Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • entries
    514
  • comments
    152
  • views
    28,087

Contributors to this blog

संदेह होगा - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २


संयम स्वर्ण महोत्सव

2,802 views

haiku (2).jpg

 

संदेह होगा,

देह है तो, देहाती !

विदेह हो जा |

 

भावार्थ - देह का अर्थ शरीर है और केवली भगवान् ने औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण; ये पाँच प्रकार के शरीर बताये हैं जो संसार भ्रमण के मुख्य कारण हैं । पौद्गलिक और पर-रूप शरीर में अपनत्व मानकर जीव स्वयं के वास्तविक स्वभाव को भूल जाता है । उसे अपने सत्यार्थ स्वरूप पर भी संदेह होने लगता है । अतः वह शरीरगत अनेक प्रपंचों में फँसकर गहनतम दुःखों से जूझता है । ऐसी देह में निवास करने वाले देहवान आत्मा को आचार्य देहाती का सम्बोधन करते हुए समझा रहे हैं कि हे देहाती ! देह का छोड़ने के उपायभूत रत्नत्रय की आराधना कर ताकि पर पदार्थों से अत्यन्त भिन्न निर्मल आत्मस्वरूप को प्राप्त कर चिरकाल तक स्वाश्रित सुख में निमग्न हो सके । 

आर्यिका अकंपमति जी 

हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।

 

आओ करे हायकू स्वाध्याय

  • आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं।
  • आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं।
  • आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं।

लिखिए हमे आपके विचार

  • क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं।
  • इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?

 

6 Comments


Recommended Comments

हे आत्मन यदि देह में स्थित हो तो निश्चित रूप से पल पल संदेह तुम्हे घेरेगा इसीलिए निज के अमूर्त स्वरुप में स्थित होकर विदेही बन जाओ

  • Like 2
Link to comment

कोटिशः नमोस्तु गुरुदेव को। 

अर्थ-जब तक इस देह में रहोगे भटकन, दुख, संताप बने रहेंगे। देह में रमने वाले अगर चिर आनंद चाहिये तो ऐसा जतन कर देह के चक्कर से पीछा छूट जाये।

गुरुदेव के श्री चरणों मे मेरा एक हाइकू समर्पित है-


और अधिक
अब और कितना
अंतहीन है।

  • Like 2
Link to comment

संदेह आदि अविद्या और अज्ञान देहाभिमान से ही उत्पन्न होता है I इसलिए देह के बंधनों से मुक्त होकर विदेह बन जाओ I सतत संतोष में रहो! 

  • Like 1
Link to comment

देह

108 आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में सत-सत नमन-वंदन, नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर ???

 

संसार के 

सब बंधनो के

मोह-माया 

जाल से 

 

प्राणी सदा

बेचैन  रहता 

मान खुद को

देहमय 

 

भ्रम में 

सदा रहता

भटकता, भूल

निज आत्मा

 

अब

समय है

चेत जा, ध्या 

अनित्य भावना 

 

अशरणमय 

इस जगत में 

स्व-आत्मा ही

शुभ शरण है

 

दुखमयि

सुख आभासी

जगत की

छणिक निधियाँ

 

चाह प्राणी

त्याग दे

गुरु चरण में 

शीश धरकर 

 

आत्म कल्याण

की शुभ राह

ले, मोक्ष रूपी

लक्ष्मी वर ले

 

देह से विदेह जा

प्रभु भक्ति वश 

आत्मा के सुरमयि 

स-हृदय गीत गा।।

 

सविनय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुवर 

अभिषेक जैन सा-परिवार 

 

 

 

 

 

 

 

Link to comment

जीव अरुपी और ज्ञानमय है शरीर रुपी और जड़ है। मिथ्यातवी हमेशा यही मानता है कि जीव और देह एक ही है। लेकिन जैसे जैसे जीव का उपयोग अशुभ से शुभ की और परिनमन करता है तो सन्देह होता है जीव और काया के एकरूप पर धीरे-धीरे सन्देह के बादल छँट जाते है और जो देह देहाती लगती है वो विदेशी अथार्थ पराई दिखने लगती है। अब देह से मोह छूट कर भीतर की और दृष्टि होने लगी है। जीव का लक्षण उपओग है। वह निरन्तर अशुभ , शुभ और शुद्ध रुप से परिनमन करता है। कहना न होगा अब विदेह हो जा अथार्थ देह से परे शुभ उपयोग मे समय बिता जो शुद्ध उपयोग मे परिवर्तित हो जाए।

Link to comment

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...