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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सभी को जय जिनेन्द्र,
    हमारे पास बहुत फ़ोन आये - की आपने हमारा उत्तर पढ़ा ही नहीं रहे  |
    हम बिना मेसेज खलो भी उत्तर देख सकते हैं  -  इस चित्र से आपको समझाने का प्रयास करेंगे  हम उत्तर को ऊपर search करते हैं
    सभी के नंबर्स के नाम आ१  A1   A2   ऐसे सेव कर रह हैं - हमे पता नहीं होता की यह किसका नंबर हैं 
     
    फिर हम Random Selection Lucky draw से चयन करते हैं - ऐसे कई तरीके हम इस्तमाल कर रहे हैं 
    सिर्क एक उदाहरण के लिए |
     
     

     
     
    कल येआ परसों से हम सीधे वेबसाइट पे प्रश्न पूछेंगे - आपका उत्तर सही येआ गलत आपको उसी समय पता चल जायेगा 
     
     
     
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    १७ जुलाई २०१८ को जिज्ञासा समाधान में प्रतियोगिता का परिणाम घोषित हुआ 
     

     
     
     
    @namo jain  
    @सजल जैन
    @ManjuJain
     
    आप तीनो को पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं |
     
     
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    *आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के मंगल चातुर्मास कलश की स्थापना पर खजुराहो में प्रथम कलश की बोली 207 कलश पर गई। प्रथम कलश की बोली श्री तरुण जी काला व समस्त काला परिवार निवासी मुम्बई द्वारा ली गई है।श्री तरुण जी काला मुम्बई को प्रथम कलश का सौभाग्य 207 कलश (2 करोड़ 7 लाख) में प्राप्त हुआ
     
    *द्वितीय कलश का सौभाग्य श्री डॉ सुहास शाह जी जैन मुम्बई को 151 कलश (1 करोड़ 51 लाख) में प्राप्त हुआ*
     
    *तृतीय कलश का सौभाग्य 117 कलश (1 करोड़ 17 लाख रुपये) में श्री हुकुम जी काका कोटा बालो को प्राप्त हुआ*
     
    *चतुर्थ कलश का सौभाग्य 108 कलश (1 करोड़ 8 लाख रुपये) में श्री उत्तम चंद्र जी जैन कटनी कोयला बालो को प्राप्त हुआ*
     
    पांचवे कलश की बोली 131 कलश पर गई और यह बोली श्रीमान प्रेमी जी परिवार सतना, कटनी वालो ने ली है। धन्य हो आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय।??????
     
    छठे कलश की बोली 108 कलश पर गई और यह बोली श्रीमान प्रभात जी मुम्बई वालो ने ली है। धन्य हो ऐसे महान आचार्य भक्तो की।
    जय हो आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय।??????
     
    सातवें कलश की बोली गुप्तदान में गई है। धन्य हो ऐसे महान आचार्य भगवान भक्तो की।
    जय हो आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय।??????
     
    आंठवे व अंतिम कलश में दो कलश की बोली सुभाष जी भोपाल वालो ने व बैनाड़ा परिवार वालो ने ली है। धन्य हो ऐसे महान आचार्य भगवान भक्तो की।
    जय हो आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय।??????
     
