Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

Administrators
  • Posts

    22,360
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    821

 Content Type 

Forums

Gallery

Downloads

आलेख - Articles

आचार्य श्री विद्यासागर दिगंबर जैन पाठशाला

विचार सूत्र

प्रवचन -आचार्य विद्यासागर जी

भावांजलि - आचार्य विद्यासागर जी

गुरु प्रसंग

मूकमाटी -The Silent Earth

हिन्दी काव्य

आचार्यश्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम

विशेष पुस्तकें

संयम कीर्ति स्तम्भ

संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता

ग्रन्थ पद्यानुवाद

विद्या वाणी संकलन - आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रवचन

आचार्य श्री जी की पसंदीदा पुस्तकें

Blogs

Events

Profiles

ऑडियो

Store

Videos Directory

Blog Entries posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. संयम स्वर्ण महोत्सव
    कब और क्यों,
    जहाँ से निकला सो,
    स्मृति में लाओ |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. संयम स्वर्ण महोत्सव
    मलाई कहाँ,
    अशान्त दूध में सो,
    प्रशान्त बनो।
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. संयम स्वर्ण महोत्सव
    भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत, दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की दीक्षा के ५० वर्ष जून २०१८ में पूरे होने हैं । इसे 'संयम स्वर्ण महोत्सव' के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है। इस उपलक्ष्य में साल भर अनेक कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष के विभिन्न नगरों एवं ज़िलों में हो रहे हैं। इन दिनों चातुर्मास हेतु  आचार्य श्री जी रामटेक, नागपुर में विराजमान हैं और प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में देश और विदेशों से भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँच रहे है,  भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी ने भी आज अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ बहुमूल्य समय आचार्य जी के सान्निध्य में बिताया और उनसे भारत और भारत के जनसामान्य के उत्थान, हथकरघा, स्वाबलंन व भारतीय भाषाओं के संरक्षण आदि विषयों पर चर्चा की । राष्ट्रपति कोविंद जी स्वयं प्रेरणा एवं ज्ञान के स्त्रोत हैं, उनकी और आचार्य जी की एक साथ श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, रामटेक के मंदिर में उपस्थिति, इस पावन भूमि के इतिहास में अविस्मर्णीय रहेगी  । राष्ट्रपति जी ने आचार्य जी को श्रीफल भेंट कर आशीष ग्रहण किया।    
     
    संत आचार्य श्री जी ज्ञानी, मनोज्ञ तथा वाग्मी साधु हैं और साथ ही साथ में प्रज्ञा, प्रतिभा और तपस्या की जीवंत-मूर्ति भी हैं । कविता की तरह रम्य, उत्प्रेरक, उदात्त, ज्ञेय और सुकोमल व्यक्तित्व के धनी हैं विद्यासागर जी महाराज। राष्ट्रपति जी के साथ उनके साथ उनके बड़े भाई ने भी गुरुदेव के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी विद्यासागर राव जी, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी व महाराष्ट्र के यशस्वी मुख्य मंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस ने भी आशीर्वाद प्राप्त किया। राष्ट्रपति जी व अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने गुरुदेव के दर्शन करने के बाद प्रसन्नता व्यक्त की। 
     
    इस दिनों भारत के सभी प्रमुख जैन मंदिरों में आचार्यश्री के विशेष संगीतमय पूजन का आयोजन हो रहा है। नगर-नगर वृक्षारोपण किया जाएगा, अस्पतालों/अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में फल एवं जरूरत की सामग्री का वितरण, जरूरतमंदों को खाद्यान्न, वस्त्र वितरण आदि का आयोजन भी किया जा रहा है। 
     
