जाने के भय से छीन कर फेंक दिया जावे। मेरी समझ में आज का विज्ञान भी ऐसा ही है जो हमें अनेक प्रकार की आश्चर्यकारी चीजें तो अवश्य देता है, परन्तु इसने आम जनता की रोटियां छीन ली हैं ओर छीनता ही जा रहा है।
     
    कहीं राकेट बनाकर उड़ाने में समय खोया जा रहा है तो कहीं अणुबम के परीक्षण में जनता के धन और जीवन को बरबाद किया जा रहा है। सुना है कि एक अणुबम को तैयार करने में सत्रह अरब रुपया खर्च होता है। जिसका कि निर्माण जन-संहार के लिये होता है। द्वितीय महायुद्ध के समय अमेरिका ने जापान पर अणुबम का प्रयोग किया था। जिसकी सताई हुई जनता आज तक भी नहीं पनप पाई है। अभी-अभी परीक्षण के हेतु एक बम समुद्र में डाला गया जिससे ऋतु वैपरीत्य होकर कितनी बरबादी हो रही है, यह पाठकों के समक्ष में है। मतलब यह है कि विज्ञान के साथ-साथ अगर अहिंसा की भावना भी बढ़ती रहे तब तो विज्ञान गुणकारी हो किन्तु आज तो परस्पर विद्वेषभाव अहंकार आदि की बढ़वारी होती जा रही है। अत: विज्ञान तरक्की पर होकर भी घातक होता जा रहा है।
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    नौका पार में,
    सेतु-हेतु मार्ग में,
    गुरु-साथ दें।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मानव जीवन इस भूतल पर उत्तम सब सुखदाता है।
    जिसको अपनाने से नर से नारायण हो पाता है।
    गिरि में रत्न तक्र में मक्खन ताराओं में चन्द्र रहे।
    वैसे ही यह नर जीवन भी जन्म जात में दुर्लभ है ॥१॥
     
    फिर भी इस शरीरधारी ने भूरि-भूरि नर तन पाया।
    इसी तरह से महावीर के शासन में है बतलाया॥
    किन्तु नहीं इसके जीवन में कुछ भी मानवता आई।
    प्रत्युत वत्सलता के पहले खुदगर्जी दिल को भाई ॥२॥
     
    हमको लडडू हों पर को फिर चाहे रोटी भी न मिले।
    पड़ौसी का घर जलकर भी मेरा तिनका भी न हिले॥
    हम सोवें पलंग पर वह फिर पराल पर भी क्यों सोवे।
    हमको साल दुसाले हों, उसको चिथड़ा भी क्यों होवे ॥३॥
     
    मेरी मरहम पट्टी में उसकी चमड़ी भी आ जावे।
    रहूँ सुखी मैं फिर चाहे वह कितना क्यों न दुःख पावे॥
    औरों का हो नाश हमारे पास यथेष्ट पसारा से।
    अमन चैन हो जावे ऐसी ऐसी विचार धारा से ॥४॥
     
    बनना तो था फूल किन्तु यह हुआ शूल जनता भर का।
    खून चूसने वाला होकर घृणा पात्र यों दर दर का॥
    होनी तो थी महक सभी के दिल को खुश करने वाली।
    हुई नुकीली चाल किन्तु हो पद पद पर चुभने वाली ॥५॥
     
    होना तो था हार हृदय का कोमलता अपना करके।
    कठोरता से रुला ठोकरों में ठकराया जा करके॥
    ऊपर से नर होकर भी दिल से राक्षसता अपनाई।
    अपनी मूँछ मरोड़ दूसरों पर निष्ठुरता दिखलाई ॥६॥
     
    लोगों ने इसलिए नाम लेने को भी खोटा माना।
    जिसके दर्शन हो जाने से रोटी में टोटा जाना॥
    कौन काम का इस भूतल पर ऐसे जीवन का पाना।
    जीवन हो तो ऐसा जनता, का मन मोहन हो जाना ॥७॥
     
