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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. Acharya Vidya Sagar Ji Maharaj | Silwani-Sagar (M.P) | LIVE | 14-01-2017 - Part 1 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  2. Acharya Vidya Sagar Ji Maharaj | Sagar (M.P) | LIVE | 13-01-2017 | Part 3 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  3. Acharya Vidya Sagar Ji Maharaj | Sagar (M.P) | LIVE | 13-01-2017 | Part 2 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  4. Acharya Vidya Sagar Ji Maharaj | Sagar (M.P) | LIVE | 13-01-2017 | Part 1 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  5. पौधे न रोपे, छाया और चाहते, निकम्मे से हो।(पौरुष्य नहीं) हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  6. शून्य को देखूँ, वैराग्य बढ़े-बढ़े, नेत्र की ज्योति। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  7. उससे डरो, जो तुम्हारे क्रोध को, पीते ही जाते। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  8. घी दूध पुन:, बने तो मुक्त पुन:, हम से रागी। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  9. काले मेघ भी, नीचे तपी धरा को, देख रो पड़े। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  10. भूत सपना, वर्तमान अपना, भावी कल्पना। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  11. पैर उठते, सीधे मोती के भी पै, उल्टे पड़ते। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  12. कमल खिले, दिन के ग्रहण में, करबद्ध हों। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  13. गूँगा गुड़ का, स्वाद क्या नहीं लेता ? वक्ता क्यों बनो ? हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  14. मोक्षमार्ग तो, भीतर अधिक है, बाहर कम। हायकू जापानी छंद की कविता है इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर है। यह संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाली है। आओ करे हायकू स्वाध्याय आप इस हायकू का अर्थ लिख सकते हैं। आप इसका अर्थ उदाहरण से भी समझा सकते हैं। आप इस हायकू का चित्र बना सकते हैं। लिखिए हमे आपके विचार क्या इस हायकू में आपके अनुभव झलकते हैं। इसके माध्यम से हम अपना जीवन चरित्र कैसे उत्कर्ष बना सकते हैं ?
  15. भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्रसंत, दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की दीक्षा के ५० वर्ष जून २०१८ में पूरे होने हैं । इसे 'संयम स्वर्ण महोत्सव' के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है। इस उपलक्ष्य में साल भर अनेक कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष के विभिन्न नगरों एवं ज़िलों में हो रहे हैं। इन दिनों चातुर्मास हेतु आचार्य श्री जी रामटेक, नागपुर में विराजमान हैं और प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में देश और विदेशों से भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँच रहे है, भारत के राष्ट्रपति महामहिम श्री रामनाथ कोविंद जी ने भी आज अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ बहुमूल्य समय आचार्य जी के सान्निध्य में बिताया और उनसे भारत और भारत के जनसामान्य के उत्थान, हथकरघा, स्वाबलंन व भारतीय भाषाओं के संरक्षण आदि विषयों पर चर्चा की । राष्ट्रपति कोविंद जी स्वयं प्रेरणा एवं ज्ञान के स्त्रोत हैं, उनकी और आचार्य जी की एक साथ श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, रामटेक के मंदिर में उपस्थिति, इस पावन भूमि के इतिहास में अविस्मर्णीय रहेगी । राष्ट्रपति जी ने आचार्य जी को श्रीफल भेंट कर आशीष ग्रहण किया। संत