     
  4. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ग्वालियर. ८ जनवरी २०१७।  
    प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ७ जनवरी २०१८ को टेकनपुर स्थित सीमा सुरक्षा बल अकादमी (सीसुब अकादमी)  में पुलिस महानिदेशकों और पुलिस महानिरीक्षकों के सम्मेलन में भाग लेने ग्वालियर पधारे थे, ८ जनवरी २०१8 को उन्होंने सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित किया और नयी दिल्ली प्रस्थान से पहले ग्वालियर हवाई अड्डे पर उन्हें संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर आयोजित संयम स्वर्ण महोत्सव के अंतर्गत संचालित पत्राचार पाठ्यक्रम की दूसरी पुस्तक “अनिर्वचनीय व्यक्तित्व” की प्रथम प्रति भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), ग्वालियर जिला (ग्रामीण) के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र जैन द्वारा भेंट की गई। प्रधानमंत्री को पुस्तक के सम्बन्ध में जानकारी दी गई, जिस पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की और वे एक प्रति अपने साथ लेकर भी गए।  इस संक्षिप्त कार्यक्रम की संयोजना राष्ट्रीय संयम स्वर्ण महोत्सव समिति के मुख्य कार्यकारी श्री प्रबोध जैन (ग्वालियर) ने की। 
     
    चित्र में माननीय प्रधानमन्त्री जी को पुस्तक भेंट करते हुए भारतीय जनता पार्टी, ग्वालियर जिला (ग्रामीण) के अध्यक्ष श्री वीरेन्द्र जैन और साथ में हैं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति।
     
     
     
     
     
     
     
  5. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दान का सही तरीका
     
    आपने ‘‘राजस्थान इतिहास' देखा होगा। वहां महान उदयन का वृत्तांत लिखा हुआ है। वह मननशील विद्वान था, परन्तु दरिद्रता के कारण उसके पैर जमीन पर नहीं जम सके थे। अत: वह नंगे पैर मारवाड़ के रेतीले मैदान को पार करते हुए बड़े कष्ट के साथ सिद्ध पुर पाटन तक पहुंच पाया। उसने दो दिन से कुछ भी नहीं खाया था और शरीर पर मैले तथा फटे कपड़ों को पहने हुए था। उसका नाते रिश्तेदार या परिचित तो था ही नहीं जो कि उसके सुख-दुःख की उसे पूछता। थोड़ी देर बाद वह एक जैन धर्मस्थान के द्वार पर जा बैठा। यद्यपि वहां पर धर्म साधन करने के लिए अनेक लोग आते थे और ईश्वरोपासना तथा धर्मोपदेश सुनकर के जा रहे थे जिनमें कितने ही श्रीमान लोग भी थे जिनके गले में सोने के आभूषण और शीश पर सुनहरे काम की पगड़ियाँ चमक रही थीं, जो कि अपनी नामवरी के लिये तिजोरी खोल कर पैसे को पानी की भांति बहाने वाले थे मगर गरीब मुसाफिर की तरफ कौन देखने वाला था? हाँ, थोड़ी देर बाद एक बहन जी आयीं, जिनका नाम लक्ष्मीबाई था। वह यथा नाम तथा गुण वाली थी। उसने उसी दिन उदयन को विकल दशा में बैठे देखा तो पूछा कि यहां पर किस लिये आये हो? जवाब मिला कि रोजी की तलाश में। बहनजी ने फिर पूछा कि क्या तुम्हारी जान पहचान का यहां पर कोई है? जवाब मिला कि नहीं। क्षण भर विचार कर बहनजी ने कहा कि भाई जी फिर कैसे काम चलेगा? बिना जान-पहचान के तो कोई पास में भी नहीं बैठने देता है, उदयन ने कहा बहनजी। कोई बात नहीं, मैं तो अपने पुरुषार्थ और भाग्य पर भरोसा करके यहां पर आ गया हूं। अगर कोई अच्छा काम मिल गया तब तो अपने दो हाथ बताऊंगा, नहीं तो भूखा रहकर मर मिटूगा। इतना सुनते ही लक्ष्मीबाई बोली कि अभी भोजन किया है या नहीं? इस पर उदयन बोला कि बहनजी मुझे भोजन किये हुए दो रोज हो लिए हैं और न जाने कितने दिन ऐस ही निकल जावेंगे। परन्तु भूख की चिन्ता नहीं है अगर भूख की परवाह करता तो फिर मैं मेरे गाँव से इतनी दूर चलकर भी कैसे आ पाता?
     