    नवे कलश की बोली श्रीमान अशोक जी पाटनी निवासी किशनगढ़ राजस्थान वालो द्वारा ली गई है। धन्य हो ऐसे महान आचार्य भगवान भक्तो की।
    जय हो आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की जय।??????
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ऐतिहासिक  मंगल कलश स्थापना से चातुर्मास शुरू
    सम्यकज्ञान, सम्यक चारित्र और दान आपके साथ रहेगा - आचार्य विद्यासागर
    छतरपुर । आध्यात्म एवं पर्यटन नगरी खजुराहो में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का आज से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। कलशस्थापना समारोह में  देश-विदेश से भारी संख्या में उनके अनुयायी यों  ने पर्यटन नगरी खजुराहो पहुंचकर उनका आर्शीवाद लिया। जिला कलेक्टर रमेश भंडारी और उनकी पत्नी ने भी इस मौके पर पहुंचकर आचार्य विद्यासागर जी के चरण पखारे और आर्शीवाद प्राप्त किया। इस मौके पर कलशस्थापना भी की गयी। आज के इस कार्यक्रम में भारी संख्या में जैन समाज सहित अन्य धर्मो के लोग भी शामिल हुए। कलश स्थापना के इस कार्यक्रम का संचालन और निर्देशन बा.ब्र. सुनील भैया अनन्तपुरा वालों द्वारा किया गया। 
    रविवार को दोपहर २ बजे से से तीन प्रकार के कलशों के माध्यम से समाज के श्रावकगण   चातुर्मास की कलश स्थापना हर्सोल्लास के साथ की गयी। प्रथम कलश यानि सबसे बड़े 9 कलश स्थापित किये गये ,मध्यम 27 कलश और सबसे छोटे 54 कलश स्थापित किये किये। ये सभी कलश आचार्य श्री के मुखारविंद से विधिविधान पूर्वक मंत्रो के उच्चा रण से स्थापित हुए,जिसे श्रावकगण बोली लेकर स्थापित किया गया। ये सभी कलश विश्व शांति और विश्व कल्याण के उद्देश्य और  वर्षायोग के निर्विघ्न सम्पन्न होने   की कामना से स्थापित किये जाते है। प्रथम कलश का सौभाग्य तरूण जी काला मुम्बई 2 करोड़ 7 लाख, द्वितीय कलश डॉ. सुभाषशाह जैन मुम्बई 1 करोड़ 51 लाख, तृतीय कलश का सौभाग्य हुकुमचंद्रजी काका कोटा 1करोड़ 17 लाख, चतुर्थ कलश का सौभाग्य उत्तमचंद्र जैन कटनी कोयला वाले 1 करोड़ 8 लाख, पंचम कलश का सौभाग्य प्रेमीजैन सतना वाले 1 करोड़ 31 लाख, छठवां कलश का सौभागय श्री प्रभातजी जैन मुम्बई पारस चैनल करोड़  8 लाख, सातवां कलश ऋषभ शाह सूरत 1 करोड़ 8 लाख, आठवां कलश  पं. सुभाष जैन भोपाल 54 लाख एवं पुष्पा जैन बैनाडा आगरा वाले एवं नौवां कलश का सौभाग्य अशोक पाटनी 2 करोड़ 52 लाख को प्राप्त हुआ। 
    स्थानीय विधायक विक्रम सिंह नाती राजा और नगर परिषद् अध्यक्षा कविता राजे बुंदेला, इंदौर विधायक रमेश मेंदोला  ने भी कलश स्थापना समारोह में आचार्य श्री को श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद प्राप्त किया। 
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि आप सब यहां सम्यकज्ञान, सम्यक चारित्र और दान देकर अगले भव के लिए अपने साथ ले जाने वाले है। आचार्यश्री ने कहा कि लगभग 38 वर्ष पूर्व मै खजुराहो पंचकल्याणक के लिए आया था। यहां कि कमेटी बार-बार खजुराहो के लिए आग्रह करती रही। मैं भी इस बार चलते-चलते यहां पहुंच गया। आचार्यश्री ने कहा कि यहां के राजा छत्रसाल का कुण्डलपुर के बड़े बाबा से गहन संबंध रहा है। राजा छत्रसाल ने बड़े बाबा को जब छत्र चढ़ाया उसके साथ ही उन्हें विजय प्राप्त हुयी। महाराजश्री ने कहा कि व्यक्ति को धन अपने पास श्वास जैसा रखना चाहिए ताजी ग्रहण करें और पुरानी निकालते जाए, सम्पत्ति हाथ का मैल है इसे साफ करते रहें। आचार्यश्री ने कहा कि आप सबका उत्साह सराहनीय है। खजुराहो क्षेत्र के विकास के लिए  अपना योगदान देते रहें। पूर्व में खजुराहो क्षेत्र कमेटी सहित जैन समाज छतरपुर, पन्ना,सतना, टीकमगढ़ सहित एवं बाहर से पधारे अतिथियों ने आचार्यश्री को श्रीफल भेंट किया।
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    खजुराहो । प्रख्यात जैन संत शिरोमणि108 आचार्य विद्या सागर जी महाराज के ससंघ चातुर्मास( वर्षायोग) के कलश की स्थापना आज रविवार 30 जुलाई को दोपहर डेढ़ बजे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी खजुराहों में एक गरिमामयी औऱ भव्य कार्यक्रम में होगी।इस बड़े और अनूठे धार्मिक आयोजन के प्रत्यक्षदर्शी बनने न केवल समीपी क्षेत्रों से वरन देश-विदेश से आचार्यश्री के भक्तजन व श्रद्धालु खजुराहो पहुंचना शुरू हो गए है। 
                आचार्य विद्या सागर महाराज  ससंघ खजुराहो में 14 जुलाई से  विराजमान है।
    पूज्य आचार्यश्री ने बुधवार को ससंघ अपनी चातुर्मास स्थापना शांति नाथ भगवान के समक्ष विधि विधान के साथ कर ली थी।इस दिन संघ के सभी साधुओं ने उपवास भी रखा था। अब आचार्यश्री ससंघ एक निश्चित सीमा बांधकर अब 4 माह तक खजुराहो में रहकर धर्म ध्यान करेगे। 
             आज  रविवार 30 जुलाई को दोपहर 1:30 से तीन प्रकार के कलशों के माध्यम से समाज के श्रावकगण  चातुर्मास की कलश स्थापना हर्सोल्लास के साथ करेंगे। प्रथम कलश यानि सबसे बड़े 9कलश स्थापित किये  जाएंगे ,मध्यम 27 कलश और सबसे छोटे 54 कलश स्थापित किये जायेंगे ।ये सभी कलश आचार्य श्री के मुखारविंद से विधिविधान पूर्वक मंत्रो के उच्चा रण से स्थापित होंगे,जिसे श्रावकगण बोली लेकर स्थापित करेगे।ये सभी कलश विश्व शांति और विश्व कल्याण के उद्देश्य और  वर्षायोग के निर्विघ्न सम्पन्न होने   की कामना से स्थापित किये जाते है। इस बार के चातुर्मास की ख्याति विश्व स्तर पर होगी और  अतिशय क्षेत्र खजुराहो के जिनालयों के दर्शन करने के लिए देश विदेश के आएंगे। खजुराहो क्षेत्र में आचार्यश्री के चातुर्मास से जैन धर्म और दर्शन की प्रभावना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है।
     
         साधुजन इस लिए करते हैं चातुर्मास--
    डॉ. सुमति प्रकाश जैन ने चातुर्मास की अवधारणा और उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए बताया कि जैन धर्म अहिंसा प्रधान धर्म है।वर्षाकाल में लाखों जीवों की उत्पत्ति होती है और वे बहुतायत से चहुंओर व्याप्त रहते हैं।ऐसे में पदबिहारी साधुजनों से किसी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की हिंसा न हो,इस लिए जैन साधु वर्षाकाल के चार महीनों में अपनी पदयात्रा को रोक कर किसी एक स्थान पर रुक कर अपने आत्मकल्याण हेतु स्वाध्याय,धार्मिक-आध्यात्मिक ग्रंथो, जैन धर्म व दर्शन का अध्ययन-मनन करते हैं और श्रावकों को अपने मंगल प्रवचनों से सदमार्ग पर निरन्तर चलने की प्रेरणा देते हैं।डॉ जैन ने बताया कि जैन धर्म के साथ साथ हिन्दू धर्म मे भी साधुओं के चातुर्मास की परंपरा है।वे भी वर्षाऋतु में एक जगह रह कर अपना चातुर्मास व्यतीत करते हुए धर्मध्यान में लीन रहते है।
           कलश स्थापना के इस कार्यक्रम का संचालन और निर्देशन ब्र. सुनील भैया ,अनन्तपुर करेंगे ।आयोजन को सानन्द ओर निर्विघ्न सम्पन्न करने के लिए विभिन्न समितियां बना कर उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई ह

     
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    अमेरिका के राजदूत ने आज खजुराहो पहुंचकर, पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन किये। आपने गुरुदेव के समक्ष सप्ताह में एक दिन माँसाहार त्यागने का भी संकल्प लिया।
    खजुराहो में प्रतिदिन देश विदेश सेलोगों का, पूज्य आचार्यश्री के दर्शन हेतु आने का क्रम जारी है।
    साभार- ब्र श्री सुनील भैया जी, इंदौर 28 जुलाई
     
