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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. आपे में न हो (नहीं), तभी तो अस्वस्थ हो, अब तो आओ। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  2. पाषाण भीगे, वर्षा में हमारी भी, यही दशा है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  3. सम्मुख जा के, दर्पण देखता तो (दर्पण में देखा पै) मैं नहीं दिखा। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  4. नय-नय है, विनय पुरोधा (प्रमुख) है, मोक्षमार्ग में। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  5. एक आँख भी, काम में आती पर, एक पंख क्या ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. चिन्तन न हो, तो चिन्ता मत करो, चित्त्स्वरुपी हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. स्थान समय, दिशा आसन इन्हें, भूलते ध्यानी। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. मन अपना, अपने विषय में, क्यों न सोचता ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. मूल बोध में, बड़ की जटायें सी, व्याख्यायें न हो। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. स्वानुभव की, प्रतिक्षा स्व करे तो, कान देखता। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. स्वानुभव की, समीक्षा पर करें, तो आँखें सुने। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. दुग्ध पात्र में, नीलम सा जीव है, तनु प्रमाण । हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. आलोचन से, लोचन खुलते हैं, सो स्वागत है। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. तुम्बी तैरती, औरों को भी तारती, छेद वाली क्या ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. क्या सोच रहे, क्या सोचूँ जो कुछ है, कर्म के धर्म। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  16. उनसे मत, डरो जिन्हें देख के, पारा न चढ़े। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  17. अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर की दार्शनिक पीठिका पर अनेक जैनाचायों ने समय-समय पर जीवन विज्ञान से सम्बन्धित अनेकविध काव्य, कलाविधाओं से संपोषित साहित्य रचकर भारतीय संस्कृति की विश्व पटल पर विशिष्ट पहचान दी है। प्रेरणा - मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी ससंग प्रसतुति- क्षुल्लक धैर्यसागर उसी परम्परा में २०वीं-२१वीं शताब्दी के साहित्य जगत में एक नये उदीयमान नक्षत्र के रूप में जाने-पहचाने जाने वाले शब्दों के शिल्पकार, अपराजेय साधक, तपस्या की कसौटी, आदर्श योगी, ध्यानध्याता-ध्येय के पर्याय, कुशल काव्य शिल्पी, प्रवचन प्रभाकर, अनुपम मेधावी, नवनवोन्मेषी प्रतिभा के धनी, सिद्धांतागम के पारगामी, वाग्मी, ज्ञानसागर के विद्याहंस, प्रभु महावीर के प्रतिबिंब, महाकवि, दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी की आध्यात्मिक छवि के कालजयी दर्शन, दर्शक को आनंद से भर देता है। सम्प्रदाय मुक्त भक्त हो या दर्शक, पाठक हो या विचारक, अबाल-वृद्ध, नर-नारी उनके बहुमुखी चुम्बकीय व्यक्तित्व-कृतित्व को आदर्श मानकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने आपको धन्य मानते हैं। माता-पिता की द्वितीय सन्तान किन्तु अद्वितीय कन्नड़ भाषी बालक विद्याधर की होनहार छवि को देख पिताजी ने कन्नड़ भाषा के विद्यालय में पढ़ाया। हिन्दीअंग्रेजी भी सीखी, आत्मा के दिव्य आध्यात्मिक संस्कारवयवृद्धि के साथ-साथ स्वयं जागृत होने लगे। ९ वर्ष की उम्र में जैनाचार्य शान्तिसागर जी के कथात्मक प्रवचनों से वैराग्य का बीजारोपण हुआ और धर्म-अध्यात्म में रुचि बढ़ती गई तथा २० वर्ष की उम्र में घर-परिवार के परित्याग का कठिन असिधारा व्रत ले निकल पड़े शाश्वत सत्य का अनुसन्धान करने के लिए। १९९९, गोम्मटगिरी, इन्दौर राजस्थान प्रान्त के अजमेर जिले के उपनगर मदनगंज-किशनगढ़ में सन् १९६७ मई/जून माह में नियति ने भ्रमणशील पगथाम लिए और पुरुषार्थी युवा ब्रह्मचारी गौरवणीं ज्ञानपिपासु विद्याधर अष्टगे को मिला दिया ज्ञानमूर्ति चारित्र विभूषण महाकवि ज्ञानसागर जी महामुनिराज से। गुरुभक्ति-समर्पण से गुरुकृपा का प्रसाद पाकर ३0 जून १९६८ को अजमेर में सर्व पराधीनता को छोड़ दिगम्बर मुनि बनकर शाश्वत सत्य की अनुभूति में तपस्यारत हो गए। जो धरती/काष्ठ के फलक पर आकाश को ओढ़ते हैं। यथाजात बालकवत् निर्विकरी, अनियत विहारी, अयाचक वृत्ति के धनी, भक्तों के द्वारा दिन में एक बार दिया गया बिना नमक-मीठे के, बिना हरी वस्तु के, बिना फलमेवे के सात्विक आहार दान ही लेते हैं, वो भी मात्र ज्ञानध्यान-तप-आराधना के उद्देश्य से। अहिंसा धर्म की रक्षार्थ अहर्निश सजग, करुण हृदयी मुनिवर श्री जी संयम उपकरण के रूप में सदा कोमल मयूर पिच्छी साथ रखते हैं, जिससे अपनी क्रियाओं में मृदु परिमार्जन करके जीवदया पालन से सह-अस्तित्व का आदर्श उपस्थित कर रहे हैं एवं शुचिता हेतु नारियल के कमण्डल के जल का उपयोग करते हैं, इसके अतिरिक्त तृणमात्र परिग्रह भी नहीं रखते। आपकी स्वावलम्बी, निर्मोही,समता ,सरलता सहिष्णुता की पराकाष्ठा के जीवन्त दर्शन प्रत्येक दो माह में दाढ़ी-मूछ-सिर के केशों को हाथों से घास-फ्रेंस के समान उखाड़कर अलग करते हुए होते हैं। आप अस्नानव्रत संकल्पी होने के बावजूद, ब्रह्मचर्य की तपस्या से आपने तन-मनवचन सदा पवित्र-सुगन्धित दैदीप्यमान रहते हैं। १९९९, गोम्मटगिरी इन्दौर-श्रीमान् अटल बिहारी बाजपेयी पूर्व प्रधानमंत्री, भारत सरकार एवं सांसद (वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष) सुमित्रा महाजन आपकी साधना-ज्ञान-ध्यान-चिन्तन गुरु के द्वारा दिए गए नाम-पद के सार्थक संज्ञा के पर्याय बन गए हैं। अलौकिक कृतित्व :- ऐसे दिव्य आचार-विचार-मधुर व्यवहार से आचार्य शिरोमणि की जीवन रूपी किताब का हर पन्ना स्वर्णिम भावों एवं शब्दों से भरा हुआ है, जिसे कभी भी कहीं भी कितना ही पढ़ो व्यक्ति थकता