    यह सुनते ही लक्ष्मीबाई का हृदय हिल गया, वह बोली कि तुम मेरे साथ चलो, भाई ! भोजन तो करो फिर जैसा कुछ होगा देखा जावेगा। उदयन ने कहा बहनजी आप तो ठीक ही कह रही हैं, मगर मैं आपके साथ कैसे चलूं? मैंनें आपके यहां का कोई भी कार्य तो किया नहीं, फिर आपके साथ मुफ्त रोटी खाने को कैसे चल सकता हूं? लक्ष्मी बाई बोली तुम ठीक कह रहे हो, मगर तुमने मुझे बहन कहा है और मैंने तुम को भाई, फिर भाई के लिए बहन की रोटी मुफ्त की नहीं होती किन्तु अभूतपूर्व भ्रातृ-स्नेह के उपहार स्वरूप होती है। अतः उसके खाने में कोई दोष नहीं है। तुम भले ही किसी भी कोम के, कोई भी क्यों न हो मगर धार्मिकता के नाते से जबकि तुम मेरे भाई हो और मैं तुम्हारी बहन फिर संकोच कैसा? तुम को तो सहर्ष मेरा कहना स्वीकार कर लेना चाहिये, अन्यथा तो फिर मेरे दिल को बड़ी ठेस लगेगी। भाई साहब! कृपा कर मेरा कहना स्वीकार कीजिये और मेरे साथ चलिये।
     
    लक्ष्मीबाई के इस तरह के स्वाभाविक सरल विनिवेदन का उदयन के हृदय पर बड़ा प्रभाव पड़ा। अतः वह उसके साथ हो लिया। घर जाकर लक्ष्मीबाई ने उदयन को प्रेम और आदर के साथ भोजन कराया तथा अपने पतिदेव से कह कर उसके योग्य कुछ समुचित काम भी उसे दिलवा दिया, जिसे पाकर उन्नति करते हुए वह धीरे-धीरे चल कर एक दिन वही सिद्धपुर पाटन के महाराज का महामंत्री बन गया। जिसने प्रजा के नैतिक स्तर को ऊँचा उठा कर उसे सन्मार्गगामिनी बनाया। मतलब यह कि वही सच्चा दान होता है जो कि दाता के सात्विक भावों से ओतप्रोत हो एवं जिसको दिया जावे उसकी आत्मा को भी उन्नत बनाने वाला हो तथा विश्वभर के लिए आदर्श मार्ग का सूचक हो।
  6. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ज्ञान सदृश,
    आस्था भी भीती से सो,
    कंपती नहीं |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. संयम स्वर्ण महोत्सव
    गुरु मार्ग में,
    पीछे की वायु सम,
    हमें चलाते।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. संयम स्वर्ण महोत्सव
    भरा घट भी,
    खाली सा जल में सो,
    हवा से बचों।
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संयम स्वर्ण महोत्सव समापन समारोह
    17 जुलाई 2018
    कार्यक्रम
    प्रात    7-30 बजे से 9-30 बजे
    मंगलाचरण     कु. कन्नगी द्वारा
    चित्र अनावरण  
    दीप प्रज्वलन   
    भैयाजी एवं दीदीजी द्वारा श्रीफल अर्पण
    प्रतिभास्थली की छात्राओं द्वारा प्रस्तुति
    पुस्तक विमोचन 
    1      मूकमाटी-सचित्र
    2      अंतर्यात्री संस्कृति शासक
    3      भारत में भाषा का मसला- विश्लेषण और समाधान- ब्र. विजयलक्ष्मी दीदी
    4      विद्याभारत -कलेंडर
    पाद प्रक्षालन   
    संगीतमय पूजन- प्रतिभास्थली की छात्राओं और बहनों द्वारा
    गुरूदेव के आशीर्वचन
    दोपहर        
    2-30 बजे से 4 बजे    
    मंगलाचरण    
    चित्र अनावरण  
    दीप प्रज्वलन   
    नेपथ्य के नायकों का सम्मान
    *वर्ष 2018 के हमारे 9 नक्षत्र (नायक)
     