आचार्य श्री जी ज्ञानी, मनोज्ञ तथा वाग्मी साधु हैं और साथ ही साथ में प्रज्ञा, प्रतिभा और तपस्या की जीवंत-मूर्ति भी हैं । कविता की तरह रम्य, उत्प्रेरक, उदात्त, ज्ञेय और सुकोमल व्यक्तित्व के धनी हैं विद्यासागर जी महाराज। राष्ट्रपति जी के साथ उनके साथ उनके बड़े भाई ने भी गुरुदेव के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी विद्यासागर राव जी, केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी व महाराष्ट्र के यशस्वी मुख्य मंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस ने भी आशीर्वाद प्राप्त किया। राष्ट्रपति जी व अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने गुरुदेव के दर्शन करने के बाद प्रसन्नता व्यक्त की। इस दिनों भारत के सभी प्रमुख जैन मंदिरों में आचार्यश्री के विशेष संगीतमय पूजन का आयोजन हो रहा है। नगर-नगर वृक्षारोपण किया जाएगा, अस्पतालों/अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में फल एवं जरूरत की सामग्री का वितरण, जरूरतमंदों को खाद्यान्न, वस्त्र वितरण आदि का आयोजन भी किया जा रहा है।
  16. संतत्व से सिद्धत्व तक के अविराम यात्री, गतिशील साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी दिगम्बरत्वरूपी आकाश में विचरण करने वाले एक आध्यात्मिक सूर्य हैं। भारत की पवित्र भूमि को पावन करने वाले महापुरुषों में आप एक दैदीप्यमान महापुरुष हैं। राष्ट्र, समाज एवं प्राणी मात्र के आप शुभंकर हैं। मोक्ष पिपासुओं के लिए आप शीतल व निर्मल जल की धार हैं। आपको क्या कहूँ...। आप तो साक्षात् चलते-फिरते तीर्थकर-सम भगवन्त हैं। अनेक बार दर्शनों के पश्चात् भी जिनके दर्शन की प्यास लगी ही रहती है, ऐसे आचार्यप्रवर श्री विद्यासागरजी के संयम पथ के पचास वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुरु चरणों में हम गुरुचरणानुरागियों द्वारा कुछ ऐसे पुष्प अर्पण करने के भाव बने, जिनसे जन-जन का कल्याण हो सके, जो राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकें, संस्कृति एवं संस्कार जिनसे संरक्षित रह सकें, भारत की भारतीयता जिससे सुरक्षित रह सके। ऐसे वे पुष्प आचार्य श्री ज्ञानसागरजी द्वारा बोए गए बीज से बने आचार्य श्री विद्यासागरजी रूपी वृक्ष से झरने वाले थे, जो मोती की भाँति बिखरे थे सर्वत्र। किन्हीं की डायरियों में, किन्हीं की स्मृतियों में अथवा संस्मरणों में। अब उन्हें माला का रूप देकर अर्पण करना था गुरु चरणों में, 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' की भावना से। इस भावना ने आकार पाया 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम' के रूप में। यूँ तो हर रचना या ग्रन्थ अपने आप में महत्वपूर्ण है, किन्तु यह पाठ्यपुस्तक साधारण नहीं है, क्योंकि इसमें समाविष्ट है। गुरु की महिमा क्या है, गुरु वचनों की पालना कैसे होती है, किस प्रकार अनुसरण करके गुरु के नाम के साथ अपनी पहचान एकाकार की जाती है। ऐसे जीवन्त उदाहरण, जिन्हें साक्षात् आचरण में उतारा गया है, जिया गया है व पालन किया गया है। आचार्य श्री विद्यासागरजी के प्रवचनों के चयनित अंश, उनके द्वारा रचित ग्रंथों में व्यक्त महत्वपूर्ण धारणाएँ व विचार, उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से संचालित मानव कल्याणकारी कायाँ, तीर्थीद्धार, मंदिर निर्माण व जीष्णौद्धार, राष्ट्र, संस्कृति, शिक्षा, स्वभाषा, संस्कार, शुद्ध आहार-विहार, जिनधर्मानुशासन तथा सिद्धान्तों आदि पर उनके विशिष्ट विचार, उनके द्वारा लिखित कुछ सामान्य कविताएँ एवं संक्षिप्त शब्दों में निबद्ध किंतु भावों से गहन 'हाइकू' कविताएँ अथवा विभिन्न अवसरों पर प्रकट किए गए उद्गारों तथा दिव्य देशना को ही सात पाठ्यपुस्तकों के रूप में सँजोकर इस पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया जा रहा है। 