नहीं, उनको पढ़ने वाला यही कहते पाया जाता है कि आचार्य श्री जी के दिव्य दर्शन करते वक्त नजर हटती नहीं-उठने का मन नहीं करता, ऐसा लगता है मानो प्रभु महावीर जीवन्त हो उठे हों। यही कारण है कि आपके दिव्य तेजोमय आभा मण्डल के प्रभाव से उच्च शिक्षित युवा-युवतियाँ जवानी की दहलीज पर आपश्री के चरणों में सर्वस्व समर्पण कर बैठे। जिनमें भारत के १० राज्यों के युवक-युवतियों को १२० दिगम्बर मुनि, १७२ आर्यिकाएँ (साध्वियाँ), ६४ क्षुल्लक (साधक), ३ क्षुल्लिका (साध्वियाँ), ५६ ऐलक (साधक) की दीक्षा देकर मानव जन्म की सार्थक साधना करा रहे हैं। इनके अतिरिक्त आपके निर्देशन में सहस्त्रार्ध बाल ब्रह्मचारी भाई-बहन साधना के क्रमिक सोपानों पर साधना को साध रहे हैं एवं आपश्री के नियपिकाचार्यत्व में ३0 से अधिक साधकों ने जीवन की संध्या बेला में आगमयुक्त विधि से सल्लेखना पूर्वक समाधि धारण कर जीवन के उद्देश्य को सार्थक किया है। महापुरुष का सार्वभौमिक कृतित्व :- ज्ञान-ध्यान-तप के यज्ञ में आपने स्वयं को ऐसा आहूत किया कि अल्पकाल में ही प्राकृत-संस्कृत-अपभ्रंशहिन्दी-अंग्रेजी-मराठी-बंगाली-कन्नड़ भाषा के मर्मज्ञ साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। (I)आपने प्राचीन जैनाचायों के २५ प्राकृत-संस्कृत ग्रन्थों का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद कर पाठक को सरसता प्रदान की है १.समयसार (प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामीकृत) पद्यानुवाद २.प्रवचनसार (प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामीकृत) पद्यानुवाद ३.नियमसार (प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामीकृत) पद्यानुवाद ४.पञ्चास्तिकाय (प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामीकृत) पद्यानुवाद ५.अष्टप्पाहुड(प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामी कृत) पद्यानुवाद ६.बारसाणुवेक्खा (प्राकृत आ.कुन्दकुन्दस्वामी कृत) पद्यानुवाद ७.समयसार कलश (संस्कृत, अमृतचंदाचार्यकृत) पद्यानुवाद ८.इष्टोपदेश प्र.(संस्कृत,आ. पूज्यपादकृत) बसंततिलका पद्यानुवाद ९.इष्टोपदेश द्वि.(संस्कृत,आ. पूज्यपादकृत)ज्ञानोदय पद्यानुवाद १o.समाधिशतक (संस्कृत,आ. पूज्यपादकृत) पद्यानुवाद ११.नव भक्तियाँ(संस्कृत,आ. पूज्यपादकृत) पद्यानुवाद १२.स्वयंभूस्त्रोत(संस्कृत,आ.समन्तभद्रकृत) पद्यानुवाद १३.रत्नकरण्डक श्रावकाचार (संस्कृत,आ.समन्तभद्रकृत) पद्यानुवाद १४.आप्त मीमांसा(संस्कृत,आ. समन्तभद्रकृत) पद्यानुवाद १५.आप्तपरीक्षा (संस्कृत,आ.समन्तभद्रकृत) पद्यानुवाद १६.द्रव्यसंग्रह प्र.(प्राकृत,आ.नेमिचन्द्र कृत) बसंततिलका पद्यानुवाद १७.द्रव्यसंग्रह द्वि.(प्राकृत, आ.नेमिचन्द्रकृत) ज्ञानोदय पद्यानुवाद १८.गोम्मटेश अष्टक(प्राकृत,आ.नेमिचन्द्रकृत) पद्यानुवाद १९.योगसार (अपभ्रंश,आ.योगेन्द्रदेवकृत) पद्यानुवाद २0.समणीसुत (प्राकृत,संस्कृत,जिनेन्द्रवर्णीद्वारा संकलित) पद्यानुवाद २१.कल्याणमन्दिर स्तोत्र (संस्कृत,आ.कुमुदचन्द्रकृत) पद्यानुवाद २२.एकीभाव स्तोत्र (संस्कृत,आ.वादीराज कृत) पद्यानुवाद २३.जिनेन्द्र स्तुति (संस्कृत,पात्र केसरी कृत) पद्यानुवाद २४.आत्मानुशासन (संस्कृत, आ.गुणभद्रकृत) पद्यानुवाद २५.स्वरूप सम्बोधन (संस्कृत,आ. अकलंक कृत) पद्यानुवाद (II)आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रेरणादायक युगप्रवर्तक महाकाव्य 'मूकमाटी' का सर्जन कर साहित्य जगत् में चमत्कार कर दिया है। जिसे साहित्यकार 'फ्यूचर पोयट्री' एवं श्रेष्ठ दिग्दर्शक के रूप में मानते हैं। विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र को सपाटबयानी, अज्ञेय का शब्द विन्यास, निराला की छान्दसिक छटा, पन्त का प्रकृति व्यवहार, महादेवी की मसृष्ण गीतात्मकता, नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह'मूकमाटी' में देखी जा सकती है। ५ नवंबर, २oo३ अमरकंटक-माननीय भैरोसिंह शेखावत, उपराष्ट्रपति, भारत सरकार १४/१o/२o१६, भोपाल-श्रीमान् नरेन्द्र मोदी जी, वर्तमान प्रधानमंत्री, भारत सरकार सम्प्रति साहित्य जगत् 'मूकमाटी' महाकाव्य को नये युग का महाकाव्य के रूप में समादृत करता है। यही कारण है कि 'मूकमाटी' महाकाव्य के दो अंग्रेजी रूपान्तरण, दो मराठी रूपान्तरण, एक कन्नड़, एक बंगला, एक गुजराती रूपान्तरण हो चुका है एवं उर्दू व जापानी भाषा में अनुवाद का कार्य चल रहा है। प्राकृत महाकाव्य पर अनेकों स्वतन्त्र आलोचनात्मक ग्रन्थों के अतिरिक्त ४ डी.लिट्, २२ पी.एच. डी., ७ एम.फिल के शोधप्रबन्ध तथा २ एम. एड. और ६ एम.ए. के लघु शोध प्रबन्ध लिखे जा चुके/रहे हैं। इस कालजयी कृति पर अब तक भारत के विख्यात ३०० से अधिक समालोचकों ने आलोडन-विलोडन किया है तथा उस अपूर्व साहित्यिक सम्पदा को प्रसिद्ध विद्वान डॉ. प्रभाकर माचवे एवं आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के सम्पादकत्व में 'मूकमाटी मीमांसा' नामक ग्रन्थ के रूप में पृथक्पृथक् तीन खण्डों में भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन ने प्रकाशित किए हैं। (III)आपने नीति-धर्म-दर्शन-अध्यात्म विषयों पर संस्कृत भाषा में ७ शतकों और हिन्दी भाषा में १२ शतकों का सर्जन किया है, जो पृथक्-पृथक् एवं संयुक्त रूप से प्रकाशित हुए हैं संस्कृत शतकम्- १.श्रमण शतकम् २.निरंजन शतकम् ३.भावना शतकम् ४.परीषहजय शतकम् ५.सुनीति शतकम् ६.चैतन्य चन्द्रोदय शतकम् ७.धीवरोदय शतकम् ९.पूर्णीदय शतक ८.सूर्योदय शतक ९.सर्वोदय शतक १०.जिनस्तुति शतक हिन्दी शतक- १.निजानुभव शतक २.मुक्तक शतक ३.श्रमण शतक ४.निरंजन शतक ५.भावना शतक ६.परीषहजय शतक ७.सुनीति शतक ९.दोहदोहन शतक १०.पूर्णोदय शतक ११.सूर्योदय शतक १२.सर्वोदय शतक १३.