  10. संयम स्वर्ण महोत्सव
    राष्ट्रहित चिंतक आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में होगा एक अभूतपूर्व अश्रुतपूर्व कार्यक्रम 
    जरा याद करो कुर्बानी
     
    इस कार्यक्रम में अमर बलिदानी शहीद परिवारों के वर्तमान वंशजों को आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में "स्वराज सम्मान" से सम्मानित किया जाएगा इस कार्यक्रम में निम्नलिखित शहीद परिवारों ने शामिल होने की स्वीकृति प्रदान की है -
     
    राणा प्रताप रानी लक्ष्मी बाई मंगल पांडे नाना साहिब तात्या टोपे बहादुर शाह जफर भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद सुखदेव राजगुरु अशफाक उल्ला खान सदाशिवराव मलकापुर कर श्रीकृष्ण सरल सुभाष चंद्र बोस के अंगरक्षक कर्नल मोहम्मद निजामुद्दीन
    इत्यादि 【21 अक्टूबर 1934- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज की स्थापना सिंगापुर में की थी।】
    आजादी मिलने के बाद आजादी के दीवानों का मेला जरा याद करो कुर्बानी 21 अक्टूबर 2018 दिन रविवार दोपहर 1:45 खजुराहो, मध्य प्रदेश |
    आयोजक - चातुर्मास समिति एवं सकल दिगंबर जैन समाज
  11. संयम स्वर्ण महोत्सव
    समाधि संपन्न 
    खजुराहो, 
    पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर महाराज  ससंघ  के सानिध्य एवं निर्देशन में दस प्रतिमाधारी जयसुख भाई वसानी (C.A). मुंबई निवासी की सल्लेखना अनंत चौदस 23/9/18 को सानंद संपन्न हुई | वे ७८ वर्ष के थे | विगत २० वर्षों से व्रती जीवन निर्वाह करते हुए 16 जल उपवास व 6 उपवास (अंत समय बेला)| के साथ यह मृत्यु महोत्सव को उत्साह पूर्वक पूर्ण किया |
     
     
     
     
     
     





  12. संयम स्वर्ण महोत्सव
    ????‍??‍????
     
    वात्सल्य अंग का प्रभाव आचार्यश्री खजुराहो, 22 सितम्बर दयोदय महासंघ के लोगों ने हमारे सामने एक चित्र रखा था इस चित्र को देख कर हम तो गदगद हो गए। इस चित्र में एक गैया है उसके बड़े बड़े सींग है यह गाय एक घर के सामने कुछ खाने पीने के लिये सीढियों तक चली गई थी। उसी समय उस घर का एक छोटा सा नादान यथाजत बालक आकर उस गाय के दोनो सींग के बीच मे बिना डरे लेट जाता है और गाय भी उसे वात्सल्य देती है। आप लोग इतनी सहजता से वह चित्र देख लेते तो मालूम पड़ जाता कि गोवत्स क्या होता है आप इस चित्र को देख लीजिये ऐसा ही सौहार्दिक प्रेम वात्सल्य सभी साधर्मियों के प्रति हो जाए तो फिर स्वर्ग धरती पर उतर आ जाए यह वात्सल्य अंग का प्रभाव है
     
     
     
    प्रस्तुति : राजेश जैन भिलाई
    www.Vidyasagar.Guru
     
     
    ????‍??‍????
  13. संयम स्वर्ण महोत्सव
    पूज्य आचार्य श्री ने कहा की किंचित भी बाहरी सम्बन्ध रह जाता है तो साधक की साधना पुरी नहीं हो पाती है। निस्परिग्रहि नहीं बन सकता है तब तक जब तक आकिंचन भाव जाग्रत नहीं हो जाता। न ज्यादा तप होना चाहिए न कम बिलकुल बराबर होना चाहिए तभी मुक्ति मिलेगी। केबल धुन का पक्का होने से काम नहीं होता श्रद्धान भी पक्का होना चाहिए तभी काम पक्का होगा।
     