    मानवता है यही किन्तु है कठिन इसे अपना लेना,
    जहाँ पसीना बहे अन्य का अपना खून बहा देना॥
    आप कष्ट में पड़कर भी साथी के कष्टों को खोवे।
    कहीं बुराई में फँसते को सत्पथ का दर्शक होवे ॥८॥
     
    पहले उसे खिला करके अपने खाने की बात करे।
    उचित बात के कहने में फिर नहीं किसी से कभी डरे॥
    कहीं किसी के हकूक पर तो कभी नहीं अधिकार करे।
    अपने हक में से भी थोड़ा औरों का उपकार करे ॥९॥
     
    रावण सा राजा होने को नहीं कभी भी याद करे।
    रामचन्द्र के जीवन का तन मन से पुनरुद्धार करे॥
    जिसके संयोग में सभी के दिल को सुख साता होवे।
    वियोग में दृगजल से जनता भूरि भूरि निज उर धोवे ॥१०॥
     
    पहले खूब विचार सोचकर किसी बात को अपनावे।
    तब सुदृढ़ाध्यवसान सहित फिर अपने पथ पर जम जावे॥
    घोर परीषह आने पर भी फिर उस पर से नहीं चिगे।
    कल्पकाल के वायुवेग से,भी क्या कहो सुमेरु डिगे ॥११॥
     
    विपत्ति को सम्पत्ति मूल कह कर उसमें नहि घबरावे।
    पा सम्पत्ति मग्न हो उसमें अपने को न भूल जावे॥
    नहीं दूसरों के दोषों पर दृष्टि जरा भी फैलावे।
    बन कर हंस समान विवेकी गुण का गाहक कहलावे॥१२॥
     
    कृतज्ञता का भाव हृदय अपने में सदा उकीर धरे।
    तृण के बदले पय देने वाली गैय्या को याद करे॥
    गुरुवों से आशिर्लेकर छोटों को उर से लगा चले।
    भरसक दीनों के दुःखों को हरने से नहि कभी टले॥ १३॥
     
    नहीं पराया इस जीवन में जीने के उजियारे हैं।
    सभी एक से एक चमकते हुये गमन के तारे हैं।
    मृदु प्रेम पीयूष पान बस एक भाव में बहता हो।
    वह समाज का समाज उसका, यों हो करके रहता हो॥ १४॥
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    यह कृति आचार्य ज्ञानसागरजी ने उस समय सन् १९५६ में लिखी जब वे क्षुल्लक अवस्था में थे। यह कृति महत्त्वपूर्ण इसलिए नहीं कि इसके लेखक, वर्तमान के आचार्य विद्यासागरजी महाराज के गुरु हैं बल्कि यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमान में भारत जहाँ जा रहा है, यदि इस पुस्तक के अनुसार चला होता तो स्वतंत्रता के बाद यह देश अपने इतिहास की स्वर्णिम अवस्था को पुनः प्राप्त कर चुका होता। अब भी अवसर है यदि देशवासी इन नीतियों का अनुकरण करें, तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश सोने की चिड़िया की ख्याति को पुनः प्राप्त कर पायेगा। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि यह कृति इसी वर्ष पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज व संघ के देखने, पढ़ने में आयी जबकि इसमें उल्लेखित विषयों को, आचार्य श्री विगत २५ वर्षों से प्रमुखता से प्रवचन में दे रहे हैं।
     
    भूमिका
     
    पूज्य क्षुल्लक श्री १०५ ज्ञानभूषणजी महाराज ने ‘पवित्र मानव जीवन’ काव्य लिखकर समाज का भारी कल्याण किया है। हम सुखी किस प्रकार हों, सामाजिक नाते से हमारा व्यवहार एक दूसरे से कैसे हो, हमारा आहार व्यवहार क्या हो ? हम किस प्रकार स्वस्थ रहें ? सामाजिक आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जा सके? श्रमजीवी तथा पूँजीवादी व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव होता है और समाज का किस प्रकार शोषण किया जाता है, इस ग्रन्थ में विस्तार पूर्वक किया गया है। गृहस्थधर्म के बारे में विवेचन करते हुए श्री क्षुल्लकजी लिखते हैं -
     