जिन्स्तुति शतक (IV)आपके शताधिक अमृत प्रवचनों के ५० संग्रह ग्रन्थ भी पाठकों के लिए उपलब्ध हैं एवं त्रिसहस्राधिक प्रवचनावली अप्रकाशित हैं। (V)आपके द्वारा विरचित हिन्दी भाषा में लघु कविताओं के चार संग्रह ग्रन्थ-"नर्मदा का नरम ककर, तोता क्यों रोता, डूबोमत लगाओ डुबकी, चेतना के गहराव में" ये प्रकाशित कृतियाँ साहित्य जगत् में काव्य सुषमा को विस्तारित कर रही हैं। (VI)आपने संस्कृत, हिन्दी के अतिरिक्त कन्नड़, बंगला, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में भी काव्य रचनाओं का सर्जन किया है। साथ ही 'आचार्य शान्तिसागर जी, आचार्यजी' की परिचयात्मक स्तुतियों की रचना एवं संस्कृत, हिन्दी में शारदा स्तुति की रचना की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र जी मोदी, मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री श्रीमान् शिवराज सिंह जी चौहान एवं रक्षामंत्री श्रीमान् मनोहर पर्रीकर (VII)आपने जापानी छन्द की छायानुसार सहस्राधिक हाईकू (क्षणिकाओं) का सर्जन कर साहित्य क्षेत्र में अपनी अनोखी प्रतिभा के प्रातिभ से परिचय कराया है। राष्ट्रीय विचार सम्प्रेरक और सम्पोषक के रूप में प्रसिद्ध आचार्य श्री जी ने अपने विचारों से, भारती संस्कृति के गौरव को बढ़ाया है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, गुजरात आदि प्रदेशों की लगभग ५० हजार किलोमीटर की पदयात्रा कर राष्ट्रीयता एवं मानवता की पहरेदारी में कदमदर-कदम आदर्श पदचिहों को स्थापित किया है। आपकी अनेकान्ती स्याद्वादमयी वाणी सम्प्रेरित करती है-(क) भारत में भारतीय शिक्षा पद्धति लागू हो। (ख) अंग्रेजी नहीं भारतीय भाषा में हो व्यवहार। (ग) छात्र-छात्राओं की शिक्षा पृथक्पृथक् हो। (घ) विदेशी गुलामी का प्रतीक 'इण्डिया' नहीं, हमें गौरव का प्रतीक ' भारत' नाम देश का चाहिए। (ड) नौकरी नहीं व्यवसाय करो। (च) चिकित्सा : व्यवसाय नहीं सेवा है। (छ) स्वरोजगार को सम्वद्धित करो। (ज) बैंकों के भ्रमजाल से बचो और बचाओ। (झ) खेतीबाड़ी सर्वश्रेष्ठ। (ज) हथकरघा स्वावलम्बी बनने का सोपान। (ट) भारत की मर्यादा साड़ी। (ठ) गौशालाएँ जीवित कारखाना। (ड) माँस निर्यात देश पर कलंक। (ढ़) शत-प्रतिशत मतदान हो। (ण) भारतीय प्रतिभाओं का निर्यात रोका जाए, आदि। उपरोक्त ज्वलन्त प्रासंगिक विषयों पर जब आपकी दिव्य ओजस्वी वाणी प्रवचन सभा में शंखनाद करती है तब सहस्रों श्रोतागण करतल ध्वनि के साथ विस्तृत पाण्डाल को जयकारों से गुंजायमान कर पूर्ण समर्थन कर परिवर्तन चाहते हैं। अहिंसा के पुजारी आचार्य श्री का दयालु हृदय तब सिसक-सिसक उठा जब उन्होंने देखा कृषि प्रधान अहिंसक देश में गौवंश आदि पशुधन को नष्ट कर माँस निर्यात किया जा रहा है तब उन्होंने हिंसा के ताण्डव के बीच अहिंसा का शंखनाद किया गोदाम नहीं-गौधाम चाहिए। भारत अमर बने- अहिंसा नाम चाहिए। घी-दूध-मावा निर्यात करो। राष्ट्र की पहचान बने ऐसा काम चाहिए। जो हिंसा का विधान करे, वह सच्चा संविधान सार नहीं। जो गौवंश काट माँस निर्यात करे, वह सच्ची सरकार नहीं। (१)अहिंसा के विचारों को साकार रूप देने के लिए आपने प्रेरणा दी-आशीवाद प्रदान किया। फलस्वरूप भारत के पाँच राज्यों में ७२ गौशालाएँ संचालित हुई जिनमें अद्यावधि एक लाख से अधिक गौवंश को कत्लखानों में कटने से बचाया गया। (२)प्रदूषण के युग में बीमारियों का अम्बार और व्यावसायिक चिकित्सा के विकृत स्वरूप के कारण गरीब मध्यम वर्ग चिकित्सा से वंचित रहने लगा तो इस अव्यावहारिक परिस्थिति से आहत-दयाद्र आचार्य श्री की पावन प्रेरणा से सागर (म.प्र.) में ‘‘ भाग्योदय तीर्थ धर्मार्थ चिकित्सालय' की स्थापना हुई। प्रतिभास्थली, जबलपुर (३)सुशासन-प्रशासन के लिए सर्वोदयी राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत आचार्य श्री जी की लोकमंगल दायी प्रेरणा से पिसनहारी मढ़ियाजी जबलपुर एवं दिल्ली में ‘प्रशासनिक प्रशिक्षण केन्द्र" की स्थापना हुई। हथकरधा (४)बालिका शिक्षा ने जोर पकड़ा किन्तु व्यावसायिक संस्कार विहीन शिक्षण ने युवतियों को दिग्भ्रमित कर कुल-परिवार-समाज-संस्कृति के संस्कारों से रहित सा कर दिया। ऐसी दु:खदायी परिस्थिति को देख आचार्य श्री जी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से देश-समाज के समक्ष आधुनिक एवं संस्कारित शिक्षा के तीन आदर्श विद्यालय स्थापित किए गए-'प्रतिभा स्थली', जबलपुर (म.प्र.), डोंगरगढ़ (छ.ग.), रामटेक (महाराष्ट्र)। इसके अतिरिक्त जगह-जगह छात्रावास स्थापित किए गए जिनमें (५)गरीब एवं विधवाओं की तंगस्थिति देख करुणाशील आचार्य श्री जी की सुप्रेरणा से जबलपुर (म.प्र.) में लघु उद्योग 'पूरी मैत्री'संचालित किया गया। (६)विदेशी कम्पनियों के मकड़जाल ने स्वदेशी उद्योगों को समाप्त किया, फलितार्थ करोड़ों लोग बेरोजगार हुए और उनके समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हुआ। देश का जीवन विपत्तीग्रस्त अशांत, दु:खी देख, आचार्य श्री जी द्रवीभूत हो उठे और गाँधी जी के द्वारा सुझाये गये स्वदेशी अहिंसक आजीविका 'हथकरघा' की प्रेरणा दी जिससे समाज ने महाकवि पं. भूरामल समाजिक सहकार न्यास हथकरघा प्रशिक्षण केन्द्र की अनेकों स्थानों पर शाखाएँ अशोकनगर, भोपाल आदि प्रमुख हैं तथा आचार्य ज्ञानविद्या लोक कल्याण हथकरघा केन्द्र मुंगावली के अन्तर्गतः मुंगावली, गुना, आरोन आदि स्थानों पर हथकरघा शाखाएँ खोली गई। सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुरजी दमोह (म.प्र.) में बड़े बाबा का निर्माणाधीन विशाल भव्य मन्दिर 1.आचार्यश्री जी की दूरदर्शिता ने जैन संस्कृति को हजारों-हजार साल के लिए जीवित बनाए रखने हेतु प्राचीन मन्दिरों की पाषाण निर्मित शैली को ही अपनाने की बात कही। आचार्य भगवन् के ऐतिहासिक सांस्कृतिक चिंतन से प्रभावित होकर उनकी प्रेरणा से अनेक स्थानों की समाजों ने पाषाण से भव्य विशाल जिनालयों के निर्माण हेतु आचार्यश्री जी के ही पावन सान्निध्य में शिलान्यास किए १.गोपालगंज, जिला-सागर (म.प्र.) २.सिलवानी, जिला-रायसेन (म.प्र.) ३.टड़ा, जिला-सागर (म.प्र.) नवनिर्मित सर्वोदय तीर्थक्षेत्र, अमरकंटक (म.प्र.) ४.नेमावर, जिला–देवास (म.प्र.) ५.हबीबगंज, भोपाल (म.प्र.) ६.तेंदूखेड़ा,जिला-दमोह (म.प्र.) ७.देवरी कलौं, जिला-सागर (म.प्र.) ८.रामटेक, जिला-नागपुर (महा.) ९.इतवारी,नागपुर (महा.) १०.विदिशा (म.प्र.) ११.नक्षत्र नगर, जबलपुर (म.