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    छतरपुर / खजुराहो में विराजमान परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने अपने मांगलिक प्रवचन के दौरान मनुष्य को प्राप्त अलौकिक अनुभूतियों के बारे में बताया आचार्य श्री ने कहा देवों के पास बहुत सारी विभूतियां होती हैं । और देवों का देव सोधर्म इन्द्र सभी देवताओं में अग्रणी माना जाता है। परंतु उसके मन में एक प्रश्न की उलझन सदैव बनी रहती है । कि मैं सर्वशक्तिमान होकर भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा हूँ। भगवान के दीक्षित होने के उपरांत सौधर्म इंद्र जब भगवान का अभिषेक करता है और देवों की पंक्ति में सबसे आगे रहता है। फिर भी सौधर्मेंद्र जब देखता है कि मनुष्य भगवान को आहार दे रहे हैं और मैं आहार नहीं दे पा रहा हूं। यह देख कर उसके मन में कुंठा होती है ।और वह गुणगान करके भक्ति भाव करके अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। उस समय सभी देव  प्रमुदित होते हैं परंतु सौधर्मेंद्र इतना प्रमुदित और तल्लीन हो जाता है कि वह तांडव नृत्य करने लगता है। इसके बावजूद भी उसके पास आहार दान देने की योग्यता नहीं आती है । सौधर्म इन्द्र आहार दान तो नहीं दे सकता पर अमृतपान करा सकता है। परंतु मुनिराज अमृत ले तभी तो वह अमृतपान कराएं। लेकिन अमृत आहार का पात्र नहीं है । अमृत को कभी आहार की संज्ञा नहीं दी गई। वह खाने की चीज नहीं है । वह केवल चखने की चीज है अमृत परिश्रम के द्वारा प्राप्त नहीं होता है। परिश्रम के आधार पर दिया गया आहार ही मुनिराज के ग्रहण योग्य है । सौधर्म इंद्र  को तांडव नृत्य करने के बाद भी पसीना तक नहीं आता है ।
     
    इसलिए सौधर्म इंद्र  की पर्याय तपस्या के योग्य नहीं मानी गई है । दान आदि देने योग्य भी नहीं है अभिषेक के समय वह सबके साथ शामिल होकर हाथ बस लगा सकता है। उसे मात्र हाथ लगाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। सौधर्मेंद्र के मन में पीड़ा तो होती होगी पर कर क्या सकता है। सौधर्म इंद्र ना तो कुछ ले सकता है ना कुछ दे सकता। यदि वह दे सकता है तो धोक  (नमन) दे सकता है और ले सकता है तो मात्र आशीर्वाद ले सकता है। योग्यताएं अनेक प्रकार की हुआ करती है पर्यायगत यह कमी है । कि सौधर्म देव होने के बाद भी महादेव नहीं बन सकता। वह देवाधिदेव के सेवा तो कर सकता है परंतु सीमा में ही कर सकता है। इन सभी बिंदुओं को लेकर हम सभी को सोचना है कि हमें जब तक मुक्ति नहीं मिलती अर्थात हम देव हो गए तो हमारा क्या होगा। वहां हम पूजन तो कर सकेंगे पर भोजन नहीं कर सके। सौधर्म इंद्र के नृत्य  करते हुए भावनाओं को देख कर ऐसा लगता है कि उसे अगली पर्याय में मुक्त होने का सौभाग्य प्राप्त करने वाला है। सौधर्म इंद्र  के पास इतना पुण्य अर्जित है लेकिन वर्तमान में उसका पुण्य काम नहीं आ रहा है । अर्थात वह आहार दान नहीं दे पा रहा है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में धन पुण्य  से ही आता है लेकिन उसे देने के लिए भी पुण्य का उदय चाहिए । जिसके माध्यम से कर्मों की निर्जरा हो जाती है पुण्य को अर्जित करने से भी कर्मों की निर्जरा होती है। सौधर्म इंद्र सोचता है मनुष्य कितना भाग्यशाली है वह धरती का देवता है पूरक परीक्षा में पास होने वालों को अधर में लटकना पड़ता है हमारे पास स्वतंत्रता है परंतु देवों के पास कई प्रकार की परतंत्रताएं हैं अतः मनुष्य जीवन का सही उपयोग करो । और मनुष्य जीवन को मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर करके दान के माध्यम से आगे बढ़ाओ। पोंटिंग के आर्थिक विचार की पुस्तक का जिक्र करते हुए आचार्य श्री ने कहा सही अर्थशास्त्री वही है जो अर्थ का भली-भांति उपयोग करके जानता है। अर्थ को सामने भले ही रखो किंतु भारत को कभी सिर पर मत रखना सिर पर तो श्री जी ही शोभा देते हैं।
     
    आचार्य श्री के संघस्थ ब्रह्मचारी सुनील भैया ने बताया कि आज के बाद प्रक्षालन का सौभाग्य प्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया के भाई अमेरिका निवासी यशवंत मलैया को प्राप्त हुआ । साथ ही शास्त्र भेंट प्रदान करने का सौभाग्य प्रदेश के वित्त मंत्री की धर्म पत्नी श्रीमती सुधा मलैया और श्रीमती अंजलि मलैया अमेरिका को प्राप्त हुआ। चातुर्मास में एक कलश स्थापना करने का सौभाग्य श्री मदनलाल धन्य कुमार संजय कुमार जी देवास को प्राप्त हुआ। आज के आहार दान का सौभाग्य छतरपुर निवासी श्री पवन कुमार जैन को प्राप्त हुआ। इसके साथ ही दुबई से पधारे पवनेश कुमार जैन ने एक प्रतिमा और एक चातुर्मास कलश की स्थापना करने का सौभाग्य प्राप्त किया।
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्य श्री के संघस्थ ब्रह्मचारी सुनील भैया ने बताया खजुराहो में आचार्य श्री के चरण पढ़ने के पश्चात से ही प्रतिदिन विदेशी सैलानियों आचार्य श्री के दर्शनों का लाभ ले रहे हैं। आज स्पेन और इटली से आए सैलानियों ने आचार्य श्री से आशीर्वाद ग्रहण किया और सप्ताह में एक दिन मांसाहार न खाने का संकल्प लिया। आचार्य श्री ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही नार्वे से आये पर्यटक ने 5 साल तक शाकाहारी रहने का आचार्य श्री के समक्ष संकल्प लिया। इसके अलावा चीन, कोरिया, अर्जेंटीना, स्पेन, इटली मैक्सिको से आए 75 सैलानी सप्ताह में एक दिन मांस ना खाने का संकल्प ले चुके हैं । खजुराहो अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल है प्रतिदिन विदेशी लोग आचार्य श्री की चर्या के बारे में सुनकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। दिन में एक बार आहार और पानी लेना, नंगे पैर पद बिहार करना ,शक्कर नमक हरी सब्जियां आदि आहार में नहीं लेना आदि चर्या को सुनकर विदेशी सैलानी दांतो तले उंगली दबा लेते हैं और भारतीय संस्कृति और जैन धर्म के इतिहास के प्रति जागरुक हो रहे हैं|
     