    ‘‘प्रशस्यता सम्पादक नर हो, मुदिर और नारी शम्पा।
    जहाँ विश्व के लिये स्फुरित होती हो दिल में अनुकम्पा॥”
     
    जो व्यक्ति आज भी महिलाओं को समान अधिकार देने के विरुद्ध हैं, उनकी ओर संकेत करते हुए लिखते हैं-
     
    महिलाओं को आज भले ही व्यर्थ बताकर हम कोशे।
    नहीं किसी भी बात में रही वे हैं पीछे मरदों से॥
    जहाँ कुमारिल बातचीत में हार गया था शंकर से।
    तो उसकी औरत ने आकर पुनः निरुत्तर किया उसे॥
     
    इसके अतिरिक्त माता-पिता का बच्चों के प्रति कर्तव्य, पुरातनकालीन तथा वर्तमान शिक्षाप्रणाली का तुलनात्मक विवेचन तथा गृहस्थाश्रम की मर्यादाओं पर बड़े सुन्दर और अनोखे ढंग से प्रकाश डाला गया है। यदि हम यों कहें कि भारतीय संस्कृति तथा आम्नाय के महान् ग्रन्थों के सार को सरल और सुबोध काव्य में रचकर समाज का मार्गदर्शन किया है तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। हम आशा करते हैं कि इस ग्रन्थ का अध्ययन करके पाठक जहाँ अपना जीवन सफल करेंगे, वहाँ समाज को सुखी बनाने के लिये इसका अधिक से अधिक प्रचार करेंगे।
     
    देवकुमार जैन
    सम्पादक - ‘मातृभूमि’ हिसार
    प्रथम संस्करण से साभार सन् १९५६ (वि. सं. २०१३)
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दृष्टि पल्टा दो,
    तामस समता हो,
    और कुछ ना…
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पु. आचार्य श्री मूकमाटी महाकाव्य में कहा है 
    मिट्टी पानी और हवा, सौ रोगों की एक दवा 
    प्रकृति से जुड़े अध्यात्मिक संत आचार्य श्री का आशीष व प्रेरणा दे 
    आपको स्वस्थ तन, स्वस्थ मन
    अपनाएँ : प्राकृतिक चिकित्सा "लपेट" स्वस्थ हो, भोजन कर सको भरपेट
     
    साफा लपेट : तनाव दूर करे
    विधि : 6 इंच चौड़ी व 2 मीटर लंबी सूती पट्टी, इस प्रकार की 2-3 पट्टियों को गोल घड़ी कर, पानी में गीला कर निचोड़ लें। इस पट्टी को (नाक का हिस्सा छोड़कर) समस्त चेहरे पर लपेट लें।
     
    लाभ : इस पट्टी के प्रयोग से मस्तिष्क की अनावश्यक गर्मी कम होकर मस्तिष्क में अदभुत ठंडक व शांति का अनुभव होता है, साथ ही सिरदर्द व कान के रोग दूर होते हैं, मन व हृदय भी शांत बना रहता है।
     
     
    गले की लपेट : गले के रोगों में चमत्कारिक लाभ
    गले रोगों में चमत्कारिक परिणाम देने वाली यह लपेट है इसे करने से तुरन्त लाभ होना प्रारंभ हो जाता है। गले में हो रही खराश, स्वर यंत्र की सूजन (टांसिल) में इसके प्रयोग से लाभ होता है। वास्तव में गले की लपेट पेडू की लपेट व वास्ति प्रदेश की लपेट व अन्य लपेट एक तरह से गर्म ठण्डी पट्टी के ही समान है। विशेष तौर पर खाँसी व गला दुखने की अवस्था में इसे करने से तुरन्त लाभ हो जाता है और जब ये विकार खासतौर पर रोगी में जब उपद्रव मचाते हैं तो इस लपेट को करने से तुरन्त लाभ मिलता है व नींद भी अच्छी आ जाती है क्योंकि उक्त विकार की वजह से बैचेनी से जो हमें मुक्ति मिल जाती है।
     