प्र.) १२.डिंडोरी (म.प्र.) नवनिर्मित सर्वोदय तीर्थक्षेत्र, अमरकंटक (म.प्र.) 2.इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार समय की माँग को देखते हुए कई नए तीर्थों की परिकल्पना को आचार्यश्री जी ने मूर्तस्वरूप प्रदान करने हेतु प्रेरणा एवं आशीर्वाद प्रदान किया। फलस्वरूप नए तीर्थों का जन्म हुआ १.सर्वोदय तीर्थ, अमरकंटक, जिला-शहडोल (म.प्र.) २.भाग्योदय तीर्थ, सागर (म.प्र.) ३.दयोदय तीर्थ, जबलपुर (म.प्र.) ४.सिद्धक्षेत्र सिद्धोदय, नेमावर, जिला-देवास (म.प्र.) ५.अतिशय क्षेत्रचन्द्रगिरि, डोगरगढ़ (छ.ग.) 3.आचार्य भगवन् ने जिन तीर्थों पर चातुर्मास, ग्रीष्मकालीन या शीतकालीन प्रवास किया। वहाँ पर जीर्णशीर्ण मन्दिरों का जीणों द्वार कराया १.अतिशय तीर्थक्षेत्र कोनी जी, जिला-जबलपुर (म.प्र.) २.सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर,जिला-दमोह (म.प्र.) ३.अतिशय तीर्थक्षेत्र बीना जी बारहा, सागर (म.प्र.) ४.अतिशय तीर्थक्षेत्र पटनागंज, रहली, सागर (म.प्र.) आपकी दिव्य दया के अनेकों सत्कार्य समाज में प्रतिफलित हो रहे है।
  18. Based on the philosophical foundation enunciated by the last Teerthankar Bhagwan Shri Mahaveer and many Jain Aachaaryas, from time to time, have composed a variety of literature related to life sciences adorned by poetry and other arts that have placed Bharatiya culture in a distinguished and unique spot on the global canvas. प्रेरणा - मुनि पुंगव श्री सुधा सागर जी ससंग प्रसतुति- क्षुल्लक धैर्यसागर In the same tradition, in the world of literature of the 20"-21" century arose a new star as the one who is deft in the art of using simple words, invincible seeker, benchmark of austerity, ideal yogi, at the pinnacle of meditative state, poet laureate, brilliant preacher, possessor of keen intellect, talented innovator, erudite scholar of "Siddhantagam", eloquent orator, prodigious ocean of knowledge and a reflection of BhagwanMahaveer in the form of great poet Digambar Aacharya 108 Shri Vidyasagarji Maharaj, the very sight of whose image of the enlightened soul fills one with immense bliss. Whether a devotee from any creed or a mere onlooker, a casual reader ora serious thinker, young or old, male or female, everybody considers themselves blessed by emulating the ideals of his multi-faceted magnetic personality and strength of character. Second child to his parents, but with intellect second to none, young Kannada speaking Vidyadhar was enrolled by his father in a Kannada School where he also learned Hindi and English. The strength of spiritual traditions spontaneously awakened and grew in him along with his age. At the age of nine years, the seeds of detachment were firmly planted in his mind by the narrative discourses of Aacharya Shri Shanti Sagar ji Maharaj. His interests in the spiritual path deepened with every day so much that at the age of twenty, he renounced his home and family and took the difficult Solemn vows to seek the eternal truth. 1999, Gommatgiri, indore In Madanganj-Kishangarh, District Ajmer, Rajasthan, in May 1967, destiny brought the wandering young celibate Vidyadhar Ashtge engaged in pursuit of learning to the feet of his Guru - the very embodiment of highest knowledge and conduct-the great poet Aacharya Shri 108 Gyansagarji Maharaj. Through his steadfast devotion and surrender to his Guru, Vidyadhar earned his blessings to become a 'Digambara Jain Monk' by renouncing all dependencies and started observing severe penances to experience the eternal truth. As a Digambara Monk, he sleeps on earth or a wooden board with sky alone as a cover, lives life with the detached innocence of a newly born, incessantly wandering. Enriched by the freedom from desires, he partakes food offered by devotees only once a day and even that which is without sugar, salt, green vegetables, fruits or sweets, with the sole objective of merely sustaining a body capable of pursuing knowledge, meditation and advancing austerities. To support the principle of non-violence, the ever vigilant and compassionate Aacharya Shrikeeps a soft Pichhi made of peacock feathers used to gently sweep away any small life forms that may be injured by his daily activities, presenting a standard of ideal of co-existence of all living beings. Similarly, he keeps a Kamandal made of coconut to carry water utilized for maintaining simple and essential personal hygiene. Besides these, two items used solely to fulfill his vows of self-restraint (sanyam), he does not possess an iota of worldly goods. The pinnacle of his independence, detachment, equanimity, simplicity and tolerance is demonstrated every two months when he plucks the hair of his head, beard and moustache by his own hands akin to plucking grass from the earth without a slightest flinch from pain. 1999, Gommatgiri, Indore - Atal Bihari vajpayee P.M. of Bharat (1998-2004) & Sumitra Mahajan, Member of Parliament (Present Speaker of the Lok Sabha) His penances and celibacy lends his body, mind and words a certain purity, fragrance and glow even though he does not take bath ever because of his "Asnan Vow'. Thus, every page of the life book of "Shri Aacharya Shiromani" is filled with