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    डाक विभाग ने आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के संयम स्वर्ण महोत्सव पर विशेष डाक लिफाफा जारी किया अशोक नगर  संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के संयम स्वर्ण महोत्सव पर अशोक नगर डाक विभाग ने आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के संयम स्वर्ण महोत्सव पर विशेष आवरण लिफाफा अतिशय क्षेत्र थूवोनजी कमेटी के पुण्यर्जन मैं मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज मुनि श्री पदमसागर जी महाराज के सान्निध्य सुभाष गंज में विशेष समारोह के दौरान  जारी किया है ।

    समारोह में डाक विभाग साभागिये अधीक्षक व्ही एस तोमर सहा अधीक्षक टी एस व्हील व्ही पी राठौर आर के शिवहरे  एम के शर्मा अशोक नगर  का थूवोनजी कमेटी के अध्यक्ष सुमत अखाई महामंत्री राकेश कासंल मत्री विनोद मोदी विपिन सिघई समाज के अध्यक्ष रमेश चौधरी उपाध्याय गिरीश जैन वजरंड़कमेटी के मत्री प्रदीप जैन यज्ञनायक पदम कुमार वाझल राकेश अमरोद आदिके साथ विशेष लिफाफा जारी किया  अतिथियो का सम्मान कमेटी ने किया इसके पहले धर्म सभा को संबोधित करते हुए थूवोनजी कमेटी के प्रचार मत्री विजय धुर्रा ने कहा कि आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के  संयम स्वर्ण महोत्सव पर डाक विभाग ने डाक टिकट के साथ लिफाफा जारी किया है जिसको हम मुनि संघ के सान्निध्य में विमोचन कर रहे हैं 

    मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज ने कहा कि  आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने जंगलो में रहकर   कठिन तपस्या करते हुए नर्वदा नदि के तट पर वालिकाओ की शिक्षा के लिए प्रतिभा स्थली की नारायण श्री कृष्ण ने गायो की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया नारायण श्री कृष्ण जी  के गीत  की रक्षा कार्य को वर्तमान में आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज की पावन प्रेरणा से आगे बढ़ रहे हैं
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    विद्या वाणी प्रतियोगिता 
    जैन आशिषकुमार    चांदखेड़ा अहमदाबाद    84xxxxx805
     
    हायकू प्रतियोगिता 
    swati jain    Infront of government middle school,Abhana,Damoh,M.P.    95xxxxx578    76xxxxx565
     
    विचार सूत्र प्रतियोगिता 
    रतन लाल जैन    23 सी 55, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर, (राजस्थान), पिन कोड 342008    98xxxxx290
     
    पवित्र मानव जीवन प्रतियोगिता 
    लता उमाठे    299 नालन्दा विहार जे डी ए 2बी तिलवारा रोड जबलपुर 482003    97xxxxx617    89xxxxx878
     
    जैन पाठशाला प्रतियोगिता 
    Jyoti    Post, Kothali Maharashtra    88xxxxx639
     
    दिशा बोध प्रतियोगिता 
    Pragati jain    "Panchratna traders, dindori(m.p.)
    481880"    96xxxxx959    96xxxxx590
     
    आत्मान्वेषी संस्मरण प्रतियोगिता
    मेघा जैन    C/O अशोक कुमार जी दीपक जी सरावगी, जैन कबाड़, नेहरू उद्यान के पास, डिस्पोजल मार्केट, भवानी मण्डी, जिला झालावाड़, (राजस्थान), पिन कोड 326502    94xxxxx946    94xxxxx946
     
    ज्ञानसागर जी की ज्ञानसाधना प्रतियोगिता  
    Monika Jain    SPS residency,d-300, Indirapuram, Gaziabad    98xxxxx487
     
    आप सभी  को   पुरस्कार स्वरूप प्रदान की  जा रही हैं - हथकरघा निर्मित श्रमदान ब्रांड की चादर
     
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दिन  में आप सूर्य को ही मात्र देख सकते हैं ज्योतिष मंडल में बहुत प्रकार के तारामंडल विद्यमान रहते हैं सूर्य के प्रकाश से हम सभी वस्तुओं को तो देख सकते हैं परंतु ज्योतिष में विद्यमान तारामंडल को नहीं देख सकते। तारामंडल बहुत चमकदार होते हैं । लेकिन प्रभाकर का प्रकाशपुंज इतना तेज होता है कि उस प्रकाश के कारण संपूर्ण तारामंडल लुप्त रहता है । चंद्रमा ज्योतिष मण्डल मे गायब तो नहीं होता लेकिन  पर वह अपना प्रकाश भी नहीं फैला पाता है चंद्रमा अपना प्रकाश सूर्य के सामने नहीं फेंक सकता । ऐसा क्यों होता है की संपूर्ण तारामंडल और चंद्रमा सूर्य के आलोक के कारण अपना प्रकाश दिखाने में फीके पड़ जाते हैं सूर्य का तेज इतना अधिक है कि उसके आलोक के आगे तारामंडल दिखते नहीं है और चंद्रमा का दिखना औपचारिकता मात्र रहता है । लेकिन दिन मे उससे प्रकाश प्राप्त नहीं होता ।
     