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम'का उद्देश्य है आचार्य भगवन्त के आहवान को जन-जन की आवाज बनाने के लक्ष्य को पूर्ण करना। जैसे, ‘भारत, भारत बने, गारत नहीं', 'अहिंसा भारत का प्राण हो', 'शिक्षा जीवन का निर्माण करे, निर्वाह नहीं', 'भारतीय संस्कृति एवं संस्कार सुरक्षित रहें', 'श्रमण धर्म अपने धर्मी में वास करे' आदि-आदि। जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों के पर्याय के रूप में, जिनका जीवन है, ऐसे युगशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी के जीवन चरित्र को पढ़कर अध्येता अपने जीवन का निर्माण कर सकें। किसी ऐतिहासिक महापुरुष का जीवन चरित्र जब पढ़ते हैं तो लगता है कि एक बार, बस एक बार ही सही उनका प्रत्यक्ष दर्शन हो जाए। वर्तमान के महापुरुष का, वर्तमान में ही जीवन चरित्र प्रस्तुत कर, इस परम सौभाग्य को प्राप्त कराना भी इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य है। सरल से दिखते इस पत्राचार पाठ्यक्रम का कार्य अत्यंत दुरूह, समय व श्रम साध्य था। इसकी सामग्री संकलित करने तथा लिखने में अनेक भव्यात्माओं का अथक श्रम समाहित है। इसमें डॉ. जयकुमार जैन, शास्त्री, मुजफ्फर नगर, उत्तरप्रदेश के साथ अनगिनत भव्यजनों का सहयोग मिला। कइयों ने सहभागिता की। कुछ ने लिखा, किसी ने सामग्री एकत्रित की, किसी ने छाँटी, अन्य ने आचार्यश्रीजी के प्रवचनों को सुना फिर संगणीकृत (कम्प्यूटराइज्ड) किया। उन सभी सहयोगियों, विद्वानों व लेखकों आदि, जिनका भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इसमें सहयोग मिला, उन सबके प्रति हम कृतज्ञ हैं। पर हम जो भी हैं उसी टोली के सदस्य हैं। कौन-किसका आभार व्यक्त करे, किसके प्रति कृतज्ञ होवें। यह पाठ्यक्रम पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो इसके पूर्व हम गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को स्मरण करते हुए, हम हमारे आराध्य आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महाराज के चरणों में, उनके द्वारा की गई गुरु चरण सान्निध्य की अनुभूतियों के संकलन रूप पुष्प ‘प्रणामांजलि' को समर्पित करते हुए अनंतानंत बार नमोऽस्तु निवेदित करते हैं। आचार्य संघ के चरणों में भी भक्तिभाव पूर्वक बारम्बार नमन करते हैं। कुछ भव्य प्राणी इन्हें पढ़कर मोक्षमार्ग पर प्रवृत्त हो जाएँ, किन्हीं के कषायों में कमी आ जाए, कोई-कोई के पुण्योदय से कर्मों की निर्जरा हो जाए, कोई नि:स्वार्थ भाव से लोक कल्याणकारी कार्यों में निष्काम समर्पित हो जाएँ और उनके उपयोग का शुद्धोपयोग हो जाए, तो समझो इस असाध्य श्रम की प्रतिष्ठा हो गई और पत्राचार पाठ्यक्रम का होना सार्थक हुआ। 'संयम स्वर्ण महोत्सव' की प्रस्तुति के रूप में 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठयक्रम' की इस प्रथम कृति में सुधी, मनीषी एवं विद्वान् आदि समस्त पाठकगण अवगाहन करें तथा जन-जन तक इस कृति का प्रचार-प्रसार एवं आत्मलाभ हो, ऐसी शुभभावना एवं सत्प्रेरणा को स्वीकार करके जीवन को सफल, सुफल करें। इस पुस्तक के लेखन एवं सम्पादन में जो त्रुटियाँ रह गई हों, वो हमारी हैं और जो कुछ भी अच्छा है वह गुरुवर का है। गुरुचरणानुरागी