divine thoughts, conduct and loving feelings that one never gettired of reading. Everyone agrees that in his presence, it is impossible to take your eyes off him and no one wish to leave his presence. It feels like as if Bhagwan Mahaveer has comeback to life again. This is the very reason that attracted by his divine brilliant glow many a highly educated men and women, even though at the threshold of youth, have completely surrendered themselves at his feet. Hailing from ten different states of Bharat, there are one hundred and twenty "Monks (Munis), one hundred and seventy 'Aaryika (Matajis)', sixty four 'Kshullak Sadhakas', three 1999, Gommatgiri, Indore-Atal Bihari Vajpayee P.M. of Bharat (1998–2004) & Sumitra Mahajan, Member of Parliament (Present Speaker of the Lok Sabha.) "Kshullika Sadhvis', fifty six 'Ailak Sadhakas' who have accepted initiation ("Deeksha") from Acharya Shri who is guiding them towards making their human birth successful. Besides, more than five hundred brothers and sisters observing celibacy since birth are also treading the path of penance for liberation of soul, under guidance of Acharya Shri. Universal creations of this "Mahapurush': Acharya Shri has so deeply dedicated himself in the "Yajna' of knowledge, meditation & penance that in very short period, he became famous as a great and deeply knowledgeable writer of Prakrit, Sanskrit, Apabhransha, Hindi, English, Marathi, Bengali & Kannada. He has translated Twenty four Prakrit & Sanskrit scriptures of ancient Jain Acharyas in Hindi to enlighten the readers. His creation "Mookmaati", an inspiring, unique piece of literature in Hindi is nothing short of a miracle and has been accepted as a "Future of Poetry" by many Literary-writers, serving as a guide to future aspirants in this field. The experts concur that amongst all modern literature, the essential style of "Sapat Bayani" of Bhavani Prasad Mishra, "Shabda Vinyas" of Adneyaji, "Chhandasik Chhata" of Nirall, "Prakriti Vyavahar" of Nagarjun, "Baatkahi viritti" of Kedarnath Agrawal, "Fantasy Sanrachana" of mukhboth and "Tuk sangati" of Dhoomil can all be experienced togetherin one place only in "Mookmaati". The literary world hails Mahakavya "Mookmaati" as a unique, remarkable epic of modern era. This is the reason that "Mookmaati" has three translations in English, two in Marathi and one each in Kannada, Bangla, Gujarati and Tamil . On this great epic, besides many independent critiques, many a thesis leading to 4 D.Lit, 22 Ph.D, 7 M.Phil & 2 M.Eds with 6 M.A.s have been written and many more are in process. This classic epic has been a subject of reviews written by more than three hundred eminent critics of Bharat. This unique gem of literature has been published by the name of "Mookmati Mimansa” by Bhartiya Gyanpeeth in three separate volumes, under the editorial of eminent Scholars Dr. Prabhakar Machare and Acharya Ramamurti Pathak. Acharya Shri has also created six books in Sanskrit and twelve in Hindi containing hundred shlokas each on topics of Ethics, Religion, Philosophy and Spirituality which have been published separately as well as an anthology. There are more than fifty books compilations of over hundred discourses by Aacharya Shri available for readers. Four books of small poems named "Narmada Ka Naram Kankar, Tota Kyon Rota, Dubo Mat Lagao Dubaki and Chetana Ke Gahrao Mein" have also been written by Acharya Shri. These published creations grace the art of poetry in the literary world. 5 Nov. 2003 Amarkantak - Bhairon Singh Shekhawat Vice-President of Bharat (2002 - 2007) 14 Oct. 2016, Bhopal - Narendra Modi current Prime Minister of Bharat Acharya Shri has also created poems in Sanskrit, Hindi, Kannada, Bangala, English & Prakrit. Acharya Shri's extraordinary unique talent is also exhibited in his creation of five hundred Haikus consistent With rules of this traditional form of Japanese poetry. Acharya Shri has enhanced the glory of Bhartiya Culture by nurturing and inspiring national identity. He has travelled more than fifty thousand kilometers barefoot covering the states of Rajasthan, U.P., Maharashtra, Bihar, Bengal, Orissa, Chattisgarh, M.P., Jharkhand, and Gujarat establishing each step of the way ideals for nationality and humanity. His comprehensive style accommodating multiple perspectives inspire usto: Implement Bhartiya Education system in Bharat. Conduct affairs of Bharat in a Bharatiya language, not in a foreign language like English. Provide separate schools for boys and girls. Stop calling our country "India' - a symbol of slavery and instead use the name "Bharat' - a symbol of our national pride. Say "No" to services and "Yes" to business & professions. Medical profession is not a business, but a service to mankind. Develop self-sufficiency by creating Self Employment. Protect ourselves & others from the delusions of the banking system. Consider Agriculture as the best of all professions. Hathkargha as a step towards self-sufficiency. Saarias representing dignity of