    हाँ  एक दिन ऐसा भी आता है जब ग्रहण के समय जब सूर्य के तेज राहु के कारण छिप जाता है। लेकिन सूर्य का प्रकाश धरती पर रहता है। और हम सभी राहु के बीच में आ जाने के कारण भी एक दूसरे को देख सकते हैं। यही हाल हमारे जीवन का है मोह रूपी अंधकार हमारे जीवन से प्रकाश खत्म कर देता है । हमारी आत्मा का तेज सूर्य के समान है परंतु अभी हमारा जीवन अंधकारमय है । और हम मात्र चंद्रमा और तारे के प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं । सूर्य का प्रकाश अभी हमारी आत्मा से नहीं निकला है । हमें अपनी आत्मा में सूर्य रूपी प्रकाश का आलोक प्रकाशित करना है। और मोह रूपी चांद और तारों का प्रकाश सूर्य रूपी प्रकाश के आगे हमारे जीवन में अन्धकारमय बनाये हुए है। यह उद्गार खजुराहो में विराजमान परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचन के माध्यम से हजारों की तादाद में उपस्थित जैन समुदाय के बीच रखी प्रवचन में आचार्य श्री की वैज्ञानिक शैली को सुनकर सभी हतप्रभ रह गए कार्यक्रम के प्रारंभ में पाद प्रक्षालन का सौभाग्य सम्यक जैन गुवाहाटी हुकम चंद जैन कुलदीप जैन अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ग्वालियर काका कोटा अनूप जैन कैलिफोर्निया को प्राप्त हुआ पारसनाथ भगवान जिनालय में अखंड दीपक रखने का सौभाग्य हुकम चंद काका को प्राप्त हुआ इसी प्रकार आदिनाथ जिनालय में अखंड ज्योति रखने का सौभाग्य अनुज जी कैलिफोर्निया को प्राप्त हुआ शास्त्र दान का सौभाग्य योगेश जैन खजुराहो को प्राप्त हुए
     