    उन्होंने कहा कि क्षुल्लक को उत्क्रष्ट श्रावक माना जाता है परन्तु बह मुनि के बीच भी रहकर श्रावक ही माना जाता है। आवरण सहित है तो बह निस्पृही नहीं हो सकता उसके लिए तो मुनि धर्म अंगीकार करना ही पड़ेगा । समुद्र भी अपने पास कुछ नहीं रखता लहरों और ज्वर भाता के माध्यम से छोड़ देता है जबकि आप परिग्रह के आवरण को छोड़ ही नहीं पा रहे हो। दूध में जब विजातीय बस्तु मिलायी जाती है तो उसका स्वरुप परिवर्तित हो जाता है। मीठे पकवान में थोडा सा नमक डालने पर स्वाद अच्छा हो जाता है दूध में डालो तो बो बिकृत हो जाता है उसी प्रकार साधक की साधना में कोई विकृत भाव आ जाता है तो उसकी साधना विकृति को प्राप्त हो जाती है। संस्कार के कारन ही जीवन में परिवर्तन की लहर दौड़ती है जैंसे संस्कार होंगे बैंसा ही परिवर्तन होगा।
     
    उन्होंने आगे कहा की अच्छे कार्य के लिए धर्मादा निकालते हैं तो पुण्य का मंगलाचरण हो जाता है पहले गौ के लिए पहली रोटी निकाली जाती थी आज भी ये परम्परा सतत् होनी चाहिए क्योंकि यही दया का भाव होता है। आज दया की भावना का नितांत आभाव होता जा रहा है इसलिए महापुरूषोंं का आभाव धरती पर होता जा रहा है।  धीरे धीरे परिग्रह को त्याग करते जाना ही आकिंचन धर्म की तरफ आरूढ़ होना माँना गया है। जो उपकरण मुनियों को दिए जाते हैं उनका धीरे धीरे त्याग करके ही बो उत्तम आकिंचन्य धर्म को धारण करते हैं और समाधि की तरफ बढ़ते हैं। जब हम चलते हैं तो पैरों में असंयम के छाले हो जाते हैं फिर भी ब्रती चलता जाता है तो छाले फुट जाते हैं और संयम रूपी नयी चमड़ी आ जाती है । मछली को जल से बाहर निकलते ही बह तड़पने लगती है क्योंकि बहार आक्सिजन ज्यादा होती और पानी में कम होती है जो उसके अनुकूल होती है। ऐंसे ही धन को ज्यादा मात्रा में रखने से बह भार बन जाता है इसलिए समय समय पर उसे सदुपयोग में लगाकर परिग्रह के भार से मुक्त हो जाना चाहिए।
     
    आचार्य श्री ने कहा कि जगह जगह अन्न क्षेत्रों की स्थापना जैनोंं को करना चाहिए  क्योंकि जैन समाज पहले भी इस तरह के सेवा के कार्य करता रहा है । जैनाचार्यों की प्रेरणा से ये कार्य होते रहे हैं और आज भी हो रहे हैं ताकि आपका परिग्रह का भार कम होता जाय और धन परोपकार में लग जाय। शाकाहार की तरफ ध्यान देना चाहिए आज सामूहिक रूप से बहार जो भोजन के होटल चल रहे हैं बो अशुद्धि के केंद्र हैं इसलिए ऐंसी परोपकार के शाकाहारी अन्न क्षेत्रों की स्थापना की सबसे ज्यादा आवश्यकता है तभी शिखर की चोटी को आप छु पाएंगे । आज शाकाहार की आवाज बुलंद करने के लिए सरकार तक भी अपनी बात जोरदार ढंग से रखना चाहिए । बैसे सरकार की तरफ से उच्च शिक्षा के केंद्रों में शाकाहार की भोजनशाला प्रथक रखने की अनुकरणीय पहल हो रही है जो सराहनीय है।
  14. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सत्य की पूजा
     