     
    विधि : 6 इंच चौड़ा व करीब डेढ़ मीटर लम्बा सूती कपड़ा गीला कर अच्छी तरह निचोड़ दें। इसे गले पर लपेट दें। इस गीली लपेट पर गर्म कपड़ा (मफलर) अच्छी तरह से लपेट कर अच्छी तरह पेक कर दें ताकि गीला कपड़ा अच्छी तरह से ढंक जाए। इस लपेट को 1 से डेढ़ घंटे तक किया जा सकता है किन्तु रोग की बढ़ी हुई अवस्था में इसे अधिक समय तक भी कर सकते हैं। लपेट की समाप्ति पर गले को गीले तौलिये से अच्छी तरह स्वच्छ कर लें।
     
     
    छाती की लपेट : कफ ढीला करे
    किसी भी अंग को ठंडक प्रदान करने के लिए पट्टी का प्रयोग किया जाता है। इस पट्टी के प्रयोग से रोग ग्रस्त अंग पर रक्त का संचार व्यवस्थित होता है। इसके साथ ही श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। इस पट्टी के प्रयोग से छाती में जमा कफ ढीला होता है। हृदय को बल प्राप्त होता है।
     

     
    विधि : 7-10 इंच चौड़ा, 3/2 मीटर लंबा गीला सूती कपड़ा निचोड़ कर छाती पर लपेटे।  इसके ऊपर गर्म कपड़ा (बुलन/फलालेन) लपेट दें।
     
    लाभ : इससे हृदय की तीव्र धड़कन सामान्य हो जाती है, क्योंकि ठंडे पानी की पट्टी हृदय पर लपेटने से इस क्षेत्र का रक्त संचार व्यवस्थित हो जाता है। साथ ही विजातीय द्रव्य पसीने के माध्यम से बाहर हो जाते हैं। इस प्रयोग द्वारा हृदय की धड़कन सामान्य हो जाती है। छाती में जमा कफ ढीला हो जाता है। यह प्रयोग कफ रोग में लाभकारी है।
     
    विशेष सावधानी : पट्टी के पश्चात् हथेलियों से छाती की हल्की मसाज कर उसे गर्म कर लेना चाहिए, ताकि शरीर का उक्त अंग अपने सामान्य तापमान पर आ जाए।
     
     
    पेडू की लपेट : पेट रोग में चमत्कारी लाभ
    पेडू की पट्टी समस्त रोगों के निदान में सहायक है। विशेषकर पाचन संस्थान के रोगों के निदान में रामबाण सिद्ध होती है। इससे पेट के समस्त रोग, पेट की नई पुरानी सूजन, पुरानी पेचिश, अनिद्रा, ज्वर, अल्सर, रीढ़ का दर्द व स्त्रियों के प्रजनन अंगों के उपचार में भी सहायक है। इसके अतिरिक्त यह किडनी व लीवर के उपचार में विशेष लाभ पहुँचाती है।
     

     
    विधि : एक फीट चौड़ी व 1 से 1.5 मीटर लंबी पतले सूती कपड़े की पट्टी को पानी में भिगोकर निचोड़े व पूरे पेडू व नाभि के दो इंच ऊपर तक लपेटकर ऊपर से गर्म कपड़ा लपेट लेवें।
     
    समयावधि : उक्त पट्टी खाली पेट सुबह शाम 2-2 घंटे तक लगा सकते हैं। रात्रि को सोने के पूर्व लगा सकते हैं। रात-भर पट्टी लगी रहने दें। भोजन के 2 घंटे बाद भी पट्टी लगा सकते हैं। इस पट्टी को लगाकर ऊपर से कपड़े पहनकर अपने नियमित कार्य भी कर सकते हैं। पट्टी लगाने के बाद जब पट्टी हटाएँ तो गीले तौलिए अथवा हथेली से पेडू की हल्की मसाज कर गर्म कर लें।
     
    विशेष सावधानी : शीत प्रकृति के रोगी इस पट्टी के पहले पेडू को हाथों से अथवा गर्म पानी की थैली से गर्म कर पट्टी लपेटें। शीत प्रकृति के व्यक्ति सिर्फ 2 घंटे के लिए इस पट्टी का प्रयोग कर सकते हैं।
     