  17. पाठ्यपुस्तक १ - प्रणामांजलि यह प्रथम पाठ्यपुस्तक है जो आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के दीक्षा दिवस पर पाठकों तक पहुँचेगी। इसमें आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा इन पचास वर्षों में अपने गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को जिन-जिन रूपों में स्मरण किया गया है, उन विषयों को 10 अध्यायों के रूप में बाँटा गया है। एक दिव्य पुरुष आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का निर्माण जिनके द्वारा हुआ है ऐसे अलौकिक पुरुष आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को वह जिस समर्पित भाव से एवं याचक भाव से स्मरण करते हैं, वे भाव आत्मा को स्पन्दित कर देते हैं। जिनको पूरी दुनिया भगवान तुल्य मानती है, वो स्वयं अपने गुरु का गुणगान करते नजर आते हैं तो युगों-युगों से चली आ रही भारत की गुरु-शिष्य परंपरा जीवंत हो जाती है। पाठ्यपुस्तक २ - अनिर्वचनीय व्यक्तित्व इस पाठ्यपुस्तक में आचार्यश्री के धरा पर अवतरण, दिव्य चेतना की प्रासि से लेकर आचार्य पद की प्राप्ति तक की यात्रा है। एक आचार्य के रूप में इतने बड़े संघ के संचालन की नीति, सरल हृदयी परंतु दृढ़ अनुशासक की उनकी भूमिका और आगम के अनुरूप श्रेष्ठतम आचरण पर प्रकाश डाला गया है। उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक एवं सौम्य है उतना ही आभ्यन्तरीय व्यक्तित्व भी निर्मल एवं पवित्र है। मर्यादा पुरूषोत्तम कुशल साधक के रूप में उनके जीवन का यह हिस्सा सामान्य श्रावक ही नहीं वरन समस्त साधु समाज के लिए भी प्रेरणा और चिंतन का विषय है। संस्मरणों के माध्यम से आचार्यश्रीजी के अन्तरंग की साधना को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है वह भावुक पाठकों के हृदय में सीधे उतर कर सच्चरित्रवान बनने की प्रेरणा देती है। पाठ्यपुस्तक ३ - श्रमण परंपरा संप्रवाहक इस पाठ्यपुस्तक में श्रमण संस्कृति की अनादिकालीनता सिद्ध की गई है एवं तीर्थकर महावीर स्वामी जी की श्रमण परम्परा की आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा आगमानुसार किस तरह से संवद्धित किया गया, इसका वर्णन है। जैन समाज द्वारा आज भी अपनी मूल संस्कृति को उसके मूलरूप में ही जीवित रखा गया है। जैनदर्शन में आत्मा के मोक्ष की प्राप्ति में सल्लेखना पूर्वक मरण का अपना एक विशेष महत्व बताया गया है। सल्लेखना क्यों, जैसे नाजुक विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टि से बात रखी गयी है। गुरुदेव की सोच इतनी विशाल है कि वो हर विषय वैज्ञानिक, ताकिक और भावनात्मक पहलुओं से व्याख्या करते हैं। पाठ्यपुस्तक ४ - सर्वविध साहित्य संवर्द्धक प्रथम खण्ड : गुरुवर की साहित्यिक यात्रा कालिदास, माघ, हर्ष और भारवी जैसे कवियों की परंपरा को समृद्ध करने वाले श्रमणाचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज के सुशिष्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की साहित्यिक कला कौशल विरासत में प्राप्त है। कभी वो कवि मन हो जाते हैं तो कभी गूढ़चिंतक, कभी वो आलोचक बन जाते हैं तो कभी भाषा विद्वान्। आपके द्वारा विभिन्न भाषाओं एवं विभिन्न विधाओं में साहित्य की विपुल संवर्द्धना हुई है। संस्कृत भाषा में छह शतक, धीवरोदय (अप्रकाशित चम्पू काव्य), शारदानुति, पंचास्तिकाय (अप्रकाशित काव्य) एवं पचास के करीब जापानी छंद 'हाइकू'। हिन्दी भाषा में मूकमाटी महाकाव्य, छह शतक एवं पाँच सौ के करीब 'हाइकू'। कन्नड, हिन्दी, बंगला, प्राकृत एवं अंग्रेजी भाष में कविताएँ आपके द्वारा साहित्य जगत् को प्रदान की गई हैं। और प्रवचनसार, नियमसार, रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि २२ आर्ष प्रणीत ग्रंथों, संस्कृत की ९ भक्तियों एवं स्वरचित संस्कृत के छहों शतकों का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद भी किया गया है। इस पाठयपुस्तक में आपके द्वारा रचित साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय खण्ड : सुभाषितामृत - आचार्यश्रीजी के प्रवचनों के बीच में अनेक ऐसे सुभाषित वचन और क्रांतिकारी पंक्तियाँ होती हैं जिन पर पूरे शास्त्र लिखे जा सकते हैं। कहा भी गया है कि जीवन बदलने के लिए लंबे-लंबे पोथी-पत्रों की जरूरत नहीं है। कब, कहाँ कौन सी एक लाइन सुनकर जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाए, कोई नहीं जानता। इस पाठ्यपुस्तक में उनके महान् साहित्य और मर्मस्पर्शी प्रवचनों से अनेक ऐसे विचारों को प्रस्तुत किया गया है जो पाठक के सोचने के तरीके को बदलने की ताकत रखते हैं। आपके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर २ डी.