Bharat. Cow Dairies as living factories. Meat Exportas a disgrace for Bharat. Support full one hundred percent participation in voting during elections Brain drain should be banned. And many more. Bhopal - Narendra Modi Prime Minister , Shivraj Singh Chouhan Chif Mintister of M.P., Manohar Parrikar Defence Minister of Bharat During his religious discourses, when Acharya Shri makes the clarion call on the above issues with his divine powerful oratory, thousands of people in the audience applaud in complete accord and rise in unison demanding change. The compassionate Devotee of Nonviolence, Acharya Shri is moved to tears when in this agriculture based nation with non-violence as heritage, cows and other livestock animals are being killed for exporting their meat. Amidst this dance of destruction, he makes his clarion call for non-violence cow shelters and not slaughterhouses, Let Non-Violence immortalize Bharat Export ghee and milk products that symbolizes Bharat The constitution that allows violence does not represent Bharat The Government exporting meat should not govern Bharat Pratibhasthali, Jabalpur To bring the thoughts of non-violence into action, he inspired and blessed establishing cow shelters. As a result, seventy two cow shelters in five states have been established and are operating successfully, where more than one lakh of cows have been saved from slaughter houses. In this presentera of pollution with the plethora of various diseases and perverted medicalprofession, the poor and middle class people are being deprived of proper treatment. Saddened by this situation, the compassionate Acharya Shri inspired to launch "Bhagyodaya Teerth Charitable Hospital" a religiously run hospital, which provides healthcare to poor and needy people in Sagar, Madhya Pradesh. Imbued with nationalistic consciousness and with the objective of establishing good governance, he inspired the creation of "Administrative Training Center” in Madiyaji, Jabalpur & Delhi to provide proper training to aspiring administrators. The increased demand for education of girls with professional orientation devoid of family values is causing the breakdown of family system that formed the backbone of society. To correct this sad state of affairs, Acharya Shri inspired and blessed creation of ideal schools to provide modern education along with traditional values. Three schools named "Pratibhasthali" have been established in Jabalpur (M.P.), Dongargarh (Chattisgarh) and Ramtek (Maharashtra) along with girls hostel in many cities such as Jaipur, Agra, Indore, Jabalpur and Hyderabad. The plight of poor and widowed women moved the compassionate Acharya Shri to inspire creation of "Poori Maitry", a small scale Industry, at Jabalpur (M.P.) The proliferation of foreign businesses in Bharat are ruining the indigenous businesses causing loss of livelihood to crores of people. This distressed and miserable state of people melted the heart of Acharya Shri. He inspired revitalization of Gandhian solution for self-sufficiency by earning livelihood based on indigenous nonviolent Hathkargha. This has led to successful establishment of "Hathkargha" Industries throughout the country. Due to his auspicious grace, many good works are being done for uplifting the Society. Hathkargha
  19. वीतरागी गुरुओं का जीवन दया और करुणा से भरा हुआ होता है। वह अपने दु:ख को सहन करने के लिए वज्र के समान कठोर हो जाते हैं, और दूसरे के दु:ख को देखकर नवनीत या मोम की तरह पिघल जाते है जब मेरे पैर में तकलीफ थी, तब आचार्य श्री जी कक्ष के सामने से देव वंदना के लिए निकले। कुछ 10-25 कदम आगे निकल गए, अचानक उन्हें कुछ याद आया, कि मुझे पैर में दर्द है। देव वंदना के पूर्व ही मेरे कक्ष में लौट कर आ गए। मैंने नमोस्तु करते हुए कहा- "आचार्य श्री जी आप देव वंदना के बाद भी तो आ सकते थे, आप बीच से ही लौट आए?" आचार्य श्री ने कहा- "हाँ! ठीक है। यह भी तो जरूरी है। कैसी है तकलीफ?" यह उनकी दया और अनुकंपा है, जिसे हम मात्र अनुभूत कर सकते हैं, शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं कर सकते। इससे गुरु से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि मंदिर जाने से पहले किसी को दु:ख है, तो उसमें संवेदना व्यक्त करनी चाहिए। दया-अनुकंपा सबसे जरुरी है। आचार्य श्री जी ने लिखा भी है। पर की पीड़ा हमारी करुणा की परीक्षा लेती दूसरे के दुख को दूर करने के भाव करना भी उपाय विचय धर्म ध्यान माना जाता है। गुरुवर का दिल दु:ख गया, देख पराई पीर। दयोदय का उद्भव हुआ, तिलवारा के तीर।। पूज्य मुनि श्री कुंथु सागर जी महाराज द्वारा लिखित "संस्मरण" पुस्तक से।