    साभार : ब्र. सुनील भैया 
  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरि, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) में आयोजित आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का समाधि दिवस !
    ग्रीष्मकालीन ज्यों ही आता है गुरूजी की पुण्य तिथि आ जाती है पिछली बार भी यह अवसर चंद्रगिरि को मिला था इस बार भी मिला है ! तीर्थंकरों के कल्याणक तोह हम मनाते ही है लेकिन पुण्य तिथि मनाने का अलग ही महत्व है ! गुरु उन्नत होते भी उन्नत बनाने में लगाए रखते है! सिद्धि में गुरुओं की बात कई विशेषणों में कई है ! परहित संपादन विशेषण बहुत महत्वपूर्ण दिया है ! प्रायः व्यवस्ताओं के सही नहीं होने के कारण गाड़ियाँ रुक जाती है !.गुरुदेव ने कुछ ऐसी ही बातें हमारे कानो में फुकी थी ! मोक्ष मार्ग में पढ़ा – लिखा ही आगे बढ़ता है यह भूल है ! व्यवस्थित हो तो आगे बढ़ता है ! गुरूजी ने कहा था अच्छे से विज्ञापन करना तो हम वैसे ही विज्ञापन कर रहे है ! महंगाई का जमाना है बाज़ार में मंदी आ गयी है ! व्यवस्था एक ऐसी चीज़ है जिसमें खर्चा होता है ! मैनेजमेंट ठीक हो तो सब ठीक होता है ! अपव्यय (फ़िज़ूल खर्च ) हो तो मैनेजमेंट ठीक नहीं माना जाता है ! प्रत्येक कार्य के लिए लोन लिया जा रहा है ! अलोना (बिना नमक का) भोजन लेना यह ही सलोना है !
    भारतीय संस्कृति मितव्ययी होना सिखाती है ! ज्यादा खर्च हो रहा है इसलिए कर्ज हो रहा है ! पुलिस हिलती – डुलती नहीं संकेत में कार्य करती है ! (विशेष कार्यों में ) गुरूजी एक शब्द बोलते थे और कितना असर हुआ यह देखते थे ! एक बार आर्डर दिया जाता है ! मिलट्री में संकेत से ही काम होता है ! संयमी की पुण्य तिथि पर संयम से कार्य करना चाहिए ! संयमी की पुण्य तिथि को समझने के लिए संयम संयम की आवश्यकता होती है! वह ज्ञान वृद्ध, तपो वृद्ध थे ! नहीं हमारी उम्र है न ही तप हैं न ही काया है ! हमारे पास टूटे – फूटे दो ही शब्द है ! गुरूजी को मुलायम शब्द अच्छे नहीं लगते थे ! कमर को ठीक चाहते हो तो दिवार का सहारा ना लो ! कठोर शब्द नहीं किन्तु मित प्रिय शब्द का प्रयोग करो !
    याद करने के लिए दिमाग की स्पीड बढाओ, सर्वप्रथम लेखनी अनुचर होती है फिर सहचर हो जाती है ! यह मूक माटी में लिखा है ! मोक्ष मार्ग में लिखना तो होता ही नहीं है ! व्यवस्ताओं में करोडो का व्यय हो रहा है ! गुरूजी कहते हैं हम भक्ति में प्रतिशत लगाते हैं यह गलत है ! दान के लिए दाता से महत्वपूर्ण पात्र होता है ! कार्य करने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति में है, जिन्होंने पूर्व में कार्य किये है वह याद करे एक छोटी सी बात है लेकिन चोटि की बात है ! गुरुदेव ने एक छोटा सा मंत्र दिया था – विद्या का अध्यन महत्वपूर्ण है ! आज कल के बच्चों को विषय चुनने का अवसर दिया जाता है ! इंजीनियरिंग, ऍम बी ए, के क्रिय लोगों को काम में लगा दिया जाता है !
    गुरूजी कहते थे थोडा पढो लेकिन काम का पढो ! योग्यता का जहाँ मूल्यांकन नहीं होता है वहां कुछ नहीं होता है ! गुरु जी बहुत गुरु थे व्यवहार ज्ञान उनका बहुत उन्नत था, अध्यात्म का ज्ञान उनकों बहुत अच्छा था ! हमारे गुरु वही के वही रहने वाले नहीं थे ! हमारे गुरु बहुत अच्छे थे जैसे माँ की ऊँगली बच्चे नहीं छोड़ते हैं ऐसे ही हमने नहीं छोड़ी, नहीं तो बाज़ार में घूम जाते ! गुरु मंजिल तक नहीं छोड़ते हैं (भावना से ) संकल्प लिया हुआ बहुत दिन तक टिकता है !
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते हैं की भगवान् के वैराग्य रूपी हवा के झकोरों से इन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है ! तब इन्द्र अवधि ज्ञान रूपी दृष्ठि का उपयोग करके भगवान् के द्वारा प्रारंभ किये जाने वाले कार्य को जानता है ! सौधर्म इन्द्र के पास ही मोबाइल नंबर रहता है उसी के पास यह रेंजे है जिसका सम्बन्ध हो जाता है ! इसी प्रकार अवधि ज्ञान का होता है ! सौधर्म इन्द्र सिंहासन से उठ , जिस दिशा में भगवान् है , उस दिशा की ओर सात पद चलकर नमस्कार करता है ! समीचीन धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तन के लिए उद्यत , शरणागत भव्य जनों की रक्षा करने वाले और अलौकिक नेत्रों से विशिष्ट जिनदेव को नमस्कार हो ! जैसे राष्ट्रपति को राजनंदगांव आना है तो सुरक्षा हेतु यहाँ के कलेक्टर से अनुमति लेना पड़ता है ! ऐसे ही तीर्थंकर भगवान् की रक्षा के लिए देव होते हैं ! इन्द्रिय सुख – सेवन के बाद खेद ही होता है ! वैराग्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की न किसी का कोई मित्र है और न धन और शरीर ही स्थाई हैं ! बंधू और बांधव और परिवार यात्रा में मिलने वाले पुरुषों के समान हैं ! धन के कमाने में और कमायें हुए धन के नष्ट हो जाने पर बहुत दुःख होता है ! धन के कारण अन्य जनों से विरोध होता है !
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्म सभा जो श्रुत पंचमी पर आयोजित थी इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा शरीर का नहीं आत्मा का विकास होना चाहिए ! यहाँ कुछ लोग राजस्थान से आयें है लेकिन प्रायः बुंदेलखंड के हैं ! प्रायः पैसा बढता है तो गर्मी चढ़ जाती है ! हर व्यक्ति की गति प्रगति इस बुद्धि को लेकर नहीं होती ! कुछ लोग चोटी के विद्वान् होते हैं जैसे ललितपुर में एक व्यक्ति चोटी रखता है ! ज्ञान के विकास का नाम ही मुक्ति है ! ज्ञान का विकास जन्म से नहीं मृत्यु से होता है ! अभी आप मरना नहीं सीखे हैं ! मरना सिख लिया तोह जीना सिख लेंगे ! बुद्धि के विकास के लिए मरण अनिवार्य है ! मन का मरण जरुरी है ! उस मन को कैसे मारा जाये ! श्रुत और पंचमी आज का यह दिवस है ! आज का दिन पढ़े लिखे लोंगो का नहीं किन्तु जो मन से सुनता है उसका नहीं दो कानो का है ! मैं मन की बात नहीं किन्तु श्रुत पंचमी की बात कर रहा हूँ ! हमारी सोच श्रुत का निर्माण नहीं करता !
    सुनने वाला श्रुत पंचमी का रहस्य समझता है ! जो मन के अन्दर में रहता है उसका भरोसा नहीं रहता है ! किसी के अन्दर में नहीं रहना चाहिए ! आँखे तभी गहराइयों तक नहीं पहुचती ! जो सुनता है उसको मोक्षमार्ग और मुक्ति उपलब्ध होता है ! शार्ट कट भी चकर दार हो सकता है !