    आमतौर पर जैसा का तैसा कहने को सत्य समझा जाता है। परन्तु भगवान महावीर ने वाचनिक सत्य की अपेक्षा मानसिक सत्य को अधिक महत्त्व दिया। हम देखते हैं कि काणे को काणा कहने पर वह चिढ़ उठता है, उसके लिये काणा कहना यह सत्य नहीं, किन्तु झूठ बन जाता है क्योंकि उसमें वह अपनी अवज्ञा मानता है। है भी सचमुच ऐसा ही। जब उसे नीचा दिखाना होता है तभी कोई उसे काणा कहता है। मानो अन्धे को अन्धा कहने वाले का वचन तो सत्य होता है फिर भी मन असत्य से घिरा हुआ होता है। क्षुद्रता को लिए हुए होता है। अन्यथा तो आइये, सूरदासजी! इन मिष्ट शब्दों में उसका आमंत्रण किया जा सकता है।
     
    हाँ, वहीं कोई छोटा बच्चा बैठा हो और उसकी मां उससे कहे कि बेटा! यह अन्धा है, इसे इसकी आखों से दीखता नहीं है। इस पर फिर बच्चा कहे कि अरे यह अन्धा है? इसे इस की आंखों से दीखता नहीं है? तो यह सुनकर औरों की ही तरह उस अन्धे को भी दु:ख नहीं होगा प्रत्युत वह भी प्रसन्न ही होगा क्योंकि बच्चे के मन में फितूर नहीं किन्तु वह सरल होता है। वह तो जैसा सुनता है या देखता है वैसा ही कहना जानता है, बनावटीपन उसके पास बिल्कुल नहीं होता।
     
    बालक के सरल और स्वाभाविक बोलने पर जब लोग हंसते हैं तो मेरे विचार में वह बालक उन्हें हंसते देखकर अपने विकासशील हृदय में सोचता है। कि मेरे इस बोलने में कुछ कमी है इसीलिये ये सब मेरा उपहास कर रहे हैं। बस इसीलिये वह अपने उस बोलने में धीरे-धीरे बनावटीपन लाने लगता है। मतलब यह हुआ कि सत्य बोलना तो मनुष्य को प्राकृतिक धर्म है किन्तु झूठ बोलना सीखना पड़ता है।
     
    लोग कहते हैं कि दुनियादारी के आमदी का काम असत्य बोले बिना नहीं चल सकता। परन्तु उनका यह विश्वास उलटा है क्योंकि किसी के काय के होने या करने में सत्य क्यों रोड़ा अटकाने लगा, बल्कि यो कहना चाहिये कि सत्य के बिना काम नहीं चल सकता। जो लोग व्यर्थ के प्रलोभन में पड़कर असत्य के आदी बने हुए हैं, उन्हें भी अपने असत्य पर सत्य का मुलम्मा करना पड़ता है तभी गुजर होती है। फिर भी उनके मन में यह भय तो लगा ही रहता है कि कहीं हमारी पोल न खुल जावे। ऐसी हालत में फिर सत्य ही की शरण क्यों न लेनी चाहिये। जिससे कि नि:संकोच होकर चला जा सके। कुछ देर के लिये कहा जा सकता है कि इस व्यर्थ भरी दुनिया में सत्यप्रिय को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है, सो भी कब तक? जब तक लोगों को यह पता न हो जावे कि यहां पर असत्य को कोई स्थान नहीं है। लोग सोचते हैं कि दुनिया दुरंगी है और उसी दुनिया में ही यह भी रहता है। अतः उस दुरंगेपन से बच कैसे सकता है? बस इसीलिये सत्यवादी को लोग कसौटी पर कस कर देखना चाहते हैं एवं जहां वह उनकी कसौटी पर खरा उतरा कि फिर तो लोग उसका पीछा नहीं छोड़ते।
     