     
    वस्ति प्रदेश की लपेट : जननांगों में चमत्कारिक लाभ
    पेडू के विभिन्न रोग, पुरानी कब्ज, मासिक धर्म में अनियमितता, प्रजजन अंगों के रोग, जननेंद्रीय की दुर्बलता व अक्षमता में चमत्कारिक लाभ देने वाली लपेट वस्ति प्रदेश की लपेट है। इसके नियमित प्रयोग से उक्त रोग ही नहीं वरन् अनेक रोगों में लाभ होता है।
     

     
    विधि : एक भीगा कपड़ा निचोड़कर वस्ति प्रदेश पर लपेट दें। यदि वस्ति प्रदेश पर ठंडक का अहसास हो रहा हो तो गर्म पानी की थैली से उक्त अंग को गर्म अवश्य करें। अब इस लपेट पर गर्म कपड़ा लपेट दें। उक्त प्रयोग को एक से डेढ़ घंटा किया जा सकता है।
     
    मुख्य सावधानी : इस पट्टी को एक बार उपयोग करने के पश्चात साबुन अच्छी तरह से लगाकर धोकर धूप में सुखाकर पुनः इस पट्टी का प्रयोग किया जा सकता है। चूंकि पट्टी विजातीय द्रव्यों को सोख लेती है, अतः ठीक प्रकार से पट्टी की सफाई नहीं होने से चर्म रोग हो सकता है। उक्त पट्टी को सामान्य स्वस्थ व्यक्ति सप्ताह में एक दिन कर सकते हैं।
     
    लाभ : पेट के रोगों में चमत्कारिक लाभ होता है।
     
     
    पैरों की लपेट : खाँसी में तुरन्त लाभ पहुंचाने वाली पट्टी
    इस लपेट के प्रयोग से सारे शरीर का दूषित रक्त पैरों की तरफ खींच जाता है। फलस्वरुप ऊपरी अंगों का रक्ताधिक्य समाप्त हो जाता है। इस वजह से शरीर के ऊपरी अंगों पर रोगों द्वारा किया आक्रमण पैरों की ओर चला जाता है। अतः मेनिनजाईटिस, न्यूयोनिया, ब्रोंकाइटीज, यकृत की सूजन व गर्भाशय के रोग की यह सर्वप्रथम चिकित्सा पद्धति है।
     

     
    विधि : एक भीगे हुए और अच्छी तरह निचोड़े कपड़े की पट्टी को रोल बना लें, एड़ी से लेकर जंघा तक इस कपड़े को लपेट दें। इस पट्टी पर गर्म कपड़ा अच्छी तरह लपेट दें ताकि सूती कपड़ा अच्छी तरह से ढंक जाये। यदि पैरों में ठंडक हो तो गर्म पानी की थैली से पैरों को गर्म कर लें। ध्यान रहें रोगी के सिर पर ठंडे पानी की नैपकीन से सिर ठंडा रहे। इस प्रयोग को एक घंटे तक करें। किन्तु रोगी को आराम महसूस हो तो इस प्रयोग को अधिक समय तक किया जा सकता है। इस प्रयोग को रोगों के समय गला दुखने, खाँसी की तीव्रता की अवस्था में कर चमत्कारिक लाभ पाया जा सकता है। इस प्रयोग को करने के पश्चात अन्त में तौलिये से सम्पूर्ण शरीर को घर्षण स्नान द्वारा स्वच्छ कर लें।
     
     
    पूर्ण चादर लपेट : मोटापा दूर करें
    सामग्री : अच्छा मुलायम कम्बल जिसमें हवा का प्रवेश न हो सके एक डबल बेड की चादर, जिसमें सारा शरीर लपेटा जा सके, आवश्यकतानुसार मोटा या पतला एक तौलिया छाती से कमर तक लपेटने के लिए।
     