लिट्., २७ पी.एच्.डी., ८ एम.फिल., २ एम.एड. एवं ६ एम.ए. के लघु शोध प्रबंध अब तक लिखे जा चुके हैं। आपके साहित्य में जीवन के समग्र पहलुओं पर विचार किया गया है। इस कारण आपके साहित्य से विश्व साहित्य की संवर्द्धना हुई है। पाठ्यपुस्तक ५ - तीर्थ शिरोमणि प्रथम खण्ड : भवोदधिपोत एक महान् तीर्थोंद्वारक और तीर्थप्रणेता के रूप में आचार्यश्री जैन समाज के हृदय में युगोंयुगों तक स्थापित रहेंगे। कुण्डलपुर बड़ेबाबा से लेकर नेमावर सिद्धोदयक्षेत्र तक और सर्वोदय अमरकंटक से लेकर विदिशा शीतलधाम एवं रामटेक क्षेत्र तक गुरुदेव के आशीर्वाद से विशाल तीर्थ बने हैं। ये तीर्थ आने वाली सदियों तक जिन संस्कृति का परचम लहराएँगे। यह पाठ्यपुस्तक आपको तीर्थ क्या है, तीर्थ की महत्ता क्या है एवं जैन तीर्थ संवर्धन में गुरुदेव का योगदान क्या है, इससे परिचित कराएगी। द्वितीय खण्ड : अर्हन्निर्माण इस पाठ्यपुस्तक में आगमोत जिनबिम्ब प्रतिष्ठा का संक्षित वर्णन है। जो स्वयं भगवान् बनने चले हैं एवं अनेक भव्यात्माओं को भी साथ लिए हैं, ऐसे भावी भगवान् आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा जिनबिम्बों की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर, कैसे भगवान् बना जाता है इस पर आधारित जो प्रवचन दिए हैं, उन प्रवचनांशों को प्रस्तुत किया गया है। पाठ्यपुस्तक ६ - राष्ट्रगरिमा संजीवक प्रथम खण्ड : शिक्षा से निर्वाह नहीं निर्माण प्राचीन भारत में शिक्षण कार्य गुरुकुलों में चारित्रनिष्ठ साधकों द्वारा किया जाता था। इससे विद्यार्थियों का निर्वाह नहीं, निर्माण हुआ करता था। आचार्य श्री विद्यासागरजी की प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में गहरी आस्था है। गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करने का उन्होंने बीड़ा उठाया है। उनका संदेश है 'शिक्षा अर्थ सापेक्ष न होकर कर्म और कौशल सापेक्ष हो'। वे चाहते हैं कि आज विदेशी शिक्षा पद्धति से प्रदूषित होते जा रहे समाज में प्राचीन भारतीय गुरुकुल शिक्षण पद्धति का अनुसरण करते हुए सम सामयिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मन में संस्कारों का पल्लवन हो सके और आदर्श प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के अंकुर फूट सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही उनके आशीर्वाद से 'प्रतिभास्थली' रूप तीन शिक्षण संस्थान खड़े किए गए हैं। इनमें ब्रह्मचारणी बहनों के रूप में आदर्श शिक्षकों / गुरुओं की पौध तैयार कि गई है, जो निस्पृह व नि:स्वार्थ भाव से बिना वेतन की अपेक्षा किए इस सेवा कार्य को तन-मन से कर रही हैं। एक महान् शिक्षाविद् के रूप में प्राचीन और वर्तमान शिक्षा के बारे में उनके क्रांतिकारी विचारों को इस पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय खण्ड : शील की रक्षा, देश की सुरक्षा आचार्यश्रीजी को भारतीय संस्कृति के पोषक, प्रचारक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है। यह पाठ्यपुस्तक भारतीय संस्कृति-संस्कार और जैन संस्कृति संस्कार एवं जैन संस्कृति ने भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव डाला और वैश्वीकरण ने भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव डाला इन विषयों पर आचार्यश्रीजी की दृष्टि / चिंतन से आपको अवगत कराएगी। तृतीय खण्ड : वतन को बचाओ पतन से – जैन दर्शन सूक्ष्मतम अहिंसा में विश्वास करता है और अहिंसा ही विश्व की अधिकांश