    एक समय की बात है कि एक मारवाड़ी भाई श्री आचार्य 108 श्री वीरसागर जी महाराज के दर्शन करने के लिये आया। महाराज ने उससे पूछा क्या धन्धा करते हो? तो जवाब मिला कि आसाम में कपड़े की दुकान है। महाराज ने कहा सत्य से व्यापार करो तो अच्छा हो। इस पर वह हिचकिचाहट करने लगा महाराज ने फिर कहा, कम से कम तुम छ: महीने के लिए ऐसा करो, समझो कि बैठा खा रहा हूं। तब उसने कहा, हां, इतना तो मैं कर सकता हूं। सत्यवादी को इस बात पर ध्यान रखना होता है कि मेरे साथ में जिसका लेन-देन हो उसे अच्छा सौदा मिले वे दो पैसे कम में मिले तथा प्रेम का बर्ताव हो। बस उसने ऐसा ही करना शुरू किया। फिर भी जो कि पहले से मोल मुलाई करते जा रहे थे उन्हें एकाएक उस पर विश्वास कैसे हो सकता था?
     
    अत: फिर ग्राहक लौट कर जाने लगे। मगर जब देखा कि उस दुकान से और दुकान पर हरेक चीज के एक दो पैसे अधिक ही लगते हैं तो लोगों के दिल में उसकी दुकान के प्रति प्रतिष्ठा जम गई । फिर क्या था? उत्तरोत्तर रोज अधिक से अधिक संख्या में ग्राहक आने लगे और बेबूझ होकर सौदा लेने लगे।
  15. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी के परम शिष्य मुनि श्री 108 संधान सागर जी महाराज खजुराहो में 1008 श्री शांतिनाथ भगवान के चरणों में गुरु आशीष से 36 घंटे के प्रतिमायोग (ध्यान के अभ्यास) में है । मुनि श्री 7 सितंबर को शाम 6:00 बजे से बैठे हैं ।
     

     
  16. संयम स्वर्ण महोत्सव
    आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के संयम सवर्ण महोत्सव पर आयोजित 
    नि:शुल्क चिकित्सा शिविर 
     


    योग, प्राणायाम, जड़ी बूटी का काढ़ा, एक्यूप्रेशर से तुरन्त इलाज 
    ४ व ५ अगस्त २०१८ 
    शनिवार, रविवार प्रात: ७ बजे से 
    जैन मंदिर, खजुराहो (म.प्र.)
    डॉ. नवीन जैन जबलपुर,  डॉ. आशीष जी दिल्ली, डॉ.पारस भोपाल, डॉ. सुरेन्द्र टीकमगढ़, डॉ. शान्तिकांत मुंबई, डॉ. सुभाष उड़ीसा
    संपर्क सूत्र - 9837636708, 9425342180, 9827359275
    आयोजक - प्रबंध समिति दि. जैन अतिशय क्षेत्र व् जैन समाज खजुराहो
  17. संयम स्वर्ण महोत्सव
    संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के 50वें संयम स्वर्ण महोत्सव वर्ष के अंतर्गत देश-विदेश में हुए मुख्य कार्यक्रमों को श्री विद्यासागर कार्मिक जगत समाचार पत्र द्वारा 20 पृष्ठीय बहुरंगीय विशेषांक में प्रकाशित किया गया है।
     

  18. संयम स्वर्ण महोत्सव
    *परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* 
               के ससंघ सानिध्य में
         *चार दिवसीय भव्य कार्यक्रम* 
                     14 अगस्त 
            24 मुनिराजों का दीक्षा दिवस 
           
    15 अगस्त  -   स्वतंत्रता दिवस 
    16 अगस्त  - 25 मुनिराजो  का दीक्षा    
                             दिवस  
    17 अगस्त - मुकुट सप्तमी निर्वाण लाडू
                     एवं भगवान पार्श्वनाथ मोक्ष
                      कल्याणक महोत्सव 
    निवेदक -- श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र  प्रबंध समिति खजुराहो जिला छतरपुर
  19. संयम स्वर्ण महोत्सव
    चलो खजुराहो
    संयम स्वर्ण महोत्सव समापन समारोह
    सर्वोदय सम्मान 
     
    आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के 50 वर्ष  पूर्ण होने पर मनाए जाने वाले, संयम स्वर्ण महोत्सव के समापन अवसर पर आयोजित, नेपथ्य के नायकों का सम्मान सत्र 17 जुलाई 2018 ,मंगलवार ठीक दोपहर 2:00 बजे से  खजुराहो मध्य प्रदेश में प्रस्तावित है, वर्ष 2018 का यह सर्वोदय सम्मान देश के उन नायकों को दिया जा रहा है जो सामाजिक ,सांस्कृतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं, भारी मात्रा में शामिल होकर कार्यक्रम की गरिमा को दुगुना करें। कृपया इसे जन जन तक पहुँचाने में सहयोग करे
     
     
    वर्ष 2018 के हमारे 7 नक्षत्र अथवा नायक हैं-
    1.आदिलाबाद आंध्र प्रदेश में स्थित कला के स्वर्गीय रविंद्र शर्मा गुरुजी - कला ,कारीगरी एवं सामाजिक व्यवस्था के जानकार
    2.श्री एच वाला सुब्रमण्यम संगम एवं तमिल साहित्य के गैर हिंदी भाषी सुप्रसिद्ध अनुवादक. आपने दक्षिण भारत में हिंदी के प्रचार एवं प्रसार में निर्णायक भूमिका निभाई है
    3. टिहरी उत्तराखंड प्रदेश से आए हुए श्रीमान विजय जड़धारी जी. विजय जी चिपको आंदोलन की उपज है, और वर्तमान में बीज बचाओ आंदोलन से जुड़े हुए हैं.
    4. श्रीराम शर्मा जी मध्य प्रदेश से संबंध रखते हैं, आपके पास भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम आंदोलन के तमाम महत्वपूर्ण दस्तावेज यथा पत्र पत्रिकाएं ,अखबार एवं ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं का अद्भुत संग्रह है
    5. बाबा आया सिंह रियारकी महाविद्यालय जिला गुरदासपुर पंजाब  के संचालक गण. महिला शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ एक स्वदेशी प्रयोग, एक ऐसा अकादमिक संस्थान जो बालिकाओं के लिए बालिकाओं के द्वारा बालिकाओं का महाविद्यालय है.
    6. महाराष्ट्र राज्य के गढ़चिरौली जिले के मेडा लेखा गांव के भूतपूर्व सरपंच श्री देवाजी तोफा भाई. आपने गांधीवादी संघर्ष कर प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम वासियों के अधिकारों को सुनिश्चित किया. आप का नारा है हमारे गांव में, हम ही सरकार.
    7. राजस्थान उदयपुर के भाई रोहित जो विगत कई वर्षों से जैविक कृषि में संलग्न है और अपने प्रयोगों के माध्यम से इसे युवा पीढ़ी में लोकप्रिय भी कर रहे हैं
    8. श्री विष्णुभाई कांतिलाल त्रिवेदी - प्राचीन वास्तु शास्त्र के माध्यम से अद्भुत मंदिर श्रंखलाओं के  निर्माता एवं शिल्पकार| आपने मंदिरों का सम्पूर्ण कार्य नक्शों के मुताबिक घाड़ाई व फिटिंग का काम करवाया हैं जिसमे आपका ४५ वर्ष का अनुभव हैं |
    9 श्री शफीक जी खान - आप गौ संरक्षक एवं गाय संस्कृति के पालन हार |
     
     
     

  20. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दवा तो दवा,
    कटु या मीठी जब,
    आरोग्य पान |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  21. संयम स्वर्ण महोत्सव
    दायित्व भार,
    कंधो पर आते ही,
    शक्ति आ जाती |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  22. संयम स्वर्ण महोत्सव
    सामायिक में,
    करना कुछ नहीं,
    शांत बैठना |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  23. संयम स्वर्ण महोत्सव
    डूबना ध्यान,
    तैरना सामायिक,
    डूबो तो जानो |
     
     
    हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है।
     
    आओ करे हायकू स्वाध्याय
    आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार
    क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। सके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
×
×
  • Create New...