  20. ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 53☀☀ ? परीषय-विजय ? आचार्य महाराज का उन दिनों बुन्देलखंड में प्रवेश हुआ था।उनकी निर्दोष मुनि-चर्या और अध्यात्म का सुलझा हुआ ज्ञान देखकर सभी प्रभावित हुए।कटनी में आए कुछ ही दिन हुए थे कि महाराज को तीव्र ज्वर हो गया। प.जगन्मोहनलाल जी की देखरेख में उपचार होने लगा।सतना से आकर नीरज जी भी सेवा में संलग्न थे।एक दिन मच्छरों की बहुलता देखकर पंडित जी ने रात्रि के समय महाराज के चारों ओर पूरे कमरे में मच्छरदानी लगवा दी। सुबह जब महाराज ने मौन खोला तो कहा कि- यह सब क्या किया ? पंडित जी!ने तो पहले ही सोच लिया था,सो बोले कि- "महाराज ! आप तो शरीर के प्रति निर्मोही हो,उपचार भी नहीं करने देते।पर क्या करें,ज्वर के कीटाणुओं से आपका शरीर इतना विषाक्त हो गया है कि आपको काटने वाले मच्छरों को पीड़ा होती है।उन बेचारों की सुरक्षा के लिए यह उपाय करना पड़ा।" आचार्य महाराज अस्वस्थता के बावजूद भी खूब हँसे।कहने लगे कि- "पंडित जी ! संसारी प्राणी अपने शरीर के प्रति अनुरागवश ऐसे ही तर्क देकर उसकी सुरक्षा में लगा है और निरन्तर दुखी है।मोक्षार्थी के लिए ऐसी शिथिलता से बचना चाहिए और परिषह-जय के लिए तत्पर रहना चाहिए।कर्म-निर्जरा तभी संभव होगी।" पंडित जी क्या कहते ? विनत भाव से आगम के अनुरूप आचरण करने वाले,परीषह-विजयी, शिथिलताओं से दूर और कर्म-निर्जरा में तत्पर आचार्य महाराज के चरणों में झुक गए और सदा के लिए उनके भक्त हो गए। ✏पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानों अपने गुरु की ही धारा में बहता था. साये की तरह आचार्य श्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक 'आत्मान्वेषी' में संकलित किया | उक्त संस्मरण 'आत्मान्वेषी' से ही लिया गया है | (कटनी 1976) ? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ? ✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
  21. ☀☀ 52वां स्वर्णिम संस्मरण ☀☀ ? बालक समान भोले ? आचार्य ज्ञानसागर जी के पास मेरे जैसे(विद्याधर)बच्चों की अनवरत भीड़ लगी रहती थी। उनमें कितनी दया और करुणा होगी कि मुझसे यह भी नहीं पूछा कि-तुम कितने पढ़े हो और पूछ भी लेते तो बताने की हिम्मत भी मुझ में नहीं होती,कौन सी भाषा में हम बताते। वह करुणावान थे।ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो उनके बाद नि:संकोच नहीं होता हो। (आचार्य विद्यासागर जी) अपने गुरु के समान ही आचार्य श्री जी में उनके गुरु के अनंत गुण समाहित हैं। बात 9 सितम्बर 2017 रामटेककी है। शाम के समय आचार्य भक्ति के बाद लगभग 6:40 पर आचार्य जी के पास एक 10,12 वर्ष का बच्चा आया।हम उस समय आचार्य जी के चरणों के नीचे बैठकर उनकी वैयावृत्ति कर रहे थे,साथ में हमारे साथ कही के कलेक्टर भी वहीं पर बैठे हुए थे।उस बच्चे ने आचार्य जी से कहा- "महाराज जी आप हमारे चौके में क्यों नहीं आते।"आचार्य श्री जी हंसने लगे, और हँसकर कहा- जाप दो उस बच्चे ने आचार्य श्री जीसे फिर कहा- हम आपको आहार देने आज आए थे,लेकिन लोगों ने हमें अंदर जाने नहीं दिया, बाहर से ही भगा दिया आचार्य श्री जी ने फिर हँसकर कहा- भगा दियाउस बच्चे ने कहा- हा महाराज जी, गुरुजी ने फिर कहा- अच्छा ऐसी बात है, आहार नही देने दियाउस बच्चे ने फिर कहा कि- महाराज जी मैं जाप दूंगा तो क्या आप मेरी चौके में आओगे आप कल मेरे चौकी में आ जाना please आचार्य श्री जी जोर-जोर से हंसने लगे, हम लोग वही बाजू में बैठकर ये सब देख रहे थे, उन्हें देखकर बहुत ही ज्यादा आनंद की अनुभूति हो रही थी उस समय गुरुजी बालक के समान भोले लग रहे थे। गुरुवर को सूरज कहूँ तो सूरज में भी आग है, गुरुवर को चाँद कहूं तो चाँद में भी दाग हैं। जितनी उपमाएं दे गुरुवर को,गुरुवर उनसे अच्छे है वह शिशु के जैसे भोले और भगवान के जैसे सच्चे हैं। सच बात है , गुरुजी के पास जो भी जाता है, वह उन्ही का हो जाता है, चाहे वह बालक हो या वृद्ध या युवा, सब उनके दीवाने हो जाते है, अनेक बार उनके दर्शनों के पश्चात भी उनके दर्शन की प्यास लगी ही रहती है। उनका आभामंडल ऐसा है कि मुख से शब्द भी नहीं निकलते और दुनिया के कोने-कोने से भक्त उमड़ पड़ते हैं,उनकी एक झलक देखकर लोगों की आंखों से झर झर आंसू निकल पड़ते हैं,उनकी भोली मुस्कुराहट के आगे दुनिया की संपूर्ण संपदा बोनी हो जाती है और लोग अपलक निहारते रहते हैं।
  22. ☀☀ 51वां स्वर्णिम संस्मरण ☀☀ ? महान आचार्य ? नैनागिरी पंचकल्याणक पूरे हुए।गजरथ की प्रदक्षिणा होनी थी।दो- तीन लाख लोग क्षेत्र पर उपस्थित हुए थे।यह सब आचार्य महाराज के पुण्य प्रताप का फल था।देखते ही देखते यथासमय गजरथ की फेरी सम्पन्न हो गई और महाराज संघ-सहित प्रतिष्ठा-मंच पर विराज गए।आशीर्वचन सुनने का सभी का मन था। इसी बीच कई लोगों ने एक साथ आकर अत्यंत हर्ष-विभोर होकर कहा कि "आज जो भी हुआ,वह अद्भुत हुआ है,उसे आपका आशीर्वाद और चमत्कार ही मानना चाहिए।आज के दिन इतने कम साधनों के बावजूद भी लाखों लोगों के लिए पानी की पूर्ति कर पाना संभव नहीं था।हम सभी व्यवस्था करके हताश हो गए थे।।प्रशासन ने चार-पाँच ट्यूबवेल खोदे थे;किन्तु पर्याप्त मात्रा में पानी न मिलने पर वह प्रयास भी निष्फल रहा।टैंकर से पानी की व्यवस्था कहाँ तक पूरी हो पाती,पर जैसे ही गजरथ की फेरी प्रारंभ हुई, गजरथ स्थल के समीप जहाँ आपके आशीर्वाद से एक ट्यूबवेल खोदा गया था उसमें खूब पानी निकला।सभी लोगों ने पूरी फेरी होने तक पानी पिया, इस तरह आपके आशीष व कृपा से यह समस्या हल हो गई।चमत्कार हो गया।" आचार्य महाराज ने शान्ति से सारी बात सुनी,फिर अत्यंत निर्लिप्त होकर कहा कि "भैया ! धर्म की प्रभावना तो चतुर्विध संघ के द्वारा इस पंचमकाल में निरन्तर होती रहेगी,इसमें हमारा क्या है ? जहाँ हजारों-लाखों लोगों की सद्भावनाएँ जुड़ती हैं वहाँ कठिन से कठिन काम भी आसान हो जाते हैं।भव्य-जीव इस पावन क्षेत्र पर आकर प्यासे कैसे लौट सकते हैं,सभी की प्यास बुझे-ऐसी परस्पर सद्भावना ही आज के इस कार्य में सफलता का कारण बनी है,हम तो निमित्त मात्र हैं।" सुनकर सभी दंग रह गए।स्वयं की ख्याति,पूजा,लाभ से बचाए रखने वाले ऐसे निस्पृही आचार्य का समागम मिलना हमारा/ सभी का सौभाग्य ही है। वास्तव में इतने बड़े आचार्य होकर भी गुरुजी हमेशा अपने आप को सामान्य मानते है, और जो भी कार्य उनके द्वारा सफल हो जाते है , उन्हें गुरुजी अपने गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के आशीर्वाद से सम्पन्न हो गया,यह कह देते है। धन्य है ऐसे शिष्य जो प्रतिपल अपने गुरु का स्मरण करते रहते है। (बिना कुछ छेड़छाड़ के अन्य ग्रुप में प्रेषित करें??) नैनागिरि(1987) ? साभार-आत्मान्वेषी? ✍ पूज्य मुनि श्री 108 क्षमासागर जी
