शिथिलाचार विनाशक - संस्मरण क्रमांक 44
☀☀ संस्मरण क्रमांक 44☀☀
? शिथिलाचार विनाशक ?
मुनिराज छहकाय के जीवों की हिंसा से विरक्त होते हैं,आधुनिक युग में विद्युत प्रयोग से उत्पन्न अनेक साधन उपलब्ध होते हैं। आचार्य भगवन रात्रि में पठन, लेखन आदि क्रिया ना स्वयं करते ना संघस्थो को करने के लिए अनुमोदित करते हैं।
नैनागिरी शीतकाल में एक बार संघस्थ नव दीक्षित शिष्य ने आचार्य भगवंत से निवेदन करते हैं कि- रात्रि प्रतिक्रमण हम लोग रात में पढ़ नहीं सकते हैं इसलिए आपकी आज्ञा चाहते हैं कि बाहर प्रकाश उत्पन्न करने वाली लालटेन हैं,क्या उसके प्रकाश में बैठकर प्रतिक्रमण कर सकते हैं।
आचार्य भगवंत ने कहा- प्रातः कालीन लेना चाहिए।शिष्यों ने कहा प्रातः आप अन्य विषयों को कक्षा में पढ़ाते हैं,बाद में चर्या का समय हो जाता है इसलिए समय नहीं मिलता।
आचार्य भगवान ने कहा- प्रतिक्रमण आधा आहार से पहले कर लिया करो आधा आहार के बाद कर लेना।
शिष्यों ने मन में जान लिया कि दीपक के प्रकाश में पढ़ने की आज्ञा नहीं है।सब अपने स्थान पर चले गए।दो माह बाद वे सभी आकर कहते हैं कि अब हमें प्रतिक्रमण याद हो गया। 2 माह संबंधी दोषों के प्रायश्चित चाहते हैं....
आचार्य भगवन ने कहा- अभी तो आप 2 महीने की दोषों के ही भागी बने हैं।यदि रात में पढ़ने की आज्ञा देते,तो जीवन पर्यंत दोष लगता रहता।
? अनासक्त महायोगी पुस्तक से साभार ?
✍ मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महामुनिराज
धन्य हैं ऐसे आचार्य भगवंत जो अपने संघ में बिल्कुल भी शिथिलाचार का पोषण नहीं करते, अपने गुरु (ज्ञान सागर) जी को जो वचन दिया था कि-आपका संघ निरंतर मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ता जाएगा, राग द्वेष मोह आदि विकारी भाव संघ में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।संघ किसी प्रकार से भी शिथिलाचार का पोषण नहीं करेगा। आचार्य भगवन अपने गुरु को दिए हुए उसी वचन का पालन करते हुए स्वयं किसी प्रकार के शिथिलाचार को नहीं अपनाया, न ही संघ में शिथिलाचार पनपने दिया और निर्दोष चर्या के द्वारा निरंतर मोक्षमार्ग में आगे बढ़ते जा रहे हैं और निश्चित ही आगामी कुछ ही भवों में मोक्ष रूपी महल को प्राप्त कर लेंगे ऐसे आचार्य भगवान के चरणों में उन्ही के जैसा बनने के लिए, मुक्ति पर्यंत, अनंतानंत नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु............
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