    केवल माँ की भाषा को ही मात्री भाषा कहा है ! भगवन की भाषा होती है लेकिन पकड़ में नहीं आती है ! भाषा के चक्कर से केवली भगवन भी बचे हैं ! आज के दिन हजारों वर्ष पूर्व ग्रन्थ का निर्माण हुआ था ! श्रुत देवता के माध्यम से ही गुण रहस्य मालूम होता है ! आप लोग दूर – दूर से आयें हैं लेकिन पास से कौन आया है ! गुरु कभी परीक्षा नहीं करते लेकिन आत्म संतुस्ठी के लिए कुछ आवश्यक होता है ! मात्री भाषा भाव भाविनी है वह भाव तक ले जाने में सहायक है ! भाव भाषा को समझना आवश्यक है ! विकास इसलिए नहीं होता है क्योंकि मन भटकता है ! हमारी शिकायत आप करते हो की हमें दर्शन नहीं होते हैं !
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में आयोजित प्रवचन सभा को सम्भोधित करते हुए दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की जब उपसर्ग आता है तो साधू जब ताल नहीं पाते तब संलेखना ले लेते हैं ! भयंकर दुर्भिक्ष हो, भयंकर जंगल में भटक गया हो तो भी संलेखना लेते हैं ! चाहे विज्ञान हो चाहे वीतराग विज्ञान हो दोनों ही बताते हैं की गलत आहार भी प्राणों को संकट पैदा करता है ! दुर्भिक्ष पड़ने पर साधू आहार का त्याग कर देते हैं ! जो ज्यादा सोचता  है वह जंगल में भटक जाता है, आज विज्ञान भी भटक रहा है ! वर्मुला ट्रगल में भटक जाते हैं ! बहुत सारे वज्ञानिक फस गए और बाहर नहीं निकले !
    हम तो प्रत्येक व्यक्ति को स्वर्गवासी कहते हैं क्योंकि हमारी भावना नरक भेजने की नहीं है ! कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहाँ विश्वास काम नहीं करता हो “अनुभव करो विश्वास करो ” किसी ने विष को चखा नहीं है फिर भी विश्वास है की इससे मरण हो जाता है ! विश्वसनीय के ऊपर ही विश्वास किया जाता है ! जब कोई संकट आता है तो साधू उस समय आहार का त्याग कर देते हैं की जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता है तब तक आहार का त्याग है ! बहुत सारा धन और समय का अपव्यय हो रहा है आज ! मोबाइल पर भी व्यक्ति झूट बोलता है, बोलता देहरी से है और कहता है देहली से बोल रहा हूँ !
    आज प्रतिभा, समय, धन व्यर्थ में जा रहा है, उपयोग नहीं हो रहा है ! एक छात्र वैज्ञानिक के भाषा में बात करने लगा था ! यह कुछ वर्ष पूर्व हमने पढ़ा था यह लेख और यह विस्मय जैसा  लगा ! जैन दर्शन में दूरस्रावी आदि पहले से लेख है !
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज धर्म सभा को सम्भोधित करते  हुए कहा की  आज रविवार है, रवि तो प्रतिदिन आता है और जाता है ! आचार्य श्री ने गजकुमार का दृष्ठांत देते हुए वैराग्य मय दास्ता सुनाई भगवान् नेमिनाथ के प्रसंग  भी   सुनाये  और  कहा  मधुर  वचन  होते  हैं प्रभु के ! कीचड़ में पैर रखकर पानी से धोने की अपेक्षा कीचड़ से बचकर पैर रखना ठीक है ! अज्ञानी हो तो ठीक है पर ज्ञानी होने पर भी यदि पैर रखे तो ठीक नहीं ! कषायों का कीचड़ उछलता है उसे धोने की आवशयकता है ! सूत्र अनेक अर्थ को पेट में रखे रहते हैं ! अखबार में खबर आती है नोट के बारे में लेकिन नोटों का भोजन नहीं किया जा सकता है !
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने दीक्षा दिवस के अवसर पर धर्म सभा को सम्भोधित करते हुए कहा की आज रविवार है और भी कुछ है (दीक्षा दिवस ) लेकिन अतीत की स्मृति के लिए आचार्य कुंद – कुंद कहते हैं की याद रखना है तोह दीक्षा तिथि को याद रखो जिस समय दीक्षा ली थी उस समय क्या भाव थे उन्ही को याद करो ! काल निकल जाता है पर स्मृति के द्वारा ताज़ा बनाया जा सकता है ! उस समय की अनुभूति और अभी की अनुभूति में अंतर दीखता है ! हमारे भाव कितने वजनदार हैं देखना है ! भावों की उन्नति होना चाहिए ! जो गिरता है वो जल्दी उठता भी है और संभालता भी है ! आप दान, परोपकार आदि के भावों को याद रखो ! आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी को याद भी किया और कहा की वह महान थे ! आत्मा की कोई उम्र नहीं होती भावों की उम्र होती है, अनुभूति भावों की होती है ! गुरुदेव का उत्तर हमारे लिए अनुत्तर बन बन गया था ! भावो को नापो ज़िन्दगी क्या है ! द्रव्य की जगह भाव को याद करने की हमें वह योग्य बनाया गुरुदेव ने, हम गुरुदेव को प्रणाम करते हैं ! आचार्य श्री विद्यासागर जी रविवार होने के कारण दीक्षा दिवस पर, मंच पर आये ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ है ! 
  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की उपवास करते समय मन आकुल – व्याकुल नहीं होना तप है ! भूख  – प्यास की वेदना से आकुल – व्याकुल नहीं होना चाहिए ! रस को त्यागने से शरीर में उत्पन्न हुए संताप को सहना तप है ! मनुष्यों से शून्य स्थान (जंगल आदि) में निवास करते हुए पिशाच, सर्प , मृग, सिह, आदि को देखने से उत्पन्न हुए भय को रोकना तथा परिषय को जीतना चाहिए !
    प्रायश्चित करने से उत्पन्न हुए श्रम से मन में संक्लेश न करना “यह जगत जीवों से भरा है  बचाना शक्य नहीं है फिर भी जानबूझकर हिंसा से बचना ही धर्म है ! प्रसन्न मुद्रा भगवान् की मुद्रा मानी जाती है ! मन तो भोजन की ओर जाता है लेकिन संकल्प है की लेना नहीं है, यह महत्वपूर्ण है ! “समयसार” का उपयोग तो करो कब करोगे ! केवल पेट्रोल डालना है भाडा देना है शरीर को और चलाना है, उसके दास नहीं बनना है ! भगवान के पुण्य से जन्म के समय सभी वस्तुएं दिव्य आती हैं भोजन, वस्त्र आदि ! अपनी शक्ति का सदुपयोग करो यह हमें अच्छा लगता है
    “सब जग देखो छान, छान नहीं पाये तो पहचान नहीं पायें” ! आत्मा को श्रद्धा की आँखों से देखा जाता है ! आज के वैज्ञानिक और डाक्टर भूत-प्रेत आदि नहीं मानते हैं क्योंकि वह M.R.I., C.T. स्केन, एक्सरे आदि मशीन  में नहीं आता है ! आज भले डाक्टर M.B.B.S., M.D.   हो जाएँ फिर भी नहीं जान पाते हैं भूतों को !