     
    विधि : बंद कमरे में एक खाट पर गद्दी बिछा लें तथा उसके ऊपर दोनों कम्बल बिछायें सूती चादर खूब ठंडे पानी में भिगोकर निचोड़ने के बाद कम्बल के ऊपर बिछा दें। सूती चादर के ऊपर तौलिया या उसी नाप का दूसरा कपड़ा गीला करके पीठ के निचले स्थान पर बिछा दें। यह लपेट पूर्ण नग्न अवस्था में होना चाहिए। लेटते समय यह ध्यान रखें कि भीगी चादर को गले तक लपेटे। अब मरीज के सब कपड़े उतारकर उसे बिस्तर पर लिटा दें। लेटने के बाद तुरन्त सबसे पहले तौलिए को दोनों बगल में से लेकर कमर तक पूरे हिस्से को लपेट देना चाहिए। हाथ तौलिए के बाहर रहे, यह नहीं भूलना चाहिए। दाहिनी ओर लटकती हुई चादर से सिर की दाहिनी ओर, दाहिना कान, हाथ व पैर पूरी तरह ढंक देने चाहिए। इसी तरह बायीं ओर सिर, कान, हाथ तथा पैर चादर के बाएँ छोर से ढंकने चाहिए। चादर लपेटने के बाद नाक तथा मुँह को छोड़कर कोई भी भाग बाहर नहीं रहना चाहिए। अब चादर के ठीक ऊपर पूरी तरह ढंकते हुए पहला कम्बल और बाद में सबसे ऊपर वाला कम्बल लपेटा जाए। इस स्थिति में रोगी को 30-45 मिनिट रखें। ठंड ज्यादा लगे तो रोगी को बगल में गर्म पानी की बॉटल रख सकते हैं। चादर लपेट की अवधि रोगी की अवस्था के अनुसार घटा-बढ़ा सकते हैं।
     
    लाभ : चादर लपेट के प्रयोग से रोगी विजातीय द्रव्य के जमाव से मुक्त होकर आरोग्य प्राप्त करता है।
     
     
    पेट की गर्म-ठंडा सेक : अम्लता (एसीडिटी) दूर करे
    सामग्री : एक बर्तन में गर्म पानी, दूसरे बर्तन में ठंडा पानी व दो नेपकीन।
     
    विधि : गर्म पानी के बर्तन में नेपकीन को गीला कर पेडू पर तीन मिनिट तक रखे। अब गर्म पानी का नेपकीन हटा दें। अब ठंडे पानी में गीला किया नेपकीन रखें। इस प्रकार क्रमशः तीन मिनिट गर्म व एक मिनिट ठंडा नेपकीन रखें। इस प्रक्रिया को 15 से 20 मिनिट तक करें। ध्यान रहे कि इस प्रक्रिया का प्रारंभ गर्म पानी की पट्टी से करें व क्रिया की समाप्ति ठंडे पानी की पट्टी से करें।
     
    लाभ : इस पट्टी के प्रयोग से पेडू का रक्त का संचार तेज होगा व गर्म-ठंडे के प्रयोग से आँतों का मल ढीला होकर पेडू मल के अनावश्यक भार से मुक्त हो जाएगा।
     
    सावधानी : पेट में छाले, हायपर एसिडिटी व उच्च रक्तचाप की स्थिति में इसे कदापि न करें।
     
    विशेष टीप : गर्म पानी के नेपकीन के स्थान पर गर्म पानी की बॉटल अथवा रबर की थैली का प्रयोग किया जा सकता है।
     
    साभार :-  125 स्वस्थ व निरोगी रहेने का रहस्य डॉ. जगदीश जोशी एवं सुनीता जोशी
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ऊधम नहीं,
    उद्यम करो बनो,
    दमी आदमी |  
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    है का होना ही,
    द्रव्य का स्वभाव है,
    सो सनातन।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सिद्ध घृत से,
    महके, बिना गन्ध,
    दुग्ध से हम।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    युवा कपोल,
    कपोल-कल्पित है,
    वृद्ध-बोध में।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मनोनुकूल ,
    आज्ञा दे दूँ कैसे दूँ,
    बँधा विधि से |
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पराश्रय से,
    मान बोना हो, कभी,
    दैन्य-लाभ भी।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  24. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कपूर सम,
    बिना राख बिखरा,
    सिद्धों का तन।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  25. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अशुद्धि मिटे ,
    बुद्धि की वृद्धि न हो,
    विशुद्धि बढ़े।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
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