  23. ☀☀ 50वां स्वर्णिम संस्मरण ☀☀ ? विश्ववंदनीय ? बात महाराजपुर की है, पंचकल्याणक का अंतिम दिन था, सुबह आहार के समय निकलते हुए सब महाराजों ने आचार्य भगवन को नमोस्तु किया, आचार्य श्री जी ने आशीर्वाद दिया, और अंजुली बांधने से पहले रुक गए और कहा कि- सभी महाराज ध्यान रखे, मौसम बदल गया है,ठंड नही गर्मी है, कुछ अलग प्रकार का बहुत गरम मौसम हो गया है, आहार पानी अच्छे से लेकर आना, पंचकल्यानक की परिक्रमा बड़ी और लंबी है , बहुत तेज धूप है आहार अच्छे से करके आना। हमे आश्चर्य लगा, क्योंकि कभी आचार्य श्री जी ने आहार में निकलने से पहले ऐसा कहा नही था। जब आहार के बाद संतभवन पहुँचे तो पता चला कि- आचार्य श्री जी का प्रथम ग्रास में ही अंतराय हो गया था,सुनकर बहुत दुःख हुआ, और उससे भी ज्यादा जिनके यहाँ आहार हुए थे, (पूज्य संस्कार सागर जी के ग्रहस्थावस्था के घर मे)उनकी आंखों में आंसु देखकर हो रहा था। 4 दिन से पंचकल्यानक में बड़ीें मेहनत हो रही है और आज 7 परिक्रमा लगानी है , और आचार्य श्री जी का अंतराय और इतनी तेज गर्मी । लेकिन आचार्य श्री जी मुस्कुरा रहे थे, उन्हें देखकर कह नही सकते थे कि आज उनका अंतराय है,सभी से अच्छे से बात की और अच्छे से आशीर्वाद दिया, फिर ईर्यापथ भक्ति हुई, भक्ति के बाद महाराजों ने कहा- आचार्य श्री जी हमें आपकी सेवा करना है,आचार्य श्री जी ने कहा- हाँ, हाँ देखते है, और सामायिक के लिए बैठ गए। हम लोगो ने सोचा कि- अभी सामायिक के बाद आचार्य श्री जी को रोक लेंगे और पंचकल्यानक स्थल पहुँचने से पहले उनकी सेवा कर लेंगे। सामायिक के बाद आचार्य श्री जी ने सब महाराजों से पहले स्वयम्भू स्त्रोत पढ़ लिया और भक्ति कर ली। और जैसी ही संतभवन के बाहर अपना पहला कदम रखा, न जाने कौन सा चमत्कार हुआ कि अचानक आसमान में बादल छा गए, और जैसे ही गुरुजी ने पंचकल्यानक स्थल की ओर कदम बढ़ाया,अपने आप ठंडी हवाएं चलने लगी। पहली परिक्रमा में ठंडी हवा चलती गयी, दूसरी में और ज्यादा ठंडी, तीसरी में और ऐसे करते करते 7 वीं परिक्रमा में बहुत तेज़ ठंडी हवाएं चलने लगी। महाराज लोग सोच रहे थे, हम लोग क्या वैयावृत्ति करे गुरुजी की, उनकी तो देव लोग वैयावृत्ति कर रहे है। चारो तरफ माहौल बिल्कुल ठंडा हो गया था, परिक्रमा होने के बाद , सभी कार्यक्रम अच्छे से सम्पन्न हुए, जैसे ही आचार्य श्री जी संतभवन पहुँचे, कड़कती तेज़ धूप हो गयी।जब महाराज लोगों ने पता लगाया कि- ये मौसम कहाँ, कहाँ था? और पता चला कि- महाराजपुर के आधे km के अंदर ही ऐसा मौसम था, अन्य जगह चारो तरफ तेज़ धूप थी,मतलब देवलोग आके सेवा करके चले गए। ऐसे 1 नहीं कई संस्मरण है जब देवताओं ने आचार्य श्री जी की वैयावृत्ति की है। सच बात है, हमारे आचार्य भगवन जिनकी चर्या,इतनी उत्कृष्ट है, और जिनकी हृदय में करुणा बसती है ,आज भी देव भी उनकी सेवा करने आते है। देवता भी उनके चरणों की वंदना करते है। और साथ ही आचार्य भगवन सारे विश्व मे वंदनीय, और पूज्यनीय भी है। ? पूज्य मुनि श्री दुर्लभसागर जी महाराज के प्रथम 28 जुलाई 2017 रामटेक में हुए प्रवचन में सुना हुआ संस्मरण
  24. ?????????? ☀☀ संस्मरण क्रमांक 49☀☀ ? अद्भुत गुरु भक्ति ? आज सारे विश्व को एक अद्भुत हीरा,जो युगों-युगों तक चमकेगा, ऐसे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज रूपी हीरे को देने का श्रेय पूज्य आचार्य भगवन श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराजको जाता है। अध्यात्म सरोवर के राजहंस आगम की पर्याय संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे महाश्रमण, जिन के चरणों में नतमस्तक होते हैं जिनका गुणानुवाद करते हुए भाव विभोर होते हो, अपनी ह्रदय वेदिका पर उन्होंने जिन्हें प्रतिष्ठित कर रखा है।ऐसे पूज्य परम श्रद्धेय आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज महाराज के प्रति आचार्य श्री का अद्भुत समर्पण, असीम प्रेम और अद्वितीय गुरु भक्ति दिखाई देती है। एक बार पिच्छिधारी एक शिष्य ने आचार्य श्री जी से पूछा- "भगवन!आपको अपने गुरु (ज्ञान सागर जी)की याद आती होगी।" आचार्य श्री बोले- "आनी ही चाहिए,सपनों में खूब दिखते हैं।सल्लेखना वाला दृश्य भी दिखता है,मुझे तो लगता ही नहीं कि वह है ही नहीं। शिष्य ने कहा- यह आपकी आस्था की सघनता है आचार्य श्री जी बोले - "हमारी आस्था भी वह है, रास्ता भी वह है और शास्ता (गुरु) भी वो ही हैं।यह याददाश्त भी उन्हीं की है।" सच में आचार्य श्री जी अपने गुरु ज्ञानसागर जी महाराज के अनंत उपकारों का हमेशा स्मरण करते रहते है। आचार्य श्री जी, ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा करते है- वे तो धन्य थे ही, हम अपने आपको भी धन्य समझते हैं कि उन्होंने अपने पास रखते हुए हमें ऐसी उत्कृष्ट सल्लेखना भी दिखा दी। ? आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम प्रणामाञ्जली भाग 1 से साभार?
  25. ☀☀ संस्मरण क्रमांक 48☀☀ ? इंटेन्शन ? गर्मी का समय था , विहार चल रहा था। सामायिक के उपरान्त मै आचार्य गुरुदेव के चरणों के समीप जाकर बैठ गया, नमोस्तु किया । आचार्य श्री जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा - क्यों कुंथु गाड़ी (स्वास्थ) ठीक है , आज थोड़ा ज्यादा चलना है। मैने कहा जी आचार्य श्री जी लेकिन गर्मी बहुत है । ऐसी गर्मी में जमीन बहुत गर्म है , लू चल रही है । इतनी धूप में जल्दि विहार कैसे करेगे । आचार्य महाराज कुछ चिन्तन करने के बाद बोले - भैया ठंड दिमाग से चलो भले गर्मी में चलो , कुछ नही होगा । "इंटेन्शन ठीक रखो टेंशन नही होगा ।" मैने कहा आप तो है हमारा इंटेन्शन सुधारने वाले और टेंशन दूर करने वाले । फिर हमें काहे का टेंशन *सभी लोग हस पड़े)। सच बात है, गुरुजी को जीवन समर्पित कर देने के बाद हमे तनाव मुक्त हो जाना चाहिए। गुरु को नाव बना बैठा तू , फिर क्यों तनाव में ? संस्मरण पुस्तक से साभार ? ✍ मुनि श्री कुंथुसागर जी महामुनिराज✍
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