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की यह गुरु पूर्णिमा पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है ! आज के गुरु बनाते है लोग और दर्शन करने आते हैं ! पूर्ण चन्द्रमा का दर्शन पूर्णिमा के दिन होता है ! चन्द्रमा पूर्ण कलाएं बिखेरता है ! इस तिथि का विशेष महत्व है ! इस दिन गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु मिले थे ! वीर भगवान् की दिव्य ध्वनि 66 दिन तक नहीं खीरी थी फिर वीर शासन जयंती के दिन खीरी थी, उसी दिन से वीर शासन प्रारंभ हुआ, वीर भगवान् का शासन प्रारंभ हुआ ! कुछ सेल्समेन होते हैं जिनको कमिसन मिलता है ! वह मुनि मेकर होते हैं ! गुरु प्रभु की पहचान बताते हैं पता देते हैं जो राम आतमराम की पहचान बताते हैं ! जो भगवान् का स्वरुप बताते हैं ! जो आत्मा का पता दे वह गुरु होता है ! गुरु का एड्रेस नहीं होता है, विश्वास को साथ लेकर चलो ! अनेक दृष्टान्त भी बताएं !
  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की प्रतिभा स्थली में शिक्षिकाओं को संख्या ज्यादा और छात्राओं की संख्या कम है आप लोग संख्या बढाएं खर्चा ज्यादा हो और काम कम यह ठीक नहीं है ! किसका मन प्रतिभा स्थली में नहीं लग रहा है हाँथ उठायें ! जिनका मन नहीं लग रहा उनका सहयोग करें जिनका मन लग रहा है ! आचार्य श्री ने बच्चों से चर्चा भी की ! जिस प्रकार सब विषयों में नंबर मिलते हैं वैसे ही खेल कूद में भी नंबर आना चाहिए ! सब लोगों की पढाई ठीक चल रही है ? सब पढ़ाते ठीक हैं ? मोक्ष मार्ग में चलते समय गाडी चलती रहती है लेकिन सोना नहीं है ! भगवान् ने गाडी दी है तो हम गंतव्य तक पहुचेंगे ! टेंशन किसको बढती है नंबर कम आने से क्यों बढती है टेंशन ! टेंशन को हिंदी में तनाव कहते हैं ! तन जाते हैं तो तनाव आता है तनाव की परिभाषा, तनाव के कारण क्या है ? यह बीमारी बहुत खतरनाक है ! तनाव में आजायेंगे तो पढाई नहीं होगी ! किसी भी अस्पताल में तनाव का इलाज नहीं है ! डॉक्टर भी तनाव में रह सकते हैं ! किस रास्ते से तनाव आता है उस रास्ते को बंद कर दो !
    प्रतिभा स्थली जबलपुर में है इसमें कक्षा १२वी तक की शिक्षा सी.बी.एस.ई. के माध्यम से दी जाती है ! सिर्फ छात्राओं को ही दी जाती है ! लगभग १०० ब्रह्मचारिणी बहने शिक्षिकाएं हैं जो जैन धर्म के संस्कार भी देती हैं और वहां मंदिर के प्रतिदिन दर्शन, रत्रिभोजन त्याग, पाठशाला एवं अन्य संस्कार भी दिए जाते हैं ! संस्कृति, कला, डांस, अन्य चीजे भी सिखाई जाती है जो अन्य स्कूलों में सिखाई जाती हैं ! यह देश का सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है जहाँ संस्कार शाला है !
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    वीर शासन जयंती एवं प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए !
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की प्रतिभा स्थली के बच्चों ने विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम दिखाए शीत, हवा, पौधे, आदि के रूप में मुखोटा लगाकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया !
    “मै राष्ट्रीय पशु न सही लेकिन राष्ट्रीय संत की गाये हूँ”
    “बच्चों ने कहा की आचार्य श्री कहते हैं की मंदिर में लगने वाले पत्थर की चीप बनो चिप नहीं चीफ (मुख्य) है ! प्रतिभा स्थली में लगभग 500 छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रही है ! बच्चों ने अडवांस में राखी भेंट की आचार्य श्री को आज हम महावीर को नहीं देख पा रहे हैं पर हम गुरु के माध्यम से उन्हें जान रहे हैं ! हम इस परंपरा में आये इसलिए वीर प्रभु हमसे दूर नहीं और हम उनसे दूर नहीं! एक – एक क्षण को उपयोग करो और कराओ ! आप लोग नदी बने तालाब नहीं, पानी पर टला लगा दिया जाए उसका नाम तालाब होता है ! हम बहुत सारे तीर्थों से जुड़े हैं चतुर्थ काल से पंचम काल और आगे जब तक तीर्थ नहीं आता है अभी महावीर का शासन काल चल रहा है ! हर व्यक्ति अपने आप को उन्नत बनाना चाहता है ! शारीर के दास नहीं बनो गुणों के साथ शारीर का सम्बन्ध होना चाहिए ! हम वासना के दास नहीं बने ! उत्साह जरुरी है पुरस्कार भी जरुरी है ! उत्साह अलग है प्रेरणा अलग है ! आत्मा की खुराक तो ज्ञानामृत है ! इमली को मुख से निकालो तभी लड्डू का स्वाद आएगा ! इस शरीर को पेट्रोल (भोजन) नाप तौल कर ही दो ! जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करना है ! अच्छे कुम्भकार की तलाश करो ! आप लोगों के लिए बोध बहुत हो गया अब शोध की आवश्यकता है ! 
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की इस चातुर्मास की स्थापना का समर्थन इन्द्र भी कर रहे हैं जब वर्षा के साथ यदि धर्म वर्षा भी हो जाए तो ये अच्छा रहेगा ! मुनिराज अहिंसा धर्म के पालन एवं जीव रक्षा के लिए करते हैं चातुर्मास ! आज हम वनों में नहीं रह पाते हैं तो यहाँ स्थापना करना पड़ रहा है ! हमारी स्थापना तो 2 जुलाई 2012 को हो गयी थी श्रावको ने आज कलश स्थापना की है ! आज हमें जल छानने के संस्कार देने चाहिए ! रस्सी , कलशा, छन्ना हमेशा बाहर जाते समय साथ में रखना चाहिए ! आज मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता, आदि बड़े – बड़े शहरों में लोग कूये के पानी के द्वारा प्रतिमाओं का पालन कर रहे हैं ! हम विज्ञापन के चक्कर में नहीं पड़ते हमारी तो पत्रिका (प्रवचन) प्रत्येक रविवार को प्रसारित होते हैं ! राजस्थान वाले कहते हैं की आप राजस्थान नहीं आते हो आप अपने बच्चों का दान करें जिन्हें हम मुनि, आर्यिका आदि बना सके ! 
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की दंड के माध्यम से उदंडता ठीक हो जाती है ! शुद्धी के प्रावधान हैं प्रतिक्रमण आलोचना ! जो क्षेत्र संयम को हानि पहुचाते हैं अथवा संक्लेश उत्पन्न करते हैं उसका त्याग क्षेत्र प्रत्याख्यान कहलाता है ! घर में महिलाओं के लिए निर्वाह करना पड़ता है कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं !
    अपने द्वारा पहले किये गए हिंसा आदि को “हां मैने बुरा किया, हां मैने बुरा संकल्प किया, हिंसा आदि में प्रवर्तन वाला वचन बोला” इस प्रकार स्व और पर विषयक निन्दा के द्वारा दोषयुक्त बतलाते हुए तथा वर्तमान में मै जो  असंयम करता हूँ और पूर्व में जैसा असंयम किया है वैसा मै भविष्य में नहीं करूँगा ऐसा मन में संकल्प करके त्याग करता है ! हिंसा का त्याग कृत, कारित, अनुमोदना से करना चाहिए !
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