समस्याओं का समाधान है। इस पाठ्यपुस्तक में जैन दर्शन तथा अन्य दर्शनों में अहिंसा की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। आचार्यश्रीजी को 'सर्वोच्च अहिंसक' क्यों कहा जाता है, इस पाठ्यपुस्तक में आप जानेंगे। मांस निर्यात निषेध, अहिंसा दीक्षा के साथ-साथ हिंसा रोकने के लिए अहिंसक व्यवसाय करने का भी गुरुदेव ने शंखनाद किया, जो अपने आप में अनूठा है। फलत: शांतिधारा दुग्ध योजना, जैविकीय खेती, हथकरघा संवर्धन की मुहिम देश के कोने-कोने में फैल रही है। अहिंसा को कैसे जिया जाता है, जीवन में कैसे उतारा जा सकता है, राष्ट्र और समाज के समक्ष इसके जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। चतुर्थ खण्ड : इण्डिया हटाओ भारत लौटाओ - यह अद्भुत पाठ्यपुस्तक एक श्रमण के राष्ट्र निर्माण के संकल्प की विलक्षण गाथा से आपको परिचित कराती है। इंडिया नहीं भारत बोली, अंग्रेजी नहीं हिन्दी बोली, कार्य और व्यवहार में मातृभाषा का उपयोग करो, मतदान, राजतंत्र, लोकतंत्र, स्वदेशिता, स्वरोजगार आदि विषयों पर गुरुदेव के विचार क्रांतिकारी हैं। इन भारतीयता प्रधान विचारों की देश के प्रधानमंत्री से लेकर मूर्धन्य बुद्धिजीवियों ने भी सराहना की है। गुरुदेव भारतीय संस्कृति के प्रखर रक्षक और हिमायती हैं। यह पाठ्यपुस्तक देश के जनप्रतिनिधियों, शासकों, प्रशासकों, नीति निर्धारकों, राष्ट्र निर्माताओं के लिए दिशा सूचक है, जिससे राष्ट्र निर्माण का कार्य सुचारु रूप से हो सके। पाठ्यपुस्तक ७ - आस्था के ईश्वर आचार्य श्री विद्यासागरजी 'महाराजा' हैं और महाराजा के चरणों में राजा-प्रजा, विद्वान् और कवि, बुद्धिजीवी एवं सामान्य सभी नतमस्तक होते हैं, कभी ज्ञान की ललक में, कभी आशीर्वाद की चाह में, कभी मार्गदर्शन की आशा लिए। उनके अद्भुत व्यक्तित्व की शरण में जो भी आता है, वह उनका हो जाता है। उनके आभामण्डल में आकर प्रत्येक भव्यात्मा को आनंद की अनुभूति होती है, एक अलौकिक शांति का एहसास होता है। भारत के लगभग सभी शीर्षस्थ राजनेताओं, अधिकारियों और बुद्धिजीवियों ने आचार्यश्रीजी के चरणों में माथा टेका है। इन सौभाग्यशाली व्यक्तियों द्वारा गुरु दर्शनों से हुई रोमांचकारी अनुभूतियों को इस पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें पढ़कर गुरुओं के प्रति आस्था बलवती हो उठती है। विभिन्न जाति, धर्म, प्रांत और कार्यक्षेत्र की इन शीर्षस्थ विभूतियों की गुरुदेव और उनके चिंतन के प्रति आस्था, यह बताती है कि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज जाति और धर्म जैसे छोटे बंधनों से परे एक महान् चिंतक और राष्ट्रसंत हैं। दुनिया के विभिन्न देशों से उच्चशिक्षित नौकरी पेशेवरों ने अपना काम छोड़कर गुरुदेव की प्रेरणा से समाजहित में जीवन समर्पित कर दिया है, यह विश्वस्तर पर विश्वसंत के रूप में गुरुदेव के प्रभाव का परिचायक है। इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने वाले प्रतिभागी गुरुदेव के एक अंश को भी जीवन में उतार पायें तो अद्भुत परिवर्तन निश्चित है, क्योंकि इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना भी बहुत बड़ा सौभाग्य है। इस अवसर का पूरी शक्ति से लाभ उठाकर पहले भीतर से बदलें और फिर बाहर को बदलें।
  18. Acharya Vidya Sagar ji Maharaj | Sagar(M.P) | 13-01-2017 | LIVE - Part 3 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  19. Acharya Vidya Sagar ji Maharaj | Sagar(M.P) | 13-01-2017 | LIVE - Part 2 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
  20. Acharya Vidya Sagar ji Maharaj | Sagar(M.P) | 13-01-2017 | LIVE - Part 1 आप से निवेदन : इस प्रवचन का टाइटल, सारांश एवं टिप्पणी